डॉ बी एल गौड़ फाउंडेशन द्वारा आयोजित गीत संध्या और कृतियों का लोकार्पण

दिनांक 30.01.2025 को उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा वेस्ट स्थित गौड़ सिटी के गौड़ सरोवर प्रीमियर के सभागार में डॉ बी एल गौड़ फाउंडेशन एवं पं तिलकराज शर्मा स्मृति न्यास के संयुक्त तत्वावधान में गीत संध्या एवं डॉ बी एल गौड़ की “अक्सर लौटना नहीं होता” तथा सुप्रसिद्ध समाजसेवी डॉ इंद्रजीत शर्मा की “ऐसे ऐसे लोग” नवीनतम कृतियों के लोकार्पण का भव्य आयोजन किया गया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता का कार्यभार प्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार डॉ ममता कालिया के सशक्त हाथों में रहा। मुख्य अतिथि के कार्यभार का वहन पूर्व केंद्रीय शिक्षा मंत्री, सांसद एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने किया। विशिष्ट अतिथियों की श्रेणी में प्रो॰ उमापति दीक्षित, सेवानिवृत्त वायुसेना अधिकारी एवं वरिष्ठ साहित्यकार श्री शैलेन्द्र शैल तथा शिक्षाविद्, उपन्यासकार एवं डॉ कुमार विश्वास के अग्रज भ्राता प्रो॰ विकास शर्मा विराजमान रहे। स्वागताध्यक्ष की भूमिका का निर्वहन वरिष्ठ साहित्यकार श्री कमलेश भटट ‘कमल’ ने किया। संचालक की जिम्मेदारी शिक्षाविद् एवं कवि डॉ विवेक गौतम के सशक्त हाथों में रही।

कार्यक्रम के आरंभ में मंचासीन गणमान्य विभूतियों के कर-कमलों द्वारा दीप प्रज्ज्वलित करने के साथ हुआ। तत्पश्चात्, जहां एक ओर, श्री कमलेश भटट ‘कमल’ द्वारा क्रमबद्ध तरीके से मंचासीन गणमान्य विभूतियों का परिचय प्रदान करने के साथ माल्यार्पण, अंगवस्त्र ओढ़ाकर एवं स्मृति-चिन्ह प्रदान करके सम्मानित किया गया। वहीं दूसरी ओर, सभागार में पधारे विद्वतजनों डॉ जय वर्मा, श्रीमती दिव्या माथुर, डॉ शम्भू पंवार, कमलेश भटट ‘कमल’, डॉ विवेक गौतम, प्रेम भारद्वाज ‘ज्ञानभिक्षु’, श्री विज्ञान व्रत, श्री नवीन चन्द्र लोहानी का भी इसी प्रकार माल्यार्पण, अंगवस्त्र ओढ़ाकर एवं स्मृति-चिन्ह प्रदान करके सम्मानित किया गया।

कार्यक्रम के अगले चरण में क्रमबद्ध तरीके से मंचासीन गणमान्य विभूतियों के कर-कमलों द्वारा दोनों पुस्तकों “अक्सर लौटना नहीं होता” और “ऐसे ऐसे लोग” का लोकार्पण किया गया। तदोपरांत, डॉ विवेक गौतम द्वारा क्रमवार मंचासीन गणमान्य विभूतियों को अपने-अपने उदबोधनों के लिए आमंत्रित किया गया।

डॉ रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने अपने वक्तव्य से रेखांकित किया कि श्री बी एल गौड़ मां सरस्वती और लक्ष्मी का सम्मिश्रण हैं। उन पर दौनों की कृपा है और सदैव बराबर बनी रहे। उनका एक विस्तृत ग्रंथ जल्दी ही आने वाला है। श्री इंद्रजीत शर्मा के नाम में ही इंद्र और जीत है। उनके समाजसेवी कार्यकलापों से देश-विदेश में सभी परिचित हैं। तत्पश्चात्, सभी मंचासीन एवं सभागार में उपस्थित अन्य सम्मानित विभूतियों का संक्षिप्त व्यक्तित्व परिचय और उनसे संबंधित व्यक्तिगत टिप्पणी करते हुए वक्तव्य का आरंभ किया। अपने भीतर के भावों को अपनी रचना के माध्यम से बाहर लाना चाहिए। अंदर के उदगार ही अपना पाथेय बनाते है। भीतरी अंश का सामर्थ्य बढ़ाते हैं और भटकाव की स्थिति में आपको संभाल सकते हैं। आज के समय में हिंदुस्तान की जिम्मेदारी बढ गई है। साधकों की जिम्मेदारी है कि वह ऐसा वातावरण बनाए, जिसमें समस्त मानव-समुदाय को उजाला प्रदान करने में सामर्थ्य हो। लेखक के भीतर की छटपटाहट और संवेदना जीवन से धुंध को दूर करती है।‌ आज के पश्चिमी देशों के प्रभाव की जिंदगी में भारत की संस्कृति मार्गदर्शन प्रदान कर सकती है, क्योंकि हम वसुधैव कुटुम्बकम की भावना से जीवनयापन करने में विश्वास रखते हैं। सुधार की गुंजाइश हमेशा रहेगी। पाश्चात्य सभ्यता के लिए दुनिया एक बाज़ार है, हमारे लिए परिवार है। लेखन मानवता के लिए लाभदायक है। कर्मण्येवाधिकारस्ते मा भागभवे विज़न को साकारात्मक के साथ बढ़ाना होगा। बच्चा अध्यापक की बात सुनता है। लार्ड मैकाले ने हमारी शिक्षा को नष्ट किया था। उजाला प्रदान करने के लिए आग पैदा करनी है। उन्होंने लेखक गांव के संबंध में बताया और अपनी रचनाओं को आकार देने के लिए वहां आकर सृजन करने के लिए आवाहन करते हुए आमंत्रण दिया।

