वैश्विक हिंदी परिवार – भारतीय भाषाओं की वैश्विक उड़ान

वैश्विक हिंदी परिवार वैश्विक स्तर पर हिंदी की सबसे व्यापक और प्रभावशाली संस्था है। इसमें 70 से अधिक देशों के विद्वान, शिक्षाविद् और लेखक शामिल हैं। हिंदी पट्टी के प्रमुख लेखकों के साथ ही भारत की विभिन्न भाषाओं में हिंदी से जुड़े लेखक, विद्वान इसमें सक्रिय सहभागी हैं। इसकी विशेषता इसकी दुनिया के सर्वाधिक देशों में उपस्थिति, भाषा के महत्वपूर्ण विषयों पर समझ -सकारात्मक भागीदारी – महत्वपूर्ण परियोजनाओं का कार्यान्वयन है। यह एक और संस्था नहीं, दुनिया भर की हिंदी संस्थाओं का समावेशी संगठन है। यह एक मिशन है। इसे संचालित करने वाली टीम पिछले चार दशकों से विश्व स्तर पर दुनिया में हिंदी का नेतृत्व कर रही है। भारत में हिंदी के साथ अन्य भारतीय भाषाओं को व्यावसायिक शिक्षा के क्षेत्र में ले जाने में इस संस्था का महत्वपूर्ण योगदान है।हिंदी लेखन और हिंदी शिक्षण के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान कर इस समूह ने गुणवत्तापूर्वक योगदान किया है। डॉ पद्मेश गुप्त और श्रीमती इंदिरा वडेरा व अन्य हिंदी सेवियों ने हिंदी के लिए सचिवालय विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। वैश्विक भाषा के रूप में हिंदी और भारतीय भाषाओं को सृमद्ध और सशक्त करना हमारा उद्देश्य है।

इसके लिए हम बहुमुखी प्रयास कर रहे हैं। विश्व में हिंदी के हज़ारों लेखकों / विद्वानों को हमने अपने साप्ताहिक रविवारीय कार्यक्रम से जोड़ा है। यह कार्यक्रम पिछले साढ़े चार वर्षों से अबाध गति से चल रहा है। यह भाषा के किसी आयाम पर केन्द्रित रहता है।

आज का दौर डिजिटल है। दुनिया से जुड़ने के लिए सोशल मीडिया एक प्रमुख माध्यम है।दुनिया में हिंदी की कोई प्रमुख बैबसाइट नहीं है। दुनिया के हिंदी के रचनाकारों के लिए हमारी वैबसाइट vaishvikhindi.com विश्व की हिंदी गतिविधियों के समन्वय का सबसे बडा केन्द्र वन गया है।

आज समय बदल रहा है। शिक्षण की गतिविधियों को भौतिक से डिजिटल मोड पर ले जाने से उसकी पहुँच सैंकड़ों से हज़ारों, लाखों तक पहुंच सकती है। विशेषज्ञों की योग्यता का लाभ दूर तक पहुँच सकता है। यह डिजिटल संसाधनों के उत्कृष्ट प्रयोग का माध्यम बन सकता है। देश विदेश के प्रोफ़ेसरों और विशेषज्ञों की बौद्धिक क्षमता के उपयोग के साथ यह नए युग की माँग है। हमने इसमें पहल की है और प्रत्येक वीरवार को विद्यार्थियों के लिए एक हिंदी शिक्षण की कार्यशाला का आयोजन किया जाता है। इसका संयोजन हिंदी का एक प्रमुख विद्वान करता है। पिछले माह दक्षिण कोरिया मूल की विद्वान प्रोफेसर ने इसका संयोजन किया। इस कार्य को और सशक्त करने व इसकी पहुँच बढ़ाने के लिए हमारी टीम निरंतर कार्य कर रही है। हम हिंदी के वैश्विक मानक पाठ्यक्रम की दिशा में भी काम कर रहे हैं  जिसमें सरकार की महत्वपूर्ण संस्थाओं का सहयोग मिल रहा है।

माननीय प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में भारत सरकार ने और समाज ने अपनी सोच की दिशा बदली है। आज भारतीय भाषा शब्द सबकी ज़ुबान पर है। शिक्षा में इसे महत्वपूर्ण स्थान मिला है। व्यावसायिक शिक्षा में यह अपनी जगह बना रहा है। अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद, उच्च शिक्षा आयोग, जोधपुर आई .आई .टी के प्रयत्न इस दिशा में प्रशंसनीय हैं। भारत सरकार ने भारतीय भाषा दिवस भी घोषित किया है। उपनिवेशीकरण के खिलाफ यह महत्वपूर्ण संकल्पना है। हमें यदि स्व की तलाश करनी है। भारत की ज्ञान परंपरा की गंगोत्री को पाना है। आधुनिकता का विरासत से तालमेल बिठाना है। जलवायु प्रदूषण को समझना है। प्रौद्योगिकी का स्वामी बनना है, दास नहीं तो हमें भारतीय भाषाओं को अपनी जीवन शैली का आधार बनाना होगा।

अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद डायसपोरा के क्षेत्र में लंबे समय से काम कर रही प्रमुख संस्था है।  डायसपोरा के विकास, भारत से उसके संबंध, उसकी क्षमताओं के उपयोग की दृष्टि से यह प्रमुख संस्था है। स्वर्गीय बालेश्वर अग्रवाल से लेकर श्री श्याम परांडे तक विविध क्षेत्रों में डायसपोरा के लिए इसने महत्वपूर्ण काम किया है। डायसपोरा के बदलते स्वरूप और उसकी प्रतिभा को भारत से जोड़ने का काम यह प्रभावी तरीक़े से कर रही है। भाषा और संस्कृति के क्षेत्र में इसका कार्य महत्वपूर्ण है। श्री नारायण कुमार जैसे भाषा सेवी की सेवाएँ इसे निरंतर प्राप्त हैं। श्री विनोद कुमार, राजदूत  व विदेश सेवा के अनुभवी लोग इससे निरंतर जुड़े हैं। भाषा और संस्कृति के क्षेत्र में कार्यरत यह संस्था वैश्विक हिंदी परिवार का भी केन्द्रीय कार्यालय भी है। डायसपोरा के भाषा पक्ष पर वैश्विक हिंदी परिवार का ज़ोर है। अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद और वैश्विक हिंदी परिवार भारतीय भाषाओं की वैश्विक उपस्थिति और उसे सशक्त बनाने के लिए निरंतर प्रयत्नशील है। यह आयोजन उसका प्रतिफल है।

हमें भाषा मित्र की संकल्पना विकसित करनी होगी। अपनी भाषाओें को जीवन से जोड़ना होगा। हमारे हस्ताक्षर, नाम पट्ट, सोशल मीडिया, जीवन शैली में उसके प्रयोग को बढ़ाना होगा।  परिवार में उसको महत्व देना होगा। अपनी भाषाओं को सशक्त बनाने के लिए भाषा के किसी एक क्षेत्र को समय और ऊर्जा देनी होगी। शिक्षण, लेखन, अनुवाद और प्रौद्योगिकी ऐसे क्षेत्र हो सकते हैं। हमें सप्ताह में कम से कम तीन घंटे इस कार्य को देने चाहिंए। यह बहुत मुश्किल नहीं है। यही भाषा मित्र की संकल्पना है।

यह उत्सव भारतीय भाषाओं को सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयत्न है। दुनिया में ऐसा काम करने वालों का एक समूह जिनकी प्राथमिकता अपनी भाषा हो। विश्व से इतनी बड़ी संख्या में पधारे विद्वानों, लेखकों का हम स्वागत करते हैं। यह हमारे संकल्पों को दिशा देगा। वातायन, विश्व रंग,लेखक  ग्राम जैसे प्रयत्न इस वैश्विक अभियान को आगे ले जा रहे हैं। पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ० रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ के प्रयत्न इस दिशा में प्रशंसनीय हैं। इस अभियान में सभी सहयोगियों का हार्दिक स्वागत। मैं सभी सहायक व सहयोगी संस्थाओं का भी हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ, जो इस संकल्प में हमारे साथ हैं। श्री विनयशील चतुर्वेदी और सुश्री अनिता वर्मा व टीम ने इस आयोजन की सफलता में रात दिन एक कर दिया। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र श्री राम बहादुर राय व श्री सच्चिदानन्द जोशी के नेतृत्व में संस्कृति का अगुआ बन कर उभरा है। उनके सहयोग के लिए बहुत आभार। इस पत्रिका के संपादन के लिए सुश्री सुनीता पाहुजा व प्रकाशन के लिए श्री अनिल वर्मा को बहुत शुभकामनाएँ।

वैश्विक हिंदी परिवार – भारतीय भाषाओं की वैश्विक उड़ान
वैश्विक हिंदी परिवार वैश्विक स्तर पर हिंदी की सबसे व्यापक और प्रभावशाली संस्था है। इसमें 70 से अधिक देशों के विद्वान, शिक्षाविद् और लेखक शामिल हैं। हिंदी पट्टी के प्रमुख लेखकों के साथ ही भारत की विभिन्न भाषाओं में हिंदी से जुड़े लेखक, विद्वान इसमें सक्रिय सहभागी हैं। इसकी विशेषता इसकी दुनिया के सर्वाधिक देशों में उपस्थिति, भाषा के महत्वपूर्ण विषयों पर समझ -सकारात्मक भागीदारी – महत्वपूर्ण परियोजनाओं का कार्यान्वयन है। यह एक और संस्था नहीं, दुनिया भर की हिंदी संस्थाओं का समावेशी संगठन है। यह एक मिशन है। इसे संचालित करने वाली टीम पिछले चार दशकों से विश्व स्तर पर दुनिया में हिंदी का नेतृत्व कर रही है। भारत में हिंदी के साथ अन्य भारतीय भाषाओं को व्यावसायिक शिक्षा के क्षेत्र में ले जाने में इस संस्था का महत्वपूर्ण योगदान है।हिंदी लेखन और हिंदी शिक्षण के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान कर इस समूह ने गुणवत्तापूर्वक योगदान किया है। डॉ पद्मेश गुप्त और श्रीमती इंदिरा वडेरा व अन्य हिंदी सेवियों ने हिंदी के लिए सचिवालय विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। वैश्विक भाषा के रूप में हिंदी और भारतीय भाषाओं को सृमद्ध और सशक्त करना हमारा उद्देश्य है।
इसके लिए हम बहुमुखी प्रयास कर रहे हैं। विश्व में हिंदी के हज़ारों लेखकों / विद्वानों को हमने अपने साप्ताहिक रविवारीय कार्यक्रम से जोड़ा है। यह कार्यक्रम पिछले साढ़े चार वर्षों से अबाध गति से चल रहा है। यह भाषा के किसी आयाम पर केन्द्रित रहता है।
आज का दौर डिजिटल है। दुनिया से जुड़ने के लिए सोशल मीडिया एक प्रमुख माध्यम है।दुनिया में हिंदी की कोई प्रमुख बैबसाइट नहीं है। दुनिया के हिंदी के रचनाकारों के लिए हमारी वैबसाइट vaishvikhindi.com विश्व की हिंदी गतिविधियों के समन्वय का सबसे बडा केन्द्र वन गया है।
आज समय बदल रहा है। शिक्षण की गतिविधियों को भौतिक से डिजिटल मोड पर ले जाने से उसकी पहुँच सैंकड़ों से हज़ारों, लाखों तक पहुंच सकती है। विशेषज्ञों की योग्यता का लाभ दूर तक पहुँच सकता है। यह डिजिटल संसाधनों के उत्कृष्ट प्रयोग का माध्यम बन सकता है। देश विदेश के प्रोफ़ेसरों और विशेषज्ञों की बौद्धिक क्षमता के उपयोग के साथ यह नए युग की माँग है। हमने इसमें पहल की है और प्रत्येक वीरवार को विद्यार्थियों के लिए एक हिंदी शिक्षण की कार्यशाला का आयोजन किया जाता है। इसका संयोजन हिंदी का एक प्रमुख विद्वान करता है। पिछले माह दक्षिण कोरिया मूल की विद्वान प्रोफेसर ने इसका संयोजन किया। इस कार्य को और सशक्त करने व इसकी पहुँच बढ़ाने के लिए हमारी टीम निरंतर कार्य कर रही है। हम हिंदी के वैश्विक मानक पाठ्यक्रम की दिशा में भी काम कर रहे हैं जिसमें सरकार की महत्वपूर्ण संस्थाओं का सहयोग मिल रहा है।
माननीय प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में भारत सरकार ने और समाज ने अपनी सोच की दिशा बदली है। आज भारतीय भाषा शब्द सबकी ज़ुबान पर है। शिक्षा में इसे महत्वपूर्ण स्थान मिला है। व्यावसायिक शिक्षा में यह अपनी जगह बना रहा है। अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद, उच्च शिक्षा आयोग , जोधपुर आई .आई .टी के प्रयत्न इस दिशा में प्रशंसनीय हैं। भारत सरकार ने भारतीय भाषा दिवस भी घोषित किया है। उपनिवेशीकरण के खिलाफ यह महत्वपूर्ण संकल्पना है। हमें यदि स्व की तलाश करनी है। भारत की ज्ञान परंपरा की गंगोत्री को पाना है। आधुनिकता का विरासत से तालमेल बिठाना है। जलवायु प्रदूषण को समझना है। प्रौद्योगिकी का स्वामी बनना है, दास नहीं तो हमें भारतीय भाषाओं को अपनी जीवन शैली का आधार बनाना होगा।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद डायसपोरा के क्षेत्र में लंबे समय से काम कर रही प्रमुख संस्था है। डायसपोरा के विकास, भारत से उसके संबंध, उसकी क्षमताओं के उपयोग की दृष्टि से यह प्रमुख संस्था है। स्वर्गीय बालेश्वर अग्रवाल से लेकर श्री श्याम परांडे तक विविध क्षेत्रों में डायसपोरा के लिए इसने महत्वपूर्ण काम किया है। डायसपोरा के बदलते स्वरूप और उसकी प्रतिभा को भारत से जोड़ने का काम यह प्रभावी तरीक़े से कर रही है। भाषा और संस्कृति के क्षेत्र में इसका कार्य महत्वपूर्ण है। श्री नारायण कुमार जैसे भाषा सेवी की सेवाएँ इसे निरंतर प्राप्त हैं। श्री विनोद कुमार, राजदूत व विदेश सेवा के अनुभवी लोग इससे निरंतर जुड़े हैं। भाषा और संस्कृति के क्षेत्र में कार्यरत यह संस्था वैश्विक हिंदी परिवार का भी केन्द्रीय कार्यालय भी है। डायसपोरा के भाषा पक्ष पर वैश्विक हिंदी परिवार का ज़ोर है। अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद और वैश्विक हिंदी परिवार भारतीय भाषाओं की वैश्विक उपस्थिति और उसे सशक्त बनाने के लिए निरंतर प्रयत्नशील है। यह आयोजन उसका प्रतिफल है।
हमें भाषा मित्र की संकल्पना विकसित करनी होगी। अपनी भाषाओें को जीवन से जोड़ना होगा। हमारे हस्ताक्षर, नाम पट्ट, सोशल मीडिया, जीवन शैली में उसके प्रयोग को बढ़ाना होगा। परिवार में उसको महत्व देना होगा। अपनी भाषाओं को सशक्त बनाने के लिए भाषा के किसी एक क्षेत्र को समय और ऊर्जा देनी होगी। शिक्षण, लेखन, अनुवाद और प्रौद्योगिकी ऐसे क्षेत्र हो सकते हैं। हमें सप्ताह में कम से कम तीन घंटे इस कार्य को देने चाहिंए। यह बहुत मुश्किल नहीं है। यही भाषा मित्र की संकल्पना है।
यह उत्सव भारतीय भाषाओं को सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयत्न है। दुनिया में ऐसा काम करने वालों का एक समूह जिनकी प्राथमिकता अपनी भाषा हो। विश्व से इतनी बड़ी संख्या में पधारे विद्वानों, लेखकों का हम स्वागत करते हैं। यह हमारे संकल्पों को दिशा देगा। वातायन, विश्व रंग,लेखक ग्राम जैसे प्रयत्न इस वैश्विक अभियान को आगे ले जा रहे हैं। पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ० रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ के प्रयत्न इस दिशा में प्रशंसनीय हैं। इस अभियान में सभी सहयोगियों का हार्दिक स्वागत। मैं सभी सहायक व सहयोगी संस्थाओं का भी हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ, जो इस संकल्प में हमारे साथ हैं। श्री विनयशील चतुर्वेदी और सुश्री अनिता वर्मा व टीम ने इस आयोजन की सफलता में रात दिन एक कर दिया। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र श्री राम बहादुर राय व श्री सच्चिदानन्द जोशी के नेतृत्व में संस्कृति का अगुआ बन कर उभरा है। उनके सहयोग के लिए बहुत आभार। इस पत्रिका के संपादन के लिए सुश्री सुनीता पाहुजा व प्रकाशन के लिए श्री अनिल वर्मा को बहुत शुभकामनाएँ।

