हिन्दी शिक्षण की मार्गदर्शिका

डॉ. सुरेन्द्र गंभीर, यूनिवर्सिटि ऑफ़ पेन्सिल्वेनिया

मातृभाषा हो या परभाषा – उसके अधिग्रहण की चार विधाएं होती हैं – बोलना, दूसरों की बात समझना, पढ़ना, लिखना। मातृभाषा का समारंभ बाल्यकाल में दूसरों की बात समझने से होता है। जीवन के आरंभिक बारह-तेरह वर्ष की आयु तक बालक और किशोर आस पास बोली जाने वाली एक से अधिक भाषाएं भी अनायास सीख लेते हैं। यह भाषा या भाषाएं सीखने का स्वर्णिम-काल है।

कक्षाओं में उद्दिष्ट भाषा (target language) सीखने का उपर्युक्त क्रम भिन्न हो सकता है। लेख का शेष भाग कक्षाओं में औपचारिक ढंग से परभाषा सीखने से संबंधित है।

ऐसी औपचारिक कक्षाओं में आने वाले विद्यार्थी आजकल दो प्रकार के हैं – एक वे हैं जो भारत से बाहर बसे भारतवंशी माता-पिता की संतान हैं। दूसरे वे जो विशुद्ध रूप से विदेशी हैं। पहले वर्ग के छात्र जाने-अनजाने कुछ न कुछ मात्रा में भारतीय संस्कृति के कुछ तत्वों से और उनके परिचायक शब्दों से परिचित होते हैं। ऐसे छात्रों की विरासती भाषा में अधिग्रहण की प्रगति विशुद्ध विदेशी छात्रों की तुलना में प्रायः अधिक तीव्र होती है।

कक्षाओं में उद्दिष्ट भाषा सीखने के अनेक अवयव हैं जिन्हें शिक्षक बड़ी कुशलता से शिक्षार्थियों के स्तर के अनुसार अपनी शिक्षण-प्रणाली में समाहित करता है। जैसे – उद्दिष्ट भाषा समझना, बोलना, उच्चारण, अनुतान, देवनागरी लिपि, संरचनात्मक व्याकरण के नियम समझ कर उनका अनुप्रयोग, औपचारिक और अनौपचारिक शब्दावली, भाषा-मिश्रण, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रथाओं के अनुकूल भाषा का प्रयोग, सामाजिक और प्रादेशिक प्रयोगत विभिन्नताएं (social and regional variation), नई विषय-वस्तु, हास्य-परिहास, ऐतिहासिक संदर्भ, सांस्कृतिक संदर्भ, संधि और समास के नियम। विदेशी भाषा में उपर्युक्त सब तत्वों का ध्यान रखते हुए सम्यक् वाक्य-रचना के पीछे बहुत जानकारी और श्रम की आवश्यकता होती है। छात्रों के शैक्षिक स्तर के आधार पर उपर्युक्त अवयवों को क्रमशः विभिन्न पाठ्यक्रमों में समाविष्ट किया जाता है।

ऐसी कक्षाओं में बच्चों और वयस्कों की शिक्षण-विधि में विशेष अंतर हो सकता है। सबसे बड़े दो अंतर हैं – व्याकरण के नियम और शब्दावली। जहां वयस्क कक्षाओं में व्याकरणिक विश्लेषण के नियमों की बहुत आवश्यकता होती है वहां बाल-कक्षाओं में ऐसे नियमों की उपयोगिता लगभग शून्य हो जाती है। वयस्क कक्षाओं के संदर्भ में यह बात सही है कि शब्दावली का विस्तार शिक्षार्थियों की आवश्यकता के अनुसार ही होता है। जो वयस्क शिक्षार्थी दूसरे तीसरे वर्ष में परभाषा सीखना जारी रखते हैं उनके लिए शब्दावली का विस्तार तीव्र गति से होना शुरू हो जाता है, विशेषकर पठन-पाठन में औपचारिक (संस्कृत-निष्ठ) शब्दों के आयात निरंतर बढ़ता जाता है। इसके विपरीत बाल-कक्षाओं में शब्दावली का शब्द-विस्तार सीमित रहता है। एक बात दोनो वर्गों में  समान रूप से लागू होती है कि नए शब्दों की विभिन्न संदर्भों में पुनरावृत्ति कैसे हो इसका विचार शिक्षक के लिए आवश्यक हो जाता है। शोध यह बताता है कि नए शब्द शिक्षार्थी तब आत्मसात् करते हैं जब विभिन्न संदर्भों में उन शब्दों से उनका आमना-सामना लगभग बीस बार होता है।   

