
मनाली के इग्लू
(दूसरा दिन)
मनोज श्रीवास्तव ‘अनाम’
22 जनवरी 2021
ऊंघते पहाड़ों के बीच घुमावदार सड़कों पर बस आगे बढ़ती अपने पीछे जंगल, बस्ती एवं छोटी – छोटी दुकानों को छोड़ती जा रही थी तभी मेरी नज़र वहाँ स्थित जवाहर नवोदय विद्यालय बंदरोल पर पड़ी, जो कि बहुत ही तंग जगह पर छोटी सी इमारत में था। खैर ऐसे दूर – दराज और दुर्गम जगहों पर इनका होना भारत सरकार का सराहनीय प्रयास है। कुछ दूर और आगे बढ़कर हमारी बस ने एक संकरे पुल से व्यास नदी को पार करके उसके दूसरी तरफ चलने लगी। जहाँ से कुछ आवासीय क्षेत्र दिखाई पड़ने लगा। पहाड़ों की कटान और निर्माण कार्य की वजह से सड़क के किनारे जेसीबी और मजदूर अपनी निद्रा तोड़ चुके थे। तभी एक रिजॉर्ट जैसी जगह दिखी और बस एक किनारे की तरह रुक गई। हमारे ट्रिप कमांडर की आवाज़ आई, कि सभी लोग उतर लें आपका डेस्टिनेशन आ चुका है। एक – एक करके सभी साथी उतर पड़े। मैंने भी शालिनी को बोला अब तो उतरना है न। वह केवल मुस्कुरा दी। हम सभी उतरे और अपने – अपने बैग लेकर एक संकरे लोहे के पुल को पार करके रिजार्ट की तरफ़ बढ़ गए। वहाँ सभी ने समान रखा और कमांडर के आदेश पर पंक्तिबद्ध खड़े हो गए । कुछ जरूरी एहतियात और हिदायतें देने के बाद सभी गर्ल्स को रूम्स और बॉयज को टेंट में रहने के लिए जगह तय कर दी गई! फ़िलहाल अभी अपना सामान कोई कहीं भी रख सकता था क्योंकि सबको फ्रेश होने और एडवेंचर जर्नी का रोमांच पुलकित कर रहा था। एक रूम में तीन लोगों के रुकने की व्यवस्था से शालिनी को थोड़ा अनकंफर्टेबल लग रहा था। पर शाम तक सब मैनेज हो जायेगा के वादे के साथ हम अपनी तैयारी में लग गए। जब तक लोग फ्रेश हुए, ब्रेकफास्ट रेडी था। आलू के पराठे, सब्जी और आचार के साथ गर्मागर्म चाय का सभी ने आनंद लिया। चूंकि मुझे चाय पीनी नहीं थी, इसलिए मैं सबसे पहले नीचे आ गया। हालांकि शाम से कॉफ़ी भी उपलब्ध कराई गई।

नाश्ता करके सभी लोग बाहर आ गए जहाँ से थोड़ा आगे जाने पर हिमाचल सड़क परिवहन की बस मिल गई और सभी लोग उसमें बैठकर पैराग्लैडिंग के लिए चल पड़े। कुछ दूर जाने के बाद हमने देखा जगह – जगह हिमाचल टूरिज्म के बुकिंग स्टॉल लगे हुए हैं। उन्हीं के पास बस रुकी और हम सब उतर पड़े। यह एडवेंचर गेम अपनी मर्जी का था। इस लिए जिन्हें उड़ान भरनी थी उन सबने अपनी डिटेल्स देकर पेमेंट किया और आगे की यात्रा की पर्ची प्राप्त की। बाकी लोग वहीं ठहर गए और जिन्हें पैरा ग्लैडिंग करनी थी। वे सभी एक पिकअप गाड़ी में खड़े होकर ऊपर पहाड़ी की ओर चल पड़े। पहाड़ी के ऊपर जाने का रास्ता बहुत खतरनाक था। सड़कें एकदम सर्पिल और खड़ी चढ़ाई का रास्ता। वहाँ के उस्ताद चालक इतनी तेजी से गाड़ी चलाते हैं यह मेरा पहला अनुभव था। गाड़ी की रफ़्तार इतनी तेज़ थी, कि उसमें खड़े सभी एक दूसरे से हिलते हुए टकरा रहे थे। किन्तु सबका रोमांच चरम पर था। उसमें नेहा वर्मा (जो छत्तीसगढ़ से आई थीं) का जुनून सातवें आसमान पर था। वह बहुत रोमांचित थी और ड्राइवर से गाड़ी और तेज चलाने के लिए कह रही थी। बार – बार कभी किसी पेड़ के पत्ते तो कभी शाखाएं आ जा रही थीं, जिनसे बचते और अपने को संभालते सभी जोर – जोर से उत्साह दिखाते शोर कर रहे थे। मैंने अपनी दोस्त को अपने घेरे में कर रखा था। हालांकि न उसे डर लग रहा था और न ही वह शोर कर रही थी। वह शांत होकर प्रकृति के नज़दीक होने के आनंद में मग्न थी। करीब पंद्रह बीस मिनट की यात्रा के बाद हम सभी एक बहुत ऊंची पहाड़ी पर पहुंचे, जिस के आगे रास्ता खत्म था। वहीं सबको उतार कर गाड़ी मुड़कर नीचे लौट गई।

