काश!

-पूजा अनिल

मारीसा किसी तरह उठ कर अपने कमरे से निकल कर किचन की तरफ जाने लगी।  पंद्रह कदम का फासला तय करने मे बड़े कष्ट के साथ उसे पंद्रह मिनट से अधिक समय लग गया। जबकि सांतीआगो कुछ देर पहले ही वहाँ से उठ कर दवा लेने गया था। उस से कह कर गया था कि एकदम जल्दी लौट आएगा। लेकिन इस बीच मारीसा को बड़ी तेज खांसी होने लगी और उसे पानी पीने की आवश्यकता महसूस हुई तो वह स्वयं ही उठ कर रसोई मे पानी लेने को उद्यत हुई।

बस तीन महीने पहले की ही तो बात थी जब सब कुछ ठीक चल रहा था। किसे पता था कि उसका सुखमय जीवन इस तरह अचानक अवरुद्ध हो जायेगा!

एक दिन काम से घर लौटते समय मेट्रो की रेलिंग पकड़े हुये अचानक उसे चक्कर आ गए। किसी तरह घर पहुंची तो बुखार था। अगले दिन तो बड़ी ही असहाय स्थिति मे उसे डॉक्टर के पास ले जाया गया जहां उसे कोविड पॉज़िटिव बताया गया और कहा कि  लंग्स मे इन्फ़ैकशन के चलते इन्हे अस्पताल मे भर्ती करना होगा। तब किसे पता था कि उसे करीब पचास दिन अस्पताल का मेहमान बना दिया जाएगा। उन दिनों मे उसे भी होश कहाँ रहता था! अस्पताल के बेड पर बेसुध पड़े हुये कोई उस से मिलने आया या नहीं, उसे तो यह भी नहीं मालूम। इतने दिनों तक दुनिया भर की केबल्स और मशीन्स से जुड़ी हुई वह पता नहीं सोई रहती थी या जागी रहती थी, उसे ज़रा भी याद नहीं। वह कहती है कि उसने बहुत से दृश्य देखे इस बीच लेकिन वे स्वप्न थे अथवा सत्य, उसे बिलकुल भी स्मृति नहीं है। 

बस इतना मालूम है उसे कि अब उसका सम्पूर्ण मांसपेशी तंत्र शिथिल हो चुका है। अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए उसे बच्चों की तरह हाथ पकड़ कर नित्य प्रशिक्षण दिया जाता है। हाथ से कोई वस्तु पकड़ पाने के लिए हाथों और बाँहों की मालिश की जाती है। कपड़े बदलने के लिए, अपनी रोज़ की आवश्यकताओं के लिए उसे सांतीआगो को बुलाना पड़ता है। खाने पीने मे अब उसकी पसंद नापसंद का कोई महत्त्व नहीं रह गया। जो कुछ डॉक्टर ने लिखा है, अगले कुछ महीनों तक बस वही बेस्वाद भोजन उसे दिया जाएगा। साथ मे दवाइयाँ भी।

उसे याद है उसकी मित्र ने अपने जन्मदिन पार्टी मे उसे बुलाया था जिसे वह मना नहीं कह पाई। सांतीआगो के बहुत मना करने के बावजूद उसने उसकी बात नहीं मानी यह कह कर कि बूढ़े और बीमार लोगों को खतरा है, मैं अभी जवान हूँ, स्वस्थ हूँ, निश्चिंत रहो, मुझे कुछ नहीं होगा। अब उसे याद आ रहा है कि उसकी आठ अन्य सहेलियाँ भी पॉज़िटिव घोषित की गईं थीं। उनमे से सात तो एक हफ्ते अथवा दस दिन मे ही ठीक हो गईं किन्तु एक की मृत्यु हो गई, वह उस वाइरस से नहीं लड़ पाई। काश कि उसकी सहेली ने जन्मदिन मनाने का लोभ न किया होता! काश कि उसने भी सांतीआगो की बात मान ली होती! सोचा जाये तो क्या फर्क पड़ता यदि इस साल सभी उत्सव स्थगित कर दिया जाएँ! हम सब स्वस्थ रह कर अधिक प्रसन्नता से अगले वर्ष मिल जुल कर मना लेते सारे उत्सव!  

उसे याद आया वह दृश्य जिस दिन अस्पताल से घर आई थी तो उसके ठीक होने की खुशी मे उसे विदा करते हुये डॉक्टर और नर्स पंक्तिबद्ध खड़े होकर उसे ताली बजा कर विदा कर रहे थे। उसके साथ एकाध मशीन भी यहाँ उनके घर चली आई। जैसे कि ऑक्सिजन मशीन। सांतीआगो दिन रात उसकी देखभाल मे लगा रहता था। परिवार के बाकी सदस्य अब उसके पास आने से कतराते थे। सब कहते थे तुम ठीक हो जाओ फिर आएंगे तुमसे मिलने। वह अब ठीक है, उसकी रिपोर्ट मे नेगेटिव लिखा है लेकिन कोई भी उस से मिलने नहीं आ पाया। मानसिक पीड़ा कहने को अथाह थी और सुनने के लिए कोई भी नहीं था। माँ पापा भी बस विडियो पर देख कर सब्र कर रहे थे। यह सब सोचते सोचते वह रसोई तक तो पहुँच गई किन्तु अचानक उसका ध्यान भंग हुआ और शारीरिक कमजोरी से उसे पुनः चक्कर आ गए। वह वहीं धम्म से गिर पड़ी।

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