जिला अधिकारी ने मेकअप क्यों नहीं किया?

डॉ महादेव एस कोलूर

मलप्पुरम (केरल) की जिला अधिकारी सुश्री रानी सोयामोय कॉलेज के विद्यार्थियों के साथ बातचीत कर रही थीं।

केरल राज्य की इस जिला अधिकारी ने अपनी कलाई की घड़ी के अलावा कोई आभूषण नहीं पहना था।

अधिकांश बच्चों के लिए यह आश्चर्य की बात थी कि उन्होंने चेहरे पर पाउडर तक नहीं लगाया था।बच्चों ने उनसे कुछ सवाल किए।प्रश्न: आपका नाम क्या है?

उत्तर: मेरा नाम रानी है। सोयामोय मेरे परिवार का नाम है। मैं झारखंड की मूल निवासी हूँ। तभी एक दुबली-पतली लड़की दर्शकों में से खड़ी हुई और पूछा,

“मैडम, आप मेकअप क्यों नहीं करतीं?” डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर के चेहरे का रंग अचानक फीका पड़ गया।

माथे पर पसीना उभर आया और चेहरे की मुस्कान गायब हो गई।

सभी उपस्थित लोग अचानक शांत हो गए। उन्होंने टेबल पर रखी पानी की बोतल खोली, थोड़ा पानी पिया और बच्ची को बैठने का इशारा किया।

फिर धीरे-धीरे बोलना शुरू किया : “मेरा जन्म झारखंड राज्य के कोडरमा जिले के एक आदिवासी इलाके में हुआ था, जो ‘माइका’ खदानों से भरा हुआ था।

मेरे पिता और माँ दोनों खदान मजदूर थे।

मेरे दो भाई और एक बहन थी।

हम बारिश में टपकने वाली एक झोपड़ी में रहते थे।

कोई दूसरा काम न मिलने के कारण मेरे माता- पिता बहुत ही मामूली मजदूरी पर खदानों में काम करते थे, जो अत्यंत खतरनाक काम था। जब मैं चार साल की थी, मेरे पिता, माँ और दोनों भाई बीमार पड़ गए।

उन्हें तब यह नहीं पता था कि यह बीमारी खदानों में फैले घातक माइका की धूल से होती है।

जब मैं पाँच साल की हुई, मेरे दोनों भाई बीमारी के कारण मर गए।” कलेक्टर ने एक गहरी साँस ली और अपनी आँसुओं से भीगी आँखें बंद कीं। “अक्सर हमारे खाने में सिर्फ पानी और एक-दो रोटियाँ होती थीं।

मेरे भाई भूख और बीमारी से मर गए।

हमारे गाँव में न डॉक्टर था, न स्कूल, न बिजली, न शौचालय।

आप कल्पना कर सकते हैं ऐसे गाँव की? एक दिन जब मैं बहुत भूखी थी, मेरे पिता मुझे एक बड़ी माइका खदान में ले गए।

वह वही मशहूर खदान थी जिसकी गहराई में बच्चे माइका निकालते थे।

मेरा काम था उन तंग गुफाओं में रेंगते हुए माइका की परतें इकट्ठा करना — क्योंकि यह छोटा शरीर ही नीचे जा सकता था। उस दिन पहली बार मैंने पेट भर रोटी खाई—परंतु उसी रात उल्टी हुई।

पहली कक्षा में पढ़ने की उम्र में मैं ज़हरीले धूल-धुएँ के बीच काम करती थी।

भूस्खलन से बच्चों का मर जाना बहुत सामान्य बात थी।आठ घंटे काम करने पर एक रोटी मिलती थी।

भूख और प्यास से मेरा शरीर सूख गया था।

एक साल बाद मेरी बहन भी वहाँ काम करने लगी।

तब जाकर हम चारों किसी तरह जी पा रहे थे। लेकिन किस्मत को कुछ और मंजूर था।

एक दिन जब मैं तेज़ बुखार में घर पर थी, अचानक बारिश आई।

खदान धँस गई और सैकड़ों मजदूर मारे गए—उनमें मेरे पिता, माँ और बहन भी थीं।” सभागार में सन्नाटा छा गया। कई आँखों से आँसू बहने लगे। “तब मेरी उम्र केवल छह साल थी।

आख़िरकार मुझे एक सरकारी आश्रम में भेजा गया। वहीं मैंने पढ़ाई की।

मैं अपने गाँव की पहली लड़की हूँ जिसने अक्षर सीखें।

और अब मैं आपके सामने जिला अधिकारी के रूप में खड़ी हूँ।”फिर उन्होंने कहा,

“आप सोच रहे होंगे कि इस सबका मेरे मेकअप न करने से क्या संबंध है।

माइका ही वह खनिज है जो ज्यादातर कॉस्मेटिक उत्पादों में इस्तेमाल होता है। माइका एक चमकदार सिलिकेट खनिज है।

दुनिया की बड़ी कॉस्मेटिक कंपनियाँ इस रंगीन माइका का उपयोग करती हैं, जिसे निकालने में लाखों बच्चों की ज़िंदगी दाँव पर लग जाती है। आपके गालों की गुलाबी चमक के पीछे उन बच्चों के टूटे सपने,

उनके कुचले हाथ और पत्थरों के बीच बिखरा उनका खून छिपा होता है। आज भी झारखंड में बेहतरीन माइका निकाला जाता है।

20,000 से ज्यादा बच्चे स्कूल जाने के बजाय खदानों में काम करते हैं।

कुछ धँसावों में मर जाते हैं, कुछ बीमार पड़कर मौत के शिकार हो जाते हैं। अब आप ही बताइए—

क्या मैं अपने चेहरे पर वही मेकअप लगा सकती हूँ! जो मेरे भाइयों जैसे बच्चों के खून से बना है?

क्या मैं रेशमी कपड़े पहन सकती हूँ, जब मेरी माँ फटे कपड़ों में गुज़री थी?

क्या मैं पेट भर खा सकती हूँ, जब मेरे भाई भूख से मर गए?” इतना कहकर उन्होंने हल्की-सी मुस्कान के साथ सिर उठाया और बिना कुछ कहे बाहर निकल गईं।

सारा सभागार अनजाने में खड़ा हो गया।

उनके चेहरे का मेकअप भी आँखों से बहते गरम आँसुओं में घुलने लगा।

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