वैश्विक हिन्दी परिवार द्वारा 28 सितम्बर को अपने संस्थागत संगठन एवं क्षेत्र का विस्तार करते हुए उत्तरी अमेरिका प्रभाग का विधिवत उदघाटन कार्यक्रम आयोजित हुआ। इस अवसर पर अमेरिका, कनाडा और मैक्सिको के अनेक हिन्दी साहित्यकारों का रचना पाठ हर्षोल्लास से सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता अमेरिका के सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं योग विशेषज्ञ डॉ॰धनंजय कुमार जी द्वारा की गई। मौके पर अमेरिका से ही आध्यात्मिक चिंतक एवं अनुवादक डॉ॰ मृदुल कीर्ति जी  मुख्य वक्ता के रूप में पधारी थीं। इस कार्यक्रम में देश -विदेश से अनेक साहित्यकार, विद्वान विदुषी, तकनीकीविद, योग साधक, प्राध्यापक,अनुवादक, शिक्षक, राजभाषा अधिकारी, शोधार्थी, विद्यार्थी और भाषा-संस्कृति प्रेमी आदि जुड़े थे।

     आरंभ में कनाडा से डॉ॰ आशा बर्मन द्वारा कार्यक्रम की पृष्ठभूमि सहित आत्मीयता से स्वागत किया गया। तत्पश्चात हिन्दी राइटर्स गिल्ड कनाडा की संस्थापक एवं साहित्यकार डॉ॰ शैलजा सक्सेना ने इस आयोजन का प्रयोजन स्पष्ट करते हुए बताया कि उत्तरी अमेरिका के बड़े भू -भाग एवं वैश्विक पहचान के मद्देनजर भारतीयता एवं साहित्यिकता को विस्तार देना नितांत आवश्यक था जिसे आज मूर्त रूप दिया जा रहा है।आइये, हम अहम और वहम छोड़कर जुड़ें। कनाडा से साहित्यकार श्री योगेश ममगाई ने नपे तुले और सधे शब्दों में शालीनता से संचालन की बखूबी बागडोर संभाली। पेशे से पशु चिकित्सक डॉ॰ नरेंद्र ग्रोवर (कनाडा) ने  “मैं में मैं कहाँ , शीर्षक से कविता सुनाई और कहा कि कोई कुछ नहीं होता, सबका वक्त होता है। कनाडा से ही लेखिका कृष्णा वर्मा ने “पतझड़ की वेदना” शीर्षक से मार्मिक कविता सुनाकर झकझोर दिया। बैंक कर्मी और चार्टेर्ड एकाउंटेंट श्री समीर लाल (कनाडा) ने कवितामय प्रस्तुति में कहा कि ‘मैं कभी कोई कविता नहीं कहता ,बस कोई कविता मुझे कह जाती है।

      हिन्दी राइटर्स गिल्ड कनाडा की तकनीकीविद पूनम चंद्रा ‘मनु’ ने “माँ हिन्दी” शीर्षक से अपनी भावपूर्ण रचना सुनाई और सबके हृदय में हिन्दी के लिए कोमल जगह बनाई। इस क्रम में कनाडा से ही सरस दरबारी की बारी आई । इस प्रसिद्ध कवयित्री ने ‘खुरचन’ ‘लहरें’ और ‘पतझड़’ आदि शीर्षक से सरस क्षणिकाएँ सुनाकर मंत्रमुग्ध कर दिया। कनाडा से लेखा विश्लेषक एवं साहित्यकार डॉ॰ आशा बर्मन ने ‘मैं और गणित’ नामक कविता सुनाई जिसमें प्रसन्नता से स्वयं को जोड़ा एवं अवसाद से स्वयं को घटाया और मद से स्वयं का गुणनफल निकाला तथा घोर निराशा से स्वयं को विभाजित करते हुए जीवन का कवितामय निष्कर्ष बताया। टोरंटो से वित्तीय सलाहकार लता पाण्डेय द्वारा ‘इतिहास गवाह है’ शीर्षक से कविता सुनाकर मंत्रमुग्ध कर दिया। टोरंटो से ही संवेदनशीलता की धनी कवयित्री वंदिता सिन्हा ने “सारे अपने तारे” शीर्षक से प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर कविता सुनाई और कहा कि हर तारे में मेरे अपने नजर आते हैं। वित्तीय विशेषज्ञ एवं हिन्दी प्रबोधन समिति से जुड़ीं प्रीति अग्रवाल ने ‘बिटिया’ शीर्षक से मर्मस्पर्शी लघु कथा सुनाई और कहा कि औलाद को खून से सींचना पड़ता है। कुशल संचालन की बागडोर संभाले श्री योगेश ममगाई ने “राम मेरे” शीर्षक के साथ कोख सबरी की सँवारो राम, का आवाहन किया और रामायण के पात्रों का रूपक प्रस्तुत करते हुए प्रश्नवाचक रूप में कहा कि भक्त क्यों हनुमंत जैसा हर कोई होता नहीं। कनाडा से इस आयोजन की प्रणेता और वैश्विक हिन्दी परिवार की आधार स्तम्भ डॉ॰ शैलजा सक्सेना ने प्रकृति का विविधवर्णी रूप प्रस्तुत करते हुए “इंद्रधनुष” शीर्षक से प्रभावोत्पादक कविता सुनाई और कहा कि अपनी अंतरात्मा की आवाज पर अनुभवजन्यता से कथा- कहानी और कविता आदि लिख रही हूँ।

