
श्री गुरु गोबिंद सिंह महाविद्यालय कॉलेज ऑफ कॉमर्स में प्रथम राष्ट्रीय शीतकालीन भाषा संगोष्ठी
दिल्ली विश्वविद्यालय से सम्बद्ध श्री गुरु गोबिंद सिंह कॉलेज ऑफ कॉमर्स में ‘डिजिटल युग में भाषा और साहित्य’ विषय पर प्रथम राष्ट्रीय शीतकालीन भाषा संगोष्ठी सम्पन्न हुयी। संस्कृत के उत्कृष्ट विद्वान एवं साहित्यकार भर्तृहरि के अनुसार अनेक विषयों के विशद ज्ञान होने के बावजूद भी साहित्य, संगीत एवं कला से विहीन मनुष्य पशु के समान होता है। इसी रिक्तता को भरने के लिए महाविद्यालय की सेमिनार समिति ने वाणिज्य, अर्थशास्त्र व कम्युटर विज्ञान के साथ-साथ विद्यार्थियों, प्रवक्ताओं तथा जनमानस के चहुमुखी विकास हेतु भाषा साहित्य उन्मुखी इस संगोष्ठी का आयोजन किया। समय की गति, परिवर्तित परिस्थितियों एवं जीवन शैली ने डिजिटल परिवेश को अधिक प्रासंगिक बना दिया है।

कार्यक्रम के समन्वयक डॉ. वैभव पुरी ने गोष्ठी विषय की संक्षिप्त जानकारी देते हुए समिति की ओर से समय-समय पर चलाई जाने वाली गतिविधियों के बारे में अवगत कराया। महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफेसर जतिन्दर बीर सिंह ने अपने स्वागत भाषण में डिजिटल युग में बढते अवसर और उभरती चुनौतियों पर चर्चा की ।
गवर्निंग बॉडी के चैयरमेन सरदार एम.पी.एस. चड्ढा ने अपने भाषण में कहा कि डिजिटल दुनिया ने हमारे जीवन को सरल और सहज बना दिया है, किंतु समग्र ज्ञान का समुचित प्रसार और मस्तिष्क में उसका स्थायी स्थापन एक बहुत बड़ी चुनौती है। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि दिल्ली विश्वविद्यालय के अंग्रेजी के विभागाध्यक्ष, प्रो. अनिल कुमार अनेजा ने डिजिटल क्रांति को भाषा तथा साहित्य के लिए एक बहुत बड़ा वरदान माना है। उनके अनुसार तकनीकी सुधार का यह परिणाम शिक्षा, और व्यापार को निरन्तर बढ़ा रहा है। तत्पश्चात दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष, प्रोफेसर कुमुद शर्मा ने अपने उद्बोधन में डिजिटल तकनीकि क्रांति के सकारात्मक एवं नकारात्मक परिणामों पर अनेक प्रश्न खड़े किये। उन्होंने इस नए युग में शब्द, अर्थ तथा भाषा के महत्त्व पर बल दिया। उनके अनुसार भारतीय सनातन संस्कृति की जड़े इतनी गहरी हैं कि, डिजिटल युग द्वारा प्रदत्त सार्वभौमिक मंच से होने वाले प्रतिकूलातात्मक परिणाम स्वतः निरस्त हो जाते हैं।

इस सत्र के अंतिम व पंजाबी भाषा-साहित्य विद् ,दिल्ली विश्वविद्यालय के पंजाबी विभाग के विभगाध्यक्ष, प्रोफेसर कुलवीर गोजरा ने अपने संबोधन में बताया कि बदलते तकनीकि युग में संवेदना, स्नेह और मूल्यों को बचाना, शिक्षकों व अभिभावकों की सामूहिक जिम्मेदारी है, जिसे व्यक्तिगत मेल-मिलाप से ही संरक्षित किया जा सकता है। साहित्य अकादमी, भारत सरकार तथा भारतीय भाषा केन्द्रीय संस्थान, भारत सरकार के सौजन्य से आयोजित इस समारोह में दिल्ली विश्वविद्यालय समेत अनेक विश्वविद्यालयों संस्थानों के प्रवक्ताओं तथा शोधार्थियों ने त्रिभाषा के त्रिवेणी संगम में उत्साह से भाग लिया।

उद्घाटन सत्र के उपरांत तीनों भाषाओं के समानान्तर सत्र में निर्णायक मंडल के समक्ष शोध-पत्र वाचन हुआ। हिंदी सत्र का संचालन महाविद्यालय की हिंदी विभाग प्रभारी, डॉ. मीनाक्षी रानी ने किया तथा इस सत्र की अध्यक्षता डॉ. राकेश कुमार और डॉ. संगीता वर्मा के द्वारा किया गया। सभी प्रतिभागियों ने उक्त विषय पर अपने शोध-पत्र प्रस्तुत किए। हिंदी में सर्वश्रेष्ठ शोध-पत्र के लिए श्री गुरु नानक देव खालसा कॉलेज के हिंदी विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. राज कुमार शर्मा के आलेख को चुना गया । तीनों सत्रों के सर्वश्रेष्ठ शोध-पत्र प्रस्तोताओं को दिल्ली विश्वविद्यालय के कला संकाय के पूर्व अधिष्ठाता, हिंदी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष एवं वरिष्ठ प्रो. मोहन द्वारा पुरस्कृत कर प्रणाम पत्र दिया गया। उक्त संगोष्ठी के समापन सत्र में महाविद्यालय की सेमिनार समिति के समन्वयक डॉ. वैभव पुरी ने निकट भविष्य में भी इसी तरह के भाषा और साहित्य से जुड़े विषय पर सेमिनार के आयोजन की बात कही।

रिपोर्ट लेखन – डॉ. मीनाक्षी रानी, विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग।
श्री गुरु गोबिंद सिंह कॉलेज ऑफ कॉमर्स
दिल्ली विश्वविद्यालय।