कही गई और अनकही भावनाओं का आईना

समीक्षक: प्रीती जायसवाल

कविता साहित्य का वह सशक्त माध्यम है जो हमें समाज को एक नई दृष्टि से देखने, समझने और महसूस करने का अवसर प्रदान करता है। इसमें न केवल सामाजिक यथार्थ का चित्रण होता है, बल्कि संवेदनाओं की गहराई में उतरने की प्रेरणा भी मिलती है। एक अच्छी कविता संग्रह पाठक को उन अनुभवों से जोड़ती है जो शब्दों में कहे गए होते हैं—और उनसे भी जो शब्दों से परे, अनकहे रह जाते हैं।

‘कुछ कही, कुछ अनकही’—ऐसा ही एक कविता संग्रह है, जो समाज और मानवीय संवेदनाओं के विविध पहलुओं को छूता है। इसमें कुछ कविताएं स्पष्ट रूप से सामाजिक मुद्दों की ओर इशारा करती हैं, तो कुछ कविताएं अपने मौन से अधिक कह जाती हैं। यह संग्रह पाठक को उस मौन की अनुभूति कराता है, जिसे केवल दिल ही समझ सकता है।

इस संग्रह की कविताएं हमें समाज की पीड़ा, संघर्ष, विसंगतियों और विडंबनाओं से रूबरू कराती हैं। साथ ही, ये कविताएं आत्मनिरीक्षण और भावनात्मक मुक्ति का भी माध्यम बनती हैं। अनकही कविताएं—जो शब्दों से कम, संवेदनाओं से अधिक जुड़ी होती हैं—हमें भीतर तक झकझोर देती हैं और जीवन के अनदेखे पहलुओं से हमारा परिचय कराती हैं।

इसलिए, कविता संग्रह का महत्व केवल साहित्यिक अभिव्यक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज के बदलाव की एक मौन पुकार भी है। ‘कुछ कही, कुछ अनकही’ जैसे संग्रह हमें यह समझने में मदद करते हैं कि हर कविता एक आवाज है—कभी धीमी, कभी मुखर—जो हमारे भीतर के प्रश्नों और उत्तरों को आकार देती है।

हमें ऐसे साहित्य को न केवल पढ़ना चाहिए, बल्कि उसका समर्थन भी करना चाहिए, ताकि संवेदना और सामाजिक चेतना की यह परंपरा निरंतर आगे बढ़ती रहे।

“कुछ कही, कुछ अनकही” केवल एक कविता संग्रह नहीं, बल्कि एक यात्रा है—संवेदना से समाज तक, शब्दों से मौन तक, और अनुभव से आत्मा तक। यह संग्रह उन भावनाओं को स्वर देता है, जो अक्सर हमारी भाषा में नहीं आ पातीं, लेकिन भीतर कहीं गहराई से हमें छूती हैं।

इस संग्रह की कविताएं न तो केवल निजी हैं, न ही केवल सामाजिक—बल्कि यह दोनों के बीच की उस महीन रेखा पर खड़ी हैं, जहाँ एक स्त्री, एक मानव और एक संवेदनशील आत्मा अपने समय, समाज और अपने अंतर्मन से संवाद करती है। कुछ कविताएं प्रत्यक्ष रूप से पितृसत्ता, स्त्री संघर्ष, और सामाजिक विडंबनाओं पर टिप्पणी करती हैं, वहीं कुछ कविताएं पाठक के भीतर गूंज बनकर उतरती हैं—बिना कुछ कहे बहुत कुछ कह जाती हैं।

लेखिका का कवित्व-संसार एक ओर आत्मनिरीक्षण से भरा हुआ है, तो दूसरी ओर सामाजिक प्रश्नों से मुठभेड़ करता है। भाषा सरल है, पर भावनाएं गहन हैं। हर कविता एक अनुभव है—कभी विद्रोह का, कभी स्वीकार का, कभी टीस का, तो कभी उम्मीद का।

