शब्दों के सिपाही

शब्दों के सिपाही बस
एक युद्ध और अभी।

शांति और मानवता को
राजनीति ने ग्रसा
धर्म का पुरोधा भी
अर्थ-स्वार्थ में धँसा
प्रेम के बढ़ावे का
एक चरण और अभी।

संकट, विपदाओं को
कन्धों में ढोना है
नफ़रत की धरती पर
नेह भाव बोना है
छाले हैं पाँवों में
चलना है और अभी।

यात्रा पर निकले सब
राहों का अंतर है
जाना है सबको वहाँ
नहीं जादू मंतर है
सर्व धर्म नातों का
अनुपम वृत्त और अभी।

अमृत की इच्छा तो
सभी यहाँ करते हैं
मर्यादा, आदर्शों के
किले सभी गढ़ते हैं
करना शिव शंकर सा
पान तुम्हें और अभी।

कस्तूरी-गंध हम
मृग बने भाग रहे
दौड़ में पड़े हैं
कब से हाँफ रहे
कर्म सेवाधार में
बहना है और अभी।

*****

– श्रीनाथ द्विवेदी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate This Website »