ध्यातव्य है कि सूचना क्रान्ति के इस युग में डिजिटल प्रणाली समय की मांग के अनुसार अत्यंत कारगर सिद्ध हुई है। पहली जुलाई 2015 को विधिवत आरंभ की गई डिजिटल भारत पद्धति ने मजबूती के साथ लंबी छलांग लगाई है। इसके 10 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में वैश्विक हिन्दी परिवार द्वारा 12 अक्तूबर 2025 को विशेष परिचर्चा आयोजित की गई।

कार्यक्रम की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध वैश्विक भाषा प्रौद्योगिकीविद एवं दुबई में आईसीएएनएन के यूनिवर्सल एक्सेस एम्बेस्डर श्री बालेंदु शर्मा दाधीच द्वारा की गई। उन्होंने कहा कि भारत सरकार की  यह प्रणाली हरित और श्वेत क्रान्ति की तरह सबको साथ लेकर चलने के लिए भारत की शक्ति है जो आखिरी पायदान, अंत्योदय तक पहुंची है। इसके लिए महानगर से सुदूर गाँव -गाँव तक संचार ढांचा उपलब्ध कराया गया है जिससे अपेक्षाकृत बहुत ही कम और अत्यंत सस्ती दरों पर गरीब, जन सामान्य और विद्यार्थी भी समूचे विश्व से जुड़कर लाभान्वित हो रहे हैं। सँपेरों का देश समझा जाने वाला भारत नवाचार के प्रयोग से एआई सुपरपावर बन गया है। विश्व में भारत को देखने की दृष्टि बदली है। भारत में 92% कर्मचारी एआई प्रयोग करते हैं जबकि अमेरिका में 64% हैं। लगभग 4 लाख स्टार्ट अप और 124 यूनिकॉर्न हैं जो 2028 तक 1000 से अधिक हो जाएँगे। हम भारतवासी अपने सश्रम उद्यम से उपभोक्ता की जगह निर्यातक बन गए हैं। इस क्षेत्र में हम लगभग सत्रह लाख नई नौकरियों, 42 लाख किमी डिजिटल फाइबर जाल, दूसरे नंबर पर 200 से अधिक मोबाइल फोन कंपनियों,121 करोड़ मोबाइल कनेक्सन, वैश्विक स्तर पर 50% यूपीआई आदि लेनदेन और विश्व में सबसे तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्था के साथ चौथे स्थान की अर्थ व्यवस्था बन गए हैं। इससे जीने और कारोबार में आसानी तथा डिजिटल गवर्नेस आदि सुगम हो गया है। इसका श्रेय वर्तमान यशस्वी नेतृत्व और सामूहिक सत प्रयत्न है। इस कार्यक्रम में देश -विदेश से अनेक साहित्यकार, विद्वान विदुषी, तकनीकीविद, योग साधक, प्राध्यापक,अनुवादक, शिक्षक, राजभाषा अधिकारी, शोधार्थी, विद्यार्थी और भाषा-संस्कृति प्रेमी आदि जुड़े थे।

       आरंभ में दिल्ली से विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के राजभाषा प्रभारी श्री शिव कुमार निगम द्वारा कार्यक्रम की पृष्ठभूमि सहित सबका स्वागत किया गया। तत्पश्चात भाषा तकनीकीविद श्री उमेश कुमार प्रजापति ने सधे शब्दों में संचालन का बखूबी दायित्व संभाला और वक्ताओं को उनके  संक्षिप्त परिचय के साथ आमंत्रित किया। नीदरलैंड में आमेजन यूरोप के वरिष्ठ प्रबन्धक एवं साहित्यकार श्री मनीष पाण्डेय ने कहा कि कोरोना आपदा को अवसर में बदलते हुए ऑनलाइन शिक्षण, क्यू आर कोड में पुस्तक सामाग्री, वैश्विक स्तर पर वैक्सीन उपलब्धता, भू- लेख, आयुष्मान भारत ,बिजली पानी बिल, मौसम का पूर्वानुमान एवं अन्य अनेक सरकारी योजनाएँ जन -जन तक पहुंची हैं जिनसे पारदर्शिता सहित आशातीत लाभ मिला है। लगभग 22 देशों का दौरा और 16 वर्षों के अनुभव के साथ नेसडेक में परामर्शी बोर्ड सदस्य डॉ॰ प्रसून शर्मा ने मन्तव्य दिया कि डिजिटल भारत के दस वर्ष में नवाचार और उद्यमिता में नए ऊंचे- ऊंचे आयाम स्थापित हुए हैं। लगभग 95% गांवों में ब्रॉडबैंड और 97 करोड़ इंटरनेट के साथ यत्र तत्र सर्वत्र मशीनें बोल रही हैं। भारत में इसके लिए सरकारी व्यवस्था हुई जबकि विदेशों में प्राइवेट कंपनियाँ कार्यरत हैं। यूपीआई से 100 अरब से ऊपर का लेन -देन गाँव -गाँव तक हो रहा है जो आपात संकट मोचक के रूप में भी है। हम अपनी भाषा और संस्कृति को डिजिटल रूप में संरक्षित संवर्धित कर सकते हैं। डेटा संरक्षण भारत को विश्व गुरु बना सकता है।

