
कहानी ‘अभिजीत’ को मिला अनीता प्रभाकर कहानी प्रतियोगिता में पहला पुरस्कार
नई दिल्ली, 26 अप्रैल।
अनीता प्रभाकर कहानी प्रतियोगिता के पुरस्कार वितरण समारोह का आयोजन साहित्य अकादमी सभागार में हुआ। इसका आयोजन विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान, नोएडा ने किया।
कार्यक्रम की शुरुआत जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में मारे गए नागरिकों को याद करते हुए दो पल का मौन धारण कर किया गया। सभी लोगों ने सामूहिक रूप से कहानीकार अनीता प्रभाकर की तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित की। कार्यक्रम के अतिथियों का स्वागत व सम्मान प्रतिष्ठान के मंत्री अतुल प्रभाकर व सदस्यों ने किया।

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि मीरा कांत के रूप में मौजूद रही। इसकी अध्यक्षता प्रताप सहगल ने की। कहानी प्रतियोगिता में कुल 187
रचनाएं मिली। निर्णायक मंडली में निर्देश निधि, सविता मिश्रा, विजय मिश्रा रहे। इस प्रतियोगिता में पहला पुरस्कार कहानी ‘अभीजीत’ को मिला, जिसकी रचना पूनम मनु ने की। वहीं दूसरा पुरस्कार भरत चंद्र शर्मा की ‘निर्जला’ को मिली और तीसरा पुरस्कार शिव अवतार पाल की कहानी ‘जमींदोज’ को अर्पित किया गया।
इस प्रतियोगिता में भाग लेने वाले कई प्रतिभागियों को सांत्वना पुरस्कार सौंपा गया। अपना उत्कृष्ट योगदान देने के लिए शर्मिला चौहान, संगीता माथुर, आशा शर्मा, लता अग्रवाल, इंद्रजीत कौर, सुरेश बाबू मिश्रा, रेणु श्रीवास्तव, लोकेश गुलयानी, अलका प्रमोद, उर्मिला शुक्ला, शोभना श्याम को सम्मानित किया गया।

कार्यक्रम की मुख्य अतिथि मीरा कांत ने कहा कि जिन साहित्यकारों को कम पढ़ा गया और उन्होंने साहित्य की जिस भी विधा में प्रवेश किया वहां अपनी मणियां छोड़ गए। विष्णु प्रभाकर की कहानी ‘धरती अब भी घूम रही है ‘ कहानी का जिक्र करते हुए कहा कि यह कहानी 1954 में प्रकाशित हुई, लेकिन आज भी सत्तर साल बाद यह कलजयी रचना ‘ न्यायपालिका में भ्रष्टाचार’ को उजागर करते हुए प्रासंगिक है। समकालीन हिंदी कहानियों की मीनार में विष्णु प्रभाकर जैसे महान लेखक नींव है। उन्होंने कहा कि हम जितना अपने अतीत को समझेंगे, उतना ही अपने वर्तमान का सृजनात्मक चिंतन कर पाएंगे।

अपने अध्यक्षीय भाषण में कवि व नाटककार प्रताप सहगल ने कहा कि कहानियों में बहुत सारे संवाद, अभिव्यक्तियां और अनुभव का मिश्रण होता है। कहानी कोई भी स्वरूप धारण कर लें लेकिन वो उसका मूल स्वरूप उसकी जिज्ञासा को नहीं बदल सकते। कहानी में आगे क्या? पाठक को इससे जुड़े रहने में मददगार साबित होती है।
उर्दू के मशहूर लेखक जैनेंद्र पाल का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि कहानियां लिखी नहीं जाती, कहानियां बसाई जाती है मुझे पढ़ते वक्त महसूस हुआ कि ‘निर्जला’ और ‘ज़मींदोज़’ कहानी भी बसाई गई हैं।
निर्णायक मंडली में शामिल रही निर्देश निधि ने कहा कि समीक्षक होना किसी प्रतिभागी होने से कम नहीं होता। सारी कहानियों को पढ़ने के बाद महसूस हुआ कि ये आज के दौर में प्रासंगिक है।
