19 जुलाई 2025 को स्प्रिंगडेल लाइब्रेरी में हिंदी राइटर्स गिल्ड की मासिक गोष्ठी आयोजित की गई। यह एक खुला मंच था, जहाँ अपने भाव, विचार, आकांक्षाएं, किसी भी विधा – गीत, कविता, संस्मरण, आलेख, लघुकथा के माध्यम से व्यक्त किये जा सकते थे।  भारत से हमारे बीच चार विशिष्ट अतिथि भी पधारे थे।

सर्वप्रथम संस्था की संस्थापक-निदेशिका डॉ. शैलजा सक्सेना जी ने सभी उपस्थित माननीय अतिथियों, कवियों और श्रोताओं का स्वागत किया और संस्था की गतिविधियों से सभी को अवगत कराया। तद्पश्चात कार्यकम के संचालन की डोर लता पाण्डेय जी के कुशल हाथों में सौंपी गई ।

लता जी ने कहा कि शब्दों में बहुत बल होता है और उसी के प्रदर्शन हेतु सर्वप्रथम डॉ. राकेश सक्सेना जी को मंच पर आमंत्रित किया।  वे एटा विश्व विद्यालय में हिन्दी के पूर्व विभागाध्यक्ष रह चुके हैं।  इनकी कई मौलिक कृतियाँ जैसे चमेली का फूल , जीवन छाया धूप आदि प्रकाशित हो चुकी हैं।  इनके शोध र्निदेशन में २० छात्र -छात्राओं ने पी एच डी की उपाधि अर्जित की। ये यूनिसेफ के सदस्य रहे हैं और इन्होंने अनेक विदेश यात्राएं भी की है ।

राकेश जी ने कविता के माध्यम से कहा कि आज के मुश्किल वक्त में हमें कविता की शक्ति को समझना चाहिए क्योंकि कविता दिशा भी है तो पहचान भी, ढाल है तो तलवार भी और नाउम्मीद लोगों की आत्मा के दरवाजे पर रोशनी की दस्तक देने वाला दिया है ।

इसके पश्चात भारतीय कांसुलेट से पधारी मोनिका बेन जी ने सबको संबोधित करते हुए कहा कि विदेश में रहकर अपनी भाषा से जुड़े रहना और अन्य लोगों को भी जोड़ने का काम हिन्दी राइटर्स गिल्ड बहुत निष्ठा से निभा रही है जिसके लिए इस संस्था के आयोजक बधाई के पात्र हैं ।

तदपश्चात डॉ.सुनिता संक्सेना जी मंच पर आईं। वे एटा महाविद्यालय में सेवानिवृत प्राचार्य रह चुकी है।  मंच संचालन, चित्रकला, नुक्कड़ नाटिका, और लेखन में उनकी विशेष रुचि है। उनकी कई कृतियाँ, लघुकथा संग्रह, और काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं ।

एक सुन्दर कविता ‘दृष्टि’ के माध्यम से उन्होंने नारी शक्ति का उल्लेख किया कि कैसे नारी पुरुष और पौरुष की जनती है, श्रम और समृद्धि का प्रतीक है और कोमल अवश्य है परन्तु कमज़ोर नहीं है।

अब डॉ. रविन्द्र कुमार रवि जी मंच पर पधारे।  वे बिहार विश्व विद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष सह पूर्व निदेशक एवं वी सी रह चुके हैं। गीत, ग़ज़ल, नुक्कड़नाटक, संगीत संयोजन आदि में इन्हें विशेष  रुचि रही है और इन्हीं के बल पर इन्होंने चंपारण की एक पूरी पंचायत को साक्षरता का अनमोल उपहार प्रदान किया ।

विभिन्न विषयों पर ज्ञान देते हुए उन्होंने सभा को बताया कि भाषा की जीवन में विशेष भूमिका होती है ,व्यंग्य की उत्पत्ति वेदना से होती है, सबसे श्रेष्ठ कला काव्य कला होती  है और शास्त्रीय संगीत वास्तव में शब्दहीन होता है जिसपर लोगों की सुविधा के लिए अक्षर बैठा दिए जाते हैं इत्यादि।  देश के हालात दर्शाती एक व्यंग्य कविता सुनाकर उन्होंने सब को मंत्रमुग्ध कर दिया ।

इसके पश्चात मंजरी जी मंच पर आईं ।  वे बिहार के विश्वविद्यालय में प्राध्यापिका रही हैं और तीन वर्ष तक चंपारण में महिला शिक्षा अभियान का नेतृत्व करती रही हैं। उन्होंने उस चुनौती पूर्ण दौर की विस्तार से व्याख्या की और इसके लिए उन्हें सम्मानित भी किया गया। वे आज भी अनेक सामाजिक कार्यों में संलग्न है।

इंदिरा वर्मा जी ने अपनी कविता ‘वो फूल’ सुनाकर सबको भाव विभोर कर दिया। सिंदूरी बोगनविला,  मोहक, महकते स्वीट पीज़ और उनके होने न होने के दुख -सुख और उनसे अलगाव न कर पाने की अपनी विवशता को उन्होंने बखूबी उकेरा।

योगेश पाण्डेय जी ने अपनी भारत यात्रा का वर्णण करते हुए बताया कि उनके पिता जी बहुत दिनों से उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे । परन्तु इस बात से इतने व्यथित थे कि उनके पोते को गाँव में भीषण गर्मी का सामना करना पड़ेगा कि उन सबको वहाँ न आने की सलाह दी । यह एक पिता के करुणामय हृदय का मार्मिक उदाहरण था जो योगेश जी और हम सब के मन में सदा अंकित रहेगा।

