श्रीनाथ विश्वविद्यालय-जमशेदपुर द्वारा आयोजित आठवाँ अंतरराष्ट्रीय हिंदी महोत्सव

डॉ कुमुद शर्मा जी के साथ यात्रा करना और रहना हमेशा ही सुखद होता है; दिल्ली से फ़्लाइट लेकर हम रात 8 बजे रांची के बिरसा मुंडा एयरपोर्ट पर पहुंचे, जहां श्रीकांत यूनिवर्सिटी के एक प्रतिनिधि की कार में हम 2 घंटे की यात्रा कर जमशेदपुर पहुँचे। रास्ते में, हमने एक छोटे से दक्षिण भारतीय भोजनालय में खाना खाया, जो एक खड़ी सीढ़ी के ऊपर था, जिसके बाहर ही एक चरपिंग-ट्री था, जिसकी डालियों पर सैंकड़ों नन्हें नन्हें पक्षी चहचहा रहे थे, जो पेड़ के पत्तों जैसे थे। बिल्कुल ऐसा ही एक पेड़ ब्रिटेन के फ़ोर्कस्टन शहर में भी है; एक ही पेड़ पर सारे के सारे पक्षी क्यों चहचहाते हैं? जैसे आजकल हमारे युवा पश्चिमी गायकों के कार्यक्रमों में उमड़े पड़ते हैं। हमें साकची विहार में स्थित एक अच्छे और आरामदायक कैनलाइट होटल में दो रातों के लिए ठहराया गया। हमारे साथ ही ठहरे थे बनारस हिंदु विश्वविद्यालय के डॉ सदानंद शाही जी और डॉ प्रभाकर सिंह जी।

सुबह हमारी समन्वयक रचना श्रीकांत दस बजे पहुँची तो हमें फ़िक्र हुई कि हमें पहुँचने में देर हो जाएगी। रचना जी ने कहा ‘चिंता न करें, कार्यक्रम हमारे पहुँचने के बाद ही शुरू होगा।’ गृहस्वामिनी की संपादिका अपर्णा संत सिंह जी के पहुंचते ही हम दो कारों में लदेफदे चल पड़े; सड़क संकरी और बुरी तरह टूटी हुई थी किंतु इस विशाल कॉलेज के अंदर पहुंचते ही सब पक्का, साफ़ सुथरा था, सड़क के दोनों ओर पारंपरिक वेशभूषा में युवा छात्र नाच रहे थे, रोली चावल से हम सबके टीके किये गए। इसके उपरांत हमें खूबसूरती से सजाए गए एक विशाल पंडाल में ले जाया गया, जहां सैकड़ों छात्रों ने गर्मजोशी से हमारा स्वागत किया; बेहद मीठी चाय और जलपान परोसा गया। मंच को इलेक्ट्रॉनिक तरीके से मैनेज किया गया था, विश्वविद्यालय के युवा कुलपति सुखदेव महतो और कौशिक मिश्रा, कार्यक्रम परिकल्पना और प्रबंधक, जो बहुत सुंदर मैचिंग धोती-कुर्ते पहने थे, मेहमानों का स्वागत कर रहे थे। सभी मेहमानों का मंच पर ढोल और शंखनाद की ध्वनि के साथ औपचारिक रूप से स्वागत किया गया, उन्हें ढेर सारी चीजें उपहार में दी गईं, जिनमें एक पारंपरिक शॉल, बॉक्स्ड शील्ड, चित्र और एक पौधा शामिल था।


कौशिक मिश्रा जी के संचालन में उद्घाटन सत्र का महत्वपूर्ण विषय सामायिक भी था ‘युवाओं के भावी जीवन को सशक्त बनाने में हिंदी की भूमिका’ कुछ घंटे देर से आरंभ हुआ, जिसके प्रतिभागी डॉ कुमुद शर्मा और मेरे अतिरिक्त अरुणांचल प्रदेश की डॉ मोरजुम लोयी भी थीं। आज युवाओं के लिए हिंदी में करियर बनाने की अपार संभावनाएं हैं क्योंकि आज भारत समूचे विश्व के आकर्षण का केंद्र है। उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनुवाद, शिक्षा, फ़िल्मों, मीडिया, साहित्य, संस्कृति जैसे क्षेत्रों में क्षेत्र में प्रचुर अवसर मिल सकते हैं, अच्छे संवादकर्ता पॉडकास्ट, ब्लौग के माध्यम से वे शोहरत और पैसा कमा सकते हैं। दिलचस्प रहा विमर्श, जिसमें कृत्रिम बुद्धिमता द्वारा निर्मित चंद्र और बिन्दु ने हमसे कई सवाल किये। उसके बाद, कॉलेज के बड़े से आँगन में सटाल्स पर पारंपरिक भोजन का आनंद लिया।

सुबह से देर रात तक एक साथ कई कार्यक्रम और प्रतियोगिताएं जारी थीं – व्यंग्य कविता, लोरी लेखन, अंताक्षरी, नुक्कड़ नाटक, कविता से कहानी तक, वाक चातुर्य, सूचना सृजन, ब्लाग लेखन, रेडियो, लोकगीत, मुद्दे हमारे विचार आपके, मुखड़े पर मुखड़ा, दीवार सज्जा इत्यादि, जिनका आनंद हम न ले सके, समय ही नहीं था, अगली सुबह 10 बजे हमें फ़्लाइट पकड़नी थी किंतु उसके पहले बनारस हिंदु विश्वविद्यालय के डॉ सदानंद शाही जी और डॉ प्रभाकर सिंह जी से लौबी में रोचक बातचीत हुई, तब तक मोरजुम लोयी और उनकी विद्यार्थी भी हमारे साथ थीं। उन सबके साथ साकची बाज़ार घूमा, जो दिल्ली की जामामस्जिद जैसा भीड़ भाड़ वाला इलाका है। मोरजुम लोयी के इसरार पर हमने झालमूरी खाई, फिर एक प्रसिद्ध मिठाई की दुकान के स्वादिष्ट लड्डू और दालबीजी खाई। लौटते वक्त हमने चाँदनी में नहाई जामा मस्जिद देखी, जो सफ़ेद ताजमहल जैसी लग रही थी। रात का स्वादिष्ट भोजन हम सबने साथ किया, देर रात तक गप्पें मारीं, फिर झटपट सामान बांध कर सो रहे; फ़्लाइट पकड़ने के लिए हमें सुबह छै बजे राँची के लिए निकालना था। 

– दिव्या माथुर

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