प्रो॰ विकास शर्मा ने दुष्यंत कुमार के सृजन, अज्ञेय की शेखर एक जीवनी, जोहन कीट्स, सुजान उदाहरण प्रस्तुत करते हुए अवगत कराया कि रचनाकार को ऊर्जा कहां से मिलती है। यह जानकारी हमें संज्ञान में रखनी होगी। रत्नावली को भूल जाएं। विषय यह नहीं है कि कविता और गद्य में से पहले कौन आया। शेक्सपियर पांचवीं पास थे। कबीर कभी पाठशाला नहीं गए। आज सामाजिक मूल्यों में विघटन हो रहा है। उन्होंने डॉ इंद्रजीत शर्मा एवं डॉ बी एल गौड़ की तुलना लार्ड चैसटरफिलड से करते हुए मन और धन से की जा रही इस सृजनात्मकता की प्रशंसा की। अपनी रचनाओं के माध्यम से अपनी विचारधारा को सफलतापूर्वक आगे बढ़ाना होगा। लेखकों का दायित्व है कि डॉ नगेंद्र के मत से सरोकार रखते हुए अपने लेखन पर राजनीति का प्रभाव नहीं पड़ने देना चाहिए। वक्तव्य को विराम देने से पूर्व उन्होंने अपनी कविता का काव्यपाठ भी किया।

प्रो॰ उमापति दीक्षित ने रेखांकित किया कि कि बी एल गौड़ की पुस्तक का शीर्षक सार्थकता प्रदान करता है क्योंकि प्रवासी लेखक कभी वापस नहीं लौटता। संगोष्ठी में वह बात हो, जो हम जनता के बीच पहुंचाना चाहते हैं। मैथिलीशरण गुप्त की कविता ‘जग में रहकर कुछ काम करो’ और दुष्यंत कुमार की ‘आग जलनी चाहिए’ के माध्यम से अपनी क्रियशीलता के माध्यम से स्वयं निर्धारित मार्ग को प्रतिस्थापित हमारी लेखनी ही करती है।

डॉ बी एल गौड़ ने अपने संक्षिप्त परिचयात्मक वक्तव्य में स्पष्ट किया कि हम 15 वर्ष गाजियाबाद में रहने के बाद दिल्ली में रहने आ गए। उसी दौरान की अपनी पुरानी रचना के काव्यपाठ के साथ विराम दिया।

डॉ ममता कालिया ने अपने अध्यक्षीय उदबोधन में बी एल गौड़ की के लिए लिखी भूमिका का जिक्र करते हुए उनकी सृजनात्मक अभिव्यक्ति को साधुवाद दिया। मीठी ईद पढ़ी। इसमें समाहित प्रकरण जीवन में आती समस्याओं के निराकरण का मार्ग प्रशस्त करती हैं। नैतिक बल और आंतरिक शक्ति का सृजन तथा बुद्धिमत्ता प्रदान करने वाली हैं। डॉ इंद्रजीत शर्मा की पुस्तक के बारे में कहा कि दो-चार पृष्ठ पढ़ने से पता चलता है कि इसमें उनके जीवन की कुछ खट्टी-मीठी यादें 12 संस्मरण आलेख का आकार लिए प्रस्तुत हैं। वे क्रियेटिव मंच देते हैं। वह अपनी इस चनात्मकता और सृजनात्मक शक्ति को हमेशा कायम रखें, जिससे आप समाज को समृद्ध बनाते हैं। सारांश में व्यक्त किया कि “सर्वे भवन्तु सुखिना, सर्वे सनतु निरामया।”

डॉ इंद्रजीत शर्मा ने अपने संक्षिप्त वक्तव्य में गत 64 वर्षों के अनुभव सांझा करते हुए कहा कि अच्छे-अच्छे लोगों के बारे में लिख रहा हूं। ग्रंथी का उदाहरण देते हुए कहा कि उसने मां के कैटरेक्ट का आपरेशन कराने के लिए नकद राशि की मांग रखी थी, लेकिन मैंने उसे नकद ना देकर पूरे आपरेशन का ख़र्चा स्वयं उठाया था। 

श्री शैलेन्द्र शैल ने अपने उदबोधन की बजाए सीधे-सीधे अपनी रचनाओं “सोच और मैं” के काव्यपाठ से विराम दिया।

डॉ नवीन चन्द्र लोहानी ने उद्धृत किया कि रचनाकारों की रचनाओं को बुलंदियों तक पहुंचाया जाना चाहिए, तभी सार्थकता के साथ परिवर्तन संभव होगा।

सभागार में मंच के दोनों ओर विराजमान विभूतियों ने अपनी-अपनी श्रेष्ठतम रचनाओं के काव्यपाठ से उपस्थित श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करते हुए लाभान्वित किया।

श्रोता दीर्घा में देश-विदेश के विभिन्न शहरों और क्षेत्रों से पधारे विद्वतजनों एवं आगंतुकों में डॉ राकेश दुबे, श्रीमती स्नेहा वर्मा, श्री ओमप्रकाश प्रजापति, श्री अतुल माथुर, श्रीमती उमापति दीक्षित, चित्रकार श्री आलोक पुनियाल, श्रीमती गीतांजलि, डॉ राकेश पाण्डेय तथा आकाशवाणी दूरदर्शन कलाकार, सेवानिवृत्त बैंक अधिकारी, अधिवक्ता एवं गद्य-लेखक श्री कुमार सुबोध इत्यादि प्रमुख रहे।

रिपोर्ट — कुमार सुबोध, ग्रेटर नोएडा वेस्ट।

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