अनिल जोशी
अध्यक्ष, वैश्विक हिंदी परिवार
प्रबंधकारिणी सदस्य, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद

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अंतरराष्ट्रीय भारतीय भाषा सम्मेलन : एक विहंगावलोकन

जन भाषा में न्याय और विज्ञान समय की आवश्यकता- श्री रामनाथ कोविंद, पूर्व राष्ट्रपति

अंतर्राष्ट्रीय सहयोग परिषद, वैश्विक हिंदी परिवार तथा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में भारत की भाषाओं को समर्पित अंतरराष्ट्रीय भारतीय भाषा सम्मेलन का 10 से 12 जनवरी 2025 को  कई देशों और भारत के विभिन्न प्रांतों  के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में संपन्न हुआ।

कार्यक्रम का औपचारिक उद्घाटन पूर्व राष्ट्रपति महामहिम श्री रामनाथ कोविंद द्वारा दिनांक 11 जनवरी को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र में हुआ। कार्यक्रम में बोलते हुए श्री रामनाथ कोविंद ने कहा कि आज सबसे बड़ी आवश्यकता न्याय और विज्ञान को भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराने की है। न्याय के संदर्भ में उन्होंने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश श्री रंजन गोगोई से हुई चर्चा का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि भारतीय भाषाओं को महत्व देने की दृष्टि से वर्ष 2020 की शिक्षा नीति का बहुत महत्व है और उसको बनाने में तत्कालीन शिक्षा मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की मुख्य भूमिका है। इस अवसर पर पद्मश्री तोमियो मिज़ोकामी, जो भारत की 4 भाषाओं  के विशेषज्ञ हैं, ने कहा कि विभिन्न भाषा क्षेत्रों और शब्दावली आदि की दृष्टि से भारत की भाषाएँ एक ही है। उन्होंने कहा कि भाषा विज्ञान की दृष्टि से भारतीय भाषाओं में भेद पैदा करना उचित नहीं है। श्री मनोज श्रीवास्तव, चुनाव आयुक्त, मध्य प्रदेश ने भाषा के मुद्दे को मानवाधिकार का मुद्दा बताया। डॉ पद्मेश गुप्त, प्रबंध निदेशक, ऑक्सफ़ोर्ड बिज़नेस कालेज, ब्रिटेन, डॉ० सच्चिदानन्द जोशी, सदस्य सचिव, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र ने भारतीय भाषाओं की लोकप्रियता को दृष्टिगत रख भाषा के पुस्तक मेलों का दृष्टांत दिया। श्री श्याम परांडे, महासचिव, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद ने समस्त भारतीय भाषाओं के समग्र अभियान की बात सामने रखी। वहीं अनिल जोशी, अध्यक्ष, वैश्विक हिंदी परिवार ने भारतीय भाषाओं की अंतरराष्ट्रीयता का चित्र प्रस्तुत किया और भाषा मित्र की संकल्पना प्रस्तुत की। कार्यक्रम के समय सभागार विद्वानों और लेखकों से पूरी तरह से भरा हुआ था।

कार्यक्रम का थीम सत्र बहुत प्रभावी और आकर्षक था जिसमें विभिन्न चोटी के प्रौद्योगिकविद् शामिल थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता तेलंगाना से सांसद श्री राजेन्द्र ने की वहीं मुख्य अतिथि जोधपुर आई आई टी के निदेशक डॉ अविनाश अग्रवाल थे। डॉ अविनाश अग्रवाल ने जोधपुर में बी टैक के विद्यार्थियों को हिंदी में पढ़ाए जाने की पहल के संबंध में जानकारी दी। इस तकनीकी सत्र में माइक्रोसॉफ़्ट के श्री बालेंदु दधीच  ने कहा कि तकनीक ने भाषा की दीवारें तोड़ दी हैं। कृत्रिम बुद्धिमत्ता के विशेषज्ञ डॉ प्रसून शर्मा, अमेरीका से तकनीकविद् अनूप भार्गव, नीदरलैंड से अमेजॉन के श्री मनीष पांडेय ने प्रोद्यौगिकी और भारतीय भाषाओं के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी साझा की।

सम्मेलन के केन्द्र में प्रवासी लेखक थे इसलिए उनसे संबंधित कार्यक्रम विशेष आकर्षण के केन्द्र थे। गिरमिटिया देशों का विशेष संदर्भ लेते हुए भारतीय भाषा और संस्कृति का कार्यक्रम में विशेष रूप से गिरमिटिया देशों में संस्कृतिमूलक विषयों पर गहन विमर्श हुआ, वहीं विदेशों में हिंदी शिक्षण संबंधी सत्र में शिक्षण की चुनौतियों और नए प्रयोगों व तकनीकी पहलुओं पर विचार किया गया।

सम्मेलन का एक प्रमुख आयाम भारतीय भाषाएँ थी। उससे संबंधित तीन प्रमुख सत्र हुए। यह विमर्श का केन्द्र था। पहले सत्र में ही पद्मश्री तोमियो मिजोकामी जी भारत की चार भाषाओं में सिद्धहस्त हैं। उन्होंने भाषा वैज्ञानिक आधार पर भारतीय भाषाओें की एकता का सिद्धांत प्रतिपादित किया है। भाषा संबंधी पहले सत्र में भारतीय भाषाओं में एकात्मकता पर चर्चा हुई। इसकी अध्यक्षता वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग के अध्यक्ष श्री गिरीश नाथ झा ने की। इस सत्र में तमिल, तेलगू, कन्नड़, मराठी, पंजाबी, हिंदी के प्रतिनिधि थे। इसी प्रकार देश के विविध क्षेत्रों के प्रमुख विद्वानों ने भारतीय भाषाओं में अंतरसंबंध और उसमें अनुवाद की भूमिका पर चर्चा की।

उच्च और व्यावसायिक शिक्षा के क्षेत्र में भारतीय भाषाओं की स्थिति और संभावनाओं पर जोधपुर आई आई टी के निदेशक और कुलपति व वरिष्ठ शिक्षाविदों ने चर्चा की। भारतीय भाषाओं और उनके विकास का प्रश्न इस सम्मेलन के मूल में है। भारतीय भाषाओं में पत्रकारिता एक महत्वपूर्ण आयाम है जो भारतीय भाषाओं को लोक से जोड़ता है। उनके अंतर्संबंध औरै मूल प्रेरणाओं पर भारतीय पत्रकारिता और अस्मिता के प्रश्न पर डॉ गोविंद सिंह, जवाहर कर्नावट और रमा शर्मा ने विचार रखे।

रचनात्मकता की दृष्टि से दो सत्र अत्यंत महत्वपूर्ण रहे। मेरा शब्द संसार सत्र में महत्वपूर्ण रचनाकारों व्यास सम्मान प्राप्त सुश्री सूर्यबाला जी और ब्रिटेन के कथाकार श्री तेजेंद्र शर्मा ने अपनी रचना यात्रा के बारे में बताया वहीं प्रसिद्ध रचानाकार डॉ मनीषा कुलश्रेष्ठ इस कार्यक्रम की सूत्रधार थीं। इसी प्रकार के दूसरे सत्र में नासिरा शर्मा, दिव्या माथुर, जितेन्द्र श्रीवास्तव ने बताया कि वे साहित्य की किन गलियों से गुजरें हैं। साहित्य के इन उत्कृष्ट साधकों से संवाद करना एक विशिष्ट रचनात्मक अनुभव रहा।।

प्रमुख रचनाकारों की रचनाओं का नाट्य पाठ एक अत्यंत आकर्षक रचनात्मक कार्यक्रम रहा। इसमें डॉ० धनजंय कुमार, जया वर्मा, अलका सिन्हा, डॉ पद्मेश गुप्त और अनिल जोशी की कहानियों का नाट्य पाठ मंचन क्रमशः सुश्री तितिक्षा शाह, आराधना श्रीवास्तव, डॉ सुरेन्द्र सागर एवं संकल्प जोशी द्वारा किया गया। तितिक्षा का आत्मविश्वास और खनकती आवाज, आराधना का भाव प्रवण वाचन, कहानियों का नाटकीय प्रस्तुतीकरण सबको पसंद आया। संकल्प जोशी ने दो कहानियों का कोलाज तैयार किया और संवेदनशील और भावनात्मक अभिनय की प्रस्तुति की, जिसने श्रोताओं को ह्रदय की गहराइयों तक छुआ। यह एक नया प्रयोग था जो बहुत सफल रहा।

कवि सम्मेलन के मुख्य अतिथि भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के उप महानिदेशक और प्रख्यात कवि श्री अभय कुमार थे। साथ ही में दिल्ली साहित्य अकादमी के उप सचिव श्री ऋषि शर्मा विशिष्ट अतिथि थे। इस बार का कवि सम्मेलन कई प्रकार की रचनाशील धारा के कवियों का संगम था। सम्मेलन में मुख्य रूप से प्रवासी कवियों के माध्यम से हिंदी की वैश्विक गूंज सुनाई दी। डॉ पद्मेश गुप्त, दिव्या माथुर, जया वर्मा, रामा कौशिक, जया वर्मा , तितिक्षा, डॉ धनजंय, अनूप भार्गव  ने प्रभावी काव्य-पाठ किया  वहीं भारत की अन्य भाषाओं तेलगु और बांग्ला की मार्मिक रचनाएँ डॉ मणिक्यांबा और डॉ सोमा वंधोपाध्याय ने सुनाई। मंच के लोकप्रिय कवि राजेश चेतन और प्रवीण शुक्ल ने हँसी और भावनाओं का उफान पैदा किया। अनिल जोशी, नरेश शांडिल्य, अलका सिन्हा की कविताओं मे संवेदनशीलता के साथ मन को छुआ। सिंगापुर से पधारी डॉ आराधना श्रीवास्तव के कुशल संचालन और आकर्षक काव्यपाठ को सबने सराहा।

