नई दिल्ली। 24 नवंबर 2025; साहित्य अकादेमी द्वारा आज प्रख्यात हिंदी नाटककार एवं रंगकर्मी दया प्रकाश सिन्हा की स्मृति में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। सबसे पहले दया प्रकाश सिन्हा की पुत्री आचार्या शून्या द्वारा भेजा गया संदेश पढ़ा गया, जिसमें उन्होंने कहा कि मेरे पिता साहित्य जगत के उसी उजाले से बने थे, जिसकी लौ आज इस आयोजन में प्रज्वलित है। मेरे पिता का नाट्य लेखन केवल मनोरंजन नहीं था – वह इतिहास, संस्कृति और मानवीय गहराईयों का एक सजीव संवाद था। दया प्रकाश सिन्हा केवल एक नाम नहीं बल्कि एक प्रवाह था जो आने वाली पीढ़ियों को दिशा देता रहेगा।

संगीत नाटक की अध्यक्ष संध्या पुरेचा ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए उस समय को याद किया, जब वे उन्हें अपनी नाट्यशास्त्र पर लिखित मराठी पुस्तक भेंट करने गई थी। उन्होंने उन्हें एक दर्पण के रूप में याद किया, जिसमें उन्होंने समाज की संवेदनाओं, सच्चाइयों और गहराइयों को नाटकों के रूप में प्रस्तुत किया। उनका लेखन और जीवनदर्शन एक ही था। उन्होंने उनकी उपस्थिति को ऐसे आशीर्वाद के रूप में देखा जो हर किसी को जीवन में ऊँचाइयों तक ले जाने में सहायक होता है।

साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने उनके साथ बिताए अपने समय को याद करते हुए कहा कि उन्होंने नाटक और साहित्य के बीच अद्भुत संतुलन तैयार किया। वे इतिहास में व्यक्ति निर्माण के उन कारणों को ढूँढते थे जिसके कारण वह आदमी अपना स्वभाव ग्रहण करता है। वह भारतीय साहित्य और संस्कृति के सबसे बड़े राजदूत थे। उन्हें संपूर्णता में एक बड़ा लेखक माना जा सकता है।

साहित्य अकोदमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा ने, जो सभा में ऑनलाइन जुड़ीं, ने कहा कि उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था। वह जीवन भर मनुष्यता के लिए लड़े और अपने जीवन में भी उसको साकार किया। वे केवल नाटक से ही नहीं, बल्कि अन्य कलाओं से भी वृहतर संदर्भों से जुड़े कलाकार थे। उन्होंने संस्कृति से भारतीयता के बोध को जोड़ा।

अनिल जोशी ने उन्हें एक दुर्लभ सांस्कृतिक प्रशासक के रूप में याद करते हुए कहा कि उन्होंने संस्कृति को केंद्र में लाने के लिए कड़ी मेहनत की। वह एक बड़े कद के नाटककार थे, जिन्होंने मिथक, पुराण, इतिहास की पुनर्व्याख्या की। सुमन कुमार ने उनके स्वभाव में बच्चे की ललक को याद करते हुए कहा कि वह हमेशा वह नए परिवेश की तलाश में रहते थे और वह हमेशा नए-नए सकारात्मक पक्षों पर नजर रखते थे। वे हर किसी को प्यार और सम्मान देते थे।

संजीव सिन्हा ने उन्हें सांस्कृतिक प्रश्नों पर खुलकर बोलने वाले एक साहसिक विचारक के रूप में याद किया, जिनकी सोच पश्चिम की बजाय भारतीयता से ओत-प्रोत थी। शैलेश श्रीवास्तव ने उनके स्नेहपूर्ण व्यवहार को याद करते हुए कहा कि वे सबको मित्रवत् सम्मान देते थे। उन्होंने अपनी रचनाधर्मिता से सबको प्रभावित किया और इसी से वह हम सबके बीच हमेशा रहेंगे। प्रताप सिंह ने उनके यात्रा संस्मरणों के उत्कृष्ट गद्य पर टिप्पणी करते हुए याद किया। कार्यक्रम के अंत में सभी ने उनके प्रति एक मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी।

शोक सभा में दया प्रकाश सिन्हा के दामाद सोमेश रंजन भाँजी ज्योति एवं नाती सारंग सहित अनेक लेखक और नाट्यकर्मी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन अकादेमी के उपसचिव देवेंद्र कुमार देवेश ने किया।

-पल्लवी प्रशांत होळकर

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