दिनांक 23.11.2025 को नई दिल्ली के राजघाट स्थित ‘सन्निधि संगोष्ठी’ के सभागार में काकासाहेब कालेलकर एवं विष्णु प्रभाकर की स्मृति को समर्पित गांधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा एवं विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान के संयुक्त तत्वावधान में पुस्तक-चर्चा (‘सौ मतले, सौ शेर’ – वयम से जुड़े 5 शायरों की सीरीज) और शरद काव्य गोष्ठी का भव्य आयोजन किया गया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता का दायित्व प्रतिष्ठित गीतकार और गज़लकार श्री बाल स्वरूप राही के सुपुर्द रहा। संबंधित पुस्तकों पर बीज वक्तव्य प्रदान करने के लिए डॉ वेदमित्र शुक्ल एवं मुख्य वक्ता के तौर पर श्री प्रमोद शर्मा ‘असर’ मंचासीन रहे। 

संचालन का आरंभिक कार्यभार गांधीवादी समाजसेवी श्री प्रसून लतांत के कुशल हाथों में रहा, जिसमें उन्होंने संस्थाओं की ऐतिहासिक पहलुओं और कार्य-कलापों पर प्रकाश डालते हुए स्वागत उदबोधन के माध्यम से दृष्टिगोचर प्रस्तुत करते हुए रूपरेखा सहित रेखांकित किया। तत्पश्चात्, क्रमबद्ध तरीके से मंचासीन विभूतियों को अंगवस्त्र ओढ़ाकर एवं भेंट स्वरूप उपहार प्रदान करके सम्मानित किया गया। अगले क्रम में, कार्यक्रम की रूपरेखा को रेखांकित करने के लिए श्री अतुल विष्णु प्रभाकर ने अपने उदबोधन के माध्यम से आरंभिक वक्तव्य दिया।

तदोपरांत, कार्यक्रम के निर्धारित प्रथम सत्र ‘पुस्तक-चर्चा’ का आगाज़ करने के लिए श्री अनिल वर्मा ‘मीत’ को संचालन का दायित्व सौंपा। सत्र को गतिमान करते हुए संचालक ने श्री विनय विक्रम सिंह को मां सरस्वती वंदना की प्रस्तुति के लिए आमंत्रित किया, जिन्होंने अवधी भाषा में अपनी मधुर वाणी में वाचन किया। तत्पश्चात्, क्रमबद्ध तरीके से माननीय विभूतियों को पुस्तक-चर्चा पर अपने-अपने वक्तव्यों के लिए आमंत्रित किया गया।

प्रथम सत्र के स्वागत उदबोधन में श्री ताराचंद ‘नादान’ ने पांच शायरों की ‘सौ मतले, सौ शेर’ सीरीज के क्रियान्वयन की पृष्ठभूमि पर विषय-वस्तु की विस्तृत व्याख्या करते हुए कुछ अनकहे अनसुने अनछूए पहलुओं पर प्रकाश डाला और पांच शायरों की इस सीरीज की क्रियान्विति प्रक्रिया को अनुसंधानित करके यह आप सभी के समक्ष प्रस्तुत हुई है।

डॉ वेदमित्र शुक्ल ने अपने बीज वक्तव्य के माध्यम से अवगत कराया कि यह एक उत्सव का अवसर है। इन पुस्तकों के माध्यम से आज की गज़ल का संसार हम सबके सामने उपस्थित हो जाता है। आज की गज़ल में व्यवस्था से टकराने, प्रेम की बात, पीड़ा का एहसास, मनुष्य की संवेदनाओं को हमारे समक्ष प्रस्तुत करने की क्षमता है। स्वर्गीय डॉ रामदरश मिश्र की ग़ज़लें चमत्कृत नहीं करती, स्पंदित करती हैं। वेद का संग्रह वेदना की अभिव्यक्ति है। आज के परिदृश्य को समझने वाले गज़लकार हैं। यह जीवन से जुड़े शेर और मतले हैं, जिन्हें हम जब भी पढ़ेंगे, जीवंतता का अनुभव महसूस करेंगे।

