
कैरीबियन देशों की देन ‘चटनी संगीत’

– डॉ. दीप्ति अग्रवाल
आप सबने दबंग 2 का गाना ‘फुलौरी बिना चटनी कैसे बनी’ और ‘गैंग्स ऑफ वसेपुर’ के गाने जरूर सुने होंगे। इन गानों की विशेषता यह है कि गाने चटनी संगीत के उदाहरण हैं। कैरिबियन देशों में हर साल ‘चटनी सोका मोनार्क कंपटीशन’ होता है जो अपनी तरह का दुनिया का इकलौता इंडो-कैरिबियन कॉन्सर्ट है। यहां दुनिया के तमाम चटनी सिंगर्स आते हैं और इस कंपटीशन में हिस्सा लेते हैं। वैश्विक पटल पर चटनी संगीत की ख्याति बढ़ती जा रही है। क्या है यह चटनी संगीत और कैसे इसका उद्भव हुआ? औपनिवेशिक दौर में, ‘गिरमिट प्रथा’ के दौरान कैरिबियन देशों में उपजे और वर्तमान में अपने सम्पूर्ण वैभव के साथ फलीभूत हुए चटनी संगीत के उत्पत्ति और विकास की गाथा बहुत रोचक और अनोखी है।
चटनी संगीत की उत्पत्ति और विकास की कथा
चटनी संगीत का उद्भव कैरेबियन देशों में 1920 के मध्य में हुआ और 1980 तक आते आते यह चरम पर पहुँच गया था। इसके उद्भव की कथा जानने के लिए इतिहास के गलियारों में जाना होगा। 1833 में ‘गुलामी प्रथा’ के अंत के बाद ब्रिटिश सरकार ने ‘अनुबंधित श्रमिक प्रथा’ चलायी जिसे चीफ जस्टिस बेऔमोंट ने गुलामी पर आधारित ‘राक्षसी और सड़ा-गला सिस्टम’ बताया था और इसे ‘गिरमिटिया’ प्रथा (अग्रीमेंट का अपभ्रंश गिरमिट) भी कहा गया।इस प्रथा के तहत भारतीय श्रमिक मारीशस (1834), गुयाना (1838), त्रिनिदाद(1845), दक्षिण अफ्रीका (1860), सूरीनाम (1868) और फ़ीजी(1879) आदि देशों में गन्ने, कॉफ़ी की खेती और सोने की खदानों में काम करने के लिए बहला फुसला कर ले जाए गए थे और कालांतर में अधिकांश श्रमिक गिरमिट अवधि पूरी होने के बाद उन्हीं देशों में बस गए थे। उनमें से अधिकांश गिरमिट श्रमिक उत्तर भारत क्षेत्र से थे। अधिकतर श्रमिक अनपढ़, भोलेभाले और भोजपुरी, अवधी भाषा बोलते थे और अपने साथ संस्कारों की पोटली में रामायण की चौपाइयाँ, देवी के भजन और लोकगीतों की थाती ले गए थे। उन्होने अपने जीवन मूल्यों, संस्कृति, भाषा की सुरक्षा, प्रतिष्ठा और संरक्षण के लिए निरंतर प्रयत्न किया और आज भी प्रयत्नशील है।
जब भारतीय श्रमिक कैरेबीयन देशों में पहुँचेतब वहाँ पहले से कई अफ्रीकी गुलाम काम कर रहे थे। इस तरह दो अलग-अलग संस्कृति और भाषा वाले लोगों का मिलना हुआ। धीरे धीरे आपस में संवाद करने के लिए सब एक दूसरे की भाषा के शब्दों को अपनाने लगे और जैसे विभिन्न क्षेत्रों के भारतीयों के बीच हिंदी संपर्क भाषा बन गयी थी वैसे ही उसमें अब क्रिओल, अंग्रेजी, स्वाहिली के शब्द जुड़ने लगे और भाषा में ‘कोइनाइजेशन’ की प्रक्रिया आरंभ हुई। यही भाषाई प्रक्रिया संगीत के साथ भी हुई, जिसमें श्रमिकों द्वारा गाये मूल गीतों में परिवर्तन होकर स्थानीय कैरीबियन संगीत के साथ मिश्रित होकर ‘चटनी संगीत’ बन गया।
