
नृत्य कला के सूक्ष्म सौंदर्य का मनोहारी प्रदर्शन: दिव्या शर्मा के कत्थक मंच प्रवेश के माध्यम से परंपरा का उत्सव
लेखक: हितेन मिस्त्री, अनुवाद-वंदना मुकेश | प्रकाशित तिथि: 12.12.2024 | श्रेणी: मंच प्रवेश, कत्थक
स्थान: मिडलैंड आर्ट सेंटर, बर्मिंघम – शनिवार, 14 सितंबर 2024
मिडलैंड्स आर्ट्स सेंटर (MAC) में प्रवेश करते ही माहौल में मौजूद उत्साह ने मुझे दिल्ली या चेन्नई के सभागारों की जीवंतता की याद दिला दी। यह विशेष अवसर बर्मिंघम में पली-बढ़ी और अब न्यूकैसल में रहने वाली दिव्या शर्मा के कत्थक मंच प्रवेश का था। दिव्या पेशे से दंत चिकित्सक हैं। वे सोनिया साबरी जैसी महान कत्थक गुरु की पहली और इकलौती शिष्या हैं, जिन्होंने अपना मंच प्रवेश प्रस्तुत किया। यह कार्यक्रम असाधारण था। इसमें दिव्या ने सोनिया साबरी की विशिष्ट शैली के माध्यम से जो प्रतिबद्धता, कठिन परिश्रम और सूक्ष्म परिपक्वता का प्रदर्शन किया, वह सहजता से अर्जित नहीं किया जा सकता। दिव्या के इस प्रदर्शन में वर्षों की निष्ठा, अभ्यास, दृढ़ता और कत्थक के प्रति गहरी श्रद्धा झलक रही थी, विशेष रूप से सोनिया साबरी की विशिष्ट शैली को दिव्या ने आत्मसात कर लिया था। गुरु के प्रति दिव्या की असीम श्रद्धा को उनके नृत्य प्रदर्शन में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता था।
जैसा कि उद्घोषक ने बताया, गुरु के प्रति सम्मान और निष्ठा का भाव ही दिव्या की कत्थक यात्रा का प्रेरणा स्रोत था। स्पेन में विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई के साथ-साथ उन्होंने अपनी छुट्टियों के दौरान अपना अभ्यास जारी रखा और रियाज़ के लिए समय निकाला। जीवन की अनेक गतिविधियों के मध्य नृत्य के प्रति दिव्या का समर्पण अनुकरणीय है।
दक्षिण एशियाई नृत्य समुदाय के अग्रणी कलाकारों और समर्थकों जैसे पियाली रे, चित्रलेखा बोलार, अत्रेयी भट्टाचार्य आदि की उपस्थिति ने यह संकेत दिया कि यह एक असाधारण अनुभव होगा, और दिव्या ने सचमुच इस उम्मीद को पूरा किया। आमतौर पर, जब हम मंच प्रवेश की कल्पना करते हैं, तो हमारे मन में युवा नर्तकियों की पहली बार बड़े मंच पर कदम रखने की छवि आती है। जबकि, दिव्या शर्मा की प्रस्तुति किसी भी दृष्टि से एक नवोदित कलाकार की नहीं लगी। उनके नृत्य ने एक अनुभवी कलाकार की गरिमा और परिपक्वता को प्रदर्शित किया, जिसमें लगभग दो घंटे तक शीर्ष स्तर के कत्थक का उत्कृष्ट प्रदर्शन देखने को मिला। उनकी प्रस्तुति की गहराई, शिल्प की सूक्ष्मता और विशिष्टता ब्रिटेन में दुर्लभ अनुभवों में से एक थी।
यह कार्यक्रम पारंपरिक एकल कत्थक प्रस्तुतियों से अलग थी, हालांकि प्रदर्शन की संरचना में भक्ति, प्रेम- विरह, अभिनय-प्रधान/अर्ध-शास्त्रीय और ताल पर आधारित रचनाएँ शामिल थीं, लेकिन वे परंपरागत कत्थक से हटकर थीं। जिन्हें आज के कई नर्तक शायद पहचान भी न पाएँ। प्रस्तुति दो भागों में विभाजित थी:
