राजभाषा संस्मरण

~ विजय नगरकर, महाराष्ट्र

हमारे ज़िले के उस शांत और नैसर्गिक ग्रामीण क्षेत्र में स्थित महाविद्यालय का वातावरण आज भी मेरी स्मृति में ताज़ा है। मुझे वहाँ हिंदी भाषा और उसके माध्यम से खुलने वाले रोज़गार के असंख्य अवसरों पर युवाओं का मार्गदर्शन करने के लिए आमंत्रित किया गया था।

 मन में एक उत्साह था कि कैसे अपनी राजभाषा, जो अक्सर केवल सरकारी कामकाज की भाषा समझी जाती है, वास्तव में सपनों तक पहुँचने का एक सशक्त माध्यम बन सकती है।

मैंने विस्तार से बताया कि कैसे केंद्र सरकार के कार्यालयों में अनुवादक के पद, या राजभाषा अधिकारी की प्रतिष्ठित भर्ती प्रक्रियाएं हिंदी के ज्ञान के बिना संभव नहीं। पत्रकारिता, शिक्षा, मनोरंजन जगत की चमक, अनुवाद की दुनिया, और तेज़ी से बढ़ते इलेक्ट्रॉनिक मीडिया – हर क्षेत्र में हिंदी अपनी जड़ें जमाए हुए है और युवाओं के लिए राहें खोल रही है। मेरा प्रयास था कि मैं उन आँखों में संभावनाओं की चिंगारी जला सकूँ, जो शायद अपने ग्रामीण परिवेश में अवसरों की कमी महसूस कर रही थीं।

व्याख्यान समाप्त हुआ और हमेशा की तरह, प्रश्नोत्तर का सत्र शुरू हुआ। छात्र अपनी जिज्ञासाएं लेकर सामने आ रहे थे। तभी, भीड़ में से एक युवा, बिलकुल अनुशासित ढंग से, मेरे पास आया। उसके चेहरे पर कुछ अजीब सा भाव था – संकोच, सम्मान और कुछ अनकही भावनाएं। उसने आते ही पूरी विनम्रता से सेल्यूट किया और उसके पहले शब्द थे, “सर, मैं जीवन भर आपका बहुत आभारी रहूँगा!”

मैं क्षण भर के लिए असमंजस में पड़ गया। उस पल मुझे कुछ याद नहीं आ रहा था कि मैंने इस युवक के लिए ऐसा क्या उपकार किया था जिसके लिए वह इतना कृतज्ञ हो रहा है। मेरी हैरानी भाँपकर वह बोला, “सर, आपको शायद याद न हो, लेकिन दो साल पहले आपने इसी महाविद्यालय में एक व्याख्यान दिया था। आपने तब मिलिट्री भर्ती परीक्षा की तैयारी के लिए कुछ विशेष गाइड और किताबों की जानकारी दी थी, जो दिल्ली के एक प्रकाशन की थीं। सर, हमारे छोटे से कस्बे में हिंदी माध्यम की ऐसी प्रतियोगिता परीक्षाओं की किताबें मिलना लगभग असंभव था। परिवार की ज़िम्मेदारी मेरे कंधों पर थी और मुझे जल्द से जल्द नौकरी चाहिए थी… आपकी बताई जानकारी से मुझे वो किताबें मिलीं, मैंने तैयारी की और आज… आज मुझे भारतीय सेना में सैनिक के रूप में नियुक्ति मिल गई है!”

उसके चेहरे पर नौकरी पाने की असीम खुशी और आँखों में मेरे प्रति सच्ची और गहरी कृतज्ञता का भाव स्पष्ट चमक रहा था। उस पल मुझे अपनी बात का वास्तविक अर्थ समझ आया।

यह घटना मेरे लिए एक आँखें खोल देने वाला अनुभव था। ।

बाद में जब मैंने इस बारे में और जानकारी जुटाई, तो पता चला कि यह केवल उस एक युवक की कहानी नहीं थी। महाराष्ट्र जैसे राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों के लाखों युवाओं को भारतीय सेना जैसी प्रतिष्ठित सेवा में रोज़गार के अवसर केवल और केवल हिंदी भाषा के कारण मिले थे। ग्रामीण परिवेश से आने वाले ये युवा अंग्रेजी की तुलना में हिंदी में प्रतियोगिता परीक्षाओं को अधिक सहजता से समझकर उत्तीर्ण कर पाते हैं। प्रश्न पत्रों का द्विभाषी होना (हिंदी और अंग्रेजी दोनों में उपलब्ध होना) ऐसे लाखों बेरोजगार युवाओं के लिए एक बहुत बड़ा वरदान साबित हुआ है।

यह स्पष्ट था कि ग्रामीण क्षेत्रों की नई पीढ़ी अब अवसरों को पहचान रही है और अंग्रेजी के बढ़ते प्रभाव के बावजूद, वे हिंदी को अपना रहे हैं, क्योंकि हिंदी उनके लिए सफलता और सम्मानजनक रोज़गार के द्वार खोल रही है। उस एक युवक की कृतज्ञता भरी आँखों ने मुझे भाषा की असली शक्ति का अहसास कराया – राजभाषा हिंदी की शक्ति, जो केवल सरकारी कामकाज की ज़ुबान नहीं, बल्कि लाखों युवाओं के सपनों को हकीकत में बदलने का एक जीवंत और सशक्त माध्यम बन गई है।

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