योग का विदेश में बढ़ता प्रचार–प्रसार

    समत्वम योग उच्यते, अर्थात मन का समभाव ही योग कहलाता है। योग: कर्मसुकौशलम, सर्वविदित है। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के आलोक में वैश्विक हिन्दी परिवार द्वारा सहयोगी संस्थाओं के तत्वावधान में 22 जून 2025 को “ योग के विदेश में बढ़ते प्रचार प्रसार, पर आभासी कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसकी अध्यक्षता करते हुए अमेरिका के सुप्रसिद्ध योग शिक्षक एवं चिकित्सक डॉ॰ धनंजय कुमार ने सभी को बधाई देते हुए कहा की तनाव से गुजर रही दुनियाँ को योग ही शांति दे सकता है। लगभग चार दशकों से 50 से अधिक देशों में योग शिक्षा प्रदाता और दर्जनों पुस्तकों के प्रणेता डॉ॰ धनंजय जी ने अनुशासन के साथ शुरुआती योगाभ्यास के संकेत दिये। उन्होने कहा कि शरीर की संभाव्य अनुकूलता के अनुसार एक ही समय और स्थान पर आरामदायक कपड़ों में अपने स्वास्थ्य को समझकर नियमित योगाभ्यास का प्रयास करें तथा दूसरों से स्पर्धा न कर धीरे- धीरे रफ्तार लें। योग से असाध्य रोगों का निदान  संभव है। इस कार्यक्रम में देश -विदेश से अनेक साहित्यकार, विद्वान विदुषी, तकनीकीविद, योग साधक, प्राध्यापक,अनुवादक, शिक्षक, राजभाषा अधिकारी, शोधार्थी, विद्यार्थी और भाषा-संस्कृति प्रेमी आदि जुड़े थे।

      आरंभ में दिल्ली योग समिति की क्षेत्रीय संयोजक श्रीमती सरोज शर्मा द्वारा आत्मीयता से स्वागत करते हुए पतंजलि योग के कार्यक्रमों की जानकारी देकर केंद्र से जुडने का आग्रह किया गया। तत्पश्चात वरिष्ठ योग विशेषज्ञ श्री दीप चन्द्र पंत ने आभासी क्षणिक योग कराते हुए संचालन  संभाला और सहज ध्यान का अनुभव कराया। उन्होने कहा कि योग हमारी स्वस्थ परंपरा का निर्वहन और प्राणवायु है। इस वर्ष का ध्येय वाक्य है- एक पृथ्वी ,एक स्वास्थ्य के लिए योग। मुख्य अतिथि के रूप में भारतीय दूतावास सूरीनाम के सांस्कृतिक केंद्र के निदेशक एवं योग विशेषज्ञ श्री सोमवीर आर्य जी ने कहा कि योग हमें सुख- दुख के अतिक्रमण से बचाता है। अब छोटे- छोटे देशों में भी इसका प्रचार प्रसार बढ़ रहा है। सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं तथा संगठनों द्वारा दुनियाँ के विभिन्न देशों में योग शिक्षकों की व्यापक स्तर पर नियुक्तियाँ की जा रही हैं। वर्ष 2017 में 116 देशों में पदस्थापनाएं हुईं। विदेश में अधिकांशतया भारतीय परिधान और पद्धति से योग करने की हूबहू नकल की जाती है और लोग प्रायः रोज अभ्यास करते हैं तथा अपने को विकार रहित होने की दिशा में बढ़ाते हैं।

    विशिष्ट अतिथि के रूप में कनाडा से जुड़ीं समाज सेवी एवं योग विशेषज्ञ तथा वैश्विक हिन्दी परिवार की वित्तपोषक  सुश्री इंदिरा वढेरा जी ने कहा कि हमारी आत्मा अप्रतिम और दिव्य है। जीवन में निर्मल मन से सत्य की खोज होती है। योग का प्रभाव ब्रह्मांड पर पड़ता है। योग साधना के क्षण परम सत्ता से अनुभूति के क्षण होते हैं। उन्होने विश्वामित्र और वशिष्ठ के प्रेरणास्पद प्रसंग सुनाकर मंत्रमुग्ध कर दिया और आवाहन किया कि आइये, हम चेतना को चेतना में विचरने का सुख दें और अपने होने का एहसास करें। विशिष्ट वक्ता एवं दिल्ली महिला पतंजलि समिति की अध्यक्ष सुश्री सविता तिवारी जी ने योग गुरु बाबा रामदेव जी की दीर्घकालिक साधना और वैश्विक देन का स्मरण कराते हुए कहा कि घर -घर तक योग पहुंचाना हमारा लक्ष्य है। दिल्ली की एक हजार कक्षाओं में 28 हजार बहनें नित्य जुड़कर लाभान्वित होती हैं। उन्होने दुनियाँ में आभासी रूप से भी योग का प्रचार प्रसार करने और स्वास्थ्य लाभ पहुंचाने हेतु प्रतिबद्धता प्रकट की।

