एम्स्टर्डम में पारम्परिक सूरीनामी रीतिरिवाज में होलिका पूजन संपन्न

अश्विनी केगांवकर, एम्स्टर्डम, १३ मार्च २०२५ एम्स्टर्डम

१३ मार्च २०२५ को नीदरलैंड की राजधानी एम्स्टर्डम में होलिका पूजन एवं दहन समारोह संपन्न हुआ। यह समारोह पारम्परिक सूरीनामी रीतिरिवाजों के साथ मनाया गया।

एम्स्टर्डम के बाल्मेर क्षेत्र में नीदरलैंड समयानुसार शाम के साढ़े छह बजे होलिका पूजन का आरंभ हुआ। इस पूजन में एक अनोखा रीती रिवाज देखने को मिला, जहाँ हमारे भारतवंशी सूरीनामी साथियों एवं प्रवासी भारतीयों ने मिलकर एकसाथ एक जुलुस में चल रहे थे।

चलते समय अपने हाथों में मशाल जैसी एक लकड़ी के डंडे को जलाकर एम्स्टर्डम शहर में एक जुलुस निकाला था। इस जुलुस में हमारे सूरीनामी साथी बड़े ही धूमधाम से सूरीनामी (सरनामी) भाषा में होली के गीत गा रहे थे। सरनामी गीतों के साथ -साथ वे अनवरत भक्त प्रह्लाद की जयजयकार कर रहते थे।

भक्त प्रह्लाद की जयजयकार के साथ साथ नारायण स्तुति भी कर रहे थे। भक्त प्रह्लाद की जयजयकार और नारायण स्तुति से एक अलग ही माहौल नीदरलैंड की ठण्ड में स्थापित हो रहा था।

यह जुलुस एम्स्टर्डम के एकमात्र हिन्दू विद्यालय लक्ष्मी हिन्दू विद्यालय से शुरू हुआ था।

यह मेरा सौभाग्य रहा कि मुझे आ शर्मीला जी ने इस समारोह का आमंत्रण दिया था।

जुलुस ने शाम के ७ बजे होलिका पूजन के स्थान पर प्रस्थान किया। शाम के साथ बजते ही नीदरलैंड के ठंडा तापमान अपनी और शीतलता दिखा रहा था। करीब शुन्य डिग्री तापमान में होलिका पूजन आरम्भ हुआ।  सूरीनामी रीतीरिवाजों के अनुसार सनातन मंत्र  उच्चारणों द्वारा  तापमान भले ही ठंडा रहा किन्तु वातावरण में एक अलग सी सनातनी संस्कारों की ऊष्मा उत्पन्न हुई। सूरीनामी साथियों ने यथोचित होलिका पूजन संपन्न किया और सनातनी मंत्र उच्चारणों के साथ होलिका दहन आरम्भ हुआ।

होलिका दहन आरम्भ होते ही बड़े ही जोश और उल्हास के साथ हमारे सूरीनामी साथी सूरीनामी होली के गीत गा रहे थे। सूरीनामी ढोलक के साथ सूरीनामी होली के गीतों ने  हम सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।

होली दहन का कार्यक्रम करीब रात के साढ़े आठ बजे समाप्त हुआ।

इस समारोह के मुख्य आयोजक आदरणीय श्री ननकु जी ने यह बताया कि वे करीब ३५ वर्षों से यह होलिका पूजन नीदरलैंड में आजोजित कर रहे है। इस समारोह के आयोजन  में बहुत ज्यादा पूर्व तैयारी की आवश्यकता होती है।

विभिन्न सरकारी विभागों से अनुमति लेकर ही यह आयोजन संभव हो पाता  है।

आगे वे बताते है कि आमतौर पर होलिका दहन से उतपन्न हुई धूल को वे अगले दिन हम सभी सनातनी मंत्र उच्चारणों के साथ हवा में धूल  उड़ाते है, होलिका दहन की धूल उड़ाने के बाद फगुआ मानते है।

होलिका दहन के इस धूल को हवा में उड़ाने के बाद ही फगुआ अर्थात होली पर्व की औपचारिक रूप से शुरुआत होती है।

होली वाले दिन सूरीनामी साथी “चौताल” गाते है।चौताल एक चार पद का एक धुन होती है। चौताल से साथ ही वे ऊलारा भी गाते हैं।

इस प्रकार पारमपरिक सूरीनामी रितिरियाज  में होलिका पूजन एवं  दहन  समारोह एम्स्टर्डम में मनाया गया।

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