
लतिका बत्रा की पुस्तक ‘जुगनू यादों के’ का भव्य लोकार्पण
हिन्दी भवन, दिल्ली में दस फ़रवरी 2025 को सुविख्यात लेखिका लतिका बत्रा की पुस्तक ‘जुगनू यादों के’ का भव्य लोकार्पण प्रतिष्ठित लेखक एवं बाल साहित्य कार आदरणीय दिविक रमेश जी की अध्यक्षता में साहित्य जगत के कई प्रख्यात साहित्यकारों के सान्निध्य में सम्पन्न हुआ।

अग्रणी लेखक एवं अनुवादक सुभाष नीरव जी, वंदना यादव, वंदना वाजपेयी जैसे साहित्यकारों के साथ ही प्रवासी लेखक अनिता कपूर (अमेरिका), सतीश मलिक भी कार्यक्रम में उपस्थिति रही। कानपुर से विशेष रूप से आये लॉयंस इण्टरनैशनल के पूर्व मंडलाध्यक्ष श्री गोपाल तुलसियान की कार्यक्रम में उपस्थिति रही। वरिष्ठ व्यवसायी एवं समाजसेवी रमेश चंद्र कुमार, सुभाष बत्रा और उनकी भार्या लतिका बत्रा की कार्यक्रम में विशेष उपस्थिति रही।

कार्यक्रम का खूबसूरत संचालन रेडियो संगिनी की आर जे रंजना जी ने किया। संयोजन निधि मानवी, विशेष सहयोग राजीव तनेजा एवं हरीश बत्रा, छायांकन सहयोग गुलशन प्रेम का रहा।
पुस्तक अनावरण के उपरांत सर्वप्रथम अपने वक्तव्य में सुभाष नीरव जुगनू यादों के पुस्तक के विषय में कहा कि ये किसी परिपक्व लेखिका की किताब है। इस किताब में जो लोक भाषा के शब्द प्रयोग किये गए हैं वे इसे विशिष्ट बनाते हैं। एक एक चैप्टर स्वयं में अनेक कहानियाँ और उपन्यास की सामग्री समेटे है।

दिविक रमेश ने पुस्तक के विषय में बोलते हुए कहा कि कोई साहित्यकार अपने बचपन में लौटे, जिसका मतलब ही है कि अबतक की तमाम विसंगतियां तमाम उलझने ऊल जलूल बातें जो हमें घेरे रहती है उनसे हट कर हम फिर से मासूमियत की ओर लौटें। आगे उन्होंने कहा कि इस पुस्तक में जो स्थानिकता और लोक का जो वैभव है। ये कृति किसी धटना को याद करते हुए वर्णन मात्र नहीं है इसमें दृष्यातमकता है, पूरा परिवेश हमारे सामने आ जाता है।
भाषा की स्थानिकता की बात करते हुए वंदना यादव ने मेला और मुर्गी का कत्ल संस्मरण में और अन्य अनेक स्थानों पर आये कई ठेठ पंजाबी शब्दों के खूबसूरत प्रयोग की बात कही।
वंदना वाजपेयी ने कहा कि ये लतिका जी की कलम की ताकत है, जिसमें संस्मरण के साथ लोक की संस्कृति, भाषा, मुहावरे, परिवेश को सँजोया है। आज के टूटते बिखरते परिवारों और एकाकी होते जीवन में ये किताब एक दस्तावेज सी है, जो आने वाली पीढ़ियों को संयुक्त परिवार के अपनेपन और खट्टे-मीठे अनुभवों को बताएगी।
कार्यक्रम में लेखिका लतिका बत्रा जी ने पुस्तक में से एक संस्मरण “गट्टा लाचियां वाला” का पाठ किया। कार्यक्रम के अंत में कवि सम्मेलन का आयोजन था जिसमें जाने माने शायरों और कवियों ने खूब समां बांधा।



