सीतेश आलोक

अनिल जोशी

गली- गली में शोर है, सहमे हैं बाज़ार

एक खिलौना कर रहा, बिकने से इंकार     – सीतेश आलोक

हम सब माटी के खिलौने हैं। बहुत से लोग सदा किसी प्रलोभन, पद, आकर्षण के लिए बिकने को तैयार। पर डॉ सीतेश आलोक अलग मिट्टी के थे। डॉ सीतेश आलोक उन लेखकों में से जो गृहस्थ के वस्त्रों में तपस्वी थे। राजनीतिक पगडंडियों ने उन्हें कभी आकर्षित नहीं किया। पद -प्रतिष्ठा की स्थिति तो यह थी कि उन्होंने लेखन  के लिए इकानामिक सर्विस से स्वैच्छिक  त्यागपत्र दे दिया था। उन्हें याद दिलाओ तो उन्हें याद आता था कि वे कभी इकानिमिक सर्विस के अधिकारी थे। जातिगत भाव से इतने दूर कि पति- पत्नी ने अपना नाम डॉ सीतेश आलोक और अरूणा सीतेश कर लिया, जिससे यह जानकारी नहीं मिलती कि वे किस जाति से थे। एक होता है सिद्धांतों पर चलने का प्रयास करना। एक होता  है  सिद्धांतों को  पूरे आग्रह के साथ आत्मसात् करते हुए जीना। चाहे उसमें कितनी समस्याएँ क्यों न हो। उन्होंने दिल्ली में मकान नहीं ख़रीदा क्योंकि दिल्ली में  कहीं भी काला धन दिए बिना मकान नहीं मिलता था और वे काले धन  से कोसों दूर रहने वाले व्यक्ति थे। उनकी सत्यनिष्ठा का एक दिलचस्प प्रसंग है। जब मैंने फ़ीजी के अंतरराष्ट्रीय रामायण सम्मेलन में उन्हें वर्ष  2016 में आमंत्रित किया तो उनके पासपोर्ट पर जहाँ का पता था, वे वहाँ नहीं रहते थे। सबने सुझाया कि जो पता लिखा है, वही पता दूतावास में बता दें। पर उन्होंने कहा कि मैं अपना वर्तमान पता ही बताऊँगा चाहे मुझे वीसा न मिले। संयोग से दूतावास ने उनकी स्थिति समझी और हम सबने आराम से साँस ली जब उन्हें वीज़ा मिल गया। प्रतिवर्ष वे अरूणा जी की स्मृति में अध्यापकों और विद्यार्थियों का अभिनंदन करते।  सिद्धांत ही उनका जीवन थे और सत्य की अनवरत साधना – एक प्रमुख  सिद्धांत।

साहित्य तो उनके रक्त में था। प्रख्यात नाटककार श्री दया प्रकाश सिन्हा उनके बड़े भाई हैं। डॉ सीतेश आलोक ने  गीता और रामायण को जीवन में उतारा था। उन ग्रंथों के आधार पर उन्होंने संक्षिप्त रामायण और भावार्थ गीता भी लिखी। महाभारत का भी उनका गहरा अध्ययन भी था। इस आधार पर उन्होंने ‘महागाथा’  पुस्तक भी लिखी जिसका लोकार्पण साहित्य अकादमी में हुआ और डॉ सूर्यकांत बाली के साथ मुझे भी उस पर बोलने का अवसर मिला। रेंगती हुई शाम, अंधा सवेरा, नासमझ, तुम कहो तो, मुहिम, आधारशिला (कहानी-संग्रह); कैसे-कैसे लोग, विचित्र (लघुकथा-संग्रह); बच गया आकाश, यथा संभव, बाजार में गुडि़या (कविता-संग्रह); गाते गुनगुनाते (गीत); छोटा सा सपना (गजल); सूरज की छुट्टी (बाल गीत); महागाथा, (उपन्यास); चंदर का सुख, तपस्या, सोने की टिकिया, (बालकथा-संग्रह); परनिंदा परम सुखम् (व्यंग्य संग्रह); लिबर्टी के देश में (यात्रा-वृत्तांत); रामायण-पात्र परिचय (शोध संहिता); चलती चक्की (सामयिक लेख) उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं।  वे व्यंग्य लिखते थे और वह उनके सौम्य व्यक्तित्व  का भी अहम हिस्सा था। दोहाकार, ग़ज़लकार और कवि तो थे ही। वे भारतीय संस्कृति और विरासत में रचे- बसे, उसके प्रख्यात अध्येता और व्याख्याकार थे। ‘बाज़ार में गुड़िया’ उनका प्रमुख काव्य संग्रह था, यह बहुत चर्चित रहा।

मैंने तो साहित्य का क ख ग उनसे सीखा। मेरी पुस्तक ‘मोर्चे पर’  के फ़्लैप पर उनका संक्षिप्त वक़्तव्य है।  मैं और कवि नरेश शांडिल्य उनके ज्ञान और अनुभव से निरंतर सीखते। मैं पुरानी दिल्ली में रहता था और डॉ अरूणा सीतेश इन्द्र प्रस्थ कालेज की प्रधानाचार्य थी। वहीं उन्हें बड़ा सुंदर घर मिला था। सीतेश जी और मैं दोनों संस्कार भारती में थे लेखन में सक्रिय थे और मेरा नियमित रूप से उनके घर जाना होता। साहित्य की कौन सी विधा थी जिसमें उनकी गति नहीं थी! वे घर में संगीतकारों- साहित्यकारों के लिए मासिक गोष्ठी करते जिसमें देश के नाम -चीन रचनाकर्मियों ने भाग लिया। वर्ष 2000  में मेरे ब्रिटेन दूतावास में जाने पर उनके घर हुआ विदाई कार्यक्रम मुझे और पत्नी सरोज को याद रहेगा जिसमें डॉ सीतेश आलोक और  डॉ अरूणा ने पूरी पारिवारिक रस्मों के साथ हमें विदाई दी। ब्रिटेन और फ़ीजी में मेरे कार्यकाल के समय मेरा प्रयास रहा कि ऐसे साहित्य मर्मज्ञ, सुदर्शन व्यक्तित्व और प्रतिनिधि प्रज्ञा पुरूष को उन देशों के लोग सुन सकें। ब्रिटेन में कवि सम्मेलन और फ़ीजी में अंतरराष्ट्रीय रामायण सम्मेलन में उनका आना हुआ। 14 सितंबर, 2025 को जब पता लगा कि वे गंभीर रूप से अस्वस्थ हैं तो उसी दिन श्रीमती अलका सिन्हा, श्री मनु सिन्हा और ऋषि शर्मा जी के साथ उनसे मिलने पहुँचा। आख़िरी समय में जब बड़ी मुश्किल से आँख खोल पा रहे थे तब भी उन्हें आराम की चिंता थी कि हम ठीक से बैठें। हम एक देदिप्यमान सितारे के आकाश में स्थानांतरित होने की प्रक्रिया के गवाह हो रहे थे। आकाश में धुव्र तारा ही नहीं। बहुत से ऐसे ऋषि व्यक्तित्व हैं जो तारे बन अपने प्रकाश से सदा हमें राह दिखाते रहेंगे।

मेरी विनम्र श्रद्धांजलि

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