इस सम्मेलन का समापन कार्यक्रम बड़ा विचारपूर्ण और भव्य था। इसकी अध्यक्षता कर रहे थे पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ जिन्होंने भाषा संबंधी संकल्पों पर ध्यान दिलाते हुए भारतीय भाषाओं के वैश्विक अभियान पर बल दिया। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष श्री राम बहादुर राय ने भारतीय भाषाओं की स्थिति पर गंभीर चिंता पर प्रकट की। शिक्षा उत्थान न्यास के राष्ट्रीय संयोजक श्री अतुल कोठारी ने भारतीय भाषाओं को परिवारों में प्रयोग पर विशेष आग्रह किया। इस सत्र में श्री श्याम परांडे, डॉ  पद्मेश गुप्त और अनिल जोशी ने भी अपने विचार रखे।

अंतरराष्ट्रीय भारतीय भाषा सम्मेलन में कुल 22 सत्र हुए जिसमें सूचना प्रौद्योगिकी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता, प्रवासी लेखन, उच्च और व्यावसायिक शिक्षा में भारतीय भाषाएँ, विदेशों में  भारतीय भाषाओं के शिक्षण की चुनौतियाँ, भारतीय भाषाएँ: विशेष संदर्भ – राजभाषा और देवनागरी लिपि, विदेशों में भारतीय भाषाएँ और संस्कृति, भारतीय भाषाओं  में पारस्परिक अनुवाद और उनका अंतरसम्बन्ध,  भारतीय भाषाओं में पत्रकारिता, प्रवासी रचनाकारों की कृतियों का नाट्य पाठ कहानियों का नाट्य रूपान्तरण जैसे सजीव सत्र हुए। इसमें विभिन्न देशों और भारत के विभिन्न प्रांतों से हिंदी, उर्दू, पंजाबी, तमिल,  कन्नड़,  मलयालम, बंगाली, गुजराती, मराठी आदि प्रमुख भाषाओं के विभिन्न विद्वानों और रचनाकारों ने भाग लिया। इसके साथ ही भाषा सम्मेलन में विद्वानों, लेखकों, भाषा शिक्षकों,  प्रौद्योगिकविदों, उपकुलपतियों, भाषा संस्थान के प्रमुखों, प्रकाशकों, पत्रकारों, रचनाकारों, शोधकर्ताओं, शोध निर्देशकों, विद्यार्थियों की भी बड़ी संख्या में उपस्थिति थी।

हिंदी के प्रासिद्ध लेखक श्रीमती ममता कालिया, सूर्यबाला, ब्रिटेन से तेजेंद्र शर्मा, प्रौद्योगिकी तथा आईटी के विशेषज्ञ श्री बालेंदु दाधीच, ब्रिटेन से दिव्या माथुर, जापान से पद्मश्री तोमियो आदि ने सक्रिय भागीदारी की। अंतरराष्ट्रीय भारतीय भाषा सम्मेलन में कुल 22 सत्र हुए जिसमें सूचना प्रौद्योगिकी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता, प्रवासी लेखन, उच्च और व्यावसायिक शिक्षा में भारतीय भाषाएँ, विदेशों में  भारतीय भाषाओं के शिक्षण की चुनौतियाँ, भारतीय भाषाएँ : विशेष संदर्भ – राजभाषा और देवनागरी लिपि, विदेशों में भारतीय भाषाएँ और संस्कृति, भारतीय भाषाओं  में पारस्परिक अनुवाद और उनका अंतरसम्बन्ध,  भारतीय भाषाओं में पत्रकारिता, प्रवासी रचनाकारों की कृतियों का नाट्य पाठ कहानियों का नाट्य रूपान्तरण जैसे सजीव सत्र हुए। इस सम्मलेन में चार सौ से अधिक विद्वानों, लेखकों, शोधार्थियों और शोध निर्देशकों ने भाग लिया। बड़ी संख्या में विद्यार्थियों ने अपने शोध पत्र पढ़े।

इस अवसर पर श्रीमती दीप्ति कौशल द्वारा गिरमिटिया देशों पर व श्री हर्षवर्धन आर्य द्वारा भारतीय मिथकों पर एक भव्य चित्र प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, वाणी प्रकाशन, प्रभात प्रकाशन, हिंदी बुक सेंटर द्वारा एक पुस्तक प्रदर्शनी का आयोजन भी किया गया।

10 जनवरी को साहित्य अकादमी में प्रवासी रचनाकारों से संवाद से विश्व हिंदी दिवस की प्रवासी भारतीयों का सम्मान किया और साहित्य अकादमी के सचिव डॉ के एस राव ने प्रस्ताव रखा कि साहित्य अकादमी अगले वर्ष 10 जनवरी 2026 को विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर प्रवासी साहित्यकारों का विशाल सम्मेलन आयोजित करेगी।

विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के अध्यक्ष राजदूत विनोद कुमार और वैश्विक हिंदी परिवार के अध्यक्ष श्री अनिल जोशी ने संकल्प किया कि वे देश-विदेश में ऐसे भाषा मित्रों की संख्या बढ़ाएंगे जो एक सप्ताह में कम से कम 3 घंटे स्वभाषा के विकास के लिए कार्य करेंगे।

भारत के पूर्व राष्ट्रपति महामहिम ने कहा कि आईआईटी,मेडिकल, इंजीनियरिंग, तथा विश्वविद्यालयी पाठ्यक्रमों में अध्यापन, परीक्षा और निर्देशों की भाषा कोई मान्य भारतीय भाषा हो। वर्तमान सरकार ने 8 भारतीय भाषाओं में इंजिनियारिग के पाठ्यक्रम शुरू भी कर दिए हैं। उन्होंने कहा कि तदनुसार भारतीय भाषाओं में उच्च शिक्षा की पुस्तकें तैयार करने के कार्य को गति दी जाए। उन्होंने यह भी कहा कि न्यायालय की भाषा न्याय चाहने वाले वादी की भाषा बने। भारत की राष्ट्रीय भाषा दूसरे से प्रतिस्पर्धा नहीं करेंगी अपितु वे एक दूसरे की सहयोगी बनेगी।

तकनीकी तथा प्रोद्योगिकी सत्र में  बालेंदु शर्मा दाधीच ने कहा कि प्रौद्योगिकी को भारतीय भाषाओं के अनुसार विकसित और संवर्द्धधित करना होगा। भारत की लिपियों का अधिकाधिक प्रयोग हो, भाषा संरक्षण के लिए यह आवश्यक है।

समापन समारोह में श्री राम बहादुर राय ने कहा कि भारतीय भाषा परिवार की संकल्पना विकसित हो।

भारत जे पूर्व शिक्षा मंत्री श्री निशंक ने कहा कि विश्व हिंदी सचिवालय के क्षेत्रों का गठन हो। उच्चायोग में भाषा अधिकारियों की नियुक्ति हो।

अंतर्राष्ट्रीय सहयोग परिषद के अध्यक्ष श्री श्याम परांडे ने कहा कि विदेश में गई भारतीय परिवारों की तीसरी चौथी पीढ़ी भारतीय भाषाओं के साथ जुड़ना चाहती है। उनके लिए हिंदी की यह भूमिका और इस प्रकार के सम्मेलन बहुत उपयोगी सिद्ध होंगे।

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सत्र परिक्रमा

वैश्विक हिंदी : चुनौतियाँ और संभावनाएँ

(10 जनवरी 2025, दोपहर 2.30 बजे, समवेत सभागार)

10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर वैश्विक हिंदी की चुनौतियों और संभावनाओं पर देश-विदेश से आए हिंदी साधकों और साहित्यकारों ने चर्चा की।

अमेरिका से आए बतौर मुख्य अतिथि डॉ. धनंजय ने कहा कि हिंदी मनोविज्ञान और प्रकृति से जुड़ने की भाषा है। पद्मश्री प्रो. तोमियो मिजोकामी ने चिंता व्यक्त किया कि विदेशियों के लिए हिंदी पढ़ना आनंद का विषय है पर इसकी व्यापकता और व्यावहारिकता का अभाव है। उन्होंने कहा कि आप मेहनत करते रहें और हिंदी सीखते रहें। वैश्विक हिंदी परिवार के अध्यक्ष अनिल जोशी ने भारतीय भाषाओं के सन्दर्भ में कहा कि हम अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों की फोटोकॉपी नहीं है। उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि क्या हम हिंदी का अखबार खरीदते और पढ़ते हैं?

यूपी के पूर्व शिक्षा मंत्री और सांसद अशोक वाजपेयी ने कहा कि हिंदी बड़ी बहन है और बाकी भाषाएँ उनकी छोटी बहन। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि हिंदी को विश्व में लेकर जाना है तो एक दिवस मनाना चाहिए। अमेरिका, म्याँमार, सिंगापुर जैसे देशों से आए हिंदी प्रेमियों ने भी हिंदी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता राजदूत विनोद कुमार ने की। नीदरलैंड से रामा तक्षक, प्रसिद्ध समाजसेवी सुभाष अग्रवाल और सिंगापुर से डॉ. विनोद दुबे बतौर विशिष्ट अतिथि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन जयशंकर यादव ने किया।

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गिरमिटिया चित्र प्रदर्शनी और पुस्तक प्रदर्शनी का आयोजन

(10 जनवरी 2025, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र की गैलरी)

10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र की गैलरी में गिरमिटिया चित्र प्रदर्शनी और पुस्तक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। इसमें गिरमिटिया श्रमिकों के संघर्ष और इतिहास को दर्शाने वाले चित्र और साहित्य प्रदर्शित किए गए। चित्रों में इतिहास के इस कालखंड की झलक दिखाई गई जब लाखों भारतीय ब्रिटिश साम्राज्य के तहत अन्य देशों में मजदूरी के लिए भेजे गए थे। जहाजी भाई, अप्रवासी घाट और यादें जैसी कविताओं को रचने वाली दीप्ति अग्रवाल ने चित्रों के माध्यम से भी अपनी सोच और कल्पना को व्यक्त किया।

‘कुली से कुलीन बनने के सफर’ का उद्घाटन अंतरराष्ट्रीय भाषा सम्मेलन 2025 में गिरमिट श्रमिक पर डॉ. दीप्ति अग्रवाल की कविताओं और उन पर आधारित पेंटिंग की प्रदर्शनी ‘कुली से कुलीन बनने के सफर’ का उद्घाटन भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के उप महानिदेशक श्री अभय कुमार जी के कर कमलों द्वारा किया गया। चूंकि डॉ. दीप्ति अग्रवाल का दिल्ली विश्वविद्यालय से उपाधिप्राप्त डॉक्टरेट का विषय ही ‘गिरमिट डायसपोरा’ है, अत: सभी कविताएँ शोधपरक दस्तावेज हैं। डॉ दीप्ति अग्रवाल ने अपने शोध के सिलसिले में त्रिनिदाद, गयाना, सूरीनाम, मॉरीशस, लंदन आदि देशों की यात्राएं की भी हैं, अत: उनके पास वहाँ के आर्काइव, म्यूजियम और लाइब्रेरी से एकत्रित सटीक और पुख्ता जानकारी है, जिसके कारण उन पर बनी पेंटिंग को बनवाने में इतिहास के सूक्ष्म से सूक्ष्म बिन्दु का भी ध्यान रखा गया है। सम्मेलन में आने वाले सभी सुधीजनों ने प्रदर्शनी को बहुत ध्यानपूर्वक देखा, कविता पाठ का आनन्द उठाया उनकी विशिष्ट शब्दावली को समझा और दिल खोल कर सराहा। डॉ दीप्ति अग्रवाल जी ने कविताओं के माध्यम से गिरमिट श्रमिकों के शोषण और जीवन के दस्तावेज प्रस्तुत किये। उन कविताओं पर बनी पेंटिंग देखकर पाठकों और दर्शकों के समक्ष 1834 से 1920 तक का गिरमिट जीवन मानों साकार हो उठा था। जापान से आए तोमिओ  मिज़ोकामि जी ने इस कार्य की भूरी भूरी प्रशंसा की और कहा कि भविष्य में गिरमिट जीवन पर शोध करने वालों के लिए यह कार्य बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध होगा। रवीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के श्री जवाहर कर्णावट जी ने कहा कि यह इतिहास और कला का अद्भुत संगम है और कविता और पेंटिंग का समायोजन बिल्कुल नया प्रयोग है। इससे अभिव्ययक्ति को नए आयाम मिलते हैं, शिक्षा के क्षेत्र में तो यह उपयोगी है ही, कला के विद्यार्थी भी इस प्रकार के प्रयोगों का व्यवसायीकरण भी कर सकते हैं। उन्होंने भविष्य में भोपाल स्थित रवीन्द्रनाथ टैगोर  विश्वविद्यालय में भी प्रदर्शनी लगाने केलिए आमंत्रित किया। ‘प्रवासी संसार’ के राकेश पांडे जी ने कहा कि प्रवासी साहित्य पर यह कार्य शत प्रतिशत मौलिक है और इन कविताओं को विश्वविद्यालय के पाठयक्रम  में शामिल करना चाहिए। डॉ. यति शर्मा जी ने कहा कि गिरमिट इतिहास को कविताओं के शहद के रूप में ढाल कर और उन पर पेंटिंग बनवाकर दीप्ति जी ने बड़ा काम किया है। स्ववित्तपोषित उनका यह कार्य श्रमसाध्य, महंगा और शोधपरक है, जिसे डॉ दीप्ति अग्रवाल जन-कल्याण के लिए कर रही है; ताकि इतिहास के भूले-बिसरे पन्ने अधिक से अधिक जन मानस तक पहुँच सकें और वे गिरमिट श्रमिकों के योगदान को जान पाएं। मॉरीशस से आए अयान अली ने डॉ दीप्ति अग्रवाल को मॉरीशस में भी गिरमिट प्रदर्शनी लगाने को आमंत्रित किया। आने वाले फरवरी माह की 20-21 दिनांक को केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा की ओर से होने वाली अंतर्राष्ट्रीय गिरमिट संगोष्ठी में भी यह प्रदर्शनी लगने जा रही है।

