मन मानस में बसे राम 

वैश्विक हिन्दी परिवार द्वारा सहयोगी संस्थाओं सहित 13 अक्तूबर 2024 को राम नवमी के उपलक्ष्य में “मन मानस में बसे राम” विषय पर चिंतन-मनन-मंथन और अनुश्रवण हुआ। इसकी गरिमामयी अध्यक्षता करते हुए मध्य प्रदेश के सेवानिवृत्त अपर मुख्य सचिव एवं साहित्यकार श्री मनोज कुमार श्रीवास्तव जी ने दशहरे की शुभकामनाएँ दीं और बड़े ही संयत भाव से कहा कि पृथ्वी के तुमुल कोलाहल में रामजी का अवतार हुआ। रामजी मन मानस में बसे हैं क्योंकि उन्होने वनवास, पत्नी-हरण और लक्ष्मण शक्ति-बाण जैसी बिना रियायत की अनेक परीक्षाएँ पार करते हुए मर्यादा सहित श्रम से शांति का रास्ता तय किया। रामजी ने मानवीय भाव दशाओं सहित जन-मन के सम्मान सहित, पशु पक्षियों से भी अगाध प्रेम के साथ संवाद किया। “हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी। तुम देखी सीता मृग नयनी॥” सहज ही दृष्टिगोचर है। रामजी ने रावण को मारने के लिए सत्तासीनों का संग लेकर अयोध्या से सेना नहीं मंगाई या केवल बाली का ही साथ नहीं लिया बल्कि बंचितों को हक दिलाने हेतु बहुत कठिन रास्ता अपनाया और “जन सामुदायिकता, पर ज़ोर दिया तथा बिना नुश्खे के सबको जिम्मेदारियाँ देते हुए जनतान्त्रिक प्रक्रिया अपनाई। रामजी की बुनियाद पर प्रहार नासमझी है। मर्यादापुरुषोत्तम रामजी ने लोकाराधन सहित रामराज की स्थापना की। कुशल प्रशासक एवं 38 पुस्तकों और सुंदरकांड के 18 खंडों के प्रणेता विद्वान श्रीयुत श्रीवास्तव ने सलाह दी कि अच्छा जीवन जीने वालों को एक साथ मिलकर सत प्रयत्न करना चाहिए। राम समूचे जगत में व्याप्त हैं। विभिन्न देशों में प्रामाणिक अस्तित्व के अलावा इटली के रोम का स्थापना दिवस भी राम नवमी के दिन आता है। इस अवसर पर देश-विदेश से सैकड़ों विद्वान-विदुषी और भाषा प्रेमी तथा धर्मानुरागी जुड़े थे। 

आरम्भ में सिंगापुर नेशनल यूनिवर्सिटी की हिन्दी-तमिल विभागाध्यक्ष प्रो.संध्या सिंह द्वारा आत्मीयता से आगत और अभ्यागत का स्वागत किया गया। उन्होने हाल ही में दरस-परस  की गई अपनी जन्म भूमि काशी और अयोध्या में रामजी के अद्भुत दर्शन को जन मानस के सौभाग्य से जोड़ा। स्पेन में हिन्दी गुरुकुल की संस्थापक एवं लेखिका डॉ.पूजा अनिल द्वारा श्रद्धा भक्ति सहित संचालन का शालीन ढंग से दायित्व निर्वहन किया गया एवं वक्ताओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए सादर आमंत्रित किया गया। हिन्दी राइटर्स गिल्ड कनाडा की सह-संस्थापक और वैश्विक परिवार की वेबसाइट की संपादक तथा सुप्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार डॉ. शैलेजा सक्सेना ने कहा कि दुनियाँ में ‘हरि सर्वत्र’ हैं। जीवन में शुरुआत से अंत तक  “राम नाम स्मरण किए जाते हैं। हम जन-जन जैसा श्रेष्ठ होना चाहते हैं वैसा प्रभु कृपा से हो जाते हैं।” हम रामजी के हैं और रामजी हमारे हैं। रामजी हमेशा शील और सौन्दर्य सहित समभाव में रहते थे। सिंहासन मिलने से लेकर वनवास के आदेश तक भी स्थितिप्रज्ञ रहे। वाल्मीकि रामायण और तुलसीकृत श्रीरामचरितमानस में अनेक संवेदनशील मानवीय प्रसंग हैं। ‘हरि अनंत हरि कथा अनंता’।  ‘एक घरी ,आधो घरी,आधो में पुनि आध’ हमें राम नाम स्मरण करते रहना चाहिए।

