
जय वर्मा की स्मृति में ‘स्मृति में जय वर्मा’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग परिषद एवं वैश्विक हिंदी परिवार के संयुक्त तत्वावधान में प्रवासी हिंदी साहित्यकार, हिंदी सेवी जय वर्मा की स्मृति में ‘स्मृति में जय वर्मा’ कार्यक्रम का आयोजन दिनांक 17 मई 2025 को प्रवासी भवन, दीनदयाल उपाध्याय मार्ग, नई दिल्ली में किया गया। यह कार्यक्रम फिजिकल एवं वर्चुअल मोड में किया गया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री श्याम परांडे- महासचिव, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग परिषद के द्वारा की गई। उन्होंने कहा कि जय वर्मा जी का हँसता चेहरा, उनका मिलनसार स्वभाव हर किसी को याद आता होगा। हिंदी साहित्य, भारतीय संस्कृति के लिए उनका सक्रिय योगदान अविस्मरणीय है। उनका ऐसा व्यक्तित्व था कि कोई कम समय के लिए भी उनसे मिलता था, वह उनका हो जाता था।

कार्यक्रम की शुरुआत सभी उपस्थित लोगों द्वारा पुष्पांजलि से हुई। उसके बाद जय वर्मा का परिचय दिया गया। उनके लिए दो मिनट का मौन रखा गया। जय वर्मा के द्वारा अपने स्वर में ‘कैसे अनोखे होते हैं रिश्ते’ कविता पाठ का वीडियो चलाया गया।






प्रो. कुमुद शर्मा- कुलपति, महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा ने उन्हें याद करते हुए कहा कि उन्होंने एक बार मुझसे पूछा कि आप कहां से हैं तो मैंने उन्हें बताया कि मेरठ से हूं तो वह बहुत खुश हुईं। उन्होंने कहा कि मैं भी मेरठ से ही हूं। और तब मुझे ऐसा लगा की वह ब्रिटेन कब की चली गई हैं लेकिन अब भी भारत और मेरठ उनके मन में बसा हुआ है और वह उसे कभी भूलती नहीं, उसे हमेशा जीती हैं। विगत को भी वह जीती रहती हैं।

अनिल जोशी ने कहा कि जय वर्मा जी से अगर कुछ सीखना हो तो हमें उनसे उनकी जिजीविषा को सीखना चाहिए- कुछ करने के लिए उनका जुनून अद्भुत था। उनका हिंदी के प्रति जुनून और समर्पण अद्वितीय था। डॉक्टर साहब के जाने के बाद वह इतने दिनों तक जी सकी- इसकी वजह हिंदी से उनका लगाव ही था। आज के दौर में विश्व में हिंदी की सक्रिय सेवी हैं उसमें सबसे प्रमुख जय वर्मा जी थीं। विश्व में कहीं भी हिंदी का कोई कार्यक्रम हो, वहां वे अपने पैसे से पहुंच जाती थीं। हिंदी के प्रति यह उत्साह, यह जुनून किसी और में मैंने नहीं देखा।
राकेश दुबे ने उन्हें याद करते हुए कहा कि ऐसा नहीं है कि जय वर्मा जी अचानक से चली गई हैं। वह बहुत दिनों से जा रही थीं, उन्हें बहुत से रोग थे, उन्हें कष्ट था, उनके नजदीकी लोगों ने उन्हें बहुत कष्ट दिया था। लेकिन मैं सोचता हूं और आश्चर्य करता हूं कि कोई व्यक्ति इतना कष्ट के बीच होते हुए भी, इतनी मुश्किलों से घिरा होते हुए भी क्योंकि वे डॉक्टर साहब के जाने के बाद बहुत अकेली हो गई थीं; फिर भी वे सबसे प्यार से मिलती रहती थीं और किसी से अपना दुख-दर्द नहीं कहती थीं। आप सब लोग ने उन्हें याद किया और उनके व्यक्तित्व के बारे में कहा कि बहुत प्रेम करती थीं बहुत मिलनसार थीं- यह दर्शाता है कि उनका व्यक्तित्व कितना महान था।













पद्मेश गुप्त, वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार, ब्रिटेन ने कहा की जय वर्मा जी में लोगों से संबंध बनाने की अद्भुत कला थी। उन्होंने पूरी दुनिया में हिंदी के लोगों के साथ मुझसे भी ज्यादा, कहीं अधिक संबंध बनाए।
तेजेंद्र शर्मा, वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार, ब्रिटेन ने कहा कि उनमें खास बात थी कि जो भी लोग उनसे मिलते थे सबको यही लगता था कि जय वर्मा जी मुझे सबसे ज्यादा प्यार करती हैं- ऐसा उनका व्यक्तित्व था। नॉटिंघम में हिंदी का कोई अगर सिंबल है तो वह जय वर्मा हैं।
तितिक्षा शाह ने कहा कि हम सबको अतीत का हिस्सा बनना है लेकिन जय वर्मा जी ने जो किया है- नोटिंघम में हिंदी के लिए, उन्होंने जो किया है- वह सब कुछ हमारे लिए प्रेरणादाई रहेगा और हमें हमेशा ही आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करेगा।
नारायण कुमार ने कहा कि वह आत्मीय संबंध बनाने वाली साहित्यकार थीं और उन्हें भूलना बहुत कठिन है। उनकी स्मृतियां हमारे मन-मंदिर में छाई रहेगी।
डॉ नवीन चंद्र लोहानी ने कहा की जय जी मेरठ की थीं और उस नाते मैं उनका भाई था। वह मुझे बहन का स्नेह भी देती थीं। उनके जीवन में जो सरलता है, वह उनके साहित्य में ही दिखाई पड़ता है। मेरठ से उनका गहरा लगाव था।
वी. एल गौड़ ने उन्हें याद करते हुए कहा कि उनका जाना धक्का सा लगा, वह अचानक से चली गईं। उनकी संस्मरण की एक किताब अभी तैयार होनी थी। उस पर वे काम कर रही थीं, वह बीच में ही रह गई।

स्नेह सिंह वर्मा (उनकी सगी बहन) अपने आंसुओं को रोकते हुए कहा कि वह शिवरात्रि के दिन पैदा हुई थीं, शिव जी का आशीर्वाद उन्हें प्राप्त था, उन्हें पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त था। वह हम सब के लिए वट-वृक्ष के समान थीं।
निखिल कौशिक- वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार, ब्रिटेन ने कहा की जय वर्मा जी के बारे में क्या कहा जाए, उनसे पहली बार मिलकर भी ऐसा लगता है कि उनसे पहले से कोई रिश्ता जुड़ा हुआ है। ऐसा लगता ही नहीं था कि उनसे पहली बार मिल रहे हैं।
दिव्या माथुर, राकेश पांडे, तरुण कुमार, रेखा राजवंशी, शैलजा सक्सेना, सविता चढ्ढ़ा, सुनीता पाहूजा, कुमार सुबोध, जवाहर कर्णावट, डॉक्टर हरि सिंह पाल, विनयशील चतुर्वेदी, हर्षवर्धन आर्य, डॉ वरुण कुमार, डॉ विवेक शर्मा ने भी उन्हें याद किया, उनके साथ के संबंधों का जिक्रकर उन्हें श्रद्धांजलि दी।
इस कार्यक्रम में देश-विदेश के लगभग 100 लोगों की उपस्थिति रही।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. अनीता वर्मा ने किया।
