पुस्तक की प्रस्तावना : ‘गद्य साहित्य में विविध आयामों के इंद्रधनुष

हरिहर झा, मेलबर्न, ऑस्ट्रेलिया

“पुस्तक पढ़ने का आनन्द इसमें है कि जिस विषय में हमारी रुचि हो वह सब कुछ पढ़ने मिल जाए। आनंद इसमें भी है कि जिसमें हमारी रुचि न हो पर पढ़ते-पढ़ते रुचि पैदा हो जाए। इस दृष्टि से आरती जी ‘लोकेश’ गोयल की पुस्तक ’स्याह धवल’ बड़ी महत्वपूर्ण है। शोध आलेख के अलावा भी यू.ए.ई. के बारे में अरबी भाषा और वहाँ हिंदी शिक्षण आदि की गहरी जानकारी और चिट्ठी-पत्री इन तीनों के आयाम भले अलग-अलग हों पर यह साहित्य के कितने महत्वपूर्ण अंग हैं यह जानना हो तो इस पुस्तक को पढ़ना आवश्यक है। मिठाई के बारे में जानकर नहीं, उसे खाकर तृप्ति मिलती है। इन आयामों के बारे में सैद्धांतिक जानकारी रस नहीं दे पाएगी; तीनों आयाम में इस पुस्तक से यात्रा कर लेने से आनंद भी मिलेगा और जानकारी भी मिलेगी। पूरी जानकारी को एक सूत्र में पिरो देना आपकी रचनात्मकता का प्रमाण है। बात यहाँ समाप्त नहीं होती। कालेडोस्कोप के विभिन्न रंगों से भरी ’स्याह धवल’ में 9 साहित्यिक पुस्तकों और दो महत्वपूर्ण पत्रिकाओं के क्षेत्र में यात्रा करने के लिए इनकी भूमिका भी मिलेगी और प्रवासी साहित्य से ले कर बाल साहित्य आदि पर विमर्श युक्त आलेख मिलेंगे।

लेखिका की भाषा सरल है और पाठकों तक संप्रेषण सीधा होता है। इनके लेखन का प्रथम परिचय तब हुआ जब ह्यूस्टन से निकलती काव्य-पीयूष शृंखला और वैश्विक लघुकथा पीयूष के सहसंपादन में एक साथ कार्य करने का अवसर मिला। आपके लेखन पर दृष्टिपात करने का अवसर मिला और तब आपकी प्रभावशाली लेखनी से परिचय हुआ। आपकी साधना की गहराई के बारे में जाना। पुस्तक के विभिन्न आयामों में लेखन कला की बारीकियों को देख कर आपके सृजनशील व्यक्तित्व का दर्शन होता है।

शोध आलेख में सूरदास और प्रेमचंद के विषय में हर कोई जानना चाहेगा तो अणुव्रत और लक्ष्मण बूटी एक विशिष्ट क्षेत्र में ले जाते हैं। प्रेमचंद और स्त्री विमर्श में प्रेमाश्रम की विद्या से ले कर सेवासदन, रंगभूमि और गबन आदि में स्त्री पात्र का हृदय प्रेमचंद की दृष्टि से चित्रित किया है। नारी के आचरण में प्रेमचंद का कथ्य क्या है इसे आरती जी ने बखूबी समझाया है। इसी प्रकार सूरदास के काव्य में बालवृत्ति और संवाद का स्नैपशॉट अच्छी तरह लिया है जिससे अधिक जानने की जिज्ञासा होती है। देवनागरी पर आलेख महत्वपूर्ण है उसके महत्व को अच्छी तरह समझाया है। हिंदी-अरबी अंतर्संबंध के आलेख में लिपि-भेद से लेकर अरबी शब्दों की भारत-यात्रा पर प्रकाश डाला है। अणुव्रत पर शोध आलेख सोचने के लिए प्रेरित करता है।

