
एर्नाकुलम के सेंट पीटर्स महाविद्यालय-कोलेंचेरी में हिंदी की त्रिदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी – ‘गिरमिटिया और आदिवासी साहित्य : लोकतांत्रिक संवाद और सांस्कृतिक पहचान‘
एर्नाकुलम के सेंट पीटर्स महाविद्यालय-कोलेंचेरी में संयोजिका डॉ सिंधू टी.आई. के नेतृत्व में आयोजित हिंदी की त्रिदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी – ‘गिरमिटिया और आदिवासी साहित्य: लोकतांत्रिक संवाद और सांस्कृतिक पहचान’ – में रेडियो बर्लिन इंटर्नैशनल-जर्मनी के भूतपूर्व संपादक उज्ज्वल कुमार भट्टाचार्य ने उद्घाटन सत्र में ‘आधुनिकता के संदर्भ में प्रवासी हिंदी साहित्य’ पर और मैंने बीज वक्तव्य दिए।

यह मेरे लिये एक अविस्मरणीय अनुभव रहा, विशेषतः इसलिए भी कि जर्मनी, श्रीलंका, लंदन, नीदरलैंड, हैदराबाद, शिलांग, जयपुर, बनारस, दिल्ली, रांची और केरल के प्राध्यापकों और लेखकों से संवाद करने का एक नायाब मौका मिला, दर्जनों छात्र-छात्राओं/शोधार्थियों के साथ दिन रात का उठना बैठना एक अलग सा ही अनुभव रहा, बेहद आत्मीय किंतु अनुशासित (लगा कि हमारा भविष्य सुरक्षित हाथों में है)। रेडियो बर्लिन इंटर्नैशनल-जर्मनी के भूतपूर्व संपादक उज्ज्वल कुमार भट्टाचार्य ने उद्घाटन सत्र में ‘आधुनिकता के संदर्भ में प्रवासी हिंदी साहित्य’ पर और मैंने बीज भाषण दिया।

प्रो आशीष त्रिपाठी और राकेश कुमार सिंह जी के सान्निध्य में मुझे कई पर्यटक और दर्शनीय स्थलों को देखने का भी अवसर मिला। सूर्यास्त देखा, चटपटा खाया पिया, बीच पर घूमते मच्छरों ने मेरे खून का भी स्वाद चखा; सिवा उनके, मैं सबको बहुत मिस कर रही हूँ। प्रो अरविंदाक्षण जी, प्रो रवि भूषण जी, रणेनद्र जी, डॉ भरत प्रसाद जी, हरमन पैलीयथ जी, प्रो ससिधरण जी, पूर्णिमा जी, डॉ मंजुनाथ जी, शशि मुदिराज जी, निरोषा जी, डॉ संजयन, पी रवि जी, विनोद जी, ज़ेहरा जी, उज्ज्वल भट्टाचार्या जी, डॉ उरसेम जी, विशाल विक्रम सिंह आदि कितने ही प्राचार्यों, लेखकों और कार्यक्रताओं से भेंट हुई, आदिवासी और गिरमिटया साहित्य के विषय में ज्ञानवर्धक जानकारी मिली। सभी शोध छात्र-छात्राओं के नाम याद नहीं, किंतु उनके मुसकुराते चेहरे अब भी मेरी आँखों के सम्मुख घूम रहे हैं, श्री श्रीनिवासन को पहले से ही जानती थी, क्रिस पी जार्ज और सभी संचालकों ने प्रभावित किया।

मेज़बानी की तो क्या ही कहूँ, प्रतिभागियों के एक इशारे पर सरल और सहज साबू जी की दौड़ भाग, हराभरा परिवेश, सुंदर वातावरण, स्वादिष्ट भोजन – सम्मेलन बेहद सफल हुआ; सबसे बड़ी बात कि कोई कमी नहीं खली, दिलो दिमाग में अनगिनत मीठी स्मृतियाँ ऊधम मचाए हैं।

उद्घाटन सत्र में मैं उपस्थित नहीं थी इसलिए प्रो रवि भूषण जी के भाषण ‘भारतीय साहित्य और भारतीय लोकतंत्र’ और महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के भूतपूर्व प्रति-कुलपति प्रो ए अरविंदाक्षन के बीज वक्तव्य ‘हिंदी और मलयालम साहित्य’ को लेकर ‘साहित्य की लोकतांत्रिक उन्मुखताएँ’ नहीं सुन पायी।






सौभाग्यशाली हूँ कि मुझे आप सबका इतना प्यार और सम्मान मिला। अंतरराष्ट्रीय भाषा सम्मेलन-दिल्ली अथवा अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेले के दौरान यदि आप दिल्ली आयें तो अवश्य संपर्क करें।
शुभकामनाओं सहित एवं सस्नेह,
– दिव्या माथुर, वातायन-यूरोप