गिरमिट काल के आरंभ में भारतीय श्रमिक पुरुष और महिलाएं अपनी प्रवास की पीड़ा को लोक गीतों जैसे बिरहा, कजरी, बारहमासा, सोहर, चौताल, मटकोर, लाचारी बिदेसिया, बटोहिया फ़िरंगिया साँवरिया, पुरुबवा में ढाल कर ढोलक, हार्मोनियम और धनताल जैसे म्यूज़िकल इंस्ट्रूमेंट्स के साथ गाते थे। उदाहरण के तौर पर उस समय के एक लोकगीत की पंक्तियाँ :
भोली हमें देख अरकाटी भरमाया हो
कलकता पार जाओ पाँच साल रे बिदेसिया
डिपुआ में लाए पकरायी कागदुआ हो
अंगुठवा लगाए दीना हे रे बिदेसिया।।
वहाँ रहने वाले अफ्रीकियों को भारतीयों की भाषा तो समझ नहीं आती थी, लेकिन उन गीतों को सुनना उन्हें अच्छा लगता था। धीरे-धीरे दोनों समुदायों ने घुलना-मिलना शुरू किया। साथ बैठ कर हँसने गाने लगे। उनकी कैरिबियन संगीत विधा कैलिप्सो के साथ भारतीय भोजपुरी गीतों का फ्यूज़न हुआ। इससे एक नई शैली बनी, जिसे ‘चटनी म्यूज़िक’ कहा जाता है। अर्थात बहुत से भारतीय लोकगीत और भारतीय संगीत वाद्यों में धीरे धीरे त्रिनिदाद की संस्कृति का मिश्रण होने लगा उनके संगीत वाद्य इसमें जुड़ने लगे, गीतों में उनकी भाषा के शब्द जुड़ने लगे, नृत्य में उनकी भाव भंगिमाएं मिश्रित हुई और इस तरह चटनी संगीत का उद्भव हुआ।
चटनी संगीत की विशिष्टता
चटनी संगीत विशिष्ट है । यह माइग्रेशन का संगीत है और यह बिलकुल आज़ाद है, ना इस पर संस्कारों का बोझ है, ना संस्कृति को पवित्र बनाये रखने की जिम्मेदारी। अपनी संस्कृति का रंग तो है लेकिन दूसरी संस्कृति को अपनाने में भी कोई ऐतराज नहीं है।
- भोजपुरी गीत
चटनी संगीत की उत्पत्ति भोजपुरी गीतों से हुई। गुयात्रा बहादुर ने अपनी किताब कुली वीमेन में कहा कि उनकी दादी सुजारिया भारत से अपने साथ भोजपुरी गीत लाई थी। बाद में यह दो संस्कृतियों का हाइब्रिड संगीत बन गया। इसी संदर्भ में संगीत के बादशाह सुंदर पोपो ने एक साक्षात्कार में टीना रामनारैन को बताया कि उन्होंने ये गीत परिवार की औरतों से सीखे हैं। वे अपनी मां के साथ शादी विवाह में जाते थे और शादी की रात औरतें गाती थी और वे सुनते थे।इस संगीत में भारतीय वाद्ययंत्र ढोलक, धनताल, हारमोनियम, तासा नगाड़ा, सिमटा, चूलें आदि पारंपरिक वाद्य बजाये जाते थे। समय के साथ हाइब्रिड रूप ‘चटनी सोका’ या ‘सोका चटनी’ को खुले दिल से कैरेबीयन की धरती ने स्वीकार किया और आज यह उनकी पहचान है। संगीतविद मूंगल पटासर का कहना है कि ‘चटनी सोका’ का उद्भव भारतीय संगीत के ‘कहरवा’ ताल से हुआ है।
- लय-ताल और नृत्य
