
– अनिल जोशी
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1. माँ के हाथ का खाना
बहुत स्वादिष्ट खाना बनाती है तुम्हारी मां,
कहा एक मित्र ने,
पूछ कर आना उनसे,
कौन से मसाले डालती हैं वो,
हँस पड़ी माँ,
स्वादिष्ट खाना,
क्या सिर्फ मसालों से बनता है?
कौन सा घी,
इस्तेमाल करते हो तुम,
पूछा – दूसरे मित्र ने,
खाने में तरलता क्या घी से आती है?
एक प्रश्न मष्तिष्क में कौंधा
इसमें कोई खास बात नहीं,
अगर हमारे पास समय हो तो,
हम भी बना दें,
इतना ही स्वादिष्ट खाना,
जवान लड़की ने कहा,
क्या सिर्फ समय होने से बन जाता है,
खाना स्वादिष्ट?
नहीं,
कुछ ना कुछ
अद्भुत जरूर है मां के पास,
तभी तो,
करेले में भी आ जाती है मिठास।
माँ को बहुत अच्छा लगता है,
गर्म -गर्म खाना बनाना
और,
अपने सामने बैठ कर खिलाना,
गुब्बारे से फूल जाती है रोटी,
मचल उठता है बच्चा,
पहले मैं लूँगा।
फूल सी महक आती है उसमें,
तैरता रहता है स्नेह का घी,
सब्जी,
जीभ से लगते ही,
संपूर्ण जिस्म बन जाता है जीभ,
जबडो़ं में नही घूमता रहता ग्रास,
सीधा,
हलक में उतर जाता है,
तुप्त हो जाती है आत्मा।
मां देखती रहती है,मुस्कराती रहती है,
कभी -कभी,
आंसू छलक जाते हैं उसके।
सोचता हूँ,
किसी माँ के हाथ का खाना खाकर ही,
ऋषियों ने कहा होगा,
अन्न ही ब्रह्म है।
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2. अब तलक जो देह थी, खुशबु में ढल गई
एक रूह जमीं से उठी, तारों में मिल गई,
अब तलक जो देह थी, खुशबु में ढल गई।
दिन-रात वो जलती रही, रोशन हमें किया,
वो एक दिव्य लौ, मेरे भीतर उतर गई।
उसके लिए तो एक हैं, वे राम हो या श्याम,
इसको चुनो, उसको चुनो, सुनके दहल गई।
वो क्या गई कि गोल से, तिरछी हुई दुनिया,
रिश्ते गए, नाते गए, दुनिया बदल गई ।
जो मिला, उसने दिया, हमसे लिया क्या,
वो ब्रह्म है, मिट्टी में मेरी, प्राण भर गई।
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