वाह! द्वारका एक्सप्रेस – (ब्लॉग)
वाह! द्वारका एक्सप्रेस डॉ. अशोक बत्रा, गुरुग्राम वाह द्वारका एक्सप्रेस मार्ग!तेरा भी जवाब नहीं!!भारतेन्दु हरिश्चन्द्र अपने नाटक अँधेर नगरी में आज से 150 वर्ष पहले ही लिख गए थे —मानहु…
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वाह! द्वारका एक्सप्रेस डॉ. अशोक बत्रा, गुरुग्राम वाह द्वारका एक्सप्रेस मार्ग!तेरा भी जवाब नहीं!!भारतेन्दु हरिश्चन्द्र अपने नाटक अँधेर नगरी में आज से 150 वर्ष पहले ही लिख गए थे —मानहु…
डॉ. अशोक बत्रा, गुरुग्राम छुअन- छुअन में फर्क बहुत है! माँ छूती है बादल जैसेबारिश जैसे, अमृत जैसे!स्पर्श पिता काधूप हो जैसे, सूरज जैसे।दादा दादी नाना नानीकिशमिश जैसे और छुआरे।सखी…
ऐया या वैया डॉ. अशोक बत्रा, गुरुग्राम कल शाम एक हिंदी अध्यापिका ने व्हाट्सएप करके मुझसे पूछ लिया कि गवैया शब्द में प्रत्यय ऐया है या वैया। एक बार तो…
अग्रवाल अंग्रेजी गलत क्यों लिखते हैं? डॉ. अशोक बत्रा, गुरुग्राम शीर्षक पढ़ते ही अग्रवाल साहब नाराज़ हो गए, बल्कि कहूँगा कि कुपित हो गए। बोले — जानते हो, हम अग्रवालों…
हिंदी तेरा क्या होगा डॉ. अशोक बत्रा, गुरुग्राम अँधेरा इतना सघन है कि एक जुगनू भी नहीं टिमटिमा रहा। जिस सोसाइटी में रहता हूँ, वहाँ हिंदी में कोई छींकता भी…
सब सुंदर! डॉ. अशोक बत्रा, गुरुग्राम मैंने पूछा — ऋषिकेश गए थे। कैसा लगा?बोले — बहुत सुंदर! बहुत खूबसूरत!–और गंगा का किनारा?–अरे पूछो मत! बहुत सुंदर!— रास्ते की पहाड़ियाँ?— अरे…
भाषा में दबंगई – डॉ. अशोक बत्रा, गुरुग्राम संविधान बनाए ही इसलिए जाते हैं कि व्यवस्था और शासन नियम से चलें, न कि उठाईगिरी, दबंगई या जबरदस्ती के कब्जे-से। कब्जा…
अनुभौ उतरयो पार! डॉ. अशोक बत्रा, गुरुग्राम कबीर का जीवन ही दर्शन पर आधारित था। उन्होंने जो देखा, उसी को कहा। किसी किताब-विताब के चक़्कर में नहीं रहे। कहते हैं,…
अंग्रेजी माध्यम : दोषी कौन – डॉ. अशोक बत्रा, गुरुग्राम निसंदेह नन्हे-नन्हे बच्चों से नन्हीं-सी आयु में अपनी भाषा छुड़वाकर किसी विदेशी भाषा में पढ़वाना डायलिसिस जैसा कष्टकारी है। भाषांतरण…
कमरा का कमरे क्यों हो जाता है? डॉ. अशोक बत्रा, गुरुग्राम चाय के खोखे पर इधर – उधर की चल रही थी। प्रोफेसर गुप्ता ने हिंदी की बखिया उधेड़ते हुए…
वर्णमाला में वर्ण नहीं — भाग -2 डॉ. अशोक बत्रा, गुरुग्राम चाय पर खूब गुलगपाड़ा हुआ। गरमागरम बहस हुईं। बहस इतनी गर्म थी कि ठंडे पकौड़े भी गर्म लगे। लोग…
वर्णमाला में वर्ण नहीं हैं – डॉ अशोक बत्रा उस दिन की बात है। कक्षा 9 से 12 तक पढ़ाने वाले अध्यापकों का प्रशिक्षण चल रहा था। मैंने पूछ लिया…
दीर्घ सन्धि की कहानी आगे-आगे थी विद्यापीछे-पीछे था आलयदोनों अपनी अपनी साइकिल चला रहे थेपर आलय का अगड़ा आऔर विद्या का पिछला आकोई गुल खिला रहे थेविद्या का आ बोला…
76 वाँ गणतंत्र मेरा देश वह साइकिल हैजिसे 540 गण चला रहे हैं300 चला रहे हैं दिन रात पैडलबाकी मिलकर ब्रेक लगा रहे हैं। कोई दाहिनी ब्रेक तो कोई वामकोई…
संज्ञा बोली सर्वनाम से न जाने क्योंसंज्ञा और सर्वनाम मेंतकरार हो गईसर्वनाम बना हुआ था ढालऔर संज्ञा तलवार हो गई! वो सर्वनाम से बोली —अरे मेरे चाकर!मेरे आश्रित!मेरे पालतू!और फालतू!मेरी…
उपसर्ग और शब्द हम भगतसिंह हैं, आज़ाद हैंहम करोड़ों नहींदस बीस होते हैमाना कि हम कटे हुए शीश होते हैंहम कौम के लिए उत्सर्ग होते हैंहम शब्द नहीं, उपसर्ग होते…
उक्ति के बहाने से कुछ भी कहावो वाक्य हैअपना मत रखातो कथन हैकथन की ओर उँगलीउक्ति हैसारगर्भितया कि मर्मबेधक उक्तिसूक्ति हैऔर बरसों बरस का अनुभवचढ़ जाएलोगों की जुबान परतो लोकोक्ति…
मुहावरे और लोकोक्ति की भिड़ंत एक दिनमुहावरे और लोकोक्ति मेंहो गई जिद्दबाजीकदम पीछे हटाने कोन मुहावरा राजीन लोकोक्ति राजी! मुहावरे ने उचक कर कहा —तुम खुद को समझती क्या हो?तुम…
गणित और साहित्य पता नहीं कौन-सा काँटागणित के दिल में पैठ गयाकि एक दिन साहित्य से ऐंठ गयाबोला —अबे ओ साहबजादे साहित्य!कहते होंगे लोग तुझे आदित्य!पर यह मत भूलआदित्य की…
आगे आगे होता है क्या! – डॉ अशोक कुमार बत्रा लगभग 20 वर्ष पहले की बात है। चुनावों की तैयारियाँ चल रही थीं। दोपहर 2.30 बजे के आसपास मेरे घर…