डॉ॰ अर्जुन गुप्ता ‘गुंजन’, उत्तर प्रदेश

सावन बड़ा लुभावना

(अवतार छंद)

सावन बड़ा लुभावना,
बादल गरज रहे।
चम-चम चमक रही तड़ित,
शीतल पवन बहे॥
मौसम बड़ा सुहावना,
पंछी चहक रहे।
डोले मरंद पर भ्रमर,
चातक बहक रहे॥

हर्षित कृषक हुआ अधिक,
बरसात देख कर।
मनमोर नाचने लगा,
नवगीत लेख पर॥
कलियाँ बहक-बहक हुईं,
मादक मृदुल बिखर।
पल्लव नवीन झूमते,
नूतन नवल निखर॥

शुचि पुंडरीक नाचता,
मधु है बिखेरता।
चातक पुकारता सदा,
मधु राग छेड़ता॥
तितली सदैव डोलती,
वन में यहाँ-वहाँ।
कोयल सुना रही मधुर,
वाणी जहाँ-तहाँ॥

दादुर पुकारता सदा,
नित टेर मारता।
झींगुर सदैव नाचता,
ध्वनि को उभारता॥
विरहिन कहे पुकारके,
चले आ साजना।
आँगन में नित ढूँढ़ती,
करती उपासना॥














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