हिंदी साहित्य की धरती ऐसी कई सशक्त रचनाकारों से समृद्ध है, जिन्होंने अपनी कलम से स्त्री-मन की गहराइयों को न केवल अच्छे से पेश किया है बल्कि नारी के अंदर की उलझनों को बहुत खूबसूरती से उकेरने का काम किया है। इनमें डॉ. प्रभा खेतान एक खास नाम हैं, जो कविता से भावनाओं की दुनिया बनाती हैं। साथ ही आलोचना, निबंध और साहित्यिक नारीवादी विचारों से हिंदी साहित्य को नई दिशा देती हैं।

उनकी किताबें नारी के अंदर की उलझनों और समाज की बेड़ियों को इतनी साफ दिखाती हैं कि पाठक सोचने पर मजबूर हो जाता है। उन्होंने फ्रांसीसी रचनाकार सिमोन द बोउवार की ‘द सेकंड सेक्स’ का हिंदी अनुवाद ‘स्त्री उपेक्षिता’ किया, जो उनके नारीवादी विचारों को पेश करता है।

प्रभा खेतान बहुमुखी प्रतिभा की धनी थीं। उन्होंने कविता, उपन्यास, निबंध, अनुवाद और आत्मकथा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण रचनाएं कीं। उनका लेखन मुख्य रूप से स्त्री जीवन की बारीकियों और मुक्ति पर केंद्रित है। बंगाली स्त्रियों के माध्यम से उन्होंने भारतीय समाज की स्त्री-विरोधी संरचनाओं को उजागर किया।

नारीवादी चिंतन की धुरी के रूप में पहचानी जाने वालीं डॉ. प्रभा खेतान का 1 नवंबर 1942 को कोलकाता में जन्म हुआ। बताया जाता है कि उनकी साहित्यिक यात्रा 12 साल की उम्र में शुरू हुई थी। उन्होंने साहित्य साधना में स्त्री के सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और नैतिक मूल्यों को गहराई से समझा था।

प्रभा खेतान ने ‘बाजार के बीच, बाजार के खिलाफ: भूमंडलीकरण और स्त्री के प्रश्न’, ‘शब्दों का मसीहा सा‌र्त्र’, ‘आओ पेपे घर चले’, ‘तालाबंदी’, ‘अग्निसंभवा’, ‘छिन्नमस्ता’, ‘अपने-अपने चेहरे’, ‘पीली आंधी’, ‘स्त्री पक्ष’ और ‘अन्या से अनन्या’ जैसी रचनाएं लिखीं, जिन्हें खूब पसंद किया गया। ‘अन्या से अनन्या’ में उन्होंने एक साहसी और निडर स्त्री का चित्रण किया, जो जल्दी ही बहुत लोकप्रिय हो गई।

किताब में प्रभा खेतान ने अपने जीवन की कहानी को इतने खुले मन से बताया कि इसे पढ़कर एक स्त्री के रोजमर्रा में आने वाली मुश्किलों का पता चल पाएगा।

‘अन्या से अनन्या’ में भारतीय स्त्रियों की स्वतंत्रता पर प्रभा खेतान लिखती हैं, “पर कोई भी सती रह नहीं पाती। हां, सतीत्व का आवरण जरूर ओढ़ लेती है या फिर आत्मरक्षा के नाम पर जौहर की ज्वाला में छलांग लगा लेती है। व्यवसाय जगत में कुछ अन्य समस्याएं भी सामने आई। कारण, किसी भी समाज में कुछ ऐसे कोड होते हैं, जो स्त्री-पुरुषों के आपसी संबंध को निर्धारित करते हैं।”

स्त्री-विषयक मामलों में बेहद सक्रिय प्रभा खेतान ने 1966 में फिगुरेट नामक महिला स्वास्थ्य देखभाल संस्था की स्थापना भी की। साथ ही, वह ‘प्रभा खेतान फाउंडेशन’ की संस्थापक-अध्यक्ष भी रहीं। नारीवादी लेखन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें प्रशंसा मिली। 20 सितंबर 2008 को उनका निधन हो गया, लेकिन ‘अन्या से अनन्या’ जैसी रचनाएं आज भी नारी सशक्तीकरण की प्रेरणा हैं।

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