ज्ञातव्य है कि ज्ञान के क्षेत्र में पुस्तकें ही सबसे बड़ी अस्त्र हैं और पुस्तक प्रेमी सुखी होते हैं। पाठ्यक्रम संबंधी पुस्तकों की बहुत बड़ी महत्ता है। वैश्विक हिन्दी परिवार द्वारा विदेशी विद्यार्थियों को हिन्दी सिखाने हेतु प्रारम्भिक पुस्तक तैयार की जा रही है जिसमें 6 देशों ( जापान,सिंगापुर,थाईलैंड,दक्षिण कोरिया,यू॰के॰ और अमेरिका) के 7 अनुभवी प्राध्यापक सिद्दत से सृजन कर रहे हैं। इस पाठ्यक्रम पुस्तक की रूपरेखा पर 5 अक्तूबर 2025 को परिचर्चा आयोजित की गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता जापान के ओसाका विश्वविद्यालय के अमिरेट्स प्रोफ़ेसर एवं पद्मश्री से सम्मानित डॉ॰ तोमियो मिजोकामि द्वारा की गई। इस अवसर पर उन्होने पुस्तक निर्माण के लिए बधाई देते हुए कहा कि यह हिन्दी भाषा शिक्षण के लिए अत्यंत आवश्यक कार्य है जिसमें युगानुरूप प्रौद्योगिकी का समावेश बहुत सहायक है। अपने दीर्घकालिक अनुभव से उनका कहना था कि इसमें सुगमता और ग्राह्यता के लिए भूतकाल को वर्तमान और भविष्यत के बाद रखना श्रेयस्कर होगा और ‘ने’ प्रयोग को आसान बनाना होगा। यह पुस्तक हिन्दी शिक्षण का मार्ग प्रशस्त करेगी। इस कार्यक्रम में देश -विदेश से अनेक साहित्यकार, विद्वान विदुषी, तकनीकीविद, योग साधक, प्राध्यापक,अनुवादक, शिक्षक, राजभाषा अधिकारी, शोधार्थी, विद्यार्थी और भाषा-संस्कृति प्रेमी आदि जुड़े थे।

       आरंभ में दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ॰ ओम प्रकाश द्वारा कार्यक्रम की पृष्ठभूमि सहित सबका स्वागत किया गया। तत्पश्चात डॉ॰ सीमा सिंह ने संचालन का दायित्व संभाला। दक्षिण कोरिया के बुसान विदेशी भाषा विश्वविद्यालय में तेरह वर्षों से हिन्दी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ॰सृजन कुमार ने संपादक मण्डल का परिचय कराते हुए बताया कि विदेशी विद्यार्थियों को कोई भी भाषा सिखाने के लिए पुस्तक निर्माण ऐतिहासिक परंपरा है। अनेक भाषाओं में उत्कृष्ट पाठ्यक्रम निर्मित हैं जिनका संशोधन होता रहता है। गत एक वर्ष से वैश्विक हिन्दी परिवार द्वारा विदेशी विद्यार्थियों को निशुल्क ऑनलाइन हिन्दी सिखाई जा रही है। इसकी साप्ताहिक कक्षाएं चलाई जा रही हैं। उन्होने पी पी टी से बताया कि इस प्रारम्भिक पुस्तक में लिपि,उच्चारण,शब्द निर्माण,लेखन ,बोधन,व्याकरण और अर्थ भेद आदि सम्मिलित किया गया है। सहायक शब्दावली भी समाहित है और कठिन शब्दों से बचाव किया गया है। इसके अलावा स्वमूल्यांकन और सांस्कृतिक पक्ष को विशेष स्थान दिया गया है।   

      अमेरिका के ड्यूक यूनिवर्सिटी की प्रो॰ कुसुम नैपसिक ने कहा कि इस हिन्दी पुस्तक में रंगीन चित्रों के साथ गुणवत्तायुक्त छपाई पर विशेष ध्यान अपेक्षित है। पुस्तक में पात्रों के नाम अनेक देशों से लिए गए हैं। प्रकाशन से पूर्व इसे पढ़ाकर देखा जाएगा ताकि अपेक्षित सुधार किया जा सके। विद्यार्थी स्वयं भी पढ़कर हिन्दी सीख सकेंगे।

