प्रथम अध्याय / प्रथम वल्ली / भाग २ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति
प्रथम अध्याय / प्रथम वल्ली / भाग २ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति त्रिणाचिकेतस्त्रिभिरेत्य सन्धिं त्रिकर्मकृत् तरति जन्ममृत्यू । ब्रह्मजज्ञ। देवमीड्यं विदित्वा निचाय्येमां शानितमत्यन्तमेति ॥१७॥ त्रय बार करते जो अनुष्ठान…