राष्ट्रपति भवन में कला उत्सव

डॉ सच्चिदानंद जोशी

माननीय राष्ट्रपति जी भेंट होना हमेशा ही अत्यंत सुखद रहता है। उनकी सादगी और सहजता बहुत कुछ सिखा देती है। साथ ही उनके पास ज्ञान और अनुभव का जो अपार भंडार है वे उसे साझा करने में कोई कोताही नहीं बरततीं।

दो वर्ष पूर्व जब 25 जुलाई को राष्ट्रपति भवन में जनजातीय दीर्घा के उद्घाटन के अवसर पर भेंट करने का अवसर मिला था तो उनसे जनजातीय जीवन की विशेषताओं और बोलियों के बारे में बहुत कुछ सीखने को मिला था। उसके ठीक दो वर्ष बाद 24 जुलाई को राष्ट्रपति भवन द्वारा आयोजित कला उत्सव के समापन के अवसर पर जब उनके दर्शन का सौभाग्य मिला तब उनकी विभिन्न राज्यों की चित्र कला और विभिन्न राज्यों के परिवेश के बारे में गहरी समझ का साक्षात्कार हुआ।

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय के सहयोग से आयोजित दस दिवसीय कला उत्सव में पश्चिम बंगाल, ओडिशा और झारखंड के लोक एवं जनजातीय कलाकारों द्वारा विभिन्न कलाकृतियों का निर्माण किया गया। पट्ट चित्र जैसे अत्यंत परिष्कृत प्रकार से लेकर सोहराई जैसे देशज प्रकार तक कई नायाब कलाकृतियां इन कलाकारों ने बनाई। झारखंड के हजारीबाग जिले से आए कुछ महिला कलाकार तो ऐसे थे जिन्होंने पहली बार हजारीबाग के बाहर कदम रखा था। पश्चिम बंगाल की कालीघाट पेंटिंग बनाने वाले अधिकांश कलाकार मुसलमान थे और उन्होंने देवी मां के , राधा कृष्ण जी के और राम सीता जी अत्यंत सुंदर चित्र बनाए थे।

राष्ट्रपति जी ने न सिर्फ इन चित्रों को बारीकी से देखा बल्कि कलाकारों से खुल कर बात भी की। हास परिहास भी किया।कुछ कलाकारों ने उत्साहित होकर गीत भी सुनाए। राष्ट्रपति जी ने पूछा कि चित्र बनाते हो , गाते हो तो नाचते भी होगे। कलाकार तो इतने उत्साह में थे कि वे नृत्य करने को भी तत्पर थे। राष्ट्रपति जी का ओडिशा गृह प्रदेश है , झारखंड की वे वर्षों राज्यपाल रही हैं और पश्चिम बंगाल से उनका निकट का संबंध रहा है। इन तीनों राज्यों की कलाकृतियों को देख कर वे उन्हीं में खो गईं। उन्होंने इन चित्रों से जुड़ी लोक कथाएं और पौराणिक कथाएं भी सुनाई। उन्होंने कहा कि इस कला का संबंध आत्म से है। बाद में राष्ट्रपति जी ने अपने हाथों से सभी कलाकारों को उपहार दिए तथा सबके साथ समूह चित्र भी खिंचवाए। राष्ट्रपति भवन की सचिव श्रीमती दीप्ति उमाशंकर,प्रभारी अधिकारी श्रीमती स्वाति साही, मानव संग्रहालय के निदेशक श्री अमिताभ पांडे , आय जी एन सी ए के श्री संजय झा सहित अन्य महानुभावों की उपस्थिति भी कार्यक्रम की शोभा बढ़ा रही थी।

राष्ट्रपति भवन कला उत्सव के समापन के अवसर पर उत्पन्न ये दृश्य हमें स्मरण दिलाते हैं कि कला और संस्कृति का क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें सारे भेद मिटाने की क्षमता है फिर वो चाहे बड़े छोटे का हो, मत पंथ का हो या ऊंच नीच का हो।


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