पहले भाग में “नमः”, “होरी”, “ठुमरी” और “तराना” जैसे रचनाएँ शामिल थीं। दूसरा भाग केवल तीन ताल पर केंद्रित किया गया, जिसमें दिव्या के पैरों की तीव्र और समृद्ध लयकारी कला का प्रदर्शन हुआ।
शाम की महत्ता को और बढ़ाने वाला था दिव्या के नृत्य पर उनके बड़े भाई पुलकित शर्मा का तबले पर साथ। पेशे से यूजऱ एक्सपीरियंस डिज़ाईनर पुलकित विश्व विख्यात तबला उस्ताद सरवर साबरी के शिष्य हैं। उन्होंने पहली बार कत्थक नृत्य पर तबला की संगत प्रदान की। दर्शक दिव्या के नृत्य में दिख रही परिपक्वता और अभिव्यक्तिपूर्ण प्रस्तुति के साथ उनके भाई की तालबद्ध अभिव्यक्तियों के बीच सुंदर सामंजस्य को सहज अनुभव कर सकते थे।
हालाँकि मैं कत्थक का विशेषज्ञ नहीं हूँ, लेकिन इसे समझने और सराहने का अवसर मुझे कई महान कलाकारों के प्रदर्शन को देखने से मिला है। सोनिया साबरी की कत्थक परंपरा अच्छन महाराज से शुरू होती है, जिन्हें महाराज गुलाम हुसैन कत्थक ने प्रशिक्षित किया। यह परंपरा लखनऊ घराने की परिपक्वता से जुड़ी है, जहाँ नाहिद सिद्दीकी ने पंडित बिरजू महाराज जी से प्रशिक्षण प्राप्त करके अपनी अनूठी शैली विकसित की। सोनिया साबरी ने इस परंपरा को अपनाते हुए अपनी विशिष्ट शैली बनाई, जो दिव्या के प्रदर्शन में बखूबी दिखी। दिव्या का प्रदर्शन न केवल सोनिया साबरी की कला का सौंदर्य प्रस्तुत करता है, बल्कि उन सभी महान कलाकारों की प्रेरणाओं को भी दर्शाता है जिन्होंने सोनिया साबरी को प्रभावित किया।

हालाँकि मैं कत्थक का विशेषज्ञ नहीं हूँ, लेकिन मैं एक कला प्रेमी के रूप में यह समझ सकता हूँ, क्योंकि मुझे इस कला के कुछ महान कलाकारों को देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। सोनिया साबरी की कत्थक परंपरा अच्चन महाराज से उत्पन्न होती है, सोनिया साबरी की गुरु प्रसिद्ध कत्थक नृत्यांगना नाहिद सिद्दीकी हैं, जो महाराज गुलाम हुसैन कत्थक की शिष्या थीं। यह परंपरा लखनऊ घराने से जुड़ी हुई है, जहाँ सिद्दीकी ने अपनी शिक्षा को और समृद्ध किया और पंडित बिरजू महाराज जी से प्रशिक्षण लेकर अपनी अनूठी शैली का निर्माण किया।सोनिया साबरी ने अपनी कत्थक यात्रा के दौरान इस शैली को अपनाया नृत्य की शास्त्रीय और तकनीकी बारीकियों को समझा और विकसित किया और अपनी एक अलग पहचान बनाई, जिसे मैंने दिव्या के प्रदर्शन में सच्चे मन से सराहा। यह उनके इन प्रभावों से मजबूत संबंध को दर्शाता है। दिव्या का प्रदर्शन सोनिया साबरी के सौंदर्यशास्त्र को प्रदर्शित करता है और उन विभिन्न प्रेरणाओं का अनुभव कराता है जो सोनिया साबरी को प्रभावित करने वाले महान कलाकारों से आई हैं।
