
दक्षिण एशिया में भाषाओं के विकास पर पेगी मोहन की अंतर्दृष्टि

~ विजय नगरकर, अहिल्यानगर, महाराष्ट्र
भूमिका:
भाषाओं का विकास किसी समाज के सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक बदलावों का सजीव प्रतिबिंब होता है। भाषाविद् पेगी मोहन अपनी नवीनतम पुस्तक Father Tongue, Motherland में दक्षिण एशिया की भाषाओं के उद्भव को ‘क्रियोल मॉडल’ के माध्यम से समझाती हैं। उनका तर्क है कि जब प्रवासी पुरुष स्थानीय महिलाओं से विवाह करते हैं, तो उनके संतान दो भाषाओं में पलते हैं। इसके बाद, जब शहरीकरण और सत्ता-परिवर्तन होते हैं, तो यह भाषाई मिश्रण स्थायी रूप से समाज में रच-बस जाता है। यह लेख मोहन के विचारों और उनके ऐतिहासिक विश्लेषण का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करता है।
1. क्रियोल मॉडल: भाषाओं का द्विस्तरीय मिश्रण
पेगी मोहन यह स्पष्ट करती हैं कि क्रियोल केवल कैरिबियन में दास-व्यवस्था तक सीमित नहीं है। यह वास्तव में उस प्रक्रिया को दर्शाता है, जहां दो भाषाओं का सम्मिश्रण होता है। जब बाहरी आक्रांता या व्यापारी किसी क्षेत्र में पहुंचते हैं, तो वे वहां की स्थानीय महिलाओं से विवाह करते हैं। इस सांस्कृतिक मिलन से एक नई पीढ़ी जन्म लेती है, जो दो भाषाओं में पारंगत होती है।
मोहन के अनुसार, भाषा का वास्तविक हाइब्रिडीकरण तब होता है जब यह प्रक्रिया स्थानीय समाज में गहराई तक पैठ बना लेती है। उदाहरण के लिए:
- दक्कनी भाषा: उत्तर भारत से आए मुस्लिम आक्रमणकारियों ने स्थानीय तेलुगु भाषी महिलाओं से विवाह किया। इससे दक्कनी का जन्म हुआ, जो उर्दू के शब्दों को तेलुगु व्याकरण पर आरोपित करती है।
- प्राकृत से आधुनिक भाषाओं का उद्भव: वैदिक संस्कृत और स्थानीय बोलियों के संपर्क से प्राकृत भाषाएं बनीं। कालांतर में, जब स्थानीय भाषाओं में पर्याप्त संस्कृत प्रभाव समाहित हो गया, तो प्राकृत विलुप्त हो गई और आधुनिक भाषाएं अस्तित्व में आईं।
2. मुस्लिम सुल्तानों की भूमिका: भाषाई संरचना में परिवर्तन
मोहन के अनुसार, भारत में मुस्लिम सुल्तानates का आगमन उस समय हुआ जब प्राकृत-आधारित भाषाओं का युग अपने अंतिम चरण में था। इस दौरान:
- सुल्तानों ने शासकीय संरचना में स्थानीय भाषाओं को प्रोत्साहन दिया, जिससे बंगाली, मराठी, गुजराती जैसी भाषाओं को राजकीय संरक्षण मिला।
- यह संरक्षण स्थानीय भाषाओं के प्रसार में सहायक हुआ और धीरे-धीरे प्राकृत भाषाओं का विलुप्त होना शुरू हो गया।
- सुल्तानों के दरबार में विविध भाषाओं के उपयोग से भाषाई परिवर्तन और मिश्रण की प्रक्रिया तेज़ हो गई।
3. तमिल और हिंदी: भाषाई प्रभुत्व और विलुप्त होती भाषाएं
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन द्वारा हिंदी को अन्य भाषाओं को “निगलने” का आरोप लगाना एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, जिस पर मोहन भी अपनी राय रखती हैं। उनके अनुसार:
- दक्षिण भारत की सभी जनजातीय भाषाएं अब द्रविड़ समूह में समाहित हो चुकी हैं।
- हिंदी के उदय ने ब्रज, अवधी, मारवाड़ी जैसी भाषाओं को हाशिये पर धकेल दिया है।
- मोहन यह तर्क देती हैं कि भाषाओं के विलुप्त होने का कारण राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक है। लोग अपनी संतान को आधुनिक शिक्षा में आगे बढ़ाने के लिए “शक्ति की भाषा” (पावर लैंग्वेज) अपनाते हैं, जिससे छोटी भाषाएं स्वतः पीछे छूट जाती हैं।
4. नई शिक्षा नीति और भाषाई भविष्य
मोहन नई शिक्षा नीति (NEP) के तीन-भाषा फार्मूले को लेकर कहती हैं कि:
- हिंदी या तमिल जैसी भाषाओं के प्रचार-प्रसार को राजनीतिक मुद्दा बनाने से अधिक, इसे बाज़ार और तकनीक तय करेंगे।
- उनका मानना है कि भविष्य में उन्हीं भाषाओं का अस्तित्व रहेगा, जिनमें सॉफ्टवेयर लेखन और शोध जैसी आधुनिक गतिविधियां होंगी।
- हिंदी और तमिल जैसे प्रमुख भाषाओं को भी तकनीक और वैज्ञानिक शोध में आगे बढ़ना होगा, अन्यथा वे पिछड़ सकती हैं।
5. सिंधु घाटी लिपि और भाषाई पुनर्निर्माण
पेगी मोहन का सपना सिंधु घाटी सभ्यता के एक गीत का पुनर्निर्माण करना है। उनका मानना है कि:
- आधुनिक उत्तर भारतीय भाषाओं में मौजूद कुछ व्याकरणिक विशेषताएं संस्कृत से नहीं, बल्कि सिंधु घाटी की भाषा से आई हैं।
- यदि इन भाषाई संरचनाओं का सही विश्लेषण किया जाए, तो सिंधु घाटी सभ्यता की लुप्त भाषा को आंशिक रूप से पुनर्निर्मित किया जा सकता है।
- उनका अनुमान है कि उस भाषा में ऐसे स्वर और उच्चारण होंगे, जो आज के पंजाबी और मलयालम में सुनाई देते हैं।
निष्कर्ष:
पेगी मोहन की पुस्तक Father Tongue, Motherland दक्षिण एशिया की भाषाई उत्पत्ति और विकास की एक रोमांचक व्याख्या है। उनका दृष्टिकोण यह दर्शाता है कि भाषाएं केवल व्याकरणिक संरचनाएं नहीं होतीं, बल्कि वे समाज के इतिहास, सत्ता-संघर्ष, और सांस्कृतिक मिलन का जीवंत प्रतिबिंब होती हैं। क्रियोल मॉडल के माध्यम से वह दिखाती हैं कि कैसे प्रवास, विवाह, और सत्ता-परिवर्तन भाषाओं को गहराई से प्रभावित करते हैं। यह पुस्तक न केवल भाषाओं के अतीत को समझने का मार्ग दिखाती है, बल्कि उनके भविष्य की दिशा का भी संकेत देती है।
(संदर्भ:
हिंदुस्तान टाइम्स 25 मार्च 2025)
*** *** ***