श्री प्रमोद शर्मा ‘असर’ ने मुख्य वक्ता के तौर पर अपने वक्तव्य में कहा कि इन पुस्तकों का क्रियान्वयन श्री ताराचंद ‘नादान’ की मेहनत का परिणाम है। बाकी लोग तो लिखकर भूल चुके थे। इसलिए वह धन्यवाद के पात्र हैं। गलती हो भी जाए, तो व्यक्तिगत तौर पर अवगत कराई जा सकती है। श्रृंगार के माध्यम से अभिव्यक्त किया है, जैसे गीतकार शैलेंद्र अपने गीतों में व्याख्यायित करके व्यक्त किया करते थे। पांचों संग्रह में पहला शेर और पहला मतला सर्वश्रेष्ठ हैं। शशिकांत का रचनाधर्म बहुत ही प्राकृतिक है। कोई बनावटी ताना-बाना नहीं है। श्री शशिकांत के सृजन में सिद्धि में ही प्रसिद्धि है। यही उनकी सरलता है। श्री नरेश शांडिल्य को गज़ल सम्राट कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

श्री बाल स्वरूप राही ने स्पष्टीकरण दिया कि नाम ज़रूर ‘नादान’ है, लेकिन वह बहुत ही समझदार इन्सान हैं। पांचों शायरों की चुनिंदा और श्रेष्ठतम रचनाओं को चयनित और संकलित करने का यह अनूठा और नायाब तोहफा है। उनके इस समर्पण भाव की जितनी प्रशंसा की जाए, वह कमतर ही रहेगी। अपनी वाणी को विराम देने से पूर्व उन्होंने अपने समेत पांचों पुस्तकों में से अपने पसंदीदा कुछ शेर और मतले भी जनसमुदाय के समक्ष प्रस्तुत किए। श्री नरेश शांडिल्य द्वारा धन्यवाद और आभार व्यक्त करने के साथ इस प्रथम सत्र का सत्रावसान हुआ। 

तुरंत ही, अगले चरण में निर्धारित द्वितीय सत्र के अंतर्गत शरद काव्य गोष्ठी का शुभारंभ किया गया, जिसमें मंचासीन शायर और गज़लकार विभूतियों सहित मंच के सम्मुख सभागार में उपस्थित कवियों एवं कवयित्रियों ने क्रमबद्ध आमंत्रण के आधार पर समयावधि को संज्ञान में लेते हुए अपनी श्रेष्ठतम रचनाओं के काव्यपाठ से श्रोता-दीर्घा में विराजमान सभी विद्वतजनों श्रीमती अनुराधा अतुल प्रभाकर, श्रीमती अर्चना प्रभाकर, डॉ पूरनसिंह, नरेश शांडिल्य, ताराचंद ‘नादान’, शशिकांत शर्मा, विनय विक्रम सिंह, अरविंद शर्मा ‘असर’, कुमार सुबोध, कुसुम शानू, डॉ संजीव दीक्षित ‘बेकल’, श्रीकांत सिंह, बीना छाबड़ा, कुलीना कुमारी, बाल कीर्ति, नीरज चौहान, जगमोहन सिंह रावत, सुशील नुडाकोटि’ शैलांचली’, स्मिता मालवीय, श्रवण कुमार, धमिन्द्र कुमार इत्यादि को भाव-विभोर करके मंत्र-मुग्ध तो किया ही, वहीं अपनी-अपनी प्रस्तुतियों पर गड़गड़ाती करतल-ध्वनि के माध्यम से समूचे वातावरण को वाह-वाही के उदघोषों द्वारा गुंजायमान करने पर विवश कर दिया। इसी सत्र के दौरान अपने उदगार एवं अपनी रचना के काव्यपाठ से पूर्व श्री नीरज चौहान ने अपने व्यक्तिगत खज़ाने से निकालकर एक अविस्मरणीय एवं अमूल्य स्मृतियों के चित्रों का संकलित चित्र माननीय श्री बाल स्वरूप राही जी को भेंट स्वरूप प्रदान किया।

द्वितीय सत्र का सत्रावसान होने पर सभागार में देश के विभिन्न शहरों से पधारे सभी विद्वतजनों एवं आगंतुकों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए धन्यवाद और आभार ज्ञापित करने के साथ यह भव्य आयोजन सम्पन्न हुआ।

— कुमार सुबोध, ग्रेटर नोएडा वेस्ट।

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