प्रारंभिक स्तर की सभी कक्षाओं में बोलना और दूसरों की बात समझना – ये दोनों बड़ी उपयोगी आरंभिक विधाएं हैं। बोलना छोटे छोटे प्रयोगों से पहले दिन से ही आरंभ हो सकता है, जैसे नमस्ते, मेरा नाम …. है। आपका नाम क्या है? यह मोहन है। वह शीला है। ऐसे वाक्यों की प्रस्तुति शिक्षक की शारीरिक भाषा (हाथ से इशारा करना, चेहरे का हाव-भाव) के साथ चलती है जो संदर्भगत होने के कारण शिक्षार्थियों को समझने में देर नहीं लगती। यह किताब है, यह मेरी किताब है। यह आपकी किताब है। आदि आदि। इस प्रकार के वाक्यों का प्रयोग प्रतिदिन कक्षा के आरंभ में किया जा सकता है, और धीरे धीरे शिक्षक एक-दो नए वाक्य भी चित्रों और शारीरिक भाषा की सहायता से जोड़े जा सकते हैं। जैसे यह लाल फूल है,यह नीला फूल है। चित्रों और शारीरिक भाषा के माध्म से संदर्भ स्पष्ट होता है और संदर्भ स्पष्ट होने से कही जाने वाली बात को समझने में बड़ी सहायता मिलती है। यह सब उद्दिष्ट भाषा के माध्यम से ही हो रहा है, अंग्रेज़ी आदि किसी अन्य भाषा को बीच में लाने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

इस प्रारंभिक अवस्था में और उच्च-स्तरीय कक्षाओं में श्रवण-निविष्टि (Listening Input) पर शिक्षक को अधिक समय लगाने की आवश्यकता होती है, जोकि भाषा-अधिग्रहण के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। सरल विडियो आदि के माध्यम से यह इनपुट और अधिक प्रभावी हो जाता है। चित्रों या चलचित्रों की सहायता से बात अधिक समझ आने लगती है। कुछ समय यही प्रक्रिया चलती रहे। उद्दिष्ट भाषा थोड़ी थोड़ी समझ आने लगती है और उस भाषा में थोड़ा थोड़ा बोलना भी शुरू हो जाता है। अब अच्छा अवसर है लिपि का परिचय कराने का। तब धीरे धीरे पहली दो विधाओं की उपेक्षा किए बिना चारों विधाएं साथ-साथ चल सकती हैं।

