बाल-उपन्यास बिन्नी बुआ का बिल्ला

शन्नो अग्रवाल
shannoaggarwal1@hotmail.com

दिव्या माथुर का बाल-उपन्यास ‘बिन्नी बुआ’ का बिल्ला’ एक ऐसे आदर्श परिवार का ढांचा दिखाता है जिसकी परिकल्पना शायद हर बच्चे का सपना है। ईशा व मीशा दो बहनें भी इस तरह के सुरक्षित वातावरण में रह रही हैं जहाँ उन्हें अपनी दादी व परिवार के सदस्यों का ढेरों लाड़-प्यार मिल रहा है। मीशा अभी काफी छोटी है। पर वे बहनें हर समय परिवार के प्यार में सराबोर रहती हैं।

ऐसे पारिवारिक माहौल में रहते हुये बच्चों को न केवल आत्मसंतोष, बल्कि अपनों से आत्मबल भी मिलता है। ईशा की दादी उसके बाल मन की तमाम जिज्ञासाओं को शांत करते हुये अक्सर ही ईशा से ज्ञानबर्धक बातें करती रहती हैं। इससे ईशा में समझदारी की भावना अंकुरित होती रहती है। 

यह उपन्यास ईशा की बुआ बिन्नी के फ़ौसफ़र नामक बिल्ले पर केंद्रित है, जो उनके परिवार का अभिन्न अंग है। फ़ौसफ़र बूढ़ा हो चला है, बुआ के घर में उसे सारी सुख-सुविधाओं और बड़े नाज़-नखरों से रखा जाता है। ईशा को वह बिल्ला इतना प्यारा है कि वह रोज़ ही स्कूल के बाद अपनी दादी के संग बुआ के घर आकर उनके बिल्ले से खेलती है और उससे संबंधित अपनी जिज्ञासाओं को लेकर वह अपनी दादी से तमाम तरह की ज्ञानवर्धक बातें जानती है। जानवरों के व्यवहार को लेकर दादी-पोती में उनके मनोविज्ञान पर अक्सर चर्चा होती है और कहानी में विभिन्न तरह की मनोरंजक बातें भी चलती रहती हैं।

ईशा में हर बात को जानने व सीखने की जिज्ञासा इतनी प्रबल है कि वह जल्दी से बड़ी हो जाना चाहती है पर दादी उसे समझाती है कि हर चीज़ सही समय आने पर होती है। ईशा उनकी बातों को समझते हुये बिल्ले-बिल्लियों की तुलना मानव के मनोविज्ञान से करती हैं जैसे कि जानवरों में भी प्यार, नफ़रत, ईर्ष्या, जलन आदि की भावनाएं होती हैं, उदाहरणस्वरूप, लेखिका ने फ्रैंकी नाम की बिल्ली के आने पर फ़ौसफ़र की कारस्तानियों का ज़िक्र किया है। ईशा को कभी दादी, कभी अपने बुआ-फूफा और कभी मम्मी-डैडी की बातों से भी तमाम कुछ सीखने को मिलता है 

ईशा का अपनी दादी से जबर्दस्त जुड़ाव है। कहानी में मीशा के साथ भी चुलबुलेपन की झलकियाँ देखने को मिलती हैं।

दादी को बिल्लियों की आदतों के बारे में इतना ज्ञान है पर उन्हें बचपन से ही बिल्लियों को छूने से डर लगता है और इस बात को लेकर ईशा को अपनी दादी को खिझाने में भी बड़ा मज़ा आता है।  ईशा के स्कूल से लेकर थियेटर, फ़ौसफ़र और फ्रैंकी के लिये पार्टी, और अंत में फ्रैंकी-फ़ौसफ़र के माँ-बाप बनने तक की मनोरंजक गतिविधियाँ सिलसिलेवार चलती रहती हैं। इस उपन्यास में किरदारों की बातचीत व उनके क्रियाकलाप हर उम्र के पाठक को अंत तक मुग्ध करने में सक्षम हैं।  

लेखिका दिव्या माथुर जी आपको हार्दिक बधाई। 

पुस्तक – ‘बिन्नी बुआ का बिल्ला’

लेखक – दिव्या माथुर

प्रकाशक – वनिका पब्लिकेशन 

पृष्ठ संख्या  – 56  

प्रकाशन वर्ष – 2023

मूल्य – 120 रुपये 

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