पहाड़ी पर हम से पहले भी कुछ सैलानी मौजूद थे। उनमें कुछ रोमांच से भरे हुए और कुछ ऊंचाई से भयभीत अपना इरादा बदल देने की जद्दोजहद में थे। ख़ैर हमारी टीम में ऐसा कुछ न था, पर इतना जरूर था, कि पहले कौन जायेगा। तो हमेशा की तरह मैं तैयार हुआ जाकर अपने मनपसंद नीले पैराशूट के साथ खड़ा हो गया। चूंकि आकाश का रंग नीला है इसलिए नीले पैराशूट के साथ उड़ना आकाश को छूने जैसा एहसास देता है। पैराग्लाइडर ने मुझसे फ़ोटो और वीडियोग्राफी के लिए पूछा और उसके चार्जेस बताए। हालांकि चार्जेस कुछ ज्यादा थे, पर आए हैं तो करके जायेंगे, वाली बात तय थी। तो हम तैयार थे। उसने पोजीशन बताई और दूसरी तरफ़ अप ड्रॉप हो रहे सैलानियों को देख लेने को कहा। बशर्ते इस से पहले एक बार पैराग्लैडिंग करने का अनुभव मेरे पास था। तो मुझे किसी तरह का खतरा नहीं महसूस होना था। अब तक बात करते – करते शूट कास्ट्यूम पहन चुके थे। पैराग्लाइडर के हाथ में कंट्रोल पॉइंट और मेरे हाथ में मोबाइल स्टैंड और उसमें कसा हुआ सेल्फी स्टिक था। रेडी गो की आवाज़ के साथ ही हम नीचे की तरफ़ दौड़ पड़े और तीस सेकंड के अंतराल पर पैराशूट खुल गया और हम हवा में तैरने लगे। जैसे – जैसे हम ऊपर जाते गए। व्यास की तलहटी का वह खुला मैदान सौ गुना खूबसूरत दिखने लगा। ऊपर पहुंचने के बाद ड्राइवर ने कहा कि आपको डर नहीं लगता? मैंने कहा नहीं, मुझे किसी से डर नहीं लगता। उसने बोला थोड़ा जिग – जैग करते हैं। मैंने भी हाँ बोल दिया, पर जब उसने मुझे हज़ार फीट ऊपर हवा में हिचकोले दिलाए। तो दिल धड़कने की रफ़्तार चौगुनी हो गई। लगता था कलेजा मुंह को आ गया। पर अब उसे मना भी न कर सकते। मैंने पीछे मुड़कर अपनी दोस्त को देखा वह भी हवा में तैरती हुई परी लग रही थी। पूरे आसमान में रंग – बिरंगे पैराशूट और उनके सहारे सैलानी आसमानी सैर कर रहे थे। ऊपर हवा बहुत ठंडी थी, पर भीतर के डर ने गर्मी पैदा कर दी थी। क्योंकि यह रोमांच भी फिर न आने वाला था और आँखें बंद कर लेने पर जो स्वर्गिक नज़ारा था, उससे वंचित होना था। ख़ैर हवा में कलाबाजियाँ खाते करीब दस मिनट बाद हम नीचे की तरफ़ बढ़ने लगे। हमने खूब सारे फ़ोटो क्लिक किए और विडियो भी बना ली। अब हमारा पैराशूट जमीन की तरफ़ पहुँचने वाला था। मुझे पोजीशन का आइडिया था, इसलिए बेहतरीन तरीके से लैंड कर गए। फिर धीरे – धीरे हमारे सभी साथी लैंड कर गए।

अब तक हमारी पूरी टीम इकठ्ठी हो चुकी थी, सब अपने अनुभव शेयर कर रहे थे। यहाँ कड़ाके की सर्दी थी। एक पपी आकर मेरे दोनों पैरों के बीच जूते से सटकर बैठ गया। हमने उसके साथ सेल्फी ली। तभी अंग्रेज सिंह जी आए और बोले सब लोग आ जाओ एक ग्रुप फ़ोटो लेते हैं। उसके बाद राफ्टिंग के लिए चलना है। हम ने ग्रुप फ़ोटो करवाई तब तक हमारी गाड़ी आ चुकी थी। सब लोग वहाँ से निकल पड़े। वहाँ से बाहर निकल कर हम सबने रॉफ्टिंग की टिकट ली और लाइफ़ जैकेट और ट्यूब लेकर दूसरी गाड़ी में सवार हुए। कुछ दूर जाकर रॉफ्टिंग पॉइंट आ गया। हमने जूते उतारे और कुछ लोगों ने कपड़े भी चेंज किए। मैंने स्वेटर उतार दिया और विंटचीटर के साथ लाइफ़ जैकेट पहन ली। एक बोट में अधिकतम आठ लोग बैठ सकते थे। हमारी बोट में बोट चालक के अलावा