चित्रकार हर्षवर्धन आर्य की चित्र श्रृंखला भारतीय मिथकों में संतुलन की थीम पर आधारित थी जबकि हिमांशी आर्य के चित्रों के केन्द्र में स्त्री का सशक्तीकरण था। इसके साथ ही पुस्तक प्रदर्शनी में विभिन्न प्रकाशन, लेखक और शोधकर्ताओं द्वारा लिखित पुस्तकें प्रदर्शित की गईं जिनका मुख्य विषय प्रवासी जीवन और गिरमिटिया श्रमिकों के अनुभव व संघर्ष थे।

प्रदर्शनी में बड़ी संख्या में देश-विदेश से आए अतिथियों ने सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण संवाद को जन्म दिया।

‘संस्कृति के रंग’ चित्रकला प्रदर्शनी (संशोधित)

नई दिल्ली,  भारत स्थित इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र में भव्य अंतरराष्ट्रीय भारतीय भाषा सम्मेलन- 2025 का आयोजन किया गयाl इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय फलक पर भारतीय भाषाओं के वर्चस्व, हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के समन्वय पर संवाद के साथ तकनीकी भाषा विमर्श सहित भारतीय संस्कृति को सहेजते समेटते बिम्बों से सजी “संस्कृति के रंग” चित्रकला प्रदर्शनी भी लगाई गईl

प्रदर्शनी का उद्घाटन भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के उप महानिदेशक अभय कुमार के कर कमलों द्वारा किया गया जो स्वयं भी कुशल चित्रकार एवं कवि हैंl

अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के महासचिव श्याम परांडे, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के सदस्य सचिव सच्चिदानंद जोशी एवं प्रख्यात हिंदी सेवी नारायण कुमार और वैश्विक हिंदी परिवार के अध्यक्ष अनिल जोशी जी ने इस अवसर पर कलाकारों एवं कला रसिकों को संबोधित किया। इस चित्रकला प्रदर्शनी की एक विशेषता यह रही कि इसमें पिता-पुत्री की चित्रकार जोड़ी द्वारा बनाई कलाकृतियां प्रदर्शित की गई थींl

आईफैक्स आर्ट अवार्ड से सम्मानित युवा चित्रकार हिमांशी आर्या की कलाकृतियों में स्त्री जीवन के मनोभावों, अपने सपनों को साकार करने-उड़ने को तैयार युवती के हौसले को दिखाया गया था। उनकी एक पेंटिंग में माँ के जीवन संसार को दर्शाया गया थाl संस्कृति मंत्रालय की फैलोशिप सहित साहित्य एवं कला के क्षेत्र में अनेक सम्मानों से अलंकृत वरिष्ठ चित्रकार, कवि हर्षवर्धन आर्य के कला चित्रों में ‘संतुलन का दर्शन’  प्रदर्शित थाl भारतीय संस्कृति के महानायकों, जैसे मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम,  महावीर हनुमान, भगवान गणपति,  गिरधर गोपाल आदि के चरित्रों में एक विशिष्ट गोलाकार बिंदु के माध्यम से भक्ति और शक्ति का संतुलन,  पंचतत्वों का संतुलन, क्रोध और मर्यादा का संतुलन दर्शाया गया थाl यह संतुलन श्वेत-श्याम रेखाओं में गहरे लाल और पीले रंग के आनुपातिक प्रयोग से भी प्रतीकित किया जा रहा थाl

इस वृहत्तर समारोह के कर्मठ संयोजक श्री विनयशील चतुर्वेदी जी के कुशल संयोजन में आयोजित इस चित्रकला प्रदर्शनी का अनेक कलाप्रेमी साहित्यकारों, भाषा विद्वानों ने अवलोकन किया और सकारात्मक टिप्पणियाँ देकर कलाकारों को प्रोत्साहित किया। इनमें उल्लेखनीय हैं – जाने-माने दोहाकार नरेश शांडिल्य, वरिष्ठ कथाकार, कवयित्री अलका सिन्हा, वरिष्ठ भाषाविद डॉ. हरजेंद्र चौधरी, वरिष्ठ समाजसेवी शैलेन्द्र शर्मा, वरिष्ठ साहित्य सेवी अतुल प्रभाकर, साहित्य अकादमी के उपसचिव देवेन्द्र कुमार देवेश, डॉ. रुद्रेश नारायण मिश्रा, मनोज श्रीवास्तव, प्रभाकरपुंज, रुख़सार आलम, डॉ. विपिन गुप्ता, अनिल अनल,  जापान से पधारे हिंदी विद्वान पद्मश्री डॉ. तोमिओ मिजोकामि, लन्दन से पधारे प्रख्यात साहित्यकार डॉ. तेजेन्द्र शर्मा, न्यूजर्सी, अमेरिका से पधारे प्रख्यात कवि, साहित्यकार अनूप भार्गव, हंसराज महाविद्यालय से पधारे हिंदी विद्वान डॉ. विजय कुमार मिश्रा, शिवाजी महाविद्यालय से पधारी विदुषी डॉ. ज्योति शर्मा, डॉ. हरनेक सिंह गिल, लोकसभा टी.वी. के प्रख्यात पत्रकार, साहित्यकार प्रतिबिंब शर्मा आदि। दर्शकों ने भी भारतीय भाषा सम्मेलन के साथ कला को जोड़ने के इस प्रयोग के लिए आयोजकों और कलाकारों की प्रशंसा की तथा भविष्य में इसे और विस्तृत पैमाने पर अच्छे ढंग से दोहराने की आशा व्यक्त कीl

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वैश्विक कवि सम्मेलन की रिपोर्ट

(10 जनवरी 2025, संध्या 5.30 बजे, समवेत सभागार)

यह कार्यक्रम हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के समृद्ध साहित्यिक स्वरूप को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करने का सशक्त प्रयास था। इसने प्रवासी और भारतीय कवियों के बीच एक सृजनात्मक संवाद का अवसर प्रदान किया। ब्रिटेन से डॉ. पद्येश गुप्त, सुश्री दिव्या माथुर, सुश्री जया वर्मा और सुश्री तितीक्षा शाह, अमेरिका से डॉ. धनंजय कुमार, श्री अनूप भार्गव, जापान से सुश्री रमा शर्मा, और नीदरलैंड से श्री रामा तक्षक ने अपने कविताओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। भारतीय कवियों में श्री प्रवीण शुक्ल, श्री अनिल जोशी, श्री नरेश शांडिल्य, सुश्री अलका सिन्हा, श्री अशोक बत्रा, श्री राजेश चेतन, सुश्री अनीता वर्मा और श्री विनयशील चतुर्वेदी ने अपनी रचनाओं से देश की मिट्टी की महक को महसूस कराया। अन्य भारतीय भाषाओं का प्रतिनिधित्व करते हुए बांग्ला कवयित्री डॉ० सोमा बंद्योपाध्याय ने अपनी कविता पाठ से विविधता में एकता का संदेश दिया।

आयोजन की अध्यक्षता प्रख्यात साहित्यकार श्री बाल स्वरूप राही ने की। मुख्य अतिथि के रूप में श्री अभय कुमार, उप महानिदेशक, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री ऋषि कुमार शर्मा, उप सचिव, हिंदी अकादमी दिल्ली ने कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाई। कार्यक्रम का कुशल संचालन सुश्री आराधना झा ने किया, जो स्वयं सिंगापुर से पधारी थीं।

अंतरराष्ट्रीय भारतीय भाषा सम्मेलन का यह कवि सम्मेलन साहित्य और संस्कृति के माध्यम से भारत और विश्व के बीच एक सेतु के रूप में स्थापित हुआ जो भारतीय भाषाओं के उज्ज्वल भविष्य की ओर संकेत करता है।

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सूचना प्रौद्योगिकी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और भारतीय भाषाएँ : उपयोग और संभावनाएं (संक्षिप्त रिपोर्ट)

(11 जनवरी 2025, समवेत सभागार)

“भारत जैसे बहुभाषी देश में भारतीय भाषाओं के बीच सूचना के आदान-प्रदान में सूचना प्रौद्योगिकी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है और भविष्य में इसके और अधिक प्रयोग की संभावनाएं मौजूद है। कंटेंट जनरेशन से लेकर उसके प्रचार-प्रसार तक में कृत्रिम मेधा के सभी पहलुओं को एक्स्प्लोर करना होगा यह विचार व्यक्त करते हुए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) जोधपुर के निदेशक डॉ. अविनाश कुमार अग्रवाल ने बताया कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) जोधपुर देश का पहला संस्थान है जहां पर बीटैक की पढ़ाई हिंदी माध्यम से की जा रही है और अभी संस्थान में प्रथम सत्र में 120 छात्रों ने बीटैक में हिंदी माध्यम को चुना है। उन्होंने बताया कि हिंदी माध्यम के छात्रों को भी वही अध्यापक पढ़ाते हैं जो अंग्रेजी माध्यम के छात्रों को पढ़ाते हैं। हिंदी माध्यम के छात्रों को भी सभी सुविधाएं उसी तरह प्रदान की जाती हैं जिस तरह कि अंग्रेजी माध्यम के छात्रों को।

इस सत्र के दूसरे प्रमुख वक्ता श्री बालेन्दु शर्मा दधीच थे जो कि माइक्रोसॉफ्ट एशिया में वरिष्ठ पद पर कार्यरत हैं और भारत में कंप्यूटर के क्षेत्र में एक प्रमुख तकनीकविद् के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने कंप्यूटर और मोबाइल पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता के माध्यम से आसानी से सुलभ हो रही तकनीकों के बारे में विस्तार से बताया। “आज विचारों के आदान-प्रदान करने के लिए विश्व भर में कोई भी भाषाई दीवार नहीं रह गई है। आप विश्व के लगभग किसी भी व्यक्ति से अपने फोन के ट्रांस्लेटर के माध्यम से बातचीत कर सकते हैं। आपको यह भी जानने की जरूरत नहीं है कि वह किस भाषा में बात कर रहा है। आपका फोन उसकी भाषा को अपने आप पहचान लेता है और आपको उसके कथन को आपकी भाषा में ट्रांस्लेट करके बताता है। यही बात आज भारत की विभिन्न भाषाओं के बीच भी संभव है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता आपके लिए बहुत कुछ जनरेट करने की क्षमता रखती है।” इसके साथ ही उन्होंने इसके दुरुपयोगों और उनसे सावधान रहने के बारे में भी बताया।

सत्र के तीसरे प्रमुख वक्ता अमेरिका से पधारे प्रमुख तकनीकविद् और भाषा प्रेमी श्री अनूप भार्गव ने बताया कि हिंदी मातृभाषा वाले छात्रों के लिए अंग्रेजी माध्यम से उच्च शिक्षा में पढ़ाई करते समय अंग्रेजी भाषा हमेशा ही एक बैरियर रही है क्योंकि उसके लिए यह स्वाभाविक ही होता है कि वह अपने विचारों के हिंदी में ही सोचता है और एक निरंतर अनुवाद प्रक्रिया उसके मस्तिष्क में चल रही होती है जिससे कि उसका कार्य निष्पादन और अध्ययन प्रभावित होता है। अगर सब कुछ पढ़ और समझ ले तो फिर उसको परीक्षा में अंग्रेजी में लिखना उसके लिए बहुत मुश्किल होता है। आज जब हिंदी माध्यम से बीटैक जैसी उच्च शिक्षा में पढ़ाई हो रही है तो इससे उन सभी छात्रों को सहायता मिलेगी। साथ ही इस दिशा में कृत्रिम बुद्धिमत्ता भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि श्री प्रसून शर्मा ने क्रिप्टोग्राफी में वैदिक गणित के प्रयोग और संस्कृत भाषा के महत्व को रेखांकित किया और सूचना प्रौद्योगिकी में उसके अध्ययन, अध्यापन, अनुप्रयोग और कोडिंग करने पर जोर दिया। उन्होंने फार्मिंग, डिफेंस, मेडिकल के क्षेत्र में कृत्रिम मेधा के महत्व को बताते हुए समर्थ भाषा और सशक्त भारत पर जोर दिया। आज हैकरों द्वारा अपनाई जा रही तकनीकों को विफल करने में भारतीय भाषाएँ कारगर भूमिका निभा सकती हैं।

नीदरलेंड से पधारे अतिथि वक्ता श्री मनीष पाण्डेय ने साहित्य, अनुवाद, भाषा शिक्षण आदि क्षेत्रों में विषयों पर अपनी बात रखी और कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी और कृत्रिम मेधा के संतुलित प्रयोग से भाषा के क्षेत्र में असीमित संभावनाओं को पूरा किया जा सकता है। उन्होंने आगाह किया कि यदि आज हम सूचना प्रौद्योगिकी का इष्टतम प्रयोग करने में पिछड़ जाते हैं तो हम बहुत कुछ खो देंगे।

इस कार्यक्रम का संचालन डॉ. मोहन बहुगुणा ने किया और इसका संयोजन सुश्री भावना बजाज और श्री कृष्ण कुमार ने किया।

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उच्च शिक्षा में भारतीय भाषाएँ : नई दिशाएँ व चुनौतियाँ

(11 जनवरी 2025, दोपहर 2.00 बजे, समवेत सभागार)

तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय भारतीय भाषा सम्मेलन में दूसरे दिन 11 जनवरी 2025 को ‘उच्च शिक्षा में भारतीय भाषाएँ : नई दिशाएँ व चुनौतियाँ’ विषय पर एक सत्र का आयोजन किया गया।

इस सत्र की अध्यक्षता आई आई टी जोधपुर के निदेशक प्रो. अविनाश अग्रवाल ने की। उन्होंने आई आई टी, जोधपुर के शिक्षण मॉडल पर बात की, जिसमें बी टेक की शिक्षा हिंदी माध्यम से दी जा रही है; उन्होंने अंग्रेजी और हिंदी माध्यम के विद्यार्थियों के परिणाम का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करते हुए डाटा के माध्यम से बताया कि अंग्रेजी में अध्ययन करने वाले छात्रों ने तकनीकी टर्मिनोलॉजी में अच्छा किया, वहीं हिंदी माध्यम के छात्रों का अवधारणात्मक पक्ष अच्छा रहा।

मुख्य अतिथि श्री मनोज श्रीवास्तव, चुनाव आयुक्त, मध्यप्रदेश ने बताया कि हमारे लिए बड़ी समस्या यही रही है कि हमने अपनी ज्ञान परंपरा की उपेक्षा कर विदेशी शिक्षा-पद्धति को अपनाए रखा है। भारतीय भाषाओं में पढ़ाने से पहले इस बात को समझना होगा कि भारतीय परंपरा की उपेक्षा हमें सिर्फ नकलची बनाएगा।

विशिष्ट अतिथि प्रो. रेखा सेठी, पूर्व प्रिंसिपल, इन्द्रप्रस्थ कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, ने उच्च शिक्षा को भारतीय भाषा में पढ़ाने संबंधी व्यवहारिक पहलुओं पर अपनी बात रखी। उन्होंने पाठ्य-सामग्री के अनुवाद के संदर्भ में कहा कि परिचित भाषा को अपरिचित भाषा नहीं बना देनी चाहिए। शिक्षा का संबंध समुदाय और समाज से होता है और जिसमें अधिक से अधिक लोगों का भला हो सके, ऐसी नीति अपनानी चाहिए।

विशिष्ट अतिथि प्रो सोमा बंद्योपाध्याय, कुलपति,  ने मातृभाषा में उच्च शिक्षा के महत्त्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी माध्यम से उच्च शिक्षा मिलने से समाज का बड़ा हिस्सा या तो वंचित रह जाता है या कुंठा का शिकार होता है। उनका मानना है कि हिंदी को केंद्र में रखकर ही भारतीय भाषा का अध्ययन होना चाहिए।

डॉ कोकिला केलकर, हैदराबाद ने अपने वक्तव्य में तेलुगु में उच्च शिक्षा की स्थिति पर रोशनी डाली। इस संदर्भ में उन्होंने अपने अनुभवों को साझा किया।

 इस सत्र का संचालन डॉ विजय मिश्रा ने किया।

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‘विदेशों में हिंदी शिक्षण : स्थिति और संभावनाएँ व चुनौतियाँ’ – (संक्षिप्त रिपोर्ट)

(11.01.2025, अपराह्न 2 बजे, उमंग सभागार)

इस सत्र में विदेशों में हिंदी शिक्षण संबंधी किए जा रहे अभिनव प्रयासों और हिंदी शिक्षण में आ रही चुनौतियों पर गहन विचार-विमर्श किया गया। सत्र के अध्यक्ष डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा ने हिंदी फिल्मों के गानों के माध्यम से हिंदी भाषा और व्याकरण को सीखने के रोचक उदाहरण साझा किए। मुख्य वक्ता प्रो० रेखा सेठी ने ड्यूक विश्वविद्यालय, अमेरिका में अपने हिंदी शिक्षण के अनुभव साझा किए कि किस तरह उनके कार्यकाल में वहाँ हिंदी विषय के प्रति विद्यार्थियों में तेजी से उत्सुकता बढ़ी और हिंदी पढ़ने के लिए विद्यार्थी प्रतीक्षारत रहने लगे। प्रो. राजेश कुमार ने हिंदी को हिंदी माध्यम से पढ़ाए जाने पर बल दिया। ब्रिटेन निवासी सुश्री जय वर्मा ने दैनंदिन के प्रसंगों और भारतीय त्यौहारों की कहानियों पर आधारित पुस्तकों के जरिए विशेषतः ब्रिटेन में हिंदी शिक्षण के अपने प्रयासों पर प्रकाश डाला। म्यांमार से पधारे श्री चिंतामणि वर्मा ने म्यांमार में हिंदी शिक्षण के क्षेत्र में किए गए कार्यों और वर्तमान में किए जा रहे प्रयासों का उल्लेख किया। ओसाका विश्वविद्यालय, जापान में कार्यरत डॉ. वेद प्रकाश सिंह ने विदेशों में हिंदी शिक्षण के इतिहास का जिक्र करते हुए पदम श्री तोमिओ मिजोकामी के भारत में हिंदी को अपेक्षित महत्व दिए जाने की चिंता को दोहराते हुए अपनी बात रखी। दक्षिण कोरिया में कार्यरत डॉ सृजन कुमार ने हिंदी कोरियन भाषा के तुलनात्मक अध्ययन-अध्यापन की विस्तृत रूपरेखा स्पष्ट की और हिंदी से कोरियन और कोरियन से हिंदी में निर्मित शब्दकोश और अनुवाद कार्य की अनूठी पहल के बारे में बताया।

लुधियाना, पंजाब से विशेष रूप से आमंत्रित डॉ. पूनम सपरा ने पंजाब में हिंदी शिक्षण की स्थिति और चुनौतियों के बारे में बताते हुए विद्यार्थियों के पंजाबी माध्यम से हिंदी सिखाने के आग्रह के बात की। सत्र का संचालन डॉ. ओम प्रकाश एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ० राजेश कुमार मांझी ने किया।

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भारतीय भाषाएँ : राजभाषा एवं देवनागरी लिपि के विशेष संदर्भ में

(11 जनवरी 2025, 4.00 बजे, उमंग सभागार)

तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय भारतीय भाषा सम्मेलन में दूसरे दिन 11 जनवरी 2025 को ‘भारतीय भाषाएँ : राजभाषा एवं देवनागरी लिपि के विशेष संदर्भ में’ विषय पर एक सत्र का आयोजन किया गया। इस सत्र की अध्यक्षता नागरी लिपि परिषद, दिल्ली के महामंत्री डॉ. हरि सिंह पाल द्वारा, संयोजन रेल मंत्रालय, भारत सरकार के पूर्व निदेशक राजभाषा डॉ वरुण कुमार द्वारा और संचालन राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार के सहायक निदेशक डॉ रघुवीर शर्मा द्वारा किया गया। श्रोताओं में सर्वश्री विजय कुमार मल्होत्रा, जयशंकर यादव, मोहन बहुगुणा आदि की महत्वपूर्ण उपस्थिति थी। सत्र का आरंभ नागरी लिपि परिषद की पत्रिका ‘नागरी संगम’ के नवीनतम अंक के लोकार्पण के साथ हुआ, जिसमें अन्य उपर्युक्त महानुभावों के अतिरिक्त केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के पूर्व उपाध्यक्ष श्री अनिल जोशी एवं भारतीय आयात-निर्यात बैंक के मुख्य प्रबंधक, मुम्बई श्री विकास वशिष्ठ भी उपस्थित थे।

नागरी लिपि परिषद, नीदरलैंड के प्रभारी डॉ रामा तक्षक ने आरंभ में देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता एवं इसके वर्णों में निहित आध्यात्मिक व्यंजनाओं पर प्रकाश डाला। डॉ० तक्षक ने देश-विदेश में देवनागरी लिपि की विशेषताओं से लोगों को अवगत कराया है। श्री विकास वशिष्ठ, मुख्य प्रबंधक एक्जिम बैंक ने हिंदी भाषा का प्रयोग बढ़ाने की आवश्यकता प्रकट की और सरलीकरण और लिपि के प्रचार पर बल दिया। रेल मंत्रालय, भारत सरकार के पूर्व निदेशक, राजभाषा डॉ वरुण कुमार ने कहा कि भारतीय भाषाओं की एकता में देवनागरी लिपि भी एक आधार बनती है क्योंकि भारतीय संविधान आठवीं अनुसूची में दर्ज 22 भाषाओं में से 10 की लिपि देवनागरी ही है। किंतु लिपि के मानकीकरण के समय उसकी परम्परा को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए, क्योंकि उस लिपि में दर्ज आज से हजार वर्ष पहले की सामग्री को पढ़ना है और आज का लिखा सैकड़ों साल बाद भी पढ़ा जाना है।

अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में डॉ० हरिसिंह पाल ने भारत की सभी भाषाओं के लिए देवनागरी लिपि की उपयोगिता को रेखांकित करते हुए उसे देश की एकता को बढ़ानेवाला कदम बताया। उन्होंने परीक्षाओं में हिंदी प्रश्नपत्र के लिए अपने संघर्षों के अनुभवों का याद करते हुए भारतीय भाषाओं में तकनीकी शिक्षा की शुरुआत को एक महत्वपूर्ण प्रयास बताया। राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार के सहायक निदेशक डॉ रघुवीर शर्मा ने कार्यक्रम का सुंदर संचालन किया।

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रचनाकारों की कृतियों के नाट्य पाठ और नाट्य प्रस्तुति का सत्र

(11 जनवरी 2025, संध्या 4.00 बजे, समवेत सभागार)

अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद, वैश्विक हिंदी परिवार और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित अंतराष्ट्रीय भाषा सम्मेलन 2025 का दूसरा दिन अत्यंत विशेष रहा। रचनाकारों की कृतियों के नाट्य पाठ और नाट्य प्रस्तुति को समर्पित सत्र ने इस दिन को विशेष बनाया। मंच संचालक होने के कारण इस सत्र को बहुत ही निकटता से देखने का अवसर मिला। सत्र का शुभारंभ सत्र के प्रतिभागियों के स्वागत सम्मान से हुआ। सम्मान की परंपरा का विधान निभाने के पश्चात सत्र प्रोफेसर धनंजय कुमार की कृति से प्रारंभ हुआ। उनकी कृति को ब्रिटेन से आई तितिक्षा शाह ने अपने स्वर में प्रस्तुत किया। प्रोफेसर धनंजय कुमार की कृति और तितिक्षा शाह की प्रस्तुति के संगम से बेहतरीन शुरुआत इस सत्र की हो ही नहीं सकती थी।

इस प्रस्तुति के पश्चात समागम हुआ ब्रिटेन में रह कर हिन्दी की सेवा कर रहीं डॉक्टर जय वर्मा और सिंगापुर से आईं आराधना झा श्रीवास्तव का। आराधना झा श्रीवास्तव ने आरोह-अवरोहके तालमेल और भावों से भरी अभिव्यक्ति से डॉक्टर जय वर्मा की कृति को ऐसे प्रस्तुत किया कि सभागार में उपस्थित दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए।

लेखिका अल्का सिन्हा की उपस्थिति ने सत्र की गरिमा को विस्तार दिया। उनकी कृति पर प्रख्यात रंगकर्मी सुरेन्द्र सागर की प्रस्तुति ने सभागार को गुलजार कर दिया। अल्का सिन्हा जी की कथा के किरदारों को सुरेन्द्र सागर जी ने थियेटरीकल अंदाज में कुछ यूं पढ़ा कि कथा का हर किरदार जीवंत हो गया।

सत्र की समापन प्रस्तुति बहुत विशिष्ट रही। इस प्रस्तुति में एक अनूठा प्रयोग किया गया। ब्रिटेन से सम्मेलन में सम्मिलत होने आए डॉक्टर पद्मेश और राजनयिक के रूप में फिजी और ब्रिटेन में लंबा समय व्यतीत करने वाले साहित्यकार एवं रंगकर्मी अनिल जोशी की अलग-अलग दो प्रस्तुतियों को जोड़ कर एक ही प्रस्तुति में प्रस्तुत किया गया। ये नया प्रयोग किया अभिनेता और मॉडल संकल्प जोशी ने। इस प्रस्तुति की विशेषता भावों से भरा संकल्प जोशी का अभिनय तो था ही दो अलग-अलग कृतियों का स्वाभाविक सा बना दिया गया संगम भी था। स्वयं अनिल जोशी जी ने इस संबंध में खुलासा ना किया होता तो संकल्प जोशी की स्वाभाविक नाट्य प्रस्तुति से ये जान पाना मुश्किल था।

सत्र का समापन अंतराष्ट्रीय भाषा सम्मेलन 2025 के आयोजन की धूरी अनिल जोशी के सम्मान, प्रतिभागियों के समूह चित्र और चाय-पान की घोषणआ के साथ हुआ ।

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राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय द्वारा मंचित ‘अंधा युग’ नाटक की रिपोर्ट

तिथि: 11 जनवरी 2055, सायं 6 बजे
स्थान: अभिमंच, रा. ना. वि.

