सभी ने उन्हें प्रेमचंद, प्रवासी भारतीय साहित्य और हिंदी को वैश्विक भाषा बनाने के प्रयत्नों के लिए याद किया

नई दिल्ली। 15 अप्रैल 2025; प्रख्यात साहित्यकार कमल किशोर गोयनका की स्मृति में आज साहित्य अकादेमी द्वारा श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। श्रद्धांजलि सभा में उपस्थित लोगों के अतिरिक्त देश विदेश से कई अन्य लेखक एवं साहित्यकार ऑनलाइन भी जुड़े। सर्वप्रथम साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने गोयनका जी के चित्र पर पुष्प चढ़ा कर उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि प्रेमचंद और प्रवासी साहित्य के अतिरिक्त उन्होंने अन्य कई विषयों पर उल्लेखनीय कार्य किया। साहित्य अकादेमी से उनका संबंध निरंतर बना रहा और वे अकादेमी के लिए हमेशा कार्य करते रहे। अनिल जोशी ने उन्हें हिंदी को वैश्विक भाषा बनाने के लिए किए गए उल्लेखनीय प्रयासों को याद करते हुए उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। सुरेंद्र दुबे ने केंद्रीय हिंदी संस्थान के साथ बिताए समय को याद करते हुए कहा कि उन्हें अपनी सारी उर्जा प्रेमचंद और प्रवासी साहित्य को सबके सामने लाने के लिए लगा दी, लेकिन अपनी वैचारिकी से कभी कोई समझौता नहीं किया। नारायण कुमार ने विश्व हिंदी सम्मेलनों में उनके किए गए कार्य को बड़ी श्रद्धा से याद करते हुए उसे अतुलनीय बताया। लक्ष्मी शंकर वाजपेयी ने उन्हें युवा प्रतिभाओं को आगे लाने के लिए निरंतर सक्रिय रहे उत्साही मार्गदर्शक के रूप में याद किया। ऑनलाइन जुड़ी दिव्या माथुर ने उन्हें प्रवासी लेखकों को सम्मान और पहचान दिलवाने वाले योद्धा के रूप में याद किया। दिविक रमेश ने अपने गुरु को याद करते हुए कहा कि उन्होंने अपनी बात हमेशा रखी लेकिन कभी किसी का अपमान नहीं किया। पद्मेश गुप्त ने उन्हें प्रवासी साहित्य को मुख्य धारा में लाने का श्रेय देते हुए कहा कि वे प्रवासी साहित्यकारों की मुश्किलों और उनकी सुविधाओं के लिए भी हमेशा सजग रहे। साहित्य अकादेमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा ने उन्हें प्रवासी साहित्यकारों की रचनाओं को भारत में पहचान दिलाने के संदर्भ के अतिरिक्त प्रेमचंद को राष्ट्रीय चेतना के संवाहक के रूप में स्थापित करने में उनके योगदान को याद करते हुए श्रद्धांजलि दी। साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने उन्हें उनके कठिन श्रम और लगातार सक्रिय रहने के गुणों को याद करते हुए उन्हें नमन किया। रवि शंकर जी ने उन्हें एक प्रेरणादायी व्यक्तित्व के रूप में याद किया। अलका सिन्हा ने उनके अप्रकाशित साहित्य को सामने लाने की इच्छा व्यक्त करते हुए अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए। प्रभात कुमार ने उनकी संकल्प शक्ति और जिजीविषा को याद किया। प्रवीण आर्य ने साहित्य परिषद् का उल्लेख करते हुए उन्हें उसका सच्चा मार्गदर्शक कहा। राकेश पांडेय ने उनकी गाँधी और पत्रकारिता पुस्तक का उल्लेख करते हुए उनको नए संदर्भों में याद किया। शैलजा सक्सेना ने कनाडा-प्रवासी साहित्य को आगे लाने में उनकी भूमिका को नमन किया। अंत में रीता रानी पालीवाल ने कहा कि उन्हें हमें प्रेमचंद को भारतीय साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए हमेशा याद करना होगा। कार्यक्रम का संचालन अकादेमी के उपसचिव देवेंद्र कुमार देवेश ने किया। सभा का समापनसंयुक्त रूप से डॉ. गोयनका और डॉ. निर्मला जैन की आत्माओं की शांति के लिए दो मिनट की मौन प्रार्थना से हुआ।

(के. श्रीनिवासराव)

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