पीटर मैनुएल का कहना है कि हालांकि यह संगीत भारतीय लोकगीतों से उपजा है, लेकिन इस संगीत की नृत्य की भाव-भंगिमाएं विशिष्ट हैं और इसमें उन्मुक्तता, मौज-मजा का भाव है। इसके हर ट्रैक पर नृत्य कर सकते हैं। चटनी म्यूज़िक के गाने अप-टेम्पो यानी तेज गति के होते हैं, जिसे डांस म्यूज़िक भी कह सकते हैं। जैसे जैसे चटनी लोकप्रिय हुआ और भारतीय डायस्पोरा की सीमा से बाहर निकला इसमें भारतीय वाद्यों के साथ साथ गिटार, सिंथेसाइजर, स्टील पैन और ड्रम का प्रयोग होने लगा। धीरे-धीरे भगवान से जुड़े गीतों के अलावा नए तरह के गाने बनने शुरू हुए। चटनी संगीत एक तरह से लोक गीतों को नई पैकिंग में पुन:प्रस्तुत करना है ।
- चटनी संगीत के गीतों की प्रकृति
इस संगीत में गानों की प्रकृति सरल है। श्रमिक थके-हारे दुखी प्रवासी थे और संगीत उन्हें राहत देता था। अत: जीवन, प्रेम, धर्म, विवाह, सोहर, रिश्ते-नाते, हास्य, भोजन, पेय-पदार्थ सभी को विषय बनाकर गीत रचे गए। पीड़ित श्रमिकों की व्यथा, देश की याद, परदेश में परायापन, गोरों के अत्याचार, महिलाओं का शोषण, गृहकलह, पति से वियोग, कृष्ण और गोपियों के प्रसंग, सास-ससुर की शिकायतें, सबको गीतों में ढाल कर इस संगीत में पिरो दिया गया। बाद में इनमें जाति, रंगभेद, भारतीय और अफ्रीकी सांस्कृतिक अस्मिता को लेकर कन्फ़्युशन, परस्पर समरसता के भाव भी जुडते चले गए।
- चटनी संगीत के गीतों की भाषा
आरंभिक दौर में गीतों में भोजपुरी शब्दों की भरमार थी। धीरे धीरे गीतों में से भोजपुरी घटती चली गई। वर्तमान में इस संगीत में गीतों की भाषा में कैरीबियन, इंग्लिश और भोजपुरी, अवधी के शब्द हैं। इस संदर्भ में हेमलता दीनदयाल का मानना है कि वर्तमान में गीतों में से भोजपुरी शब्द गायब हो गए हैं। म्यूज़िक बदला और लिरिक्स से भोजपुरी घटती चली गई।
- चटनी संगीत का विकास
पहली बार 1963 में गारफील्ड ब्लैकमैन नाम के म्यूज़िशियन ने चटनी म्यूज़िक के साथ फ्यूज़न करके ‘क्लॉक एंड डैगर’ नाम का गाना बनाया। वो गाना बड़ा पॉपुलर हुआ और चटनी म्यूज़िक को एक अलग शैली के तौर पर बड़े लेवल पर पहचान मिली। मगर चटनी म्यूज़िक में असली क्रांति 1968 के बाद आनी शुरू हुई। धीरे धीरे चटनी संगीत में होने वालें प्रयोगों ने इसके कई रूपों को जन्म दिया जैसे राग चटनी, चटनी भांगड़ा, चटनी हिप हॉप, चटनी सेगा, चटनी सोका (Soul Of Calypso) को शॉर्ट में Soca कहा जाता है आदि। इन सबमें चटनी सोका सबसे अधिक प्रसिद्ध है, जिसकी शुरुआत द्रोपदी रामगूनाई ने 1987 में की थी। इसमें हिन्दुस्तानी शब्दों के साथ हिंगलिश, इंग्लिश और अफ्रीकन भाषाओँ के शब्द गाने की बोलों में आ गए और गिटार, पियानो, ड्रमसेट, की बोर्ड भारत के वाद्ययंत्रों के साथ मिल गए।
प्रसिद्ध चटनी संगीतज्ञ
