एक ‘चीज़’ जिसे कहते हैं प्यार

~ विभा दास-सिंह

हर साल की तरह, फ़रवरी जब भी दस्तख़ देता, जो की मेरे जन्म का महीना, साल का दूसरा महीना, और ‘वैलेंटाइन’ का महीना भी है, मैं अक्सर ये सोचती – प्यार करना और प्यार पाना असल में है क्या? ये ‘चीज़’ जिसे लोग प्यार, मोहब्बत, प्रेम, इश्क़, विश्क़, लव…. और ना जाने क्या क्या बुलाते हैं, आख़िर ये बला है क्या? 

आजकल की ‘हाइपर-कनेक्टेड’ दुनिया में, जहाँ ‘ऑनलाइन लव’ तुरंत मिल जाता है, क्या वहाँ सचमुच में कोई ऐसी चीज़ है जिसे ‘प्यार’ कहा जा सके? क्या ऐसा प्यार मौजूद है जो बिल्कुल शुद्ध हो—बिना मिलावट, बिना सजावट के? क्या यह दुनिया भर में एक जैसा है या फिर ये जगह-जगह के हिसाब से बदल जाता है? क्या यह भाषा, रंग, धर्म, संस्कृति की सारी सीमाओं से ऊपर उठ जाता है?

यह चार अक्षरों का छोटा-सा शब्द हमें सदियों से उलझाता आया है। कवि, कलाकार और लेखक अनादि काल से इस की ओर आकर्षित हुए हैं। यह युद्धों का कारण भी रहा है और शांति का भी। यही शक्ति है जिसने इंसान को उसकी सबसे बड़ी उपलब्धियों तक पहुँचाया, पहाड़ों को हिलाया और गहराइयों को छुआ। विचारकों और वैज्ञानिकों ने हर कोण से इसे समझने की कोशिश की, पर यह आज भी रहस्य ही है— सरल भी और गहरा भी।

हर धर्म की शुरुआत और अंत प्रेम ही है। हर कोई इसे तलाशता है, हर कोई इसकी ज़रूरत महसूस करता है, यह मैंने बहुत जल्दी समझ लिया था। हर जिवित प्राणी — पशु, पक्षी, पेड़-पौधे — सबको इस दुर्लभ प्यार की खुराक चाहिए। इतिहास इसका गवाह है।

जवां सपने

बचपन से जवानी तक, ‘बॉलीवुड’ मेरी रोज़ की खुराख था। मुझे लगता था, प्यार का मतलब है—आँखों में आँखें डालना, पेड़ों के चारों ओर मँडराते हुए गाना-बजाना-नाचना, मोमबत्ती की रोशनी में ‘डिनर’, खुशबूदार गुलदस्ते, दिल के आकार की ‘टॉफ़ियाँ’, लाल गुलाब, रोमांस और शायरी। चाँदनी रात की सैर, तारों को निहारना, हाथों में हाथ डालना, समुद्र किनारे रेत पर चलना, ढलते सूरज को घंटों निहारना, बॉलीवुड के रोमांटिक हिट गाने निरंतर मुस्कुराते हुए सुनना, ‘धीरे धीरे से’ और कभी कभी मेरे दिल में ख़्याल आता है ‘ बेवक़्त यूँ ही गुनगुनाना — ये सब मेरे लिए प्यार, मोहब्बत, प्रेम, इश्क़ विश्क़, ‘लव’ की परिभाषा थे। लगता था, जब किसी इंसान को प्यार होता है तो उसे हर किसी और हर चीज़ से मोहब्बत हो जाती है।

जैसे जैसे मैं बड़ी हुई तो मुझे हर पल, हर मोड़ पे, रोज़ाना किसी ना किसी से प्रेम हो जाता। किसी की कोई अदा, किसी की मुस्कुराहट, किसी का अनोखा अंदाज़, किसी का आकर्षित व्यक्तित्व, किसी की कोई छोटी छोटी सी बात मेरे मन को भा जाती। सच कहूँ तो मुझे प्यार की भावना से ही प्यार था। वो एहसास इतना सुखद, इतना स्वर्गीय था, जिसे शब्दों में बयान करना असंभव है। उस एहसास को सिर्फ़ महसूस ही किया जा सकता है। 

और फिर एक दिन मुझे वाक़ई में प्यार हो भी गया। गहरा, बेकाबू और पागलपन की हद तक। ऐसा प्यार, जब कहीं भी ध्यान लगाना मुश्किल हो जाता है, और प्यार कभी नरक तो कभी स्वर्ग बन जाता है। लेकिन वही आपका सहारा भी बन जाता है। मैं हमेशा से थी  थी, और शायद अब भी हूँ – एक ‘लाइलाज रोमांटिक।’