शिक्षण की दृष्टि से शोध के ये छह तथ्य महत्वपूर्ण हैं –

  1. सामग्रीचयन – सामग्री-चयन छात्रों के स्तर और आवश्यकता के अनुकूल हो। यहां ‘आवश्यकता’ का अर्थ है कि विशेषकर प्रारंभिक अवस्था में सामग्री ऐसी हो जिसके साथ शिक्षार्थी (विशेषकर बाल्यकालीन शिक्षार्थी) स्थानीय सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अपना भावनात्मक संबंध स्थापित कर सकें। जैसे शिक्षार्थियों की स्थानीय स्थिति और परिस्थिति से संबंधित तथ्य । इसके अतिरिक्त सामग्री की भाषा ऐसी हो जिसकी व्यावहारिक उपयोगिता हो। पढ़ाई जाने वाली भाषा ऐसी हो जिसके शब्द और जिसकी वाक्य-संरचना में दैनंदिन व्यवहार में प्रयुक्त होने की योग्यता हो। सामग्री के स्तरीकरण के लिए ACTFL Proficiency Guidelines (नीचे देखें अनुच्छेद 5 ) बहुत उपयोगी हैं।                                              
  • शिक्षणविधि – शिक्षक का शिक्षण शिक्षार्थी-केन्द्रित हो। इसका अर्थ है कि कक्षा का अधिक समय (लगभग 70 प्रतिशत समय) शिक्षार्थियों के उद्दिष्ट-भाषा के अभ्यास में लगे। इसका निहतार्थ यह भी है कि शिक्षक अपना उस दिन का अपना पूर्व-निर्धारित टीचिंग-पांइट बहुत सीमित समय (लगभग 20 प्रतिशत समय) में ही प्रस्तुत करे। प्रत्येक कक्षा में कम से कम 10 प्रतिशत समय शिक्षार्थियों के स्तर के अनुरूप विडियो आदि के माध्यम से उद्दिष्ट भाषा में उनके श्रवण-इनपुट के लिए हो।
  • श्रवणनिविष्टि उद्दिष्ट भाषा में नियमित रूप से दिया गया इनपुट भाषा-अधिग्रहण में बहुत सहायक होता है। विडियो और चित्रों की सहायता से दिया गया यह इनपुट ऐसा हो कि शिक्षार्थी उसका अर्थ या भावार्थ समझ जाएं। अग्रेज़ी-साहित्य में इसे Comprehensible input कहा गया है। यह इनपुट x+1 नियम के अनुकूल हो। यहां x का अर्थ है शिक्षार्थी का वर्तमान स्तर और 1 का अर्थ है उनके स्तर से थोड़ा ऊपर। x+1 के अनुसार दिया गया इनपुट नई भाषा को आत्मसात् करने में बहुत सहायक होता है। एक दूसरी बात जो बहुत लाभकारी सिद्ध हो सकती है – इनपुट के लिए यदि कोई कहानी, समाचार, या तथ्य ऐसे हों जिसका ज्ञान शिक्षार्थियों को अपनी प्रमुख भाषा के माध्यम से पहले से ही हो तो उद्दिष्ट भाषा में कही हुई बात और अधिक सुविधा से समझ आ जाती है। इसका कारण है कि सुनी हुई बात के दो अंश होते हैं – विषय-वस्तु और उस विषय-वस्तु को बांधने वाली भाषा। यदि विषयवस्तु को समझने का भार कम हो जाए तो उस विषयवस्तु की बोधक भाषा जल्दी समझ आती है। इसके अतिरिक्त जिस बात का संदर्भ स्पष्ट होगा उसे समझने में बहुत सुविधा होती है।
  • खेल और संगीत – अवचेन मन से भाषा-अधिग्रहण के लिए भाषा-संबंधी और संगीत का बड़ा महत्व है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए भाषा-संबंधी खेलों और संगीत का साहचर्य लेना बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है। खेल खेलते हुए और संगीत सुनते हुए मन अवचेतन अवस्था में आ जाता है और ऐसी स्थिति में भाषा का अधिग्रहण बलवान हो जाता है। (भाषा-संबंधी खेलों का परिचय इंटरनेट पर देखिए)। संगीत के साथ दिया गया इनपुट बालीवुड के छोटे छोटे संवादों और गानों से हो सकता है। इसके लिए पादटिप्पणी में एक उपयोगी वेबसाइट1 देखें।
  • अधिगृहीत भाषा का मूल्यांकन – शिक्षार्थी के भाषा-अधिग्रहण का मूल्यांकन दोनों शिक्षक और शिक्षार्थियों के लिए आवश्यक है। शिक्षक को समय समय पर शिक्षार्थियों की प्रगति का पता लगता रहता है, और शिक्षार्थियों को भी अपनी प्रगति का पता लगता रहे उसके लिए भी मूल्यांकन आवश्यक है। शिक्षार्थियों की शैक्षिक प्रगति का मूल्यांकन करने के विभिन्न अनौपचारिक तरीके उपलब्ध हैं। मूल्यांकन के लिए ACTFL Proficiency Guidelines2 चारों विधाओं के लिए हैं। यह मूल्यांकन औरचारिक और अनौपचारिक दोनों प्रकार से प्रयोग में लाया जा सकता है। यहां केवल अनौपारिक प्रकार की ही चर्चा है ताकि शिक्षार्थी भी स्वयं या शिक्षक के साथ बैठ कर अपना मूल्यांकन कर सकें। ACTFL की Guidelines अंग्रेज़ी में हैं, लेकिन हिन्दी के विभिन्न स्तरों का मूल्यांकन करने के लिए हिन्दी की Guidelines3 भी उपलब्ध हैं। इंटरनेट पर अलग अलग टास्क (task) (दैनिक जीवन के सामान्य कार्य) की सूची को देख कर शिक्षार्थी स्वयं तय कर सकता है कि कौनसा टास्क वह कर सकता है, कौनसा करने में अभी उसकी पूरी दक्षता नहीं है, और कौनसा टास्क वह अभी नहीं कर सकता । इसके बारे में Can-Do Statements के नाम से बहुत सी जानकारी इंटरनेट पर है।
  • कक्षा में उद्दिष्ट भाषा का अधिकाधिक प्रयोग – शिक्षक उद्दिष्ट भाषा का प्रयोग ही कक्षा में यथासंभव करे, अंग्रेज़ी आदि का प्रयोग कम से कम हो। संदर्भ देने के लिए अपनी हिन्दी में दी गई जानकारी को सुबोध बनाने के लिए अपनी शारीरिक भाषा के अतिरिक्त चित्रों और विडियो आदि का प्रयोग करें। कक्षा में उद्दिष्ट भाषा का अधिकाधिक प्रयोग उद्दिष्ट भाषा के अधिग्रहण में बहुत सहायक है।
  1. https://www.learnhindiedutainment.in/
  2. https://www.actfl.org/uploads/files/general/Resources-Publications/ACTFL_Proficiency_Guidelines_2024.pdf
  3. https://salrc.uchicago.edu/resources/Gambhir_Hindi_Proficiency_Guidelines.pdf

surengambhir@gmail.com

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