चटनी संगीत को प्रसिद्धि दिलाने में बहुत से संगीतकारों का हाथ है। सूरीनाम के रामदेओ चैतो चटनी संगीत के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। उन्होंने ‘किंग ऑफ़ सूरीनाम’ के नाम से रिकॉर्डिंग की। अगला नाम त्रिनिदाद की द्रौपदी रामगूनाई का आता है जिसे ‘क्वीन ऑफ़ चटनी’ कहा जाता है। चटनी संगीत में अगला नाम है सुंदर पोपो का जिन्हें ‘फादर ऑफ चटनी’ म्यूज़िक कहा जाता है। सुंदर पोपो ने ही ‘फूलौरी बिन चटनी’ जैसे सुपरहिट समेत पचासों गाने गाए। द्रुपति के बाद सोनी मान का 1994 में एल्बम आया, जिसका नाम था ‘सोका चटनी’। इसी कड़ी में दक्षिण भारत मूल के राकेश यंकारण को भी दिग्गज चटनी म्यूज़िक आर्टिस्टों में गिना जाता है. अन्य चटनी संगीतविदों में हेमलता, मशहूर चटनी सिंगर हैं जिन्हें पब्लिक Hurricane हेमलता बुलाती है उन्हें ‘द रानी ऑफ चटनी म्यूज़िक’ के नाम से भी जाना जाता है. उनकी छोटी बहन रसिका दीनदयाल है जो चटनी म्यूज़िक की लीजेंड टाइप हैं. और ये परंपरागत चटनी संगीत को बचाने की कवायद में लगी हुई हैं। चटनी संगीत में गयानी बाबू के नाम से मशहूर टेरी गजराज का नाम लिए बिना चटनी संगीत अधूरा है। उनका सोका लंबाडा, टुन टन डांस और गुयाना बाबू और पैक अप मशहूर एलबम है। कुछ अन्य चटनी संगीत गायकों में मुख्य हैं सैम बूधराम, रिक्की जय, रेमंड रामनारैन, देवानंद गट्टू, रवि बिस्संभर, रामचंदर आदि हैं।
अन्य गिरमिट देशों में चटनी संगीत के विभिन्न रूप
धीरे-धीरे जिन जिन देशों में भारतीय शर्तबंदी मजदूर गए थे, उन देशों में थोड़ी थोड़ी भिन्नता के साथ चटनी संगीत ने वैश्विक पहचान बना ली। जहाँ कैरिबियन देशों में चटनी सोका अधिक प्रसिद्ध हैं, वहां मारीशस में चटनी सेगा, सेगा भोजपुरी प्रसिद्ध है और दक्षिण अफ्रीका में इसका रूप थोड़ा और भिन्न है। भिन्नताओं का कारण देश, काल और परिस्थिति हैं। दक्षिण अफ्रीका में चटनी संगीत चमकीले दमकीले नर्तकों के नगाड़ा दल के साथ भी और आजकल के [i]चटनी सोका रूप में भी बजाया जाता हैं। वहां राजस्थान का नगाड़ा संगीत और भोजपुरी में देबी का पचरा संगीत ज्यादा लोकप्रिय थे। दक्षिण अफ्रीका के कुछ प्रसिद्ध चटनी गायकों के नाम निम्न हैं : अशोक रामचंदर सैम रूपनारायण, हंस लुखन, एड्डी मूडले, संजय जयराझ और हैरी रामपर्साद आदि।मॉरिशस का चटनी संगीत कैरेबियन से काफी भिन्न है यहाँ ‘चटनी सेगा’ प्रसिद्ध है। मेडागास्कर, मोजम्बिक और जंजीबार से आये अफ्रीकन गुलाम शाम को काम के बाद आग जलाकर उसके चारो तरफ नृत्य करते थे। उनके पारंपरिक वाद्य रवाने, मरवाने और सेगा थे। 1834 से 1920 तक भारतीय श्रमिक भी काफी मात्रा में मारीशस आ गए थे और धीरे धीरे भोजपुरी गायन और वाद्य ढोलक जुड़ने लगा और गाने में भी क्रियोल भाषा का मिश्रण होने लगा और भारतीय लोक संगीत पर अफ्रीकन प्रभाव पड़ने से चटनी संगीत गाना सुनने की बजाय नृत्य में अधिक प्रयोग होने लगा और सेगा के कई रूप सामने आने लगे जैसे सेगा भोजपुरी, चटनी सेगा, रवाने सेगा, सोलोन सेगा, पॉप सेगा, सूक सेगा, डिस्को सेगा आदि। मॉरीशस में सोले राज और बाम, रवि सोवाम्बर, छुट्टन, जोसफ अल्फोंसे, रवातोंन, टी फ्रेरे (किंग ऑफ़ द सेगा) आदि चटनी सेगा के जाने पहचाने नाम है।