     कार्यक्रम के अगले चरण में अमेरिका के वर्जीनियाँ से सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ॰ हरीश नवल और सुधा नवल की साहित्यकार सुपुत्री डॉ॰ आस्था नवल ने संचालन संभाला। उन्होने सैनिक पत्नी की गाथाएँ लिखने वाली प्रसिद्ध साहित्यकार शशि पाधा को आमंत्रित किया। शशि पाधा ने “शहीदों के बच्चे’ शीर्षक से अन्तर्मन को छूने वाली कविता सुनाई और संदेश दिया कि शहीदों के बच्चे बड़ा होने से पहले  ही धैर्य, सहनशक्ति तथा आत्मबल से बड़े हो जाते हैं और गीता का सार समझ लेते हैं। न्यूजर्सी से तकनीकीविद श्री अनूप भार्गव की “सुनो’ शीर्षक से प्रस्तुत कविता मनभावन रही। उनके कहन थे कि -हम बहारों से बात कर लेंगे, इशारों से बात समझ लेंगे। ‘वादे पे उनके कैसे पूरा यकीन करूँ, कसमें वे खा रहे थे मगर सोच -सोच के’। अमेरिका की वरिष्ठ साहित्यकार सुधा ओम ढींगरा ने राष्ट्र प्रेम पर आधारित ‘ब्रीफकेश’ कविता सुनाई और सेतु पत्रिका के संपादक अनुराग शर्मा ने सुमधुर वाणी में गाकर सुनाया कि- सुलगना रुक नहीं सकता, धुवाँ कुछ कम करो यारों। इसी क्रम में ह्यूस्टन टेक्सास से जुड़े दीपक मशाल के शब्द थे कि -तलवारों के जश्न का युग है, कोई ढाल सा ढलना क्यों चाहेगा। उन्होने आरोह -अवरोह और पात्रों के अनुसार, वर्तमान हालात पर आधारित लधु कथा “बड़े बच्चे” सुनाकर अमिट छाप छोड़ी। संचालिका आस्था नवल ने ‘प्रवासी मन’ शीर्षक से अपनी रचना सुनाते हुए समुंदर के खारेपन और जीवन दर्शन की ओर इंगित किया।

     मैक्सिको से जुड़े साहित्यकार एवं प्रेमचंद की कहानियों के स्पेनिश में अनुवादक डॉ॰ चंद्रा चौबे ने ‘गर्भ से मृत्यु तक’ नामक रचना सुनाई और अस्पताल में पड़े मरीज द्वारा आखिरी क्षणों में कहे गए वाक्य की ओर ध्यान आकृष्ट किया जिसमें सबसे बड़ा सत्य राम नाम सत्य, को बताया गया था। उनका स्पष्ट संदेश था कि किसी के दुख के कब्रिस्तान पर अपनी खुशी की इमारत न बनाएँ।                 

     मुख्य वक्ता के रूप में अमेरिका से जुड़ीं अध्यात्मतत्व अध्येता, शास्त्र अनुवादक विदुषी एवं योग मर्मज्ञ डॉ॰ मृदुल कीर्ति जी ने अपने उद्गार में कहा कि आज पटल पर ‘वसुधैव कुटुंबकम’ चरितार्थ हो रहा है।  भौतिक शरीर के अंदर अभौतिक तत्व हैं। विश्व “नैतिक प्रलय, से गुजर रहा है। इसका सात्विक ऊर्जा और आध्यात्मिक ज्ञान से ही निदान संभाव्य है। उन्होने मधु कलश की चर्चा करते हुए प्रलोभन के दलदल में न फँसने की सलाह दी और “ मुझे थाम लेना बिखरने से पहले’ पंक्तियाँ सुमधुर कंठ से गाकर सुनाईं।  

    सान्निध्यप्रदाता एवं साहित्यकार श्री अनिल जोशी ने सभी वक्ताओं की रचनाओं की प्रशंसा की और अपनी भाषा ,संस्कृति और ज्ञान परंपरा को अक्षुण्ण रखने का आहवाहन किया। उनकी पंक्तियाँ थीं कि -उसे आवाज दो — वह तुतलाता ही सही ,अपनी भाषा तो बोलता है। श्री जोशी के द्वारा नई पीढ़ी में भारत भारतीयता एवं मानवता भरने हेतु अभिप्रेरित किया गया। अपने अध्यक्षीय उद्गार में अमेरिका के शिक्षाविद श्री धनंजय कुमार ने उत्तरी अमेरिकी प्रभाग की शुरुआत पर हर्ष प्रकट किया और सभी रचनाकारों की रचना धर्मिता की सराहना की। उन्होने सभी को अभिप्रेरित करने वाली अपनी रचना भी सुनाई और वैश्विक परिप्रेक्ष्य में अपनी भाषायी अस्मिता और कविता का आनंद कायम रखने का आवाहन किया।    

     यह कार्यक्रम विश्व हिन्दी सचिवालय, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद, केंद्रीय हिन्दी संस्थान, वातायन और भारतीय भाषा मंच के सहयोग से वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष श्री अनिल जोशी के मार्गनिर्देशन में सामूहिक प्रयास से आयोजित हुआ। कार्यक्रम प्रमुख एवं सहयोगी की भूमिका का निर्वहन क्रमशः ब्रिटेन की सुप्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार सुश्री दिव्या माथुर और सुनीता पाहुजा द्वारा किया गया। अंत में अमेरिका से दीपक मशाल के आत्मीय कृतज्ञता ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।  यह कार्यक्रम “वैश्विक हिन्दी परिवार, शीर्षक के अंतर्गत “यू ट्यूब ,पर उपलब्ध है।

रिपोर्ट लेखन – डॉ॰ जयशंकर यादव

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