Category: बुद्धिनाथ मिश्र

बुद्धिनाथ मिश्र की कविताएँ

(1) असहिष्णु चुप थी गंगा सदियों से तो बड़ी भली थी लगी बोलने जब से दुनिया है अचरज में। कितना बड़ा अनर्थ हो रहा है भूतल पर! दासी देती है…

डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र

‘एक बार और जाल फेंक रे मछेरे/जाने किस मछली में बंधन की चाह हो’ जैसे अनेकों कालजयी गीतों के कवि डॉ बुद्धिनाथ मिश्र आधी सदी से हिन्दी काव्य मंच के…

Translate This Website »