
इंदौर, वामा साहित्य के बैनर तले आयोजित प्रीति दुबे की प्रथम का कृति’ ‘प्रीत के नवरंग’ का विमोचन भव्य रहा।
संग्रह की कविताओं में घरेलुपन की आँच हैं। जो इस बात को पुख्ता करती हैं कविता कवि की आत्मकथा होती है, इसमें इंगित कथ्य है रीति है व्यंजनाओं में आख्यान गूंथा है। रचनाकार काव्यशास्त्र की सैद्धांतिक दृष्टि से परे जाकर उसकी व्यावहारिक दृष्टि से सूक्तियों में बात करती हैं। स्त्री प्रेम की ऐसी व्यंजनाएं जो दैहिक स्थापत्य से परे जाकर कभी अलक्षित बिम्ब चुन लेती है बल्कि दाम्पत्य में प्रेम स्वरों का संधान भी करती है। यही इस संग्रह की विशेषता है।
मैथलीशरण गुप्त की सखी वो मुझसे कहकर जाते भी यशोधरा की कथा व्यथा है। लेकिन स्त्री द्वारा रचित दाम्पत्य जीवन की कविताएं लगभग चर्चा विमुख ही रहीं यह संग्रह उस पूर्ति के किसी अंश देखा जा सकता है।
प्रेम की ऐसी व्यंजनाएं तो दैहिक स्थापत्य से परे जाकर कभी अलक्षित बिम्ब चुन लेती है बल्कि दाम्पत्य में प्रेम स्वरों का संधान भी करती है। यही इस संग्रह की विशेषता है।
”झील एक विश्राममय है
श्रांत क्लांत विराममय है
करता हो शृंगार जैसे नीर का”
नव नार -सा (कविता -रात्रि का प्रथम याम )
रात्रि के नीर को नव -नार की तरह समझने की चेष्ठा केवल एक कवि दृष्टि ही कर सकती है। काव्य विधा की सबसे बड़ी भूमिका यह है कि वह हमें इस बात के लिए सजग करती है कि अर्थ भाषा का अंतिम लक्ष्य नहीं है। प्रीति दुबे ने कविताओं में शब्द और अर्थ के प्रति सजगता बरती है। संग्रह की कविताओं का वैभव छंद मुक्त है बावजूद इसके कुछ कविताएं अपनी गीता में के भाव स्पर्श करती हैं।

