
मेलोरंग दिल्ली ( वाणी प्रकाशन) व राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय द्वारा ब्रिटेन के प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ पद्मेश गुप्त की कहानियों “डेड एंड“ व “कश्मकश“ दो कहानियों का मंचन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक डॉ देवेंद्र राज अंकुर के निर्देशन में सम्मुख सभागार,राष्ट्रीय नाटक विद्यालय, नई दिल्ली में सफलतापूर्वक किया गया और एक ही मंच पर दो कहानियों के मंचन को नाम दिया गया “डेड एंड के बाद”।
पद्मेश गुप्त की कहानियाँ सम्वन्ध, समाज, सांस्कृतिक विविधता तक अनेक आयामों को स्पष्ट करती है। ‘डेड एण्ड’ तथा ‘कशमकश’ दोनों ही कहानियों पति-पत्नी के अंतरसम्बम्धों को केन्द्र में रखकर चुनी गई है। पर दोनों ही कहानियों का ट्रीटमेंट अलग है। मानवीय सम्बम्धों के वनते विगहते समीकरणों की कहानियाँ अपने-अपने स्तर पर अलग-अलग तरह के अलगावों की ओर इशारा करती है
डेड एंड की बात करें तो कहानी एक ऐसे पुरुष की कहानी है जो अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद अकेले ही अपनी बेटी को पालता है । अपनी महिला मित्र के रहते हुए वह इसलिए शादी नहीं करता कि अगर उससे उसकी कोई संतान हुई तो वह बेटी के साथ न्याय नहीं होगा और फिर जिंदगी एक दिन उसे ऐसे डेड एंड पर ले जाती है जब उसे पता चलता है कि वो कभी पिता बनने के योग्य ही नहीं था अपनी बेटी को स्वीकार्य या नहीं , अपनी मृतक पत्नी के प्रति अचानक उसका मन वितृष्णा से भर जाता है।
दूसरी कहानी “कश्मकश “ की बात करें तो वो एक ऐसी लड़की की कहानी है जो जीवन में रोमानियत की उस दुनिया में रहती है जहां वह एक ऐसे कलाकार से प्रेम करती है जो अपनी पूर्व प्रेमिका के प्रेम में सिर्फ उसी की पेंटिंग्स बनाता है दोनों एक दूसरे को चाहते हैं पर कलाकार का विगत बीच में आ जाता है। वहीं दूसरी ओर जब वो लड़की किसी गायक के आकर्षण में उसकी तरफ़ आकर्षित होती है तो कलाकार का मन उसकी तरफ़ आकर्षित होता है। प्रेम के त्रिकोण की ये कश्मकश सम्बन्धों, समाज के बंधनों पर बहुत से प्रश्नचिह्न लगाती है ।
दोनों कहानियों की पृष्ठभूमि विदेशी होते हुए भी भारतीय सी लगती है। जब कभी भी लीक से हटकर लिखी गई सशक्त कहानी का मंचन किया जाता है तो बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। कहानी वैसे ही प्रस्तुत की जाए, नाटकीयता का अतिरेक कहीं मूल तत्व को नष्ट ना कर दे, या फिर कहीं अभिव्यक्ति व अभिनय में सामंजस्य ना रहें।
पहली कहानी का मंचन बहुत सहज था और पात्र स्वयं ही कहानी कहते हुए बीच में संवाद भी कह देते थे । पूरे मंच पर मात्र एक कुर्सी व एक छोटे से सोफे के सेट पर सभी पात्रों ने अपना अधिकतम दिया। कहीं भी ऐसा नहीं लगा कि पात्र “लाउड “ हो रहें हैं या फिर कहानी की प्रस्तुति स्तरीय नहीं है।
दूसरी कहानी उलझे हुए प्रेम संबंधों की कहानी थी जो अपेक्षाकृत अधिक उलझी हुई थी, जिसका मंचन करना भी कठिन था । मुख्य पात्र “निधि मिश्रा “ ने जितने जुनून व ऊर्जा के साथ बिना फूहड़ हुए आत्मिक , भावनात्मक व शारीरिक प्रेम के मूल के दर्शकों तक बड़ी बेबाक़ी व ईमानदारी से पहुंचाया। निधि मिश्रा, अमिताभ श्रीवास्तव , अमित सक्सेना , सुरभि सिंह ने इतनी जीवंतता व सहजता से अपने किरदारों को निभाया । अमिताभ श्रीवास्तव सशक्त अभिनेता हैं वहीं अमित सक्सेना में कई संभावनाएं हैं। नन्ही सुरभि सिंह के मंच पर आते ही जैसे खिलखिलाहट सी भर जाती है। राजेश सिंह व प्रकाश झा का संगीत व लाइट सिस्टम दर्शकों को बांधे रखता है।
डॉ देवेन्द्र राज अंकुर के निर्देशन व मेलोरंग समूह, वाणी प्रकाशन के सौजन्य से किया गया ये मंचन प्रतिष्ठित लेखकों के लिए एक ऐसा मंच तैयार कर रहा है जिसमें बहुत सी संभावनाएं जुड़ी हैं।
वास्तव में मैलोरंग, दिल्ली की स्थापना सन् 2006 में हुई। विगत वर्षों में मैलोरंग भारत के विभिन्न शहरों एवं महत्वपूर्ण महोत्सवों में अपनी गरिमामयी उपस्थिति तो दर्ज करायी ही है, साथ ही पड़ोसी देश नेपाल में भी समय समय पर नाट्य प्रस्तुतियों देती रही है। प्रति वर्ष राष्ट्रीय स्तर की संगोष्ठी एवं नाट्य महोत्सव आयोजित की जाती है। मैलोरंग द्वारा प्रति वर्ष ज्योतिरीश्वर रंगशीर्ष सम्मान, रंगकमी श्रीकान्त मंहत सम्मान, श्याम दरिहरे रंग सम्मान, नेपथ्य रंग सम्मान अर्पित किया जाता है। रंगमंडल की प्रस्तुत्तियाँ भारत रंग महोत्सव में भी मंचित की जा चुकी है।
दर्शकों से खचाखच भरे सभागार में डॉ पद्मेश गुप्त ना केवल स्वयं उपस्थित रहे बल्कि अनिल जोशी, अदिति माहेश्वरी, अरुण महेश्वरी, अनिता वर्मा, अलका सिन्हा, नरेश शांडिल्य, डॉ प्रत्युशा वत्सला, सरोज शर्मा, डॉ अरुणा गुप्ता, डॉ बरूण कुमार, मनोज कुमार सिन्हा, डॉ रूद्रेश, डॉ ओम प्रकाश, डॉ नवीन नीरज, जितेन्द्र चौधरी, व अन्य कई वरिष्ठ साहित्यकारों, शिक्षकों व युवाओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज की ।
– अनीता वर्मा