अंतरराष्ट्रीय भारतीय भाषा सम्मेलन 2025 के द्वितीय दिवस सायंकाल 6:00 बजे राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय द्वारा सुप्रसिद्ध साहित्यकार धर्मवीर भारती के प्रसिद्ध नाटक ‘अंधा युग’ का मंचन किया। यह नाटक महाभारत के एक महत्वपूर्ण अध्याय और युद्ध के अट्ठारहवें दिवस हुई एक ऐतिहासिक घटना पर आधारित है, जिसमें कौरवों और पांडवों के बीच के संघर्ष को दर्शाया गया है। अधिकांश कौरव सेना एवं योद्धाओं की मृत्यु के उपरांत युवराज दुर्योधन एक सरोवर में जा छिपते हैं। उनके सेनापति कृतवर्मा, कुलगुरु कृपाचार्य एवं द्रोणपुत्र अश्वत्थामा हताशा, निराश एवं थके हुए अपने युवराज को खोज रहे हैं। ऐसे ही समय में हस्तिनापुर के राजमहल में गांधारी और राजकुमार के युयुत्सु के संवाद एवं अश्वत्थामा द्वारा पांडव पुत्रों की निर्मम हत्या के बाद पूरा वातावरण कारुणिक एवं वीभत्स हो जाता है। शोकाकुल गांधारी द्वारा योगेश्वर कृष्ण को शाप देना और कृष्ण के स्वीकार्य भाव से गांधारी के विक्षुब्ध मन की दशा का अत्यंत मार्मिक चित्रण हुआ।

        नाटक का मंचन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के अभिनेताओं द्वारा किया गया था, जिन्होंने अपने अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। नाटक के निर्देशक ने नाटक को बहुत ही सुंदर और अर्थपूर्ण तरीके से प्रस्तुत किया। नाटक के अभिनेताओं ने अपने अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। विशेष रूप से, गांधारी एवं अश्वत्थामा की भूमिका निभाने वाले कलाकारों ने अपने अभिनय से दर्शकों को बहुत प्रभावित किया।

        नाटक का सेट और प्रकाश व्यवस्था भी बहुत ही सुंदर और आकर्षक थी। नाटक के संगीत और नृत्य ने भी दर्शकों को बहुत प्रभावित किया। समेकित रूप में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय द्वारा मंचित ‘अंधा युग’ नाटक एक बहुत ही सुंदर और अर्थपूर्ण नाटक था, जिसने पूरे समय तक दर्शकों को बांधे रखा।

 मंचन के समापन अवसर पर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक द्वारा सभी प्रवासी साहित्यकारों को अंगवस्त्र प्रदान कर उनका सम्मान किया। तत्पश्चात आयोजक मण्डल की ओर से श्री अनिल जोशी एवं श्री विनयशील चतुर्वेदी ने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक श्री मोहंती के प्रति आभार प्रकट करते हुए सभी कलाकारों को धन्यवाद दिया।

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शोध प्रपत्र वाचन सत्र की रिपोर्ट

(12.01.2025, 9.30 बजे, समवेत सभागार)

12 जनवरी, 2025, राष्ट्रीय युवा दिवस है। इस विशेष अवसर पर युवाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष रूप से शोधार्थियों एवं प्राध्यापकों के लिए शोध पत्र वाचन सत्र का आयोजन किया गया। शोधर्थियों / प्राध्यापकों से निम्नलिखित विषयों पर शोध पत्र आमंत्रित किए गए थे –

1 सूचना प्रौ‌द्योगिकी, कृत्रिम मेधा व भारतीय भाषाएँ अनुवाद क्षेत्र व संभावनाएँ / पत्रकारिता नयी दिशाएँ

2. प्रवासी लेखन, डायस्पोरा पर शोध

3. भारतीय भाषाएँ एवं साहित्य पर शोध

इन तीनों ही विषयों पर गूगल फॉर्म के माध्यम से 32 शोधार्थियों/प्राध्यापकों ने शोध पत्र प्रेषित किये। लगभग 20 प्रतिभागियों को अपने शोध-पत्रों को मंच से वाचन करने का अवसर दिया गया।

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि प्रो अरुण भारद्वाज, प्रोफेसर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, डॉ वेद प्रकाश, स्तम्भकार एवं सहायक प्रोफेसर, किरोडीमल कॉलेज, श्री. संजय कुमार सिंह, सहायक प्रोफेसर, कालिंदी महाविद्यालय थे, जबकि विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो सुधीर प्रताप सिंह जवाहर लाल नेहरू विश्ववि‌द्यालय तथा अखिल भारतीय साहित्य परिषद् की राष्ट्रीय महामंत्री प्री. नीलम राठी पधारे थे। सत्र की अध्यक्षता प्रो नवीन चंद लोहानी, वरिष्ठ प्रोफेसर, चौधरी चरण सिंह विश्ववि‌द्यालय मेरठ ने की।

सत्र का संयोजन रामलाल आनंद कॉलेज, दिल्ली वि०वि० के सहायक प्रोफेसर राजेश गौतम ने किया तथा संचालन डॉ. जितेंद्र वीर कालरा, सहायक प्रोफेसर श्री बैंकटेश्वर महाविद्यालय के साथ श्री ओम प्रकाश, सहायक प्रफेसर, दिल्ली वि०वि० ने किया।

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भारतीय भाषाओं की एकात्मकता – (रिपोर्ट)

(12.01.2025, 11.30 बजे, उमंग सभागार)

प्रथम वक्ता हैदराबाद विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग की अध्यक्ष डॉ. अन्नपूर्णा ने भाषाओं के इतिहास और तेलुगु अनुवाद के क्षेत्र में किए गए अपने कार्यों से अवगत कराया। भक्ति आंदोलन ने भारत को एक सूत्र में पिरोने में अहम भूमिका निभाई, ऐसा कहते हुए उन्होंने उत्तर और दक्षिण भारत को भाषाओं के माध्यम से और अधिक निकट लाने की आवश्यकता प्रकट की। कश्मीर से पधारीं डॉ. मुक्ति शर्मा का मानना था कि भाषाई एकता के कारण समाज के विभिन्न वर्गों के मध्य मतभेद होने की गुंजाइश और भेदभाव होने की सम्भावना बहुत कम हो जाती है। यह क्षेत्रीयता और भाषाओं में असमानताओं को समाप्त करने में सहायक हो सकती है।

मुख्य अतिथि के रूप में पधारी डॉ. उमा देवी, जो दिल्ली विश्वविद्यालय में आधुनिक भाषा और साहित्य अध्ययन विभाग में तमिल प्रोफेसर हैं, ने धाराप्रवाह हिंदी में अपना अभिमत प्रकट किया कि रामायण, गीता जैसे ग्रंथ विश्व को जोड़ते हैं। उन्होंने भाषा की चिंता करने के साथ-साथ चिंतन करने पर बल दिया और तमिल प्रचार सभा की स्थापना की इच्छा व्यक्त की।  विशिष्ट अतिथि पद्मश्री तोमिओ मिज़ोकामि जी ने सभी भाषाओं का सम्मान किए जाने पर बल देते हुए कहा कि हमें किसी भी भाषा का अपमान नहीं करना चाहिए। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में साहित्य परिषद के श्री मनोज कुमार ने बताया कि भारतीय भाषाओं में भिन्नता केवल बाह्य है, उनकी आत्मा वस्तुतः एक है। उन्होंने इस पर प्रकाश डाला कि कैसे आप युवा विद्यार्थियों के लिए कार्यक्रम करते हुए इस क्षेत्र में ज़मीनी कार्य कर रहे हैं। वैश्विक हिन्दी परिवार की वरिष्ठ सदस्या श्रीमती सुनीता पाहूजा ने इस सत्र का संयोजन किया। दिल्ली विश्वविद्यालय की डॉ. दीप्ति अग्रवाल ने संचालन और डॉ. नीता त्रिपाठी ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

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‘भारतीय भाषाओं में पत्रकारिता : अस्मिता का प्रश्न’ विषय पर चर्चा

(12 जनवरी 2025, प्रातः 11.30 बजे, समवेत सभागार)

अंतरराष्ट्रीय भारतीय भाषा सम्मेलन के तीसरे दिन समवेत सभागार में ‘भारतीय भाषाओं में पत्रकारिता : अस्मिता का प्रश्न’ विषय पर चर्चा हुई। इस सत्र में वरिष्ठ पत्रकार, संपादक तथा मीडिया शिक्षक प्रो. गोविंद सिंह एवं टोक्यो से आई लेखिका, पत्रकार रमा पूर्णिमा शर्मा वक्ता के रूप में सम्मिलित हुए तथा वरिष्ठ लेखक डॉ जवाहर कर्नावट ने अध्यक्षता की। सत्र का संचालन प्रो (डॉ) राकेश योगी ने किया। सत्र के प्रथम वक्ता के रूप में रमा जी ने कहा कि में टोकियो जापान में 32 सालों से रहते हुए अनेक बार तलाश करने पर भी हिंदी में कोई भी पत्रिका या अखबार नही मिलता था, जिसमें हमें हमारी धरोहर या त्योहारों के बारे में कोई जानकारी प्राप्त हो। तब 6 साल पहले जापान में “हिंदी की गूंज” अंतराष्ट्रीय पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया गया और इसे जापान में पंजीकृत भी कराया गया। अब यह पत्रिका हिन्दी में नियमित संचालित हो रही है। इस पत्रिका के माध्यम से जापान में रह रहे भारतीयों के बीच एक संवाद स्थापित करने में सफलता मिली। भारतीय भाषा और भारतीय विषयों की पत्रकारिता ने विदेश में बसे देश को एकत्व में बाँधने का अद्भुत कार्य किया है।

मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित डॉ गोविंद सिंह जी ने कहा कि भारत में हिन्दी समाचार पत्र-पत्रिकाओं को अंग्रेज़ी के मुक़ाबले कम महत्व दिया गया, उनको हमेशा दोयम दर्जे पर रखा गया। आज़ादी के बाद बहुत सारे प्रकाशन हिन्दी में शुरू हुए फिर भी हिन्दी को श्रेष्ठता की दृष्टि से नहीं देखा गया और यहाँ तक मीडिया हाउस में हिन्दी पत्रकारों की सैलरी हमेशा अंग्रेजी पत्रकारों से कम ही रही है। हालाँकि 1991 के बाद स्थिति थोड़ी बदली है और टीवी चैनलों के कारण हिन्दी पत्रकारों की खबरों को आज सबसे ज्यादा देखा जाता है। हिन्दी चैनलों और भारतीय भाषाओं के चैनलों की संख्या भी अंग्रेज़ी की तुलना में कहीं ज्यादा है। टेलीविज़न के कारण पत्रकारों को आर्थिक समृद्धि का भी अवसर मिला है लेकिन इसके बावजूद भी महत्व की दृष्टि से आज भी अंग्रेज़ी की पत्रकारिता आगे ही मानी जाएगी।

अध्यक्षीय वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए जवाहर कर्नावट जी ने कहा कि इस आयोजन के लिए वैश्विक हिन्दी परिवार और उनकी पूरी टीम को बधाई देता हूँ जिन्होंने विश्व हिन्दी दिवस के अवसर पर देश विदेश के हिन्दी क्षेत्र में कार्य करने वाले महानुभावों को एक साथ लाकर इतनी सार्थक चर्चा को संभव बनाया। श्री कर्नावट ने कहा कि पूरे विश्व में अलग अलग देशों में हिंदी और भारतीय भाषाओं में पत्रकारिता के प्रयासों पर अधिक चर्चा एवं उनको महत्त्व दिए जाने की आवश्यकता है। अन्तर्राष्ट्रीय भाषा सम्मेलन इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है जिसके माध्यम से हम सभी मिलकर विश्व में हिन्दी को इसी तरह व्यापक रूप से आगे लेकर जाएंगे।

सत्र का संचालन करते हुए प्रो राकेश योगी ने कहा कि भारत को भारतीय दृष्टि से देखने और दिखाने के लिए भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता का सशक्त होना आवश्यक है।

कोविड के समय विदेशी मीडिया ने कहा कि भारत में कोविड को रोकना मुश्किल है भारत में 1 करोड़ से ऊपर लोगों की मौत होगी, इस महामारी से पलायन बढ़ेगा और उन्हीं खबरों के आधार पर हमारे यहाँ के समाचार संस्थान समाचार बना कर लोगों को भयभीत कर रहे थे। जबकि भारत ने यूरोपीय देश, अमेरिका जैसे विकसित देशों की तुलना इस आपदा से निपटने में अधिक सामर्थ्य दिखाया। हमारे समाज और विशेष रूप से परिवार परम्परा की संवेदनशीलता इसमें एक महत्वपूर्ण कारक रहा किंतु यह विमर्श का विषय नहीं बना क्योंकि अंग्रेज़ी मीडिया की इसमें रुचि नहीं है। भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता के सशक्त और सजग होने से ही भारत को भारत की दृष्टि से देखा-समझा जाना संभव होगा।

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भारतीय भाषाओं की एकात्मकता

    (12.01.2025, 11.30 बजे, उमंग सभागार)

    प्रथम वक्ता हैदराबाद विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग की अध्यक्ष डॉ. अन्नपूर्णा ने भाषाओं के इतिहास और तेलुगु अनुवाद के क्षेत्र में किए गए अपने कार्यों से अवगत कराया। भक्ति आंदोलन ने भारत को एक सूत्र में पिरोने में अहम भूमिका निभाई, ऐसा कहते हुए उन्होंने उत्तर और दक्षिण भारत को भाषाओं के माध्यम से और अधिक निकट लाने की आवश्यकता प्रकट की। कश्मीर से पधारीं डॉ. मुक्ति शर्मा का मानना था कि भाषाई एकता के कारण समाज के विभिन्न वर्गों के मध्य मतभेद होने की गुंजाइश और भेदभाव होने की सम्भावना बहुत कम हो जाती है। यह क्षेत्रीयता और भाषाओं में असमानताओं को समाप्त करने में सहायक हो सकती है।