     विमर्श में जापान से जुड़े पद्मश्री से सम्मानित प्रो॰तोमियो मिजोकामि ने कहा कि जापान में आबादी के हिसाब से आधुनिक अभियन्ताओं की कमी भारत से पूरी होगी और दोनों देशों के संबंध अधिक प्रगाढ़ होंगे। अमेरिका से जुड़े तकनीकीविद श्री अनूप भार्गव ने कहा कि भारत में बाद में शुरू हुई तकनीकी को त्वरित गति मिली। रेलवे बोर्ड के पूर्व राजभाषा निदेशक एवं साहित्यकार डॉ॰ बरुण कुमार ने कहा कि डेटा की सुरक्षा के मद्देनजर सुव्यवस्था आवश्यक है और  देवनागरी को बढ़ावा देना नितांत आवश्यक है। गाजियाबाद से जुड़े दूर संचार अधिकारी श्री ललित भूषण ने कहा कि वित्तीय समावेशन और सीधे खाते में सरकारी भुगतान चमत्कार है। लगभग 5 लाख टावर 5जी के लिए स्थापित किए गए हैं जिससे सवा छ लाख गाँव जुड़े हैं। कैश लेश और पेपर लेश पद्धति में अपार वृद्धि हो रही है। ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान को बढ़ावा मिला है। वर्ष 2047 के सपने को डिजिटल भारत पूरा करेगा।

हैदराबाद से जुड़े बैंक के राजभाषा सेवी डॉ॰ वेंकटेश्वर राव का अभिमत था कि डिजिटल क्रांति ने दुनिया को मुट्ठी में बांध लिया है।दुनिया, भारत को आशाभरी निगाहों से देख रही है। पासवर्ड के साथ अब ओटीपी मजबूत सिस्टम है। वर्क फ़्राम होम बढ़ रहा है। भारत दुनिया के लिए आदर्श बनेगा। आईआईटी खड़गपुर से जुड़े डॉ॰ राजीव कुमार ने कहा कि डिजिटल भारत से सामाजिक और लोकतान्त्रिक ढांचा बदला है। समस्या -समाधान की दूरी कम हुई है। हम कतार से क्लिक तक पहुंचे हैं। डिजिटल असमानताओं और संवेदनशीलता की चुनौतियों से निपटना होगा। पुणे से साहित्यकार स्वरांगी साने ने कहा कि साइबर क्राइम आदि पर नियंत्रण आवश्यक है। दिल्ली से श्री ऋषि कुमार शर्मा का  कहना था कि पहले हम विदेश के रेडियो से किसी तरह जुड़कर सुनते थे। पोस्ट कार्ड से संदेश भेजने के दिन चले गए। अब हमने फ्रांस को भी यूपीआई दिया है। जर्मनी से  जुड़ी डॉ॰शिप्रा सक्सेना ने कहा कि हम क्लाउड नाइन पर हैं और हम सब अपनी सोच के साथ समृद्ध हो रहे हैं। अमेरिका के पेंसिलवेनियाँ से जुड़े आचार्य सुरेन्द्र गंभीर ने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में डिजिटल क्रान्ति अत्यंत आवश्यक है। विदेशी विद्यार्थियों के लिए ऑनलाइन कार्यक्रम निहायत जरूरी हैं।      

    सान्निध्यप्रदाता श्री अनिल जोशी ने कहा कि शिक्षा और भाषा के क्षेत्र में बहुत बड़ा बदलाव दिख रहा है। पॉडकास्ट, वीडियो और रील आदि की बहुलता बढ़ रही है। ई ऑफिस की भाषा बढ़ी है। जो भी दुनिया में श्रेष्ठ है वह अपनाया जाना चाहिए और भाषा की दीवारें झुठलाई जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश के व्याख्यान को उद्घृत करते हुए उन्होने कहा कि 43 हजार में से 37 हजार निर्णय भारतीय भाषाओं में हैं। यूजीसी के अनुसार आगामी तीन वर्षों में भारत की सभी मानक पुस्तकें भातीय भाषाओं में डिजिटलाइज कर दी जाएंगी। वैश्विक हिन्दी परिवार का यह मंच डिजिटल भारत से ही व्युत्पन्न है जो कोरोना संकट में शुरू हुआ। हमारी सभी परियोजनाएँ इसी से चल रही हैं। हमने हिंदीतर भाषी विद्यार्थियों के लिए प्रतियोगिता आयोजित कर तुरंत परिणाम और प्रमाण पत्र डिजिटल प्रणाली से ही दिया। हम हिन्दी एवं भारतीय भाषाओं को दुनिया को ऑनलाइन सिखाने के लिए तैयार हों। यह लंबा और कठिन रास्ता है। हम संकल्प लेकर चलते रहें।  

     यह कार्यक्रम विश्व हिन्दी सचिवालय, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद, केंद्रीय हिन्दी संस्थान, वातायन और भारतीय भाषा मंच के सहयोग से वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष श्री अनिल जोशी के मार्गनिर्देशन में सामूहिक प्रयास से आयोजित हुआ। कार्यक्रम प्रमुख एवं सहयोगी की भूमिका का निर्वहन क्रमशः ब्रिटेन की सुप्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार सुश्री दिव्या माथुर और सुनीता पाहुजा द्वारा किया गया। अंत में गृह मंत्रालय के सहायक निदेशक एवं तकनीकी विशेषज्ञ डॉ॰ मोहन बहुगुणा के आत्मीय कृतज्ञता ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।  यह कार्यक्रम “वैश्विक हिन्दी परिवार, शीर्षक के अंतर्गत “यू ट्यूब ,पर उपलब्ध है।

रिपोर्ट लेखन – डॉ॰ जयशंकर यादव

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