मैं, अंग्रेज सिंह, राहुल, शीतल, सुतीक्षा, शालिनी और नेहा बैठ गए। बोट व्यास की धारा के साथ अठखेलियाँ करती हुई आगे निकल पड़ी। पिघली हुई बर्फ़ और जनवरी की सर्दी में नदी का पानी ठिठुरन भरा था। नदी में पड़े बड़े – बड़े पत्थर और चट्टानों के हिस्से से बचती कतराती बोट जब लहरों से एकाकार हुई तो बहुत सा पानी हमारे ऊपर से गुज़र गया। जिसकी शीतलता से मन प्रमुदित हो गया। किन्तु जैसे – जैसे बोट की रफ़्तार बढ़ी। हमारे मन की तरह बोट भी मचलने लगी और अब तक हम सभी पूरी तरह से सराबोर हो चुके थे। जिस पर नेहा जी जलक्रीड़ा में मग्न पानी की छींटे सभी पर फेंक रही थीं। फिर अपने सुरीले कंठ में ज़िंदगी का सफ़र है सुहाना……………! गाना शुरू किया तो सब ने साथ दिया। एक समां सा बंध गया सब मस्ती में हंसते, गाते, व्यास जी लहरों की लय में तैरते चले जा रहे थे। रॉफ्टिंग की दूरी कैसे कट गई पता ही न चला। बोट किनारे लग चुकी थी, सबने उतर के सबसे पहले कपड़े चेंज किए। मेरे पास केवल स्वेटर ही सूखा बचा था तो उसे ही पहन लिया। शालिनी तो ठंड के मारे थरथरा रही थी। पास में अलाव जल रहा था, जैसे और लकड़ी डाल कर तेज किया गया सब अलाव को घेर के खड़े हो गए, जिससे बदन को कुछ राहत मिली। फिर जल्दी से चेंज करने के बाद कुछ खा लेने का उपक्रम हुआ। चूंकि सभी को जोरों की भूख लगी थी, पर वहाँ मैगी, चाय/कॉफ़ी, आमलेट के सिवा कुछ न था। फ़िलहाल मैंने कॉफ़ी ली और शालिनी के लिए चाय। हालांकि उसी के साथ अंडे रखे होने के कारण उसके मन में एक हिचकिचाहट थी। पर पेट में भी चूहे कूद रहे थे। मैंने थोड़ा आगे जाकर देखा तो एक स्टॉल पर अंडे नहीं थे, तो वहाँ से मैगी बनवा लिया। खाते – पीते बतियाते समय का पता ही न चला और शाम घिर आई। हल्का अंधेरा छाने लगा तो वापस स्टे पॉइंट पर चलने का निर्णय हुआ। सभी लोग पूरी तरह से थक के चूर हो गए थे। वहाँ से निकल कर अपने अड्डे पर आए और अपने बिस्तर पर ढेर हो गए। कुछ देर आराम करने के बाद थोड़ा शरीर को राहत महसूस हुई। तब तक डिनर रेडी हो चुका था। रेस्तरां के किचन से बार – बार खाने का बुलावा आने लगा तो सब ने डाइनिंग हॉल की ओर प्रयाण किया। उस दिन का खाना बहुत स्वादिष्ट था। खाने में पूरी, कढ़ाई पनीर, मिक्स वेज, दाल तड़का, रायता और चावल थे। खाने के बाद सब अपने कमरे में चले गए। मैंने किचन में जाकर अपनी बॉटल में गर्म पानी भरवाया और अपने टेंट की ओर चल पड़ा। पर वहाँ तो मेरे दो साथियों ने सोम सुधा पान करके माहौल को दिन से ज्यादा रोमांचक बना दिया था। वैसे तो मुझे इन सबसे कोई ऐतराज नहीं पर पहली मुलाकात में यह सब हो जाए तो स्वीकार्य न हुआ। ख़ैर मैं अपने दोनों बैग लेकर नीचे आ गया। उन लड़कों के साथ आयी लड़कियों ने सॉरी बोला और उसी रूम में सो जाने को कहा जहाँ वे शालिनी के साथ रूम शेयर कर रहीं थीं। मैंने उन्हें रिलैक्स रहने को कहा और अंग्रेज सिंह को अपनी समस्या बताई। तो उन्होंने मुझे अपने रूम में आने के लिए कहा। अब तक रात के ग्यारह बज चुके थे। मैंने जल्दी से अपना सामान रखा और बिस्तर लगा कर लेट गया। पर मनाली की वह रात कुछ ज्यादा ही ठिठुरन भरी थी। जरा से रजाई खुली कि सारा बिस्तर बर्फ़ हो गया। मैंने अंग्रेज सिंह को बोला तो उन्होंने एक और रजाई मेरे पैरों की तरफ डाल दी। जिससे कुछ राहत मिली और नींद आ गई।
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