       यूक्रेन के कीव विश्वविद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ॰ यूरी बोत्विंकिन का कहना था कि इस पुस्तक में रोचकता पर यथेष्ट ध्यान आवश्यक है। विद्यार्थियों की मजबूत भाषायी नींव निर्मिति जरूरी है। विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत विद्यार्थियों के मद्देनजर वैकल्पिक प्रश्न और प्रश्नोत्तर तथा कृत्रिम बुद्धिमत्ता को समुचित स्थान दिया जाए। इस पुस्तक से फिल्म निर्माण के लोग भी आकर्षित हों। जापान के ओसाका विश्वविद्यालय के प्रो॰ वेद प्रकाश सिंह ने बताया कि पुस्तक में 12 माह के लिए 12 अध्याय निहित हैं। परीक्षण जारी है और विद्यार्थियों से भी फीड बैक लिया जा रहा है। यह भी व्यवस्था की जा रही है कि विद्यार्थी मोबाइल और क्यू आर कोड तथा यू ट्यूब से भी हिन्दी सीख सकें और डिजिटल रूप में उपलब्ध हो। अभी यह भाग एक है, इसके 6 वर्षों हेतु 6 भाग तैयार करने की योजना है। बर्मिंघम से प्रो॰ वंदना मुकेश ने कहा कि पुस्तक निर्माण के लिए विद्वानों की स्वैच्छिक सेवाएँ स्तुत्य हैं। कहानी रूप में अंश जोड़ना भी उचित होगा। भविष्य में यह पुस्तक सजकर सशोधित संवर्धित होगी। प्रमाण पत्र की व्यवस्था करना समीचीन होगा।

     न्यू जर्सी से जुड़ीं प्रो॰नंदिता सायम का सुझाव था कि आधुनिक तकनीकी का प्रयोग कर पुस्तक को आनंददायी बनाना अच्छा होगा। वेबसाइट पर गृह कार्य देखकर विद्यार्थी प्रसन्न होते हैं। फॉन्ट सुंदर, रंगीन और आकर्षक हों। विद्यार्थी ऐप से भी सीखें। स्वीटजरलैंड से जुड़ीं प्रो॰ शिवानी का सुझाव था कि ‘आओ सुनो कहानी’ ‘वैश्विक गाँव’ और ‘खेल हिन्दी वाले’ को भी सम्मिलित करना श्रेयस्कर होगा। ऐप के माध्यम से हिन्दी सीखने की सुविधा अत्यंत आवश्यक है।

     मुख्य अतिथि के रूप में वर्धा विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो॰ कुमुद शर्मा ने पुस्तक निर्माण पर हर्ष प्रकट करते हुए कहा कि समय की मांग के अनुसार वैश्विक स्तर पर हिन्दी सीखने वालों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। पाठ्यक्रम निर्माण चुनौतीपूर्ण कार्य है। इसकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आवश्यक है। दृश्य श्रव्य सामग्री के साथ छोटे छोटे रोचक पाठ सहायक होते हैं। इस पुस्तक की प्रतीक्षा रहेगी।         सान्निध्यप्रदाता श्री अनिल जोशी ने पुस्तक निर्माण से जुड़े सभी विद्वानों की प्रशंसा की और कहा कि आधुनिक युग में सही तकनीकी, अनेक समस्याओं का समाधान है। हजारों लाखों की संख्या में विद्यार्थी हिन्दी सीखें। विशेष रूप से वैश्विक स्तर पर युवा जुड़ें और सीखकर लाभान्वित हों। यह लंबा और कठिन रास्ता है। हम संकल्प लेकर चलते रहें।  

     यह कार्यक्रम विश्व हिन्दी सचिवालय, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद, केंद्रीय हिन्दी संस्थान, वातायन और भारतीय भाषा मंच के सहयोग से वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष श्री अनिल जोशी के मार्गनिर्देशन में सामूहिक प्रयास से आयोजित हुआ। कार्यक्रम प्रमुख एवं सहयोगी की भूमिका का निर्वहन क्रमशः ब्रिटेन की सुप्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार सुश्री दिव्या माथुर और सुनीता पाहुजा द्वारा किया गया। अंत में थाईलैंड से डॉ॰शिखा रस्तोगी के आत्मीय कृतज्ञता ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।  यह कार्यक्रम “वैश्विक हिन्दी परिवार, शीर्षक के अंतर्गत “यू ट्यूब ,पर उपलब्ध है।

रिपोर्ट लेखन – डॉ॰ जयशंकर यादव

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