    मुख्य अतिथि के रूप में पधारी डॉ. उमा देवी, जो दिल्ली विश्वविद्यालय में आधुनिक भाषा और साहित्य अध्ययन विभाग में तमिल प्रोफेसर हैं, ने धाराप्रवाह हिंदी में अपना अभिमत प्रकट किया कि रामायण, गीता जैसे ग्रंथ विश्व को जोड़ते हैं। उन्होंने भाषा की चिंता करने के साथ-साथ चिंतन करने पर बल दिया और तमिल प्रचार सभा की स्थापना की इच्छा व्यक्त की।  विशिष्ट अतिथि पद्मश्री तोमिओ मिज़ोकामि जी ने सभी भाषाओं का सम्मान किए जाने पर बल देते हुए कहा कि हमें किसी भी भाषा का अपमान नहीं करना चाहिए। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में साहित्य परिषद के श्री मनोज कुमार ने बताया कि भारतीय भाषाओं में भिन्नता केवल बाह्य है, उनकी आत्मा वस्तुतः एक है। उन्होंने इस पर प्रकाश डाला कि कैसे आप युवा विद्यार्थियों के लिए कार्यक्रम करते हुए इस क्षेत्र में ज़मीनी कार्य कर रहे हैं।

    वैश्विक हिन्दी परिवार की वरिष्ठ सदस्या श्रीमती सुनीता पाहूजा ने इस सत्र का संयोजन किया। दिल्ली विश्वविद्यालय की डॉ. दीप्ति अग्रवाल ने संचालन और डॉ. नीता त्रिपाठी ने धन्यवाद ज्ञापन किया।   

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    विदेश में भारत की भाषा और संस्कृति: विशेष संदर्भ गिरमिटिया देश

    (12 जनवरी 2025, दोपहर 2 बजे, उमंग सभागार)

    डायस्पोरा पर विशेष रूप से केंद्रित इस अ०भा०भा० सम्मेलन में स्वाभाविक रूप से विदेशों, खासकर गिरमिटिया देशों में भारत की भाषा और संस्कृति की दशा और दिशा के सत्र के प्रति विशेष आकर्षण था। सभागार में विदेश से आए वक्ताओं एवं उन्हें सुनने को उत्सुक देश-विदेश के श्रोताओं की बड़ी संख्या मौजूद थी। ‘प्रवासी संसार’ के संपादक डॉ० राकेश पांडेय ने गिरमिटिया देशों के अवधी साहित्य और प्रचार-प्रसार पर प्रकाश डाला। डायस्पोरा विशेषज्ञ एवं लेखिका डॉ० दीप्ति अग्रवाल ने कहा कि गिरमिट श्रमिक पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति और हिंदी भाषा का परचम अपने संस्कारों, श्रम, रामचरितमानस के प्रति आस्था और चटनी संगीत के माध्यम से लहरा रहे हैं। सिंगापुर से पधारीं हिन्दी-मैथिली की लेखिका सुश्री आराधना झा श्रीवास्तव ने सिंगापुर में आयोजित विद्यापति समारोह और जानकी नवमी महोत्सव का जिक्र करते हुए मैथिली भाषा के सृजन-संसार पर प्रकाश डाला। ‘ग्लोबल हिन्दी ज्योति’, कैलिफोर्निया अमेरिका की संस्थापिका एवं अध्यक्ष डॉ० अनिता कपूर ने विदेशों में हिन्दी की स्थिति पर चर्चा करते हुए अनुवाद पर ज्यादा से ज्यादा काम करने की आवश्यकता जताई। विदेश मंत्रालय, भारत सरकार में सलाहकार, राजभाषा डॉ० प्रवीण गुगनानी ने गिरमिटियों की दर्द भरी दास्ताँ सुनाई। अमेरिका से पधारे श्री इंद्रजीत शर्मा ने गिरमिटिया और अन्य देशों के प्रवासियों को लेकर कई दशकों के अपने निजी अनुभव को साझा किया। मद्रास हाई कोर्ट के एडवोकेट श्री बी जगन्नाथ ने तमिल गिरमिटियों की पूरी कहानी सुनाते हुए माहौल को भावुक कर दिया।

    मुख्य अतिथि डॉ. सरिता बुधू, जो भोजपुरी स्पीकिंग यूनियन की पूर्व अध्यक्ष एवं विश्व प्रसिद्ध भोजपुरी-हिन्दी विदुषी हैं, ने अपने पाँच दशकों के संघर्ष व गिरमिटिया देशों खासकर मॉरीशस में भोजपुरी की स्थापना की कहानी रोचक अंदाज में सुनाई। उनकी अत्यंत लोकप्रिय पुस्तक ‘कन्यादान’ और ‘गीत-गवाई’ ने भोजपुरी को यूनेस्को में पहुँचाकर उसे धरोहर का दर्जा दिलाया। इस वर्ष उन्हें भारत के राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों प्रतिष्ठित ‘प्रवासी सम्मान अवार्ड-2025‘ से सम्मानित किया गया। 

    सत्र की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ विद्वान नारायण कुमार जी ने दास प्रथा और गिरमिट प्रथा के शुरू होने से पहले भारत से बाहर भेजे गए मज़दूरों की व्यथा का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि हमारी भारतीय भाषाएँ विदेश गईं – खून बहाकर, पसीना बहाकर, विद्वत्ता के बल पर। हमने किसी को गुलाम नहीं बनाया, लेकिन जिन देशों ने हमें गुलाम बनाया उन्होंने हिंदी साहित्य का इतिहास लिखा, हिंदी व्याकरण लिखा, संस्कृत का शब्दकोश बनाया – यह भारतवर्ष की, भारतीय भाषा की, भारत के साहित्य की जीवंतता है। कार्यक्रम का संयोजन वैश्विक हिन्दी परिवार की वरिष्ठ सदस्या श्रीमती सुनीता पाहुजा, संचालन भोजपुरी जंक्शन के संपादक मनोज भावुक और धन्यवाद ज्ञापन जामिया मिलिया के हिन्दी अधिकारी डॉ. राजेश कुमार मांझी ने किया।

    पूरे दो घंटे तक चले इस सत्र में विश्व में भारत को देखने व समझने की कोशिश की गई, एक साझा संस्कृति की बात की गई, साहित्यिक-सांस्कृतिक विनिमय पर जोर दिया गया, युवाओं को जोड़ने व जगाने के लिए मुहिम चलाने की बात की गई।

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    ‘मेरा शब्द संसार’ (साहित्यकारों से बातचीत)

    (11 जनवरी 2025, दोपहर 2.00 बजे, प्रदर्शनी स्थल सभागार)

    अंतरराष्ट्रीय भारतीय भाषा सम्मेलन के तीसरे दिन 12 जनवरी को समापन समारोह के अतिरिक्त भारतीय भाषाओं में पत्रकारिता: अस्मिता के प्रश्न, भारतीय भाषाओं की एकात्मकता, मेरा शब्द संसार, भारतीय भाषाओं में अंतर्सम्बन्ध व अनुवाद, विदेश में भारत की भाषा और संस्कृति : विशेष संदर्भ गिरमिटिया देश, रचना पाठ सत्रों का आयोजन हुआ। 

    इस दिन ‘मेरा शब्द संसार’ लेखकों के रचना संसार पर रोचक एवं ज्ञानवर्द्धक सत्र रहा। इस सत्र में सूत्रधार डॉ. रेनू यादव ने वरिष्ठ साहित्यकार नासिरा शर्मा, प्रवासी साहित्यकार दिव्या माथुर तथा वर्तमान समय के जाने-माने कवि एवं आलोचक प्रो. जितेन्द्र श्रीवास्तव से उनकी रचनाओं पर विस्तृत बातचीत किया। बातचीत के दौरान युद्ध, विभाजन और सांप्रदायिकता पर न लिखे जाने संबंधी स्त्री-रचनाकारों पर लगे आरोपों संबंधी प्रश्न पर इन आरोपों को खारिज करते हुए डॉ. नासिरा शर्मा ने कहा कि स्त्रियाँ इन मुद्दों को संजीदगी से उठा रही हैं, उन्होंने स्वयं इस विषय पर बहुत कुछ लिखा है। स्त्री-रचनाओं को गंभीरता से पढ़े जाने की जरूरत है।

    कहानी 2025 के आधार पर भविष्य में आने वाले भयावह संभावनाओं पर इंगित करते हुए दिव्या माथुर ने वर्तमान समय में अभिव्यक्ति के खतरे, व्यक्तिगत डाटा का सरकार के पास सुरक्षित होना और सोशल मीडिया के खतरों पर प्रकाश डाला और बताया कि हम एक खतरनाक समय की ओर कदम रख रहे हैं ऐसे में संभावना हो सकती है कहानी 2050 काल्पनिक होते हुए सत्य हो जाये।  

    कविताओं और आलोचना पर विस्तृत बातचीत करते हुए लेखकों की दृष्टि में राजनीति और सत्ता की राजनीति में प्रो. जितेन्द्र श्रीवास्तव ने अंतर बताते हुआ कहा कि लेखक स्वाभाविक तौर पर विपक्ष में होता है, इसका मतलब यह नहीं है कि वह सरकार के खिलाफ है। यदि ऐसा होता तो आज नागार्जुन, त्रिलोचन, रघुवीर सहाय आदि कवि अप्रासंगिक हो जातें। जनता की संवेदना का पक्षधर लेखक या कवि होता है इसलिए सामान्यतः लोगों को लगता है कि वह सत्ता के खिलाफ है, जबकि यह सत्य नहीं है। 

    अंत में तीनों साहित्यकारों ने आज की पीढ़ी को संदेश देते हुए कहा कि आज लेखकों को धैर्य रखने की जरूरत है, लिखने और छपने की भागदौड़ में शामिल होने के बजाय अच्छा साहित्य लिखने की ओर ध्यान देना चाहिए। इस रोचक सत्र में रचना-प्रक्रिया से लेकर कविता, कहानी, उपन्यास, आलोचना और सामाजिक मुद्दों आदि पर तथ्यपरक विस्तृत बातचीत हुई। इस सत्र की संयोजक सुश्री अर्पणा संत सिंह, तथा समन्वयक श्री जितेन्द्र चौधरी रहें। इस सत्र में देश विदेश के श्रोताओं ने अपनी उपस्थिति से कार्यक्रम को सफल बनाया।

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    भारतीय भाषाओं  में अंतर्संबंध और अनुवाद

    (11 जनवरी 2025, दोपहर 2.00 बजे, समवेत सभागार)

    तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय भारतीय भाषा सम्मेलन में दूसरे दिन 11 जनवरी 2025 को ‘भारतीय भाषाओं में अंतर्संबंध और अनुवाद’ विषय पर एक सत्र का आयोजन किया गया।

    इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो. गिरीशनाथ झा, अध्यक्ष- वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग, भारत सरकार ने कहा कि भारतीय भाषाओं के बीच साहित्यिक और सांस्कृतिक संबंध बहुत गहरा है। अनुवाद करना उतना सरल नहीं है। इसके भीतर कई प्रकार की समस्याएँ आती है। हालाँकि उन्होंने अनुवाद के संदर्भ में यह भी कहा कि भारतीय भाषाओं के बीच अनुवाद करना उतना मुश्किल नहीं है, जितना कि अंग्रेजी या किसी दूसरी भाषाओं से भारतीय भाषाओं में। भाषाओं के बीच परस्पर संवाद कर अनुवाद को आसान कर सकते हैं। भारतीय भाषाओं  में शिक्षा के प्रसार के लिए कठोर निर्णय लेने की आवश्यकता होगी।

    मुख्य अतिथि प्रो. आलोक गुप्ता, पूर्व प्रोफेसर, गुजरात केन्द्रीय विश्वविद्यालय ने कहा कि भारतीय भाषाओं  के बीच अंतर्संबंध के वह सूत्र उभरकर आ सकते हैं, इसके लिए आवश्यक है कि हम दूसरे को समझें—उससे हम अपने को भी बेहतर ढंग से समझ सकते हैं—यह सभी भाषाओं के लिए लागू होती है। उन्होंने कहा कि अबोला और अहंकार ने भारतीय भाषाओं  के बीच की दूरी को बढ़ाया है। इसे पाटने के लिए आपसी संवाद ही एक माध्यम हो सकता है। उन्होंने इस बात पर विशेष ध्यान दिलाया कि अभी भी भारतीय भाषाओं  के बीच संवाद की बहुत अधिक संभावनाएं हैं।

    विशिष्ट वक्ता प्रो. माणिक्याम्बा ने कहा कि भाषाओं  का अंतर्संबंध होता है। भाषाओं  के माध्यम से भावों का प्रसार होता है। भारतीय संस्कृति के मूल तत्व भाषा के माध्यम से प्रसारित हुआ है। अंतर्संबंध भाषाई होता है, भावात्मक होता है जो साहित्य के माध्यम से और विस्तार पाता है।

    डॉ जसविंदर कौर बिंद्रा, प्रसिद्ध अनुवादक, ने कहा कि एक अच्छा पाठक दूसरी भाषाओं  की महत्त्वपूर्ण रचनाओं को पढ़ने के लिए अनुवाद का ही सहारा लेता है। अनुवाद करते समय इसका विशेष ध्यान विशेष रूप से रखना होता है कि जो मूल्य हैं, वे छूटे नहीं- उसके बिना अनुवाद कर्म अधूरा ही रहेगा। भारतीय भाषाओं  में समन्वय के लिए अनुवाद ही पुल का काम करता है और इसी से अंतर्संबंध बनते और विकसित होते हैं। अनुवाद के माध्यम से ही साहित्य एक भाषा से दूसरी भाषा में जाता है।

