
मानसून के आगमन के साथ 28 जून की दोपहर बाद मुक्तांगन के समृद्ध परिसर में वन्दना यादव के उपन्यास ‘शुद्धि’ पर परिचर्चा का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे थे अनिल जोशी जी। वक्ताओं के तौर पर योगिता यादव जी एवं वेद मित्र शुक्ल जी ने अपनी भुमिका बखुबी निभाई। इस परिचर्चा के सूत्रधार थे विशाल पांडेय जी। वाणी प्रकाशन के प्रबंध निदेशक और वाणी फाउंडेशन के चेयरमैन अरूण महेश्वरी जी भी इस परिचर्चा में शामिल रहे।
कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत आराधना प्रधान जी द्वारा सबके स्वागत से और आगे की कार्रवाई विशाल पांडेय जी को सौंपने से हुई।
योगिता यादव जी ने अपने वक्तव्य में कहा, “शुद्धि उपन्यास केवल विराट मृत्यु कथा नहीं है, बल्कि यह चार पीढ़ियों के एक साथ अपने भीतर से कुछ और शुद्ध होते जाने का उपक्रम है। इस उपन्यास की महिलाएं खासा ध्यान खींचती हैं, जो एक साथ मौन भी हैं, मुखर भी हैं, सौम्य भी हैं और सशक्त भी। अपने कुल-कुनबे से प्रेम करने वाली ये महिलाएं जरूरी बदलावों के लिए अड़ जाती हैं।”
डी यू के सीनियर प्रोफेसर वेद मित्र शुक्ल ने ‘शुद्धि’ उपन्यास को “त्रासदी की परंपरा का उपन्यास कहा।”
अरूण महेश्वरी जी ने कहा, “वन्दना यादव मोटीवेशनल स्पीकर है इसीलिए ‘शुद्धि’ उपन्यास में मोटिवेशनल बातें शामिल हैं। इस उपन्यास में विजय दान देथा, प्रेमचंद और कबीर की परछाई भी दिखाई देती है। उपन्यास में राजस्थानी भाषा का छौंक भी है जो पाठक को बाँधता है।”
लेखन पर बात रखते हुए वन्दना यादव ने उपन्यास की रचना प्रक्रिया पर अपने विचार रखे।
अध्यक्षीय उद्बोधन में अनिल शर्मा जी ने ‘शुद्धि’ उपन्यास को व्यंग्यात्मक शैली में लिखा गया उपन्यास कहा। आपने इसे समानता की और समानता के समीकरण की बात करने वाला कहा। इसे जीवन के सबसे महत्वपूर्ण संस्कार यानी ‘मृत्यु संस्कार’ पर केंद्रित उपन्यास बताया।
परिचर्चा के अंत में आराधना प्रधान जी ने मंचासीन अतिथियों को पौधे देते हुए धन्यवाद ज्ञापन किया। बड़ी संख्या में साहित्यकारों, साहित्य प्रेमियों की उपस्थिती रही। उपन्यास पर सार्थक चर्चा और गर्मागर्म चाय-नाश्ते के साथ सत्र समाप्त हुआ।














