हिन्दी-अंग्रेज़ी अनुवाद कार्यशाला
[संदर्भ- ए प्लेस काल्ड होम (डॉ॰सुषम बेदी की कहानियों का अंग्रेज़ी अनुवाद)]

रिपोर्ट – डॉ जयशंकर यादव
वैश्विक हिन्दी परिवार द्वारा सहयोगी संस्थाओं के तत्वावधान में अनुवाद की गुणवत्ता और महत्ता के मद्देनजर रविवारीय कार्यक्रम के अंतर्गत 23 मार्च को हिन्दी-अंग्रेज़ी अनुवाद कार्यशाला का आभासी आयोजन किया गया। इस अवसर दिल्ली विश्वविद्यालय के इंद्रप्रस्थ कॉलेज के हिन्दी विभाग की प्रो॰ रेखा सेठी और विवेकानंद कॉलेज के अंग्रेज़ी विभाग की प्रो॰ हीना नन्द्राजोग साहित्यिक समीक्षक और विषय विशेषज्ञ के रूप में पधारीं। संवादी की भूमिका में जानकी देवी मेमोरियल कालेज के प्रो॰ विवेक शर्मा ने शालीन ढंग से बखूबी दायित्व निर्वहन किया। आरंभ में प्रो॰ ओम प्रकाश द्वारा सबका आत्मीयतापूर्वक स्वागत किया गया। इस अवसर पर देश विदेश से अनेक साहित्यकार,विद्वान विदुषी, प्राध्यापक, अनुवादक, शिक्षक, राजभाषा अधिकारी, शोधार्थी, विद्यार्थी और भाषा प्रेमी आदि जुड़े थे।

गहन चर्चा में आया कि सुषुम बेदी के लेखन में समस्या,समाधान और दृष्टिकोण व्याप्त है तथा उनमें तटस्थ भाव से देखने की बेजोड़ क्षमता है। साहित्यिक अनुवाद में अनुवादक की मूल कृति के कथ्य, भाषा, शैली, संस्कृति ,लोक जीवन, लोकोक्तियाँ और मुहावरे तथा देश काल वातावरण की बारीकियों आदि पर अच्छी पकड़ होनी चाहिए। इसमें अनुवादक को शब्द शिल्पी की भी यथावश्यक सशक्त भूमिका निभानी पड़ती है। आधुनिक तकनीकी या कृत्रिम मेधा को सहायक के रूप में रखे, स्वामिनी न बनाएँ। अनुवाद के सिद्धान्त के साथ व्यावहारिक पक्षों पर भी यथेष्ट ध्यान आवश्यक होता है। अंग्रेज़ी के भारतीयकरण का भी यथावश्यक सहारा लिया जाना अपेक्षित है।

जापान से जुड़े प्रो॰ वेद प्रकाश के शैली और एआई के सवाल के जवाब में बताया गया कि साहित्यिक अनुवाद में पॉलिश की अपेक्षाकृत अधिक जरूरत होती है। शैली बदलने से अनुवाद बदल जाता है। मूल लेखक की आवाज आद्योपांत सुनाई देनी चाहिए। शोधार्थी आरुषि और अन्य के प्रश्न पर बताया गया कि अनुवादक के जेंडर का भी अनुवाद पर आंशिक प्रभाव पड़ता है तथा मूल लेखन और अनुवाद कला दोनों की महत्ता है।

समूचा कार्यक्रम विश्व हिन्दी सचिवालय,अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद,केंद्रीय हिन्दी संस्थान,वातायन और भारतीय भाषा मंच के सहयोग से वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्षश्रीअनिल जोशी के मार्गदर्शन में आयोजित हुआ। कार्यक्रम प्रमुख की सशक्त भूमिका का बखूबी निर्वहन ब्रिटेन की सुप्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार सुश्री दिव्या माथुर द्वारा किया गया। पूर्व राजनयिक एवं राजभाषा विभाग के अधिकारी डॉ॰ मोहन बहुगुणा ने मन्तव्य दिया कि कृत्रिम एआई का सतत अनुश्रवण आवश्यक है। डॉ॰ बहुगुणा के आत्मीय कृतज्ञता ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। यह कार्यक्रम “वैश्विक हिन्दी परिवार, शीर्षक के अंतर्गत “यू ट्यूब ,पर उपलब्ध है।

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