युवा पीढ़ी के लिए बौखलाहट या निराशा प्रगट कर देना लोगों का स्वभाव बन गया है पर इसमें नासमझी है। ऐसे माहोल में युवा के लिए ‘यू! वाह!’ वाला आशावादी दृष्टिकोण बड़ा प्रीतिकर लगा। यू.ए.ई. की हिंदी संस्थाओं की जानकारी पाकर मन प्रसन्न हुआ। अमीराती जीवन का चित्रण प्रभावशाली ढंग से किया है। अबुधाबी के नवनिर्मित बैप्स हिंदू मंदिर के बारे में जान कर दिल प्रसन्न हो उठता है।

शोध आलेख की लेखिका को चिट्ठी-पत्री सेक्शन की ओर सहजता से लिख पाना सरल हृदयता का परिचायक है। कहते हैं बारिश न हो पर पाठक को बारिश जैसा अनुभव हो जाए उसे कविता कहते हैं। उसी प्रकार वर्तमान समय में हो कर भी आपका संस्मरण हमें बीते दिनों में डुबो देता है यह संस्मरण की सफलता है। अपनी माँ को और वीर जवानों को लिखे पत्र भाव विभोर कर देते हैं।

‘पुस्तकालय से’ सेक्शन में सर्वप्रथम डॉ निशंक की कृति का सामना हुआ।

निशंक की कृतियों से मैं भी पूर्व परिचित हूँ क्योंकि उनकी एक कृति की समीक्षा लिखने का सौभाग्य मुझे भी मिला था। आपने ‘तुम भी मेरे साथ चलो’ को जीवंत कर दिया है। अन्य पुस्तकों में ‘युगांतर’ उपन्यास की दृष्टि आपने भूमिका में बतलाई है शाश्वत मूल्यों की पुनर्स्थापना की यात्रा के रूप में। ‘अभी अंधेरा है’ की मीमांसा गहराई को छूती है। मीरा ठाकुर की ‘धूप छाँव की दरी’ (कविताएँ) और श्रद्धा शुक्ला ‘श्री’ का ‘मौन घरौंदे’ (कहानी संग्रह) आदि ग्यारह साहित्यिक पुस्तकों का निचोड़ इस पुस्तक में बोनस के रूप में मिल जाए फिर कहना ही क्या?

‘वेदशास्त्र और पर्यावरण संकट’ में यह महत्व का बिंदु खोल दिया है कि पर्यावरण केवल प्रकृति और पेड़ पौधे ही नहीं, मानव समाज और परिवेश भी उसके ही अंग हैं। ‘आदि-इत्यादि’ निबंध संग्रह है – हिंदी भाषा, लिपि और साहित्य के विषय को लेकर। साथ ही ‘दीप-ज्योति’ कविता संग्रह की भूमिका उल्लेखनीय है।

बाल साहित्य पर लिखने के लिए आपने विद्यार्थी बन कर लिखने का उपक्रम किया इससे बच्चों के एहसास और उनकी आवश्यकताओं को अच्छी तरह पकड़ पाई। यू.ए.ई. में लिखे जा रहे साहित्य की जानकारी ‘साहित्य से प्रवासी साहित्य’ तक में मिलती हैं। शिक्षक दिवस पर आलेख भी सुंदर है। कहाँ तक लिखें; प्रत्येक जानकारी और मानवीय भावनाओं को आपने प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया है।

इसमें संदेह नहीं आरती जी की इस पुस्तक को पाठकों का स्नेह मिलेगा तथा साहित्य-जगत में स्वागत होगा। मैं इन्हें हार्दिक बधाई देते हुए शुभकामनाओं के साथ अपनी लेखनी को विराम देता हूँ।”

श्री हरिहर झा

मेलबॉर्न , ऑस्ट्रेलिया

प्रवासी हिंदी साहित्यकार एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार

वरिष्ठ सूचना तकनीकी अधिकारी, मौसम विभाग, मेलबॉर्न

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