शौक़ बहराइची

शौक़ बहराइची का जन्म 6 जून, 1884 को अयोध्या के सैयदवाड़ा मोहल्ले में एक साधारण मुस्लिम शिया परिवार में हुआ था। इनके जन्म का नाम ‘रियासत हुसैन रिज़वी’ था जो बाद में बहराइच में रहने के कारण बहराइची हुआ।

ये बहुत प्रसिद्ध शायर थे। नेताओं व ग़लत कार्यों में लिप्त व्यक्तियों पर कटाक्ष करने के लिए इनका लिखा शेर लोग बहुत प्रयोग करते हैं मगर बहुत कम ऐसे लोग हैं, जिन्हें यह पता होगा कि इस शेर को लिखने वाले शायर का नाम ‘शौक़ बहराइची’ है-

‘बर्बाद गुलिस्तां करने को
बस एक ही उल्लू काफ़ी है
हर शाख पे उल्लू बैठे हैं
अंजाम ऐ गुलिस्तां क्या होगा?

उन्होंने ग़रीबी में भी शायरी से नाता बनाए रखा। वे रियासत हुसैन रिज़वी उर्फ ‘शौक़ बहराइची’ के नाम से शायरी के नए आयाम गढ़ते रहे, जो 13 जनवरी, 1964 में हुई उनकी मौत तक बदस्तूर जारी रहा। उनके बारे में जो भी जानकारी प्रामाणिक रूप से मिली, वह उनकी मौत के तकरीबन 50 साल बाद बहराइच जनपद के निवासी व लोक निर्माण विभाग के रिटायर्ड इंजीनियर ताहिर हुसैन नक़वी के नौ वर्षों की मेहनत का नतीजा है। उन्होंने उनके शेरों को संकलित कर ‘तूफ़ान’ नामक किताब की शक्ल दी है।

शौक़ बहराइची ने अपना वह मशहूर शेर बहराइच की कैसरगंज विधानसभा से विधायक और 1957 के प्रदेश मंत्री मंडल में कैबिनेट स्वास्थ मंत्री रहे हुकुम सिंह की एक स्वागत सभा में पढ़ा था जहाँ से यह मशहूर होता चला गया।

सही शेर यह है “बर्बाद-ए-गुलशन की खातिर बस एक ही उल्लू काफ़ी था, हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलशन क्या होगा?

शौक़ बहराइची की इस गुमनामी पर उनका ही एक और मशहूर शेर सही बैठता है-

“अल्लाहो गनी इस दुनिया में,
सरमाया परस्ती का आलम,
बेज़र का कोई बहनोई नहीं,
ज़रदार के लाखों साले हैं।”

शौक़ बहराइची के बहराइच में बीते दिन काफ़ी ग़रीबी में रहे और यहाँ तक कि उन्हें कोई मदद भी नहीं मिलती रही। आज़ादी के बाद सरकार की ओर से कुछ पेंशन बाँध देने के बाद भी जब पेंशन की रकम उन तक नहीं पहुंची तो बहुत बीमार चल रहे शायर शौक़ के मन ने उस पर भी तंज कर ही दिया-

“सांस फूलेगी खांसी सिवा आएगी,
लब पे जान हजी बराह आएगी,
दादे फ़ानी से जब शौक़ उठ जाएगा,
तब मसीहा के घर से दवा आएगी”

उनके जन्मदिन पर इस अज़ीम शख़्सियत को नमन
-रजनीकांत शुक्ला

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate This Website »