हम ‘ई’ से ईमान रखने नहीं, बेचने लगे – (वर्णमाला 4 – ब्लॉग)
हम ‘ई’ से ईमान रखने नहीं, बेचने लगे स्वरांगी साने बचपन में याद करते थे ई, ईख की। बाद के वर्षों में उसे ईख कहना कब बंद हुआ, याद नहीं।…
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हम ‘ई’ से ईमान रखने नहीं, बेचने लगे स्वरांगी साने बचपन में याद करते थे ई, ईख की। बाद के वर्षों में उसे ईख कहना कब बंद हुआ, याद नहीं।…
‘इ’, देखन में छोटी लगे… स्वरांगी साने ‘इंगित पर तुम्हारे ही भीम ने अधर्म किया…’ धर्मवीर भारती लिखित ‘अंधा युग’ में गांधारी का यह विलाप ‘इ’ की इतनी ताकत को…
आह से ही तो उपजा था पहला गान स्वरांगी साने आषाढ़ के किसी दिन बादल बरसे पर हुआ कुछ ऐसा कि वाह न निकली और मुँह से आह निकल गई!…
‘अ’ से शुरू हुई एक अधूरी यात्रा स्वरांगी साने अभी उसने अपनी बात पूरी भी नहीं की थी, बात क्या, जो वह कह रही थी, उतना शब्द भी पूरा नहीं…