जैसे ही दिव्या ने नृत्य किया, इन गुरुओं की आत्मा वास्तव में जीवंत हो उठी। सुंदर ढंग से नृत्य करते हुए, उनकी मुद्राएँ और अवस्थाएँ ऐसी थीं कि जैसे वे अपने चारों ओर के आयामों को चुनौती देती हों। प्रत्येक मुद्रा हाथों और बाहों के खिंचाव ने स्थान के भीतर संबंध बनाए, जो पर्दों, दीवारों और भी आगे तक फैलते हुए प्रतीत हो रहे थे। मैंने इसे एक अद्भुत भ्रम के रूप में संदर्भित किया, जहाँ रेखा, गति, उद्देश्य, और शास्त्रीय भारतीय नर्तकी की आंतरिक आध्यात्मिकता साधारण से सरल नृत्य को एक साथ शाश्वत और क्षणिक अनुभव में बदल देती है, जिससे कत्थक नृत्य गहनता और परिवर्तनकारी क्षमता वाला बन जाता है।
शर्मा के अभिनय और अभिव्यक्तिपूर्ण कथा-कथन में इसी तरह का प्रभाव निहित था। उनकी मुद्राएँ प्राणवान थीं और उनका अभिनय केवल अभिनय नहीं था, बल्कि कथा का अनुभवजन्य अभिव्यक्ति था। मुझे दिव्या के नृत्य में हाव- भाव की प्रभावपूर्ण प्रस्तुति आनंददादायिनी लगी। हाव तकनीकी भागीदारी को दर्शाता है जो कल्पना को जीवन्त बनाता है, जबकि भाव नर्तकी द्वारा अनुभव की गई सूक्ष्म भावनाओं को प्रदर्शित करता है। इसके लिए उनकी गुरु, सोनिया साबरी को श्रेय दिया जाना चाहिए, जिन्होंने दिव्या में इस महत्वपूर्ण गुण को उजागर किया।
उद्घाटन कृति, ‘नमः’ में, पहले हाथी के कान की मुद्रा में भगवान गणेश की भव्य उपस्थिति महसूस की जा सकती थी, जो धीमी, नियंत्रित थी और नृत्य करते गणपति की गम्भीर भव्यता से भरी हुई थी। ध्रुपद से प्रेरित, ‘नमः’ दिव्या के लिए विशेष रूप से तैयार किया गया थी ताकि वह कत्थक के सबसे चुनौतीपूर्ण पहलुओं में से एक को प्रदर्शित कर सकें, जो साबरी के लिए विशिष्ट है—न्यूनतम आंदोलन और मुद्राओं का धीमे और स्थिर रूप से विस्तार। आजकल कत्थक आमतौर पर केवल तीव्र गति और आंदोलनों की अधिकता पर केंद्रित होता है। दिव्या की संतुलित और सधी भावाभिव्यक्ति ने आगे की प्रस्तुति के आरंभ के लिए स्वर निर्धारित किया।
अपने अभिनय में ‘होरी’ की प्रस्तुति में, दिव्या ने अपने उस मित्र से बातचीत को सुंदर तरीके से चित्रित किया, जिससे वह कृष्ण के साथ होली खेलने का वर्णन कर रही थीं।
दर्शकों ने बारिश और गर्जना की अनुभूतियाँ काव्यात्मक और रूपकात्मक तराना के माध्यम से अनुभव किया। सोनिया साबरी ने जितनी कुशलता से कोरियोग्राफ़ किया,दिव्या ने उतने ही शानदार तरीके से प्रदर्शन किया।
कलाकार की शारीरिक अभिव्यक्ति कथा को जीवंत बना देती है, जिससे दर्शक चित्रित किए जा रहे भाव (भाव) और सौंदर्य (रस) में डूब जाते हैं
प्रस्तुति के पहले भाग में प्रत्येक रचना ने दर्शकों को शुरुआत से अंत तक एक यात्रा पर ले जाया। जब एक कलाकार अपना अहंकार किनारे रखता है कलाकार की शारीरिक अभिव्यक्ति कल्पना को जीवंत बना देती है, स्थान एक कैनवास में बदल जाता है, जिससे दर्शक भाव और रस के आनंद में लीन हो जाते हैं। दिव्या ने भाव और रस के इस आपसी आदान-प्रदान को सफलतापूर्वक प्रदर्शित किया दिव्या अपने अभिनय में विनम्रता के महत्वपूर्ण सार को आत्मसात करती हैं, जो उनकी परिपक्वता और एक अत्यधिक कुशल नर्तकी के रूप में उनकी स्पष्ट उपलब्धियों को दर्शाता है। उन्होंने प्रत्येक पात्र को सम्मान और ईमानदारी के साथ निभाया, और प्रदर्शन स्थल में सुंदरता और गरिमा के साथ अपनी गति का पालन किया।