‘कुछ कही, कुछ अनकही’ की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह पाठक को केवल पढ़ने नहीं देती—बल्कि उसे महसूस करने के लिए आमंत्रित करती है। यह संग्रह उस ‘अनकहे’ की शक्ति को सामने लाता है, जो अक्सर साहित्य में नजरअंदाज कर दिया जाता है।

यह संग्रह उन सभी पाठकों के लिए अनमोल है जो कविता को केवल पंक्तियों में नहीं, भावनाओं और परिवर्तन की प्रक्रिया में महसूस करना चाहते हैं।

“कुछ कही, कुछ अनकही” कविता संग्रह एक ऐसा साहित्यिक प्रयास है जो वर्तमान समय में सामाजिक यथार्थ और स्त्री-मन की जटिलताओं को सशक्त रूप में प्रस्तुत करता है। यह संग्रह आधुनिक हिंदी कविता में एक महत्वपूर्ण योगदान है, जो निजी अनुभवों और सामाजिक सरोकारों के बीच की धुंधली रेखा को उजागर करता है।

पुस्तक की कविताएं विषयवस्तु की दृष्टि से विविध हैं—पितृसत्ता, विवाह संस्था की विडंबनाएं, मातृत्व का द्वंद्व, आत्मनिर्भरता की आकांक्षा, स्त्री अस्मिता की खोज, और सामाजिक चुप्पियों के विरुद्ध एक सशक्त स्वर। लेखिका की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह प्रत्येक कविता में पाठक को संवेदना से जोड़ने में सफल होती हैं। कहीं शब्दों के माध्यम से तो कहीं मौन के माध्यम से।

कविता-संरचना में कोई अलंकरणों की भरमार नहीं है—बल्कि भाषा सहज, संवादात्मक और प्रभावकारी है। यह शैली इस बात का प्रमाण है कि लेखक संवेदना को सहजता से बरतने में विश्वास रखती हैं, दिखावे से नहीं। कई कविताओं में ‘अनकहा’ को प्रतीकों और मौन के सहारे इतनी कुशलता से रचा गया है कि वे पाठक के भीतर एक दीर्घकालिक छाप छोड़ जाती हैं।

एक पाठक के रूप में मेरी प्रतिक्रिया:

जब मैंने “कुछ कही, कुछ अनकही” पढ़ना शुरू किया, तो मुझे नहीं लगा था कि ये कविताएं मेरे भीतर इतनी गहराई से उतर जाएंगी। लेकिन हर कविता जैसे मेरे जीवन के किसी कोने को छूने लगी—कभी एक माँ के रूप में, कभी एक बेटी, कभी एक पत्नी, और सबसे ज़्यादा एक औरत के रूप में।

इस संग्रह में कुछ कविताएं ज़ोर से कहती हैं, और कुछ सिर्फ मौन रहकर बहुत कुछ कह जाती हैं। जैसे कोई अनकहा दर्द, कोई छुपा हुआ सवाल, कोई रोकी गई चीख़—जो शब्दों से बाहर निकलने का रास्ता ढूंढ रही हो।

इन कविताओं ने मुझे यह समझने में मदद की कि हर औरत के पास कहने के लिए बहुत कुछ होता है—पर हमेशा नहीं कह पाती। और यही अनकहा इन कविताओं की सबसे बड़ी ताक़त है।

प्रवीण शर्मा की ये कविताएं सिर्फ उनके जीवन की नहीं हैं, ये हम सबकी कहानियाँ हैं—जो हमने कभी किसी से नहीं कही, या जो कहनी चाही लेकिन कह न सके। इसीलिए, इस किताब को पढ़ना मेरे लिए किसी आत्मिक यात्रा जैसा था।

अगर आप भी किसी किताब से जुड़ना चाहते हैं जो आपके दिल की गहराई से बातें करे, तो “कुछ कही, कुछ अनकही” आपके लिए है।

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