हक़ीक़त का पाठ

कुछ साल बाद मुझे समझ आया कि प्यार आँसुओं और दर्द से भी भरा होता है। इसमें मेहनत, त्याग और धैर्य चाहिए। अहंकार छोड़ना पड़ता है, ईर्ष्या और असुरक्षा जैसी भावनाओं पर काबू पाना होता है, और अपने भीतर की काली अंधेरी परछाइयों का सामना करना पड़ता है।

बड़े होते-होते मुझे ये समझ आया कि प्यार दरअसल जीवन-भर की यात्रा है। और असली सुख, संतोष और शांति से इसका गहरा रिश्ता है। तब एहसास हुआ कि अगर जीवन में आत्मसखा (‘सोलमेट’) मिल जाए, तो यह सबसे बड़ा आशीर्वाद है।

आत्मसखा का संग

अगर आप भाग्यशाली हैं तो कभी ना कभी ज़िंदगी में आपको कोई ऐसा साथी मिलता है जिसके सामने आपको अपने आप को बदलने की कोई आवश्यकता नहीं रहती। घंटों चुप्पी में भी कोई बोझ नहीं लगता। शब्दों की ज़रूरत नहीं रहती। अपने साथी की  मौजूदगी से ही आप अपने आपको पूर्ण महसूस करते हैं। 

फिर जीवन का सफ़र आसान लगने लगता है। उतार-चढ़ाव, हँसी और आँसू सब मिलकर हल्के हो जाते हैं। नज़रें ही संवाद बन जाती हैं। एक मुस्कान से ही सब कुछ समझ में आ जाता है।

धीरे-धीरे साथ बदलकर एकत्व में परिवर्तित हो जाता है। दो दिल एक ही धड़कन, एक ही लय और एक ही सुर गाने लगते हैं। प्यार की रागिनी आप दोनों को एक कर देती है।

साधारण दिन और प्यार

दिन-रात का साथ, लंबी बातें, बिना सोचे-समझे दिल से बातें करना – सब प्यार का हिस्सा है।

फिर भी ऐसे दिन भी होते हैं जब सब बिखरा बिखरा सा लगता है, गुस्सा आता है, या अकेलापन चाहिए होता है। लेकिन उन दिनों में भी आपका   आत्मसखा (सोलमेट) आपको अपनाता है, आपके क्रोधित रूप में भी। आपके ‘मूड स्विंग्स’ झेलता है, मुस्कुरा कर आपके साथ खड़ा रहता है। उस पल में आपको ये एहसास होता हैं कि आप सचमुच में सबसे भाग्यशाली हैं।

धीरे-धीरे आप एक-दूसरे की पसंद-नापसंद अपनाने लगते हैं। नए शौक़, नए अनुभव और नए विचारों से आप खुद को एक बेहतर रूप में ढालते हैं। और फिर धीरे धीरे प्यार शारीरिक से आगे बढ़कर एक आध्यात्मिक अनुभव बन जाता है।

प्यार और स्वीकार

आप सीखते हैं कि स्वीकृति ही असली ‘रोमांस’ है। जब आप अपने सबसे बुरे रूप में हों और फिर भी कोई आपसे प्रेम करे और आपको पूरी तरह से अपनाए, स्वीकार करे, तो जीवन में एक चमत्कार आ जाता है। आप अपना छोटा-सा संसार बनाते हैं। कुछ नन्हीं प्रतिछवियाँ जन्म लेती है, आपके और आपके साथी की। मातृत्व-पितृत्व आपको निस्वार्थ होना सिखाते है।यक़ीनन बच्चों की चमकती आँखों में भरोसा देखना – इससे बड़ा सुख और कोई नहीं। ये दुनिया बेहद सुंदर लगने लगती है। उम्मीद जगती है। जीवन को नया अर्थ मिलता है। आपको बार बार प्यार होता है, हर दिन, हर पल।

प्यार की विजय

प्यार आपको बहुत ही साधारण सी घटनाओं में भी सुंदरता की झलक दिखाता है। यह आपको उसी रूप में अपनाता है जैसे आप हैं। यह आशा देता है, विश्वास जगाता है, हर गलती मिटाता है, क्षमा कर देता है।

प्यार हमेशा जीतता है। और अब मुझे इस पर पूरा पूरा यक़ीन है—यह अनंत है, मृत्यु से भी परे।

समापन

मैं अक्सर यही प्रार्थना करती हूँ कि प्यार की आग हमेशा प्रज्वलित रहे, तारों और आसमान तक इसकी रोशनी पहुँचे। 

बस, सीधा और आसान सा गणित है — १+१ = प्यार। यही तो हर कोई चाहता है, है न?

मैं प्यार में विश्वास करती हूँ।

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