     विशिष्ट अतिथि के रूप में आस्ट्रेलिया से जुड़ीं अध्यात्म तत्व अध्येता, शास्त्र अनुवादक विदुषी एवं योग मर्मज्ञ डॉ॰ मृदुल कीर्ति जी ने अपने उद्गार में कहा कि भौतिक शरीर के अंदर अभौतिक तत्व हैं। विश्व “नैतिक प्रलय, से गुजर रहा है। इसका सात्विक ऊर्जा और आध्यात्मिक ज्ञान से ही निदान संभाव्य है। उन्होने भगवदगीता के प्रसंग से समझाया कि योग दर्शन, सांख्ययोग दर्शन की पीठिका है। इससे पतंजलि का प्रादुर्भाव हुआ है। दर्जनों आध्यात्मिक पुस्तकों की अनुवादक सत्साहित्य की प्रणेता डॉ॰ मृदुल जी ने यम , नियम ,आसान, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा ,ध्यान और समाधि को भी सरल ढंग से समझाया तथा रुचिता ,प्रियता व निजता का अनुवादित सृजित कविताओं से बोध कराया।  उनका मन्तव्य था कि सरहदें देह की हैं, मन की नहीं । “आ गया तट देह का , तटबंध सारे खोल दें। किनारा आने पर नौका का प्रयोजन नहीं रह जाता। विदेश में सत्यनिष्ठा से योग का प्रचार- प्रसार हो रहा है और सही ढंग से अनुकरण भी हो रहा है। जापान से जुड़े पद्मश्री से सम्मानित प्रो॰ तोमियो मिजोकामि ने ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ की बधाई दी और आज के कार्यक्रम को  अत्यंत सार्थक बताया। डॉ॰ जयशंकर यादव ने कहा कि “भगवदगीता, के सभी 18 अध्यायों के नाम में योग शब्द है और कुल 91 बार योग शब्द आया है तथा सम्पूर्ण 700 श्लोकों में योग निहित है। योगक्षेमंवहाम्यहम सर्वविदित है।

    सान्निध्यप्रदाता एवं साहित्यकार श्री अनिल जोशी ने सभी वक्ताओं के ज्ञान दान के प्रति कृतज्ञता प्रकट की और कहा कि पश्चिम के मूल आधार पर प्रश्न खड़ा होता है। स्वामी विवेकानंद का शिकागो भाषण विश्वप्रसिद्ध है। योग ,विश्व को भारत की अमूल्य देन है।  सर्वे जना: सुखिनों भवन्तु एवं वसुधेव कुटुम्बकम ,जगजाहिर है। यह हमारी उदार और व्यापक दृष्टि है। उन्होने अपने निजी अनुभव के आधार पर बताया कि बड़े देशों के अलावा फ़िजी और दस हजार की आबादी वाले नोरू जैसे छोटे- छोटे देश में भी योग पहुँच गया है और प्रगामी प्रचार -प्रसार हो रहा है। 

     यह कार्यक्रम विश्व हिन्दी सचिवालय, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद, केंद्रीय हिन्दी संस्थान, वातायन और भारतीय भाषा मंच के सहयोग से वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष श्री अनिल जोशी के मार्गनिर्देशन में सामूहिक प्रयास से आयोजित हुआ। कार्यक्रम प्रमुख एवं सहयोगी की भूमिका का निर्वहन ब्रिटेन की सुप्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार सुश्री दिव्या माथुर और पूर्व राजनयिक सुनीता पाहुजा द्वारा किया गया। अंत में  दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ॰ रुद्रेश नारायण मिश्र के आत्मीय सारगर्भित धन्यवाद ज्ञापन और शांति पाठ के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।  यह कार्यक्रम “वैश्विक हिन्दी परिवार, शीर्षक के अंतर्गत “यू ट्यूब ,पर उपलब्ध है।

रिपोर्ट लेखन – डॉ॰ जयशंकर यादव

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