‘शिवा’ और ‘मित्रा’ कितने अच्छे नाम है ना!

(– अश्विनी केगांवकर, नीदरलैंड)

अक्टूबर महीने ने दस्तक दे दी थी।  नीदरलैंड में धीरे-धीरे मौसम ने अपना रुख बदल दिया था।  धीरे-धीरे ठंड बढ़ रही थी और औपचारिक रूप से ठंड का मौसम अब शुरू हो गया था। सूर्योदय भी करीब ७:१५ या ७:३० बजे हुआ करता था।

मेरे ऑफिस के खिड़की के सामने खड़े बड़े वृक्षों ने अपने पत्तों को त्याग कर पतझड़ का स्वागत दिल की गहराइयों से किया था। निशब्द: और भावहीन होकर वृक्षों ने मौसम के परिवर्तन को अपनाया था।

ऐसी ही एक ठंडी सुबह मैं ऑफिस पहुंचती हूँ। ठण्ड से व्याकुल हुई मैं ऑफिस पहुंचते ही गरमागरम चाय पीने की लालसा रखती हूँ।

ऑफिस पहुँचते ही सबसे पहले मैं कैफेटेरिया की ओर  रुख करती हूँ। दिल से भारतीय होने के नाते मुझे ऑफिस की वेंडिंग मशीन की बनी कॉफ़ी से ज्यादा मुझे मेरे घर में बनाई हुई चाय ज्यादा पसंद आती है।

ऑफिस शुरू होने से पहले कैफेटेरिया में घर से बनाई हुए मसाला चाय का लुफ्त ठण्ड के मौसम में उठाना किसी स्वर्ग सुख से कम नहीं होता है।

चाय का लुफ्त उठाते हुए मोबाइल में आए व्हाट्सप्प सन्देश को पढ़ती हूँ।

व्हाट्सअप के संदेशों में खोई हुई मैं अचानक सामने ६२ वर्षीय मेरे सहकर्मी हुसैन जी को देखती हूँ। वे मुझे डच भाषा में अभिवादन करते हैं और सीधे सामने वाली कुर्सी पर बैठ जाते हैं।

भारतीय मसाला चाय को देखते हुए हुसैन जी तुरंत डच भाषा में कहते हैं, “आप भारतीयों की चाय आप लोगों जैसे ही बहुत ही अच्छी होती है।”

मैं उन्हें मसाला चाय का आग्रह करती हूँ वे तुरंत चाय को स्वीकार करते हुए डच भाषा में कहते है, “यह चाय  कितनी स्वादिष्ट है।”

बात को आगे बढ़ाते हुए वे कहते है “आप भारतीयों की चाय, खाना, संगीत और आपकी संस्कृति सभी बहुत उत्कृष्ट होते हैं।”

मैं दिल से गर्वित एवं फुला नहीं समाती हूँ किन्तु बाहर से केवल अपना सर हिलाकर हाँ में हाँ मिलाती हूँ।

हुसैन जी मेरे ऑफिस में पिछले चार सालों से कार्यरत हैं। वे अपने परिवार समेत नीदरलैंड के शहर झांदाम में रहते है। झांदाम शहर नीदरलैंड की राजधानी एम्स्टर्डम से लगभग १८ से २० कि.मी के दूरी पर स्थित है।

मूलतः ईरान से तालुकात रखने वाले हुसैन जी लगभग तीस सालों से नीदरलैंड में रह रहे हैं।

चाय का लुफ्त उठाते-उठाते वे बताते हैं कि पिछले रविवार की शाम को अपने पारिवारिक ईरानी मित्र के घर गए थे। ईरानी मित्र ने उन्हें अपने जुड़वा बच्चों के नामकरण समारोह में आमंत्रित किया था।

मैंने बड़े कुतूहल से उन्हें पूछा,” बच्चों का नाम क्या रखा है?”

उन्होंने बड़े गर्वित भाव से कहा, मेरे मित्र ने प्राचीन ईरानी भाषा के शब्दों से प्रभावित होकर अपने बच्चों का नाम रखा है।

इस बात पर हम सभी ईरानी मित्रगण बड़े खुश है। वे दोनों ही नाम करीबन ३००० वर्ष पुराने हैं।

मैं बड़े जिज्ञासा से उन्हें पूछती हूँ, “आप के मित्र ने बच्चों के नाम क्या रखा है?”

हुसैन जी बड़ी ख़ुशी के साथ कहते है,”मित्रा” और “शिवा”!

मैं यह सुनकर बिलकुल स्तबध हो जाती हूँ और दो मिनट बाद उन्हें इन नामों का अर्थ पूछती हूँ।

वे कहते है, ‘मित्रा’ का अर्थ होता है, वह दोस्त जो कभी कसम या वादा नहीं तोड़ता है।

मैंने उन्हें कहती हूँ, हमारे हिंदी भाषा में भी ‘मित्र’ शब्द का अर्थ दोस्त होता है।

यह सुनकर वे बड़े खुश हो जाते है।

फिर मैं बड़ी कुतूहल के साथ ‘शिवा’ नाम  का अर्थ पूछती हूँ।

वे कहते है, ‘शिवा’ अर्थ वह जो अपने गुणों से या दिव्यता के कारण दूसरों को अपनी और आकर्षित करता हो।

मैं मन ही मन धन्य हो जाती हूँ और इसे यथार्थ ही मानती हूँ।

सच में हमारे ‘शिवजी’ भी तो हम भक्तों को अपनी दिव्यता से आकर्षित एवं समर्पित भाव से अपना बना लेते हैं।

अपने ‘शिवत्व’ में हम सभी को तल्लीन कर देते है।

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