चटनी संगीत की महत्ता
पहली बार कैरीबियन भारतीयों का अपना संगीत था, जो न तो भारतीय था, ना अफ्रीकान था, ना यूरोपियन था, ना ही अमेरिकन। इस संगीत के कारण हिंदी भाषा, भारतीय संस्कृति और संगीत से लोग फिर से जुड़ने लगे हैं। अत: हिंदी सीखने के प्रति रुझान बढ़ने की पूरी पूरी सम्भावना है। चटनी संगीत की बढ़ती लोकप्रियता से हिंदी भाषा शिक्षण का क्षेत्र बढ़ सकताहै। चटनी संगीत के पुनर्जन्म को भोजपुरी की छवि को बचाने की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है। टीवी, समाचार-पत्रों, फिल्म-उद्योग भी चटनी संगीत को अपना रहे हैं। चटनी संगीत को बढ़ावा देकर हिंदी और उसकी उपभाषाओं के विस्तार की संभावनाओं के द्वार खुलेंगे। कालक्रम में भाषा में कितना उतर चढाव आया यह जानने समझने में चटनी संगीत का भी योगदान रहेगा। शोधार्थी एक देश से दुसरे देश के चटनी संगीत का तुलनात्मक अध्ययन कर सकते है। सदियों से आसपास के लोगों की सम्बद्धता से संगीत की शैली में भिन्नताएं आती हैं जिससे विशेष जनसँख्या के स्थानीय लोगों के साथ सम्बद्धता होने से सम्बन्ध विकसित और पोषित हुए हैं। यही बात चटनी संगीत के साथ है जब भारतीय और अफ्रीकी संस्कृति के लोग मिलकर इस संगीत को गाते बजाते हैं और एक साथ नृत्य करते हैं।त्रिनिदाद की धरती पर उपजे संगीत सामाजिक और सांस्कृतिक प्रक्रिया का अंग है और इसकी महत्ता किसी देश के सांस्कृतिक इतिहास को समझने मेँ सहायक होती है।
चटनी संगीत की आलोचना
चटनी संगीत के कुछ द्विअर्थी, अश्लील बोलों के कारण यह आलोचना का विषय भी बना और गिरमिट देशों में रहने वाले भरतवंशियों ने इसे भारतीय संस्कृति पर प्रहार माना लेकिन कुछ अपवादों को छोड़ दे तो चटनी संगीत आज पूरे विश्व में जाना पहचाना नाम बन गया है। गुयात्रा बहादुर के शब्दों में, जिस प्रकार गन्ना कीचड़ और कूड़े करकट में भी फल-फूल जाता है उसी प्रकार यह संगीत मौलिक रूप से चाहे भारत का था लेकिन कैरीबियन धरती पर नए रूप में चटनी संगीत बन कर उभरा है।
निष्कर्ष के रूप में चटनी संगीत के सभी पहलुओं को देखते हुए इसकी महत्ता को नकारा नहीं जा सकता और इसकी मौलिकता को बरकरार रखते हुए भारतीय संस्कृति, भाषा साथ ही अफ्रीकन संस्कृति और भाषा में परस्पर सामंजस्य बिठाते हुए इसमें नए नए सृजन के आयाम जोड़ने चाहिए, भोजपुरी लोक गीतों, अफ्रीकन संवेदनाओं और समसामयिक मुद्दों को जोड़कर नए गीत लिखे जाने चाहिए जिससे दोनों समुदायों की संस्कृति और भाषा का विकास हो।