लक्ष्मी का आवास और प्रवास

जब कृपा हो लक्ष्मी मैया की,
धन का अम्बार है लग जाता ।
सोने-चाँदी, नौकर-चाकर,
से पूरा घर है भर जाता ।१।

यदि चँचल मन की यह देवी,
किसी कारण से रुष्ठ हो जाये ।
फिर बड़े बड़े सेठों की तो,
भिक्षुक सी हालत हो जाये ।२।

सपने में करोड़ी सेठ को जब,
लक्ष्मी ने यह सन्देस दिया ।
मेरा तुझसे, रिशता खत्म हुआ,
पार गँगा जा नाता जोड़ लिया ।३।

जहाँ बाट जोह रहा है मेरी,
हलवाई फ़कीरा ग़रीबी में ।
ओर काट रहा वो दिन अपने,
भुखमरी और बद-नसीबी में ।४।

डर से कि यह सपना सच न हो,
सारी दौलत, सेठ ने इकट्ठी करी ।
और महल की छत की कड़ियों में,
जा छुपा चैन की साँस भरी ।५।

देखूँ छोड़ कहाँ तू जायेगी,
तुझे बाँध के मैं ने रक्खा है ।
मैं हूँ स्वामी तेरा, तू मेरी चाकर,
बन्धन यह हमारा पक्का है ।६।

अगले दिन बादल घिर आये,
वर्षा का बहुत प्रकोप हुआ ।
वह महल गिरा, कड़ियाँ बह गयीं,
ओर गँगा पार किनारा छुआ ।७।

इक मल्लाह ने, कड़ियाँ इकट्ठी करीं,
और रस्सी से बाँध, बनाई गठरी ।
जाके बेचा रुपये में फ़कीरा को,
पूरे दिन की यह अपनी दिहाड़ी करी ।८।

लकड़ियों को चीरने की ख़ातिर,
हलवाई ने कुल्हाड़ी जब मारी ।
छन छन छन करती अशर्फियों से,
भर गई दुकान, उस की सारी ।९।

इधर सेठ का हाल हुआ पतला,
पड़ गये खाने के भी लाले ।
सोचा, शायद फ़कीरा को मिलने से,
खुल जायें मुक्कदर के ताले ।१०।

दो रोटी ले, गँगा तट पहुँचा,
मल्लाह से विनीत सवाल किया ।
क्या पार ले चलोगे मुझको ?
उसी पार, जहाँ मेरा भाग्य गया ।११।

मैं तो पार ले चलूँगा तुम को,
क्या भाड़ा तुम्हारी जेब में है ? ।
बस, दो रोटी मेरे पास में हैं,
और कुछ भी नहीं मेरी जेब में है ।१२।

मल्लाह ने इक रोटी लेकर,
गँगा को उसने पार किया ।
जहाँ सेठ ने जा हलवाई को,
पूरा अपना सब हाल कहा ।१३।

सुन सेठ की दुःखी कहानी को,
हलवाई ने मन में ठान लिया ।
वापस मैं करूँगा इसका धन,
जिस ने है न इसका साथ दिया ।१४।

दो बड़े बड़े लड्डू लेकर,
अशर्फ़ियों से, उनको खूब भरा ।
दे देना मिठाई यह बच्चों को,
यह कह के उसने विदा करा ।१५।

चला सेठ बहुत भारी मन से,
यह सोच, फ़कीरा कसाई निकला ।
जिसने न दिखाई तनिक सी दया,
दो लड्डू दे, मुझ को दफ़ा किया ।१६।

गँगा पे मिला फिर वही मल्लाह,
उसने फिर से, वही सवाल किया ।
क्या भाड़ा तुम्हारी जेब में है ?
या फ़कीरा ने तुम को माल दिया ।१७।

बस दो लड्डू मेरे पास में हैं,
इक तुम लेलो, इक मैं रख लूँ ।
घर में बच्चे भूखे होँगे,
इक लड्डु से भूख मिटा डालूँ ।१८।

यदि पार उधर तुम्हें जाना है,
दोनों लड्डू देने होंगे ।
मुझे खाली, उधर से आना है,
दो भाड़े तुम्हें देने होंगे ।१९।

जब आया नहीं, कोई चारा नज़र,
दोनों लड्डू मल्लाह को दिये ।
और खाली हाथों वापस आ,
अपने भाग्य से, समझौते किये ।२०।

इधर मल्लाह ने, आकर यह सोचा,
क्या करूँगा मैं इन लड्डूओं का ? ।
सीधे जाकर, उन लड्डूओं को,
हलवाई को उस ने जा बेचा ।२१।

लक्ष्मी का कहना सच्चा था,
जहाँ रहना है, वहाँ जाना है ।
यह बारिश, मल्लाह, लकड़ियों का,
बस केवल एक बहाना है ।२२।

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-विजय विक्रांत

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