वक्ता के रूप में राम कथा से सन्नद्ध दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो.विनय विश्वास ने कहा कि रामजी में जन जीवन बसा है इसलिए जन जन में राम हैं। पारिवारिकता को जाने बिना भारतीयता को जानना अधूरा है जो सर्वोत्कृष्ट ग्रंथ ‘श्रीरामचरितमानस’ में आद्योपांत विद्यमान है। पारिवारिकता में पाने और खोने का मणिकांचन योग रहता है। रामजी अहंकार रहित ‘कोटि मनोज लजावन हारे’ हैं। उनमें शील के साथ संकोच भी है। सहज भाव से भरा ‘धनुष भंग’ का प्रसंग अद्भुत है जहाँ वे सीताजी की आँखों में उतरकर हृदय में बस जाते हैं एवं आगे की औपचारिकताओं में लेश मात्र भी विलंब नहीं चाहते हैं। रामचरित पर शोध निर्देशक एवं लेखक डॉ॰ विश्वास ने राम वन गमन,सीता हरण, जटाऊ मरण, जीव जन्तु संग, शबरी प्रसंग, लक्ष्मण शक्ति-बाण और त्याग-तपस्या एवं बलिदान के उद्धरण देकर जन मानस में बसे राम को चरितार्थ किया।

त्रिनिदाद निवासी और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी में वीक्षणरत प्रो. डॉ. इंद्राणी राम प्रसाद का मन्तव्य था कि ज्योति पुंज रामजी का रहस्य राम जी ही जानते हैं। बिना रघुनाथ जी के जीवन निरर्थक है। रामचरितमानस के प्रसंग पग-पग पर हमारे जीवन का समुचित मार्गदर्शन करते हैं जो डायस्पोरा के लिए भी श्रेयस्कर हैं। उन्होने  “शिव द्रोही मम दास कहावा। सो नर सपनेहु मोहिं न भावा॥” इस प्रसंग को विशेष रूप से समझाया। उन्होने भारत और त्रिनिदाद में की जाने वाली रामलीला के कुछ  तुलनात्मक तथ्य रखते हुए इसे अंग्रेजी में भी अनुवाद करने की सलाह दी और सदिच्छा प्रकट की कि हमें रामजी से सीख लेकर राष्ट्रभक्ति,मैत्री,सहयोग और आपसी भाईचारा आदि आदर्श रूप में कायम रखना चाहिए।

समूचा कार्यक्रम विश्व हिन्दी सचिवालय, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद, केंद्रीय हिन्दी संस्थान,वातायन और भारतीय भाषा मंच के सहयोग से वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष श्री अनिल जोशी के टीम संयोजन में आयोजित  हुआ। इस अवसर पर श्री जोशी जी ने सबका समादर करते हुए आगामी 17 अक्तूबर से वैश्विक हिन्दी परिवार द्वारा संचालित की जाने वाली “विदेशी छात्रों हेतु हिन्दी शिक्षण की एक सप्ताह की कार्यशाला”  से लाभान्वित होने का आग्रह किया। उन्होने यह भी अवगत कराया कि विश्व हिन्दी दिवस के अवसर पर आगामी 10 से 12 जनवरी 2025 को नई दिल्ली में “अंतरराष्ट्रीय भारतीय भाषा सम्मेलन” आयोजित करने का कार्यक्रम निश्चित हुआ है। कार्यक्रम प्रमुख की सजग भूमिका का बखूबी निर्वहन ब्रिटेन की सुप्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार सुश्री दिव्या माथुर द्वारा भक्तिभाव से किया गया जिससे देश विदेश के भाषा प्रेमियों और धर्मानुरागियों का ज्ञानार्जन हुआ और अनुभव की राममयी ऊर्जामय आँच पहुंची। प्रभु की कृपा भयउ सब काजू और थाईलैंड में हिन्दी की प्राध्यापक डॉ. शिखा रस्तोगी के कृतज्ञता ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। रामजी और रामनवमी से संबन्धित यह विशेष कार्यक्रम “वैश्विक हिन्दी परिवार, शीर्षक के अंतर्गत “यू ट्यूब पर उपलब्ध है।

रिपोर्ट – डॉ. जयशंकर यादव

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