दिव्यम प्रसाद जी ने बड़े ही जोशीले भाव से एक कविता पढ़ी कि मैं शायर हूँ, जीवन के हर पहलू दुख सुख, विडम्बनाओं पर लिखना मेरा काम है। इसे सबने बहुत पसन्द किया ।

तारा वार्ष्णेय जी ने श्रीकृष्ण के उपदेशों के माध्यम से गुरु महिमा का उल्लेख किया कि गुरू न केवल ज्ञान देता है अपितु आने वाले संकटों की चेतावनी भी देता है और समय आने पर अपने आश्रितों की रक्षा भी करता है।

राकेश मिश्राजी ने बड़े ही रोचक ढंग से बचपन का एक संस्मरण सुनाया, जिसमें उनके मित्र, बेचूं, को  राधा नामक सहपाठी से एकतरफा प्रेम हो गया था । वह अपनी दुखद कहानी रोज मित्रों को सुनाता और बदले में मुफ्त का नाश्ता कराता। सबने इस संस्मरण का खूब आनन्द लिया।

वीरेंद्र डोगरा जी पहली बार सभा  में आये थे। उन्होंने  एक सुन्दर और मार्मिक कविता द्वारा  भारत को सोने की चिड़िया का दर्जा देने वाले मूल्यों , सिद्धान्तों, परम्पराओं के साथ साथ , पस्स्पर प्रेम , सद्भावना , अतिथि सत्कार आदि का उल्लेख किया और  कहा कि विदेशियों की बैर प्रवृत्ति के कारण  वह सब जाने  कहाँ लुप्त हो गया।

कृष्णा वर्मा जी ने ने अपनी कविता ‘अनोखा वर्तमान ‘ में बताया की टेकनोलोजी के कारण ऐसा चलन हुआ है कि जो आँगन अतिथियों की हँसी खुशी , मनुहार से चहका करते थे, सब सूने पड़े रहते हैं क्योंकि लोग अपने अपने कमरों में अपने मोबाईल के संग बंद रहना अधिक पसंद करते हैं।

सुषमा रानी जी ने एक लघुकथा के माध्यम से बड़ा सुन्दर संदेश दिया कि चाहे राजा हो या रंक सभी के पास दूसरों को देने के लिए कुछ न कुछ मूल्यवान अवश्य होता है।

योगेश ममगईं जी ने एक सुन्दर कविता द्वारा कहा कि यदि बैर और नफरत का व्यापार न होता, लोग चमड़ी के रंग की जगह लहू के रंग पर विचार करते तो देखते कि हम सब वास्तव में एक ही हैं और परस्पर प्रेम और शांति के अभिलाषी हैं ।

बंदिता सिन्हा जी ने अपनी कविता ‘अंतरिक्ष का सितारा ‘ में राकेश शर्मा के पूर्व अंतरिक्ष मिशन और  सुभांशु शुक्ला के वर्तमान के सफल अंतरिक्ष अभयान की भरसक प्रशंसा की और आशा की कि भविष्य में भी भारत के युवा अंतरिक्ष में  अपना परचम फहरायेंगे, देश को गौरवांवित करेंगे।

डॉ नरेन्द्र ग्रोवर जी ने अपनी कविता द्वारा बचपन में लौट जाने की गुहार लगाई और कहा कि बादलों में हाथी घोड़े ढूढ़ना , तितलियों के पीछे दौड़ना, ऐसे मासूम और आनन्दायक दिनों को हमें कभी नहीं भूलना चाहिए।

पूनम चंद्रा ‘मनु’ ने अपनी कविता द्वारा सुबह का  सुन्दर वर्णन  किया। सूरज का आकाश में मेहँदी घोलना, पंछी का सूरज की किरणों के सहारे चक्कर काटना, हवा का झोंका पाकर दरख्तों का धरा पर फूल बिखेरना, उनके वर्णन का सबने खूब आनन्द लिया।

सीमा पाण्डेय जी ने अपने मृदु भजन से सबका मन मोह लिया। जब कृष्ण गोपियों को छोड़कर वृदावन से मथुरा चले गये तो गेपियों के विरह का बहुत सुन्दर वर्णन भजन में था।

प्रीति अग्रवाल जी ने अपनी लघुकथा ‘हिस्सा’ द्वारा दर्शाया कि तथाकथित धनवान लोग मन से कितने गरीब होते है और निर्धन के मन में सदभावना और परस्पर प्रेम कितना सहज पाया जाता है।

लता पाण्डेय जी ने एक सशक्त कविता के माध्यम से नारी शक्ति का उललेख किया। नारी सौ बार तपती है , टूटती है, वेदनाएँ सहती है, फिर भी बिखरती नहीं है। अपने हृदय में सदा प्रेम और सद्‌भावना के अंकुरों को सुरक्षित रखती है।

अंत में शैलजा सक्सेना जी ने अपनी सदाबहार कविता  ‘अम्मा की कविता’ सुना कर सब को मंत्रमुग्ध कर दिया । मैया के दिए अक्षर, पिता की दी भाषा, और भाई के दिए जोश से बालिका जब शिक्षा अर्जित करती है और फिर कविता को हृदय में लिए, जीवन में आगे बढ़ती है, तो वही कविता उसके लिए धैर्य, प्रेरणा और  संबल का कार्य करती है।

चाय नाश्ते के दौर के बीच साहित्य प्रेमियों ने सुंदर, सार्थक रचनाओं का खूब आनंद उठाया।  शैलजा जी और लता जी ने सभी की उपस्थिति को पुनः सराहा और धन्यवाद दिया। इस प्रकार  सभा का सफलतापूर्वक समापन हुआ।

– प्रीति अग्रवाल

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