यह कला के प्रति उनकी उस गहराई को प्रदर्शित करता है, जहाँ तकनीकी कौशल और भावनात्मक गहराई दोनों का समागम होता है। 15 मिनट के छोटे अंतराल के बाद, दिव्या ने दूसरे भाग की शुरुआत ‘तीन ताल’ से की। धीमी, मापी हुई शैली में, उसने विलंबित लय वाली रचनाओं में डूबते हुए, नियंत्रण और आत्मविश्वास दोनों का प्रदर्शन किया। जैसे ही उसने मध्य लय वाली रचनाओं का प्रदर्शन किया, जिसमें पारंपरिक उस्तादों,अच्छन महाराज और बिरजू महाराज के परन, टुकड़े और लड़ियाँ शामिल थीं, विभिन्न शैलियों का प्रभाव सोनिया की विशिष्ट शैली में मिलकर एक हो गया। दिव्या ने अपनी पकड़ पा ली, और जैसे ही उसने द्रुत लय में तेज गति में संक्रमण किया,उसने जटिल ताल पैटर्न और एक प्रभावशाली चढ़ाव को प्रदर्शित किया। इस खंड में उनके भाई के साथ तबला पर प्रश्न और उत्तर के रूप में एक जटिल जुगलबंदी शामिल थी। पुलकित ने उनकी गुरु, सोनिया साबरी की सटीक पढ़ंत के साथयाथ दिव्या के तेज गतिवाली लेकिन मधुर बोलों की पढ़ंत की प्रस्तुति के साथ ताल-मय सुंदरता प्रदान की।

अंत में, दिव्या ने पारंपरिक कत्थक के अपने अभिनय में असाधारण शालीनता, अद्भुत कलात्मकता, गरिमा और अद्वितीय तकनीकी कौशल का प्रदर्शन किया, और इस कला रूप के सभी प्रमुख पहलुओं में उच्च स्तर की दक्षता दिखाई। यह रिपोर्ट कार्यक्रम के दो महीने बाद लिखी गई । लेकिन दिव्या के नृत्य की प्रभावशाली अभी भी मेरी यादों में एकदम ताज़ा हैं। मैं सीतल कौर को इस लेख में उनके योगदान के लिए धन्यवाद देना चाहता हूँ। मेरा विश्वास है कि दिव्या द्वारा प्रदर्शित असाधारण प्रतिभा आगे भी बनी रहे। अपने दंत चिकित्सक करियर के साथ-साथ, वह लखनऊ घराने की धरोहर का संवर्धन करें। जीवन की भागदौड़ में कहीं इस अमूल्य कला को खो न दें। सोनिया साबरी की परंपरा को ब्रिटेन में आगे बढ़ाएँ। मैं उम्मीद करता हूँ कि वह अपना नृत्य जारी रखेंगी, और अधिक से अधिक लोगों को पारंपरिक कत्थक को अपनाने में उसी गहराई और ईमानदारी के साथ प्रेरित करेंगी, जैसा कि उसने अपने मंच प्रवेश में प्रदर्शित किया। दिव्या शर्मा जैसी असाधारण नृत्य कलाकार ‘ब्रिटिश साउथ एशियन डांस’ के परिदृश्य में अधिक अवसरों और मंचों की आवश्यकता को उजागर करते हैं। हमारे क्षेत्र, संगठनों और धन वित्तीय सहायता प्रदानकरने वाले आयोजको को पारंपरिक और समकालीन नृत्यों को बढ़ावा देना चाहिए। कलाकारों के लिए नवोन्मेषी और भविष्यदृष्टि मंचों का विकास करना चाहिए। दिव्या जैसी प्रतिभाशाली कलाकारों को जीवन की कठोर वास्तविकताओं में खो जाने नहीं देना चाहिए (जैसा कि हम अतीत में कई को खो चुके हैं), जो अपर्याप्त समर्थन, पहचान, महत्वाकांक्षी पहल विकास और प्रदर्शन के लिए उचित मंचों की कमी के कारण हुआ है।
अनुवाद- वंदना मुकेश
फोटो क्रेडिट – साइमन रिचर्डसन