    प्रो. उमा देवी, विभागाध्यक्ष, तमिल विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, ने कहा कि भाषा से संस्कृति जुड़ी है और संस्कृति से भाषा। भाषा के माध्यम से हम संस्कृति को समझ सकते हैं और संस्कृति के माध्यम से भाषा को।

    डॉ कोकिला केलकर, एशोसिएट प्रोफेसर, अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय, हैदराबाद ने कहा कि भारतीय भाषाएँ संस्कृत से निकली हैं। शिक्षा दी जाती है, विद्या प्राप्त की जाती है। उन्होंने भारतीय भाषाओं  के शब्दों को लेकर अलग-अलग भाषा में अलग-अलग अर्थ को लेकर चर्चा की। उन्होंने ज़ोर देकर और उदाहरणों से स्पष्ट किया कि भारतीय भाषाओं का विकास ही अनुवाद से शुरू हुआ है। भारतीय संस्कृति को आगे लेकर जाना है तो अनुवाद को आगे लेकर जाना होगा। 

    इस सत्र का संचालन डॉ जयशंकर यादव ने किया।

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    विदेश में भारत की भाषा और संस्कृति: विशेष संदर्भ गिरमिटिया देश

    (12 जनवरी 2025, दोपहर 2 बजे, उमंग सभागार)

    डायस्पोरा पर विशेष रूप से केंद्रित इस अ०भा०भा० सम्मेलन में स्वाभाविक रूप से विदेशों, खासकर गिरमिटिया देशों में भारत की भाषा और संस्कृति की दशा और दिशा के सत्र के प्रति विशेष आकर्षण था। सभागार में विदेश से आए वक्ताओं एवं उन्हें सुनने को उत्सुक देश-विदेश के श्रोताओं की बड़ी संख्या मौजूद थी। ‘प्रवासी संसार’ के संपादक डॉ० राकेश पांडेय ने गिरमिटिया देशों के अवधी साहित्य और प्रचार-प्रसार पर प्रकाश डाला। डायस्पोरा विशेषज्ञ एवं लेखिका डॉ० दीप्ति अग्रवाल ने कहा कि गिरमिट श्रमिक पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति और हिंदी भाषा का परचम अपने संस्कारों, श्रम, रामचरितमानस के प्रति आस्था और चटनी संगीत के माध्यम से लहरा रहे हैं। सिंगापुर से पधारीं हिन्दी-मैथिली की लेखिका सुश्री आराधना झा श्रीवास्तव ने सिंगापुर में आयोजित विद्यापति समारोह और जानकी नवमी महोत्सव का जिक्र करते हुए मैथिली भाषा के सृजन-संसार पर प्रकाश डाला। ‘ग्लोबल हिन्दी ज्योति’, कैलिफोर्निया अमेरिका की संस्थापिका एवं अध्यक्ष डॉ० अनिता कपूर ने विदेशों में हिन्दी की स्थिति पर चर्चा करते हुए अनुवाद पर ज्यादा से ज्यादा काम करने की आवश्यकता जताई। विदेश मंत्रालय, भारत सरकार में सलाहकार, राजभाषा डॉ० प्रवीण गुगनानी ने गिरमिटियों की दर्द भरी दास्ताँ सुनाई। अमेरिका से पधारे श्री इंद्रजीत शर्मा ने गिरमिटिया और अन्य देशों के प्रवासियों को लेकर कई दशकों के अपने निजी अनुभव को साझा किया। मद्रास हाई कोर्ट के एडवोकेट श्री बी जगन्नाथ ने तमिल गिरमिटियों की पूरी कहानी सुनाते हुए माहौल को भावुक कर दिया।

    मुख्य अतिथि डॉ. सरिता बुधू, जो भोजपुरी स्पीकिंग यूनियन की पूर्व अध्यक्ष एवं विश्व प्रसिद्ध भोजपुरी-हिन्दी विदुषी हैं, ने अपने पाँच दशकों के संघर्ष व गिरमिटिया देशों खासकर मॉरीशस में भोजपुरी की स्थापना की कहानी रोचक अंदाज में सुनाई। उनकी अत्यंत लोकप्रिय पुस्तक ‘कन्यादान’ और ‘गीत-गवाई’ ने भोजपुरी को यूनेस्को में पहुँचाकर उसे धरोहर का दर्जा दिलाया। इस वर्ष उन्हें भारत के राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों प्रतिष्ठित ‘प्रवासी सम्मान अवार्ड-2025‘ से सम्मानित किया गया। 

    सत्र की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ विद्वान नारायण कुमार जी ने दास प्रथा और गिरमिट प्रथा के शुरू होने से पहले भारत से बाहर भेजे गए मज़दूरों की व्यथा का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि हमारी भारतीय भाषाएँ विदेश गईं – खून बहाकर, पसीना बहाकर, विद्वत्ता के बल पर। हमने किसी को गुलाम नहीं बनाया, लेकिन जिन देशों ने हमें गुलाम बनाया उन्होंने हिंदी साहित्य का इतिहास लिखा, हिंदी व्याकरण लिखा, संस्कृत का शब्दकोश बनाया – यह भारतवर्ष की, भारतीय भाषा की, भारत के साहित्य की जीवंतता है। कार्यक्रम का संयोजन वैश्विक हिन्दी परिवार की वरिष्ठ सदस्या श्रीमती सुनीता पाहुजा, संचालन भोजपुरी जंक्शन के संपादक मनोज भावुक और धन्यवाद ज्ञापन जामिया मिलिया के हिन्दी अधिकारी डॉ. राजेश कुमार मांझी ने किया।

    पूरे दो घंटे तक चले इस सत्र में विश्व में भारत को देखने व समझने की कोशिश की गई, एक साझा संस्कृति की बात की गई, साहित्यिक-सांस्कृतिक विनिमय पर जोर दिया गया, युवाओं को जोड़ने व जगाने के लिए मुहिम चलाने की बात की गई।

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    रचना पाठ सत्र की रिपोर्ट

    (12.01.2025, अपराह्न 2 बजे, दृश्यम-2, प्रदर्शनी स्थल)

    वरिष्ठ कवयित्री नीलम वर्मा एवं डॉ० सविता चड्ढा की काव्य कृतियों के लोकार्पण के बाद रचना पाठ का आरंभ वरिष्ठ कवयित्री डॉ० मंजु गुप्ता के काव्य पाठ से हुआ। आगे सुश्री निशा भार्गव, डॉ० नीलम वर्मा, श्री अनिल अनल हातु, सुश्री पूनम सपरा, श्री अरविन्द पथिक एवं डॉ० जसविंदर कौर बिंद्रा ने काव्य पाठ किया। प्रवासी साहित्यकार मनीष पाण्डेय ने मातृभूमि के प्रति प्रेम प्रकट करते हुए कविता सुनाई तो डॉ० राजेश कुमार ने अपनी एक व्यंग्य रचना सुनाई। समस्त रचना पाठ में बहुविध भावों और उनकी प्रस्तुति में आरोह-अवरोह का सुन्दर संयोजन था।

                   इस कार्यक्रम में श्रोता रूप में अनेक महत्वपूर्ण चिंतक और रचनाकार उपस्थित हुए जिनमें श्री नरेश शांडिल्य, श्री अतुल प्रभाकर, श्री मनोज मोक्षेंद्र, सुश्री रमा शर्मा, श्री प्रणय प्रसून, डॉ० वरुण कुमार आदि। मुख्य अतिथि श्री देवेन्द्र कुमार ‘देवेश’ ने भाषा एवं साहित्य के लिए श्री अनिल जोशी जी द्वारा किए जा रहे प्रयासों की सराहना की। अध्यक्ष श्री बृजेंद्र त्रिपाठी ने काव्य पाठ में रचनाशीलता एवं रचनाकार के मानसिक क्षितिज को रेखांकित किया। कार्यक्रम का संयोजन डॉ० शालिनी शुक्ला ने एवं संचालन मनोज श्रीवास्तव ‘अनाम’ ने किया। सुप्रसिद्ध लेखिका अलका सिन्हा ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

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    समापन समारोह

    (12 जनवरी 2025, सायं 4.00 बजे, समवेत सभागार)

    दिनांक 12.01.2025 को तीन दिवसीय (10-12 जनवरी) अंतरराष्ट्रीय भारतीय भाषा सम्मेलन – 2025 का समापन समारोह आयोजित किया गया।

    कार्यक्रम की अध्यक्षता का दायित्व पूर्व केंद्रीय शिक्षा मंत्री, वर्तमान सांसद एवं वरिष्ठ विख्यात साहित्यकार डॉ रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ के सुपुर्द रहा। मुख्य अतिथि की भूमिका में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष श्री राम बहादुर राय ने निभाई। विशिष्ट अतिथि के तौर पर शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के संयोजक श्री अतुल कोठारी तथा आक्सफोर्ड बिजनेस स्कूल के प्रबंध निदेशक डॉ पदमेश गुप्त विराजमान रहे। वक्ताओं की श्रेणी में अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के महासचिव श्री श्याम परांडे तथा वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष श्री अनिल जोशी मंचासीन रहे। संचालन का कार्यभार अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के सचिव श्री गोपाल अरोड़ा के सशक्त हाथों में रहा।

    कार्यक्रम का आरंभ में मंचासीन गणमान्य विभूतियों को अंगवस्त्र ओढ़ाकर एवं स्मृति-चिन्ह भेंट स्वरूप प्रदान कर सम्मानित किया गया। तदोपरांत, संचालक श्री गोपाल अरोड़ा ने श्री अशोक बतरा को अपने आरंभिक उदबोधन के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय भारतीय भाषा सम्मेलन – 2025 के अंतर्गत 22 सत्रों के माध्यम से आयोजित किए गए विभिन्न विधाओं एवं विषयों पर परिचर्चा और विचार-विमर्श तथा लेखकों के रचना-संसार और काव्यपाठ पर संक्षिप्त रिपोर्ट ‘प्रतिवेदन’ के नाम से सभागार में उपस्थित गणमान्य विभूतियों, विद्वतजनों एवं जनसमुदाय के समक्ष प्रस्तुत की।

    तत्पश्चात्, संचालक द्वारा मंचासीन गणमान्य विभूतियों को क्रमबद्ध तरीके से अपने-अपने उदबोधनों के लिए आमंत्रित किया गया।

    श्री श्याम परांडे ने अपने स्वागत उदबोधन के माध्यम से हिन्दी भाषा पर किए जा रहे प्रयासों को दृष्टिगोचर प्रस्तुत करते हुए उसके विकास हेतु ओर अधिक अथक परिश्रम पर बल दिया। सभी भारतीय भाषाएं हमारी मातृभाषाएं हैं।

    श्री अनिल जोशी ने अपने उदबोधन से स्पष्टीकरण दिया कि इस सम्मेलन के आयोजन का उद्देश्य भारतीय भाषाओं को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उपयुक्तता के साथ प्रतिस्थापित करना है।

    श्री पदमेश गुप्त ने अपने वक्तव्य में स्पष्ट किया कि हमें हिन्दी को सही और सम्मानजनक स्थान ग्रहण करने के लिए ओर अधिक तेजी से कार्य करने की ज़रूरत है। यह कार्यक्रम का समापन नहीं है।

    श्री राम बहादुर राय ने इस समापन समारोह को ‘समावर्तन समारोह’ का नाम दिया और उदाहरण देते हुए कहा कि विगत वर्षों में देश के शीर्ष 10 समाचार-पत्रों की श्रेणी में नवभारत टाइम्स हिन्दी भाषा में प्रकाशित सबसे प्रचलित एकमात्र समाचार-पत्र था। बाकी के नौ अंग्रेज़ी भाषा के थे। उस दौरान उसके अंतिम पृष्ठ पर प्रतिदिन अंग्रेजी के एक शब्द को चार-पांच लाइन में उसके अभिप्राय के साथ समझाया जाता था। श्री विद्या निवास मिश्र का स्मरण करते हुए उद्धृत किया कि भारतीय भाषाओं के चार भाग हैं। भाषा एक ही है। इसलिए अधिक-से-अधिक प्रचलन के लिए इसके उपयोग पर बल दिए जाने के उद्देश्य सहित प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए। उन्होंने अपने उदबोधन को विराम देने से पूर्व रेखांकित किया कि पूर्व न्यायाधीश स्व॰ श्री फाली एस नारीमन ने अपनी नई पुस्तक के दूसरे अध्याय में लिखा है कि संविधान में भाषा के विषय को उलझा कर रख दिया है।

    अपने अध्यक्षीय उदबोधन में डॉ रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि हम पहले भारतीय हैं, बाद में भाषा-भाषाई हैं। उन्होंने लार्ड मैकाले का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए इसे व्याख्यायित भी किया। साथ ही, उन्होंने स्मरण कराया कि आज 185 वर्षों के बाद हमारी अपनी शिक्षा नीति आई है, जो अपने देश के विद्यार्थियों को अनेक मानकों में लाभान्वित करने में सक्षम है।

    कार्यक्रम के अंतिम पड़ाव पर श्री विनयशील चतुर्वेदी द्वारा मंचासीन गणमान्य विभूतियों तथा सभागार में उपस्थित जनसमुदाय के बीच देश-विदेश से पधारे विभिन्न क्षेत्रों की विभूतियों, विद्वतजनों, विद्यार्थियों, शोधार्थियों एवं विशिष्ट आगंतुकों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए धन्यवाद और आभार ज्ञापित करने के साथ यह आयोजन सम्पन्न हुआ।

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