
भारत-मंगोलिया के बीच बौद्ध विरासत का आदान-प्रदान: पीएम मोदी की महत्वपूर्ण घोषणा

~ विजय नगरकर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में मंगोलिया के प्रधानमंत्री उखनागिन खुरेलसुख के साथ द्विपक्षीय वार्ता के दौरान एक महत्वपूर्ण घोषणा की, जिसमें भारत और मंगोलिया के बीच सांस्कृतिक और आध्यात्मिक बंधनों को मजबूत करने पर जोर दिया गया। उन्होंने कहा कि अगले वर्ष (2026) में भगवान बुद्ध के दो प्रमुख शिष्यों—सारिपुत्र और मौद्गल्यायन—के पवित्र अवशेष (होली रेलिक्स) को भारत से मंगोलिया भेजा जाएगा। इसके अलावा, उलानबातर स्थित प्रसिद्ध ‘गंदन मॉनेस्टेरी’ में एक संस्कृत शिक्षक को भी तैनात किया जाएगा, ताकि वहां के बौद्ध ग्रंथों का गहन अध्ययन संभव हो सके और प्राचीन ज्ञान परंपरा को आगे बढ़ाया जा सके। यह घोषणा दोनों देशों के बीच ‘आध्यात्मिक भाईचारे’ को रेखांकित करती है, जहां बौद्ध धर्म एक साझा धरोहर के रूप में उभरता है।
सारिपुत्र और मौद्गल्यायन: बुद्ध के ‘दो रत्न’
भगवान बुद्ध के शिष्यों में सारिपुत्र (Shariputra) और मौद्गल्यायन (Maudgalyayana) को ‘दो रत्न’ (Two Gems) कहा जाता है, क्योंकि वे बौद्ध परंपरा में सबसे प्रमुख और निकटतम शिष्य माने जाते हैं। सारिपुत्र बुद्ध के धम्म (धर्म) के प्रमुख व्याख्याकार थे और उन्हें बुद्ध के ‘दाहिने हाथ’ के रूप में जाना जाता है। वे तर्कशास्त्र और ध्यान में निपुण थे तथा संघ (बौद्ध समुदाय) के संगठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दूसरी ओर, मौद्गल्यायन चमत्कारों और अलौकिक शक्तियों के लिए प्रसिद्ध थे; वे बुद्ध के ‘बाएं हाथ’ कहलाते थे और उन्होंने बौद्ध शिक्षाओं को व्यापक रूप से प्रचारित किया। दोनों शिष्यों की मृत्यु बुद्ध के परिनिर्वाण से पहले हुई थी, और उनके अवशेष बौद्ध तीर्थयात्रा के प्रमुख केंद्र हैं।
ये अवशेष मूल रूप से सारनाथ (वाराणसी, उत्तर प्रदेश) के संग्रहालय में सुरक्षित हैं, जहां उन्हें ब्रिटिश पुरातत्वविद् एलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा 19वीं शताब्दी में खोजा गया था। ये अवशेष बौद्ध भिक्षुओं के अवशेषों के रूप में पहचाने जाते हैं, जो हड्डी के टुकड़ों, मोतियों और अन्य पवित्र वस्तुओं से युक्त हैं। इन्हें पहले भी विभिन्न देशों जैसे थाईलैंड, श्रीलंका और सिंगापुर में प्रदर्शित किया जा चुका है, लेकिन मंगोलिया को भेजना एक नया कदम है जो बौद्ध विरासत के वैश्विक आदान-प्रदान को दर्शाता है।
गंदन मॉनेस्टेरी: मंगोलिया का बौद्ध ज्ञान केंद्र
गंदन मॉनेस्टेरी (Gandan Monastery) मंगोलिया की राजधानी उलानबातर में स्थित एक प्रमुख जिब्त्सू बौद्ध मठ है, जो 19वीं शताब्दी में स्थापित हुआ था। यह मंगोलिया का सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण बौद्ध केंद्र है, जहां हजारों भिक्षु रहते हैं और प्राचीन तिब्बती-मंगोल बौद्ध ग्रंथों का संरक्षण किया जाता है। सोवियत काल में इसे नष्ट कर दिया गया था, लेकिन 1990 के दशक में पुनर्निर्मित किया गया। यहां 20 मीटर ऊंची मूर्ति ‘मैत्रेय बुद्ध’ स्थापित है, जो एशिया की सबसे बड़ी बौद्ध मूर्तियों में से एक है। संस्कृत शिक्षक की तैनाती से मठ के विद्वानों को मूल संस्कृत ग्रंथों (जैसे त्रिपिटक) का गहरा अध्ययन करने में मदद मिलेगी, जो मंगोलिया में बौद्ध विद्या को पुनर्जीवित करने में सहायक होगी। यह कदम प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा को मंगोलिया की बौद्ध संस्कृति से जोड़ने का प्रयास है।
घोषणा का व्यापक संदर्भ: भारत-मंगोलिया संबंधों में नया अध्याय
यह घोषणा 14 अक्टूबर 2025 को हुई द्विपक्षीय बैठक का हिस्सा थी, जहां दोनों देशों ने 10 समझौते (MoUs) पर हस्ताक्षर किए, जिनमें खनन, रक्षा, कृषि और डिजिटल प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्र शामिल हैं। संबंधों को ‘रणनीतिक साझेदारी’ (Strategic Partnership) के स्तर तक ऊंचा किया गया। पीएम मोदी ने मंगोलिया को ‘आध्यात्मिक भाई’ कहा, जो चंगेज खान से लेकर आधुनिक कूटनीति तक के ऐतिहासिक बंधनों को इंगित करता है। बौद्ध धर्म के माध्यम से यह आदान-प्रदान न केवल सांस्कृतिक है, बल्कि शांति, अहिंसा और सतत विकास जैसे वैश्विक मूल्यों को बढ़ावा देगा। भारत ने पहले भी बौद्ध अवशेषों को विभिन्न देशों में भेजकर ‘बुद्धा रोड इनिशिएटिव’ को मजबूत किया है, जो एशिया में सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी का हिस्सा है।
यह कदम न केवल बौद्ध अनुयायियों के लिए प्रेरणादायक है, बल्कि भारत और मंगोलिया के बीच सहयोग को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा।