
राजधानी कॉलेज दिल्ली में कवि सम्मेलन और मुशायरा आयोजित
अंजुमन फरोग-ए-उर्दू ने दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित राजधानी कॉलेज में हिन्दी अकादमी दिल्ली और उर्दू अकादमी के सहयोग से रविवार को पद्मश्री बेकल उत्साही की जयंती पर भव्य कवि सम्मेलन और मुशायरे का सफल आयोजन किया। बेकल उत्साही जी को सभी ने याद किया। अपने संस्मरण साझा किये और उन्हें अपनी काव्यांजलि समर्पित की। इसमें आमंत्रित नामचीन शायरों और सुप्रसिद्ध कविगणों ने काव्य पाठ कर रविवार की शाम सुहानी बना दी। काव्य पाठ करने वालों में श्री दीक्षित दनकौरी, श्री अरविंद असर, श्रीमती अलका शरर, श्री जावेद क़मर, श्री शाहिद अंजुम, श्री मोइन शादाब, श्री संतोष सिंह, सुश्री गार्गी कौशिक, सुश्री शशि पांडेय, सुश्री मोनिका शर्मा मासूम और आपके चेतन आनंद शामिल रहे। शानदार संचालन सती मोइन शादाब ने किया। इस अवसर पर चार्टर्ड अकाउंटेंट श्री शशि गर्ग, राजधानी कॉलेज के प्राचार्य प्रोफेसर दर्शन पांडेय, बेकल उत्साही की बेटियाँ श्रीमती सूफिया उत्साही, सुश्री आरिफा उत्साही, श्री अनिल मीत, श्री हशमत भारद्वाज, श्री नूर साहब, सुश्री पूनम मल्होत्रा, कार्यक्रम समन्वयक प्रोफेसर जसवीर त्यागी, प्रोफेसर सुमन, प्रोफेसर जितेंद्र कुमार सहित अनेक साहित्यप्रेमी श्रोता और विद्यार्थी उपस्थित थे।
काव्य पाठ की झलकियों के साथ शायरों और कवियों की काव्य-पंक्तियाँ हाज़िर हैं-
बहुत हम याद आएंगे, किसी दिन देख लेना,
चले उस पार जाएंगे, किसी दिन देख लेना।
ज़माना तो पुकारेगा हमें आवाज़ देकर,
पलट कर हम न आएंगे, किसी दिन देख लेना।
-दीक्षित दनकौरी
ज़ुबाँ से बोलेगा या फिर नज़र से बोलेगा,
मेरा वजूद तो मेरे हुनर से बोलेगा।
क़लम क़लम है क़लम की ज़ुबाँ नहीं होती,
क़लम का दर्द तुम्हारी ख़बर से बोलेगा।
-चेतन आनंद
वो शख्स-ए-गुल है तो कर के देखते हैं,
अब उस से इश्क़ का इज़हार कर के देखते हैं।
-जावेद क़मर
ज़माने की हक़ीक़त हमसे पहचानी नहीं जाती
सयाने हैं बहुत लेकिन ये नादानी नहीं जाती
जहाँ को देखकर दिल को तो पत्थर कर लिया हमने
मगर पत्थर से तासीरे-सुलेमानी नहीं जाती
-मोनिका “मासूम”
दर्द ईजाद कर रहा हूँ मैं
हाँ ! तुझे याद कर रहा हूँ मैं
उसका वादा है आज आने का
वक़्त बर्बाद कर रहा हूँ मैं
-संतोष सिंह
मुझको अश्क़ों के समुन्दर से भिगोने लायक़
कोई कांधा तो मिले फूट के रोने लायक़
मुझको हर वक़्त लगी रहती है तेरी चिंता
एक तू ही तो मेरे पास है खोने लायक़
-अरविन्द असर
चुप न रहती तो और क्या करती,
हक नहीं था के फ़ैसला करती l
मेरा मुझमें न कुछ बचा बाक़ी
और कितनी बता वफ़ा करती l
-गार्गी कौशिक
मेरे प्रेम में वो बांसुरी की तान हो गया
मैं उसकी हो गई वह मेरी जान हो गया
मुझ पे करके खर्च परेशान खूब वो हुआ
बनाकर भिखारी हो पाकिस्तान वो गया








रिपोर्ट- शशि पाण्डेय