
– डॉ महादेव एस कोलूर
*****
वृक्ष
आदमी ने वृक्ष से कहा —
कुछ तो बोलो, यूँ क्यों चुप हो।
वृक्ष मुस्कुराया,पत्तों की सरसराहट में बोला —
“जिन्होंने सब कुछ खोकर भी दिया,
वो ही सच्चे जीव हैं जग में।
धूप स्वयं सह ली मैंने,
ताकि तुम रहो छाँव के मग में।
फल दिए, पर स्वाद न जाना,
शाखों पर भार संभाल लिया।
अपनों को ही सुखी किया मैंने,
खुद का दुख संभाल लिया।
जो देना जाने, वही जीना जाने,
स्वार्थ में कहाँ है प्रीति।
दूसरों के लिए जलना ही